रविवार, 28 दिसंबर 2014

फिर जूलिया/ दीपक मशाल


कई दिनों बाद गुनगुनी धूप निकली थी। मैं आराम कुर्सी पर आँगन में बैठ अन्याय के विरोध में लिखी गई चेखव की एक प्रसिद्द कहानी का हिन्दी अनुवाद पढ़ रहा था कि तभी डाकिए ने दरवाज़े पर आवाज़ देते हुए पिछले महीने का मोबाइल का बिल मेरी तरफ़ उछाल दिया। हवा में ही बिल को लपक कर मैंने लिफ़ाफ़ा खोला। 
अब एक हाथ में कहानी थी और दूसरे में बिल   
  
चेखव ने लिखा 
'एक दिन मालिक ने अपने बच्चों की गवर्नेस जूलिया को अपने पढ़ने के कमरे में बुलाकर उसका हिसाब करना चाहा। उसने जूलिया से पूछा 
- हाँ, तो तुम्हारी तनख्वाह तीस रुबल महीना तय हुई थी ना?
जी नहीं, चालीस रुबल महीना। 
जूलिया ने दबे स्वर में कहा।
- नहीं भाई तीस। मैं बच्चों की गवर्नेस को हमेशा तीस रुबल महीना ही देता आया हूँ।'

अब मैंने एक निगाह दूसरे हाथ में पकड़े बिल पर डाली। बिल ने कहा 
- आपके पोस्टपेड कनेक्शन का प्लान है ग्यारह सौ निन्यानवे रुपए प्रति माह।  
हालांकि मैंने कनेक्शन महीने की चौथी तारीख से लिया था पर मैं चुप रहा। बिल ने आगे कहा 
प्लान के अनुसार आपके पास बारह सौ फ्री मिनट थे, जिनको आपने चौबीस तारीख़ तक इस्तेमाल कर लिया था। 
- पर फ्री मिनट्स ख़त्म होने पर मुझे कोई सूचना नहीं दी गई
मैंने प्रतिरोध किया 
- इसके बाद आपके द्वारा की गई अड़तीस कॉल्स में कुल दो सौ छप्पन मिनट बात हुई और इसका बिल सवा रुपए प्रति मिनट के हिसाब से बना तीन सौ बीस रुपए। इस तरह हुए पंद्रह सौ उन्नीस रुपए 
- लेकिन….... 
- आपने सारे नियम शर्तें पढ़ रखे हैं, यह आपके हस्ताक्षर कहते हैं  

चेखव की कहानी में  
'- अच्छा, तो तुम्हें यहाँ काम करते हुए कितने दिन हुए, दो महीने ही ना?
- जी नहीं, दो महीने पाँच दिन।
- अरे नहीं, ठीक दो महीने हुए हैं। मैंने डायरी में सब नोट कर रखा है। तो दो महीने के बनते हैं साठ रुबल। लेकिन तुमने हर इतवार को छुट्टी मनाई है। इतवार-इतवार तुमने काम नहीं किया, कोल्या को सिर्फ घुमाने ले गई हो।' 

उधर बिल बोले जा रहा था 
- आप महीने में छह बार दूसरे ज़ोन में गए, जिसका रोमिंग इनकमिंग-आउटगोइंग कॉल्स का बना एक सौ छ्यानवे रूपए  
- ऐसा कब तक चलेगा! अपने ही देश-प्रदेश के दूसरे हिस्सों में रोमिंग?
मैं हैरान था मगर बिल मेरी तरफ देखे बिना बताए जा रहा था 
- अब हुए सत्रह सौ पन्द्रह रुपए 

इधर कहानी में 
'- इसके अलावा तुमने तीन छुट्टियाँ और ली हैं। 
जूलिया का चेहरा पीला पड़ गया। वह बार-बार अपने ड्रेस की सिकुड़नें दूर करने लगी। बोली एक शब्द भी नहीं। 
- हाँ तो नौ इतवार और तीन छुट्टियाँ यानी बारह दिन काम नहीं हुआ। मतलब यह कि तुम्हारे बारह रुबल कट गए। उधर कोल्या चार दिन बीमार रहा और तुमने सिर्फ तान्या को ही पढ़ाया। पिछले सप्ताह शायद तीन दिन हमारे दाँतों में दर्द रहा था और मेरी बीबी ने तुम्हें दोपहर बाद छुट्टी दे दी थी। तो इस तरह तुम्हारे कितने नागे हो गए? बारह और सात उन्नीस। तुम्हारा हिसाब कितना बन रहा है? इकतालीस। इकतालीस रुबल। ठीक है न ?'

बिल में 
- आपको दिए गए पाँच सौ फ्री मैसेजेस में से आपने सिर्फ बत्तीस प्रयोग किए 
- हम्म 
मैंने राहत की साँस ली 
- मगर पचास रुपए कॉलर्स टोन के हुए और अब हुए सत्रह सौ पैंसठ रुपए 
- अरे! मैंने तो कोई कॉलर्स टोन शुरू कराई ही नहीं, ये अपने आप कैसे? 
मेरे लिए मामला बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था 

'दूसरी तरफ जूलिया की आँखों में आँसू छलछला आए। वह धीरे से खाँसी। उसके बाद अपनी नाक पोंछी, लेकिन उसके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला। मालिक कहता रहा 
- हाँ एक बात तो मैं भूल गया था 
उसने डायरी पर नजर डालते हुए कहा 
- पहली जनवरी को तुमने चाय की प्लेट और प्याली तोड़ डाली थी। चलो, मैं उसके दो रुबल ही काटूँगा। इसके अतिरिक्त एक दिन तुम्हारे ध्यान न देने से कोल्या पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ उलझकर उसकी जैकेट फट गई। तो दस रुबल उसके कट गए। फिर तुम्हारी इसी लापरवाही के कारण हमारी नौकरानी ने तान्या के नए जूते चुरा लिए। तुम अपने काम में ढील दोगी तो पैसे तो काटने ही पड़ेंगे।'

उधर बिल ने आगे बताया 
- महीने की तेरह, सोलह और अट्ठारह तारीख को आपने वॉइप कॉल्स के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया लेकिन उसके लिए आपने हमारा विशेष इंटरनेट पैक नहीं लिया हुआ था, इंटरनेट का हुआ दो सौ तैंतालीस रुपए पैंतीस पैसे और कुल हुए अठारह सौ आठ रुपए पैंतीस पैसे 
अब तक मैं भी जूलिया में ढलने लगा था। 

चेखव की कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई थी
'जूलिया के मालिक ने कहा 
तो जूतों के पाँच रुबल और कट गए और हाँ, दस जनवरी को मैंने तुम्हें दस रुबल दिए थे।
जी, मुझे अभी तक एक ही बार कुछ पैसे मिले थे और वे भी आपकी पत्नी ने दिए थे। सिर्फ तीन रुबल। ज्यादा नहीं।
अच्छा! हाँ तो चौदह में से तीन और घटा दो। इस तरह तुम्हारे बचते हैं ग्यारह रुबल। ये रही तुम्हारी तनख्‍वाह, पूरे ग्यारह रुबल। देख लो, ठीक हैं न?
जूलिया ने काँपते हाथों से ग्यारह रुबल ले लिए और धीरे से विनीत स्वर में बोली 
- जी धन्यवाद।
धन्यवाद किस बात का?
आपने मुझे पैसे दिए, इसके लिए धन्यवाद।
 मालिक ने ऊँचे स्वर में लगभग चिल्लाते हुए कहा
- तुम मुझे धन्यवाद दे रही हो, जबकि तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैंने तुम्हें ठग लिया है। तुम्हें धोखा दिया है। 
फिर संयत होते हुए कहा 
- मैंने तुम्हारे साथ एक छोटा-सा क्रूर मजाक किया। पर मैं तुम्हें सबक सिखाना चाहता था। देखो जूलिया, मैं तुम्हारा एक पैसा भी नहीं काटूँगा, यह लो तुम्हारे अस्सी रुबल। मैं देखना चाहता था कि इस दुनिया में कमजोर लोगों को डरा लेना कितना आसान है!

बिल का भी आख़िरी हिस्सा बाकी था 
- इन दो हज़ार आठ रुपए पैंतीस पैसों पर साढ़े बारह प्रतिशत वैट का दो सौ इक्यावन रुपए और पाँच पैसे लगाने पर होते हैं कुल दो हज़ार दो सौ उनसठ रुपए और चालीस पैसे, जिन्हें आपको इस महीने की पंद्रह तारीख तक जमा कर देना है। 
मैं बिल को फटी-फटी आँखों से देखे जा रहा था लेकिन मन में एक विश्वास था कि मेरे चुप रहने पर भी कहानी के अंत की तरह नेटवर्क कम्पनी का मालिक आकर कहेगा 
- मैं भी सिर्फ कुछ देखना, कुछ सिखाना चाहता था, मैं तुमसे सिर्फ ग्यारह सौ निन्यानवे रुपए लूँगा। 

और इसी विश्वास पर मैं ताउम्र जूलिया बना रहा।  

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

खबर (लघुकथा)/ दीपक मशाल

 
साँझ ढलने के साथ-साथ उसकी चिड़चिड़ाहट बढ़ती जा रही थी, मनसुख को लगा कि 
- दिन भर की भूखी-प्यासी है और ऊपर से थकी-माँदी… इसीलिए गुस्सा आ रहा होगा, ये करवाचौथ का व्रत होता भी तो बहुत कठिन है। 
राजपूताना रेजीमेंट में ड्राइवर की नौकरी पर तैनात मनसुख आज ड्यूटी ख़त्म होते ही सीधा घर को भागा आया, लेकिन आज प्रतिमा का व्यवहार उसे और दिनों से अलग सा लगा। वह खुद से मशविरा करने लगा 
- पिछले साल भी तो व्रत रखा था, तब तो ऐसा मूड उखड़ा न था जबकि तब तो यह पहली बार था। फिर इस बार क्या ऐसी बात हो गई जो रह-रहकर चौके के बर्तन भड़भड़ाए जा रहे हैं।
पानी पीने के बहाने वह चौके में गया तो देखा कि वह सिसक भी रही थी। एकबारगी सोचा कि पूछ लिया जाए कि वज़ह क्या है लेकिन उसकी हिम्मत न हुई, उसे याद आया कि
- सुबह ड्यूटी जाने के वक़्त देर हो रही थी सो वह चिल्ला पड़ा था कहीं वही वजह तो नहीं?
चाँद निकलने का वक़्त हुआ तो प्रतिमा चलनी, करवा, सींकें और बाकी पूजा सामग्री लेकर छत पर जा पहुँची, मनसुख भी साथ में आ खड़ा हुआ। पूजा पूरी होने के बाद जब वह व्रत तुड़वाने के लिए पानी का गिलास अपनी ब्याहता के होंठों तक ले जाने को हुआ तो प्रतिमा ने पानी पिए बिना ही गिलास परे हटाते हुए कँपकँपाती आवाज़ में पूछा
- अखबार में ऐसी खबर है, क्या सच में जंग छिड़ सकती है?

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

मुआवज़ा/ (laghukatha) Dipak Mashal

मुआवज़ा सत्तर से ऊपर बुजुर्गों से पता चला कि इससे पहले क़स्बे में ऐसी बाढ़ उन्होंने सिर्फ तब देखी थी जब वो खुद बच्चे या फिर किशोर थे। हफ्ते भर की मूसलाधार बारिश और नजदीकी बाँध को कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा काट दिए जाने ने समूचे जिले को प्रलय का नमूना दिखा दिया था। पानी उतरा तो सरकार ने प्रतिनिधियों और अधिकारियों को नुकसान का अनुमान लगाने के काम में लगा दिया। पीड़ितों के पुनर्वास में मदद के लिए घोषणाएँ होने लगीं। राज्य सरकार ने बाढ़ पीड़ितों की सूची माँगी। 
रातोंरात सूची भी तैयार हो गई, अंतिम रूप देने के लिए लेखपालों को कुछ असली पीड़ितों के नाम दर्ज करने के लिए लगाया गया। 'अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल' के हिसाब से नाम दर्ज करके जब लेखपाल राहत शिविर से जाने लगा तो पीछे से नेकसिंह बंजारे ने गुहार लगाई

- सा'ब, हमऊँ को नाँओ लिख लेओ 
- का नाम है 
लेखपाल ने बेरुखी से पूछा  

-  नेकसिंह 
- नुक्सान?
- सबई चलो गओ सा'ब, दो बकरियाँ चली गईं, एक कुत्ता मर गओ.…. पहनवे-ओढ़वे के सब उन्ना-लत्ता बह गए.… खटिया, चूल्हो-चौका बासन…… गुज़ारे खों कछू नईं बचो 
दुःखी स्वर में नेक सिंह ने बताया  
- भक ससुर, कुत्तन को मुआओजा मिळत कऊँ? घर कच्चो हतो के पक्को?
पड़ताल करते लेखपाल ने झिड़ककर सवाल किया 

- घर न हतो मालिक, ऐसेई गाड़ी पे बरसाती तान कें काम चलात ते। तीन साल सें जई गाँव में बसे 
बंजारे ने ब्यौरा दिया 
- फिर तुम्हें न मिल पाहे, जो मदद स्थाई निवासियन के लाने है  
पैंट झाड़ते हुए लेखपाल ने असमर्थता जाहिर की 

नेक सिंह रिरियाने लगा 
- दया करो सा'ब बिलकुलई बर्बाद हो गए, खाबे तक के लाले पड़े…. अब तो कामऊ नईंयाँ करबे खों 

- अरे कर लीजिये लेखपाल सा'ब, ग़रीब आदमी है.…
साथ में चल रहे सिपाही ने सिफारिश लगाई  

- आप कहते हैं तो कर लेता हूँ दीवान जी, वर्ना …… ठीक है जाओ, कर लओ नाओं दर्ज 
एक-एक कर सिपाही और नेक सिंह से मुखातिब होते हुए लेखपाल बोला 

नेक सिंह ने सिपाही और लेखपाल को कृतज्ञतापूर्वक दोनों हाथ जोड़े और आश्वस्त होकर चला गया  
- जब चोरी-चकारी या राहजनी जैसे मामले नहीं सुलझ पाते तो प्रेशर कम करने के लिए गिरफ्तारी दिखाने में बड़े काम आते हैं ये बंजारे
सिपाही ने हँसते हुए सिफारिश का राज बताया और दोनों चाय की गुमटी की तरफ बढ़ गए। 

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