३ रचनाएँ--
1-
मुझको आई ना कभी अदा-ए-इज़हार सनम
अदा-ए-खामोशी तुम समझ ना सके
खता लबों की है जो बयाँ ना कर पाए
मगर जुबान-ए-निगाह तुम भी तो पढ़ ना सके
मैंने दिल ही दिल में चाहा है दिल से तुमको
मुझको ग़म नहीं कोई कि प्यार कर ना सके
2-
पता नहीं
बेवफा तुम थे
हालात थे
या मेरे दिमाग के उपजे प्रेत
लेकिन
अगर तुम साथ देते
तो हम इस गिरह को सुलटा सकते थे
प्यार पे लगे इस बदनुमा दाग को
मिटा सकते थे
तुमको भुलाना तो कभी जायज़ ना था
पर हाँ बेवफाई की वजहें भुला सकते थे
अगर साथ देते जो तुम,
इक बार ज़माने से कहते तो मुझे अपना
फिर दिल-ओ-जिगर की तरह मुझको भी गिना सकते थे
बस मेरी खुशी में एकबार मुस्कुराते तो तुम
फिर चाहे तो उम्र भर मुझको रुला सकते थे...
3-
याद में तेरी ना अश्क बहायेंगे
जानते हैं वर्ना सो ना पाओगे
उम्र बिता देंगे इसी उम्मीद पे
लौट के इक दिन कभी तो आओगे
टूट के जब भी बिखर जाऊंगा मैं
बाँधने बाँहों में तुम ही आओगे
ख़ाक होके जब मिलूंगा इस हवा में
सांसों में भरने को तब तो आओगे
पूछती है हर घड़ी तुमसे जुडी
नाम आधा किस तरह भुलाओगे
बीते लम्हे बार बार आते नहीं
कम से कम इतना तो कहने आओगे....
दीपक मशाल
चित्र अपने कैमरे से...
वाह दीपक आज एक साथ तीन , लगता है अमिताभ की नई पिक्चर तीन पत्ते का असर है , तीनों ही दमदार हैं भई , इश्क तो हो गया है इतना यकीन है , अब देखते हैं कितना लिखवाता है
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
जब तक साँस है बाकी ,
जवाब देंहटाएंतक तक आँस है बाकी ,
खाक होंगे जब कभी
हम हे वफा परस्त ,
रोंने वालो की कतार तुम भी नजर आओगे ।
दीपक भईया आजकी आपकी रचना कहीं ना कहीं बहुत भीतर तक छू गयी ।
अरे नहीं अजय भैया, इश्क़ तो १७ साल पुराना हो गया... मिथिलेश बहुत अच्छा उदाहरण दिया...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
आँखों से वो सब कह दे जाना..जो ये खामोश लब न कह सकें...
जवाब देंहटाएंमुझ बेज़ुबान की जुबां बन ब्याँ करना इन्हें खूब आता है ...
अभी कुछ देर पहले ही अजय झा जी की पोस्ट पे कमेंट किया था कि ...कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैं...
आप जैसे साथियों कि संगत में रह कर शायद ये मुमकिन भी हो जाए ...
सुंदर रचना
ओह!! ओह! ओह!! तीन बार तीनों पर..दिल से निकला!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा दीपक!!
मुझको आई ना कभी अदा-ए-इज़हार सनम
जवाब देंहटाएंअदा-ए-खामोशी तुम समझ ना सके
खता लबों की है जो बयाँ ना पाए
मगर जुबान-ए-निगाह तुम भी तो पढ़ ना सके
मैंने दिल ही दिल में चाहा है दिल से तुमको
मुझको ग़म नहीं कोई कि प्यार कर ना सक
जबाब नही तीनो कविताओ का, लेकिन् यह वाली तो बहुत प्यारी लगी अपनी सी.
धन्यवाद
मुझको आई ना कभी अदा-ए-इज़हार सनम,
जवाब देंहटाएंअदा-ए-खामोशी तुम समझ ना सके…
खता लबों की है जो बयाँ ना पाए ,
मगर जुबान-ए-निगाह तुम भी तो पढ़ ना सके…
मैंने दिल ही दिल में चाहा है दिल से तुमको,
मुझको ग़म नहीं कोई कि प्यार कर ना सके…
kya baat hai deepak bhaiya... aapne to mere man ki baat kar di...
भई वाह....!
जवाब देंहटाएंतीनों शब्द-चित्र बहुत बढ़िया हैं।
दीपक तीनो कविताओं की तासीर माशाल्लाह ..!!!
जवाब देंहटाएंहर्फ़ दर हर्फ़ अहसासों के कारवाँ लगे है...
तुम्हारा अंदाज़-ए-बयाँ तारीफ से परे है..
समझ नहीं आया किसकी तारीफ करूँ ...यूँ लगा जैसे किसी ने मुझसे पूछ लिया आपको अपने तीनों बच्चों में से सबसे ज्यादा कौन पसंद है...
तो बाबा ये हम नहीं बता पायेंगे...
समीर जी की तरह ओह !! ओह !! ओह !! तो नहीं वाह !! वाह!! वाह !! कहते हैं..
ऐसे ही लिखते रहो..
दीदी...
नज़्म दिल से लिखी, दिल से निकली और दिल में समा गई!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .......भावनाओ की नदी को... आपने शब्दों के सागर में मिला दिया .
जवाब देंहटाएंदीपक भईया आजकी आपकी रचना कहीं ना कहीं बहुत भीतर तक छू गयी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता लिखी है
जवाब देंहटाएंआपने काबिलेतारीफ बेहतरीन
teeno kavita lajabab hain ekdam...dil ki tah tak jati hain.
जवाब देंहटाएंमुझको आई ना कभी अदा-ए-इज़हार सनम
जवाब देंहटाएंअदा-ए-खामोशी तुम समझ ना सके
खता लबों की है जो बयाँ ना कर पाए
मगर जुबान-ए-निगाह तुम भी तो पढ़ ना सके
मैंने दिल ही दिल में चाहा है दिल से तुमको
मुझको ग़म नहीं कोई कि प्यार कर ना सके
ye hi majboori hoti hai nigahon ki ki unki jubaan nhi hoti aur jiski jubaan hoti hai usne dekha nhi hota.........phir batao kais eizhare ishq hota.
bahut sundar prastuti.
पूरी कहानी सलीकेवार खूबसूरती से कही है।
जवाब देंहटाएंbadhiya hai...
जवाब देंहटाएंक्या बात है..एक से बढ़कर एक हैं ये कवितायें....मन के भावों को समेट कर रख दिया है...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसमीर जी कि आह! आह! और अदा दी की वाह! वाह! दोनों ही आशीर्वाद हैं... आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया कि इस पोस्ट को तवज्जो दी.
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
tikke pe tikkee.. teenon sundar
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