सोमवार, 16 मई 2011

कवि शरद कोकास को सृजन सम्मान २०११

वैसे खबर थोड़ी पुरानी है लेकिन इतनी भी नहीं की उसे सुनकर खुशियाँ न मनाई जा सकें और सम्बंधित हस्ती को बधाई न दी जा सके...
कुछ दिन पहले ही पता चला कि पहले कवि और अब ब्लोगर यानी कि ब्लॉग पर उपस्थित हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक श्री शरद कोकास जी को कविता के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान के लिए वर्ष २०११ का 'सृजन सम्मान' प्रदान किया गया है. यह हम सभी हिन्दी ब्लोगर साथियों के लिए गर्व का विषय है.

श्री शरद कोकास जी जिनको मैं कविता के क्षेत्र में अपना गुरु भी मानता हूँ और भी कई ब्लोगर साथियों का, जो कि कविता सीखने की ललक रखते हैं, समय-२ पर मार्गदर्शन करते रहते हैं. ज्ञातव्य है की शरद जी की पहल पत्रिका द्वारा प्रकाशित लम्बी कविता 'पुरातत्ववेत्ता' पर भी हाल ही में समीक्षा की एक पुस्तक विमोचित हुई थी. पुरातत्ववेत्ता वास्तव में ऐसी कविता है जो कविता के प्रशिक्षार्थियों के लिए सम्पूर्ण ट्यूटोरियल साबित होती है.

आप यहाँ उनके नाम पर चटका लगाकर उनके ब्लॉग शरद कोकास  पर पहुँच कर बधाई दे सकते हैं..

दीपक मशाल 

शनिवार, 7 मई 2011

कहीं हो न जाए दिग्विजय सिंह की जूतों से मरम्मत..

बहुत कम ऐसे नेता होंगे जिनके कुकृत्यों की वजह से उनकी सूरत(कूरत कह सकें तो बेहतर) मात्र से ही हमें नफरत हो जाए.. दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे ही नेताओं में से है. सच है यह दिग्विजय सिंह आज तक किये गए अपने कामों से सिर्फ नफरत के लायक ही लगता है. जाने क्यों लगता है की बहुत जल्द ही कहीं इसे सड़क पर रोक इसकी जूतों से मरम्मत न कर दी जाए.
इस घटिया नेता की हर बयानबाजी सिर्फ सुर्खियाँ बटोरने के लिए होती है यह अब हर वो व्यक्ति जान गया है जो कांग्रेस का अंधभक्त नहीं है. कभी-२ तो लगता है कि यह व्यक्ति उन लोगों में है जो अपने भले के लिए, वोटबैंक के लिए अपनी माँ को भी सरेआम गालियाँ दे दे. एक वर्ग विशेष के कुछ विचित्र मानसिकता वाले लोगों को खुश करने के लिए जो एक दुर्दांत आतंकवादी को जी कह कर संबोधित कर सकता है वह कुछ भी कर सकता है.

कांग्रेस भी इसका इस्तेमाल सिर्फ निजी हित के लिए करती हुई लगती है. ठीक एक क्रिकेट मैच के आखिरी पंक्ति के बल्लेबाज की तरह जिसको कि ९वें विकेट गिरने के बजाय दूसरे विकेट गिरने पर ही मैदान में उतार दिया कि चल जाए तो कम नहीं, खो जाए तो ग़म नहीं.. वैसे दिग्विजय सिंह की औकात कांग्रेस में एक दोयम दर्जे के नेता से ज्यादा नहीं, जिसको कि खुली छूट है कि कभी भी कुछ भी भौंको.. खुल्लमखुल्ला कुछ भी बोलने की इज़ाज़त है, वो सब जिससे कि कांग्रेस का वोटबैंक मजबूत हो. लोग भड़क जाएँ और हमारे साथ आ जाएँ तो अच्छा वर्ना अगर उल्टा परिणाम दिखे तो दिखावे के लिए दिग्विजय को महासचिव पद से हटा दो. लेकिन असलियत में उसपर कांग्रेसी दिग्गजों का वरदहस्त रहेगा. कांग्रेस आलाकमान द्वारा हमेशा उसका वैसे ही ख्याल रखा जाएगा जैसे शिवराज पाटिल को राज्यपाल बना और विलासराव देशमुख को केंद्र सरकार में मंत्री बना रखा जा रहा है. भले ही लोगों की नज़र में तुरत-फुरत कुछ भी कर दिया जाए, शायद यही वह आश्वासन है जो दिग्विजय सिंह को गन्दगी उगलने में सहायक है.

दूसरी तरफ बुंदेलखंड को लेकर खेली जा रही कांग्रेस की राजनीति साफ़ ज़ाहिर है, जहाँ दिग्विजय ने मनमोहन-राहुल की चुनावी तैयारी वाली सभा की पूर्वसंध्या पर कांग्रेस को बुंदेलखंड का समर्थक बताया और अगले दिन बड़े कांग्रेसियों ने उसका मुँह बंद करा कर स्टेज पर चुप्पे बैठे रहने दिया, जैसे कह दिया हो कि, ''ज्यादा ची-चपाड़ की तो उतार देंगे अभी मंच से नीचे.. उतना ही बोला करो जितना कि हम लोग कहें, ज्यादा अपने घुटने मत लगाया करो..''. और इसी तरह आज़ादी के बाद से ही पृथक बुंदेलखंड के नाम पर इस अतिपिछड़े खण्ड के निवासियों को कांग्रेस द्वारा निरंतर छला जा रहा है. इस बार भी महासेवक मनमोहन सिंह ने बुंदेलखंड की मदद करके अहसान सा किया और उसका श्रेय भी सार्वजनिक मंच पर चढ़ कर अपने छोटे मालिक और बड़ी मालकिन को दे दिया. यह बात हमें जल्द ही समझ लेना चाहिए की उत्तरप्रदेश जैसे प्रदेशों के पिछड़े होने का एक कारण बड़ा प्रदेश होना भी है, जिसको एक साथ बेहतर प्रशासन देने के लिए छोटा राज्य बनाया ही जाना चाहिए.
सोनिया गांधी एक तरफ तो भली, ईमानदार, लौह नेता बनने की नौटंकी फैला रही हैं दूसरी तरफ चुपचाप पीछे से भ्रष्टाचार, शोषण और अनर्गल मगर वोटखेंचू बयानबाजी को सह दे रही हैं. सच है कूटनीति बड़े अच्छे से सीख गई हैं कांग्रेस अध्यक्ष.
दीपक मशाल 

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