दोस्तों, जब से अपने देश गया शायद उसके कुछ दिन बाद से ही थोड़ी सी खांसी उठनी शुरू हो गयी थी जो कि परहेज़ ना करने, निरंतर सर्दी में यात्रा करने और दवा लेने में लापरवाही करने से आज शायद किसी गंभीर बीमारी में परिणित हो चुकी है..... सोचा यू.के. वापस आके कुछ दिन आराम करने से ठीक हो जायेगा लेकिन यहाँ तो उलट खांसी के साथ जुकाम, पीठ दर्द, सरदर्द और बुखार भी लग गए.. डॉ. को दिखाया तो उसने टी.बी. की सम्भावना व्यक्त करते हुए एक्स-रे कराने के लिए बोला.. अब चूंकि कल डॉ. से मिला था और कल शाम देर हो जाने की वजह से आज एक्स-रे कराया.. मगर रिपोर्ट सीधी डॉ. के पास भेज दी गई और डॉ.स्माइली 5 दिन की छुट्टी पे चली गयीं. तो अब तो सीधा सोमवार को ही मिलेंगीं... तब तक ये अनिश्चितता ही बनी हुई है की मुझे टी.बी. है या नहीं..{वैसे उन्होंने सिर्फ ciprofloxasin 500 mg BD लेने के लिए बोला है(ये जानकारी सिर्फ दराल सर के काम की है)}..
वैसे दिल की बात ये है कि मुझे मौत से डर तो नहीं है.. हाँ लेकिन मैं एक गुमनाम मौत नहीं मरना चाहता... मैं नहीं चाहता कि लोगों को पता भी ना चले कि दीपक मशाल नाम का कोई शख्स इस दुनिया में कभी आया भी था या नहीं.. अभी किया ही क्या है मैंने... अभी तो ईश्वर ने जो कलाएं दीं उनका दुनिया के लिए उपयोग किया ही नहीं... अभी तक तो ऐसा मंच बनाने में ही लगा हूँ जिस पे चढ़ के जब मैं कोई सही बात बोलूँ तो दुनिया मुझे सुने..
अभी तो ढंग से ये भी नहीं पता कि मेरा पहला कविता संग्रह 'अनुभूतियाँ' लोगों के बीच मुझे कितनी पहिचान दिला पाया है :)... खैर ये सब तो मजाक की बात है... लेकिन हाँ अगर मुझे ये सफ़र बीच में ही छोड़ के जाना पड़ा तो जिस उद्देश्य के लिए परमपिता ने धरती पे भेजा उसको पूरा ना कर पाने का अफ़सोस तो रहेगा ही... क्या इसका मतलब ये समझूं कि परवरदिगार को मुझपे भरोसा नहीं कि मैं उनसे किया वादा पूरा कर पाऊंगा..
ये तो पता है कि टी.बी. अब कोई जानलेवा बीमारी नहीं रही(अगर ये मुझे होती भी है तो)अगर ये कोई लाइलाज बीमारी भी हुई तो भी मैं रोते धोते तो नहीं ही मरना चाहता.. मरना चाहता हूँ तो 'आनंद' की तरह........ सबको हँसते हंसाते....लेकिन समस्या यहाँ भी खड़ी होती है, कि आनंद को तो कैंसर हो रखा होता है.. जिसमे कम से कम उसके चाहने वाले अंतिम समय में उसके करीब तो रह सकते थे.. अब यहाँ बीमारी भी ऐसी कि कौन पास आये.. और माँ, बहिन, प्रेयसी जैसे कुछ रिश्ते जो साथ रहना भी चाहें तो मैं उन्हें साथ रहने क्यों दूं... क्यों अपने साथ उनको भी इसके जीवाणु दे जाऊं???
झूठ नहीं कह रहा दोस्तों... डर मरने का नहीं मुझे बस इतना सा है कि ऐसी बीमारी ना हो कि मरते वक़्त अपनों को मुझे खुद ही दूर करना पड़े.... क्योंकि दूर मैं होना नहीं चाहूँगा और इस डर से कि उन्हें कुछ हो ना जाये पास मैं उन्हें लाऊंगा नहीं...
वैसे अन्दर से मेरी इच्छाशक्ति तो यही कहती है कि ''हमको मिटा सके ये किसी बीमारी में दम नहीं.....''
मैं कहीं से नकारात्मक नहीं होना चाहता और ना ही हो रहा हूँ बस दुनिया के एक सच को दिमाग में बिठा के रखे हूँ कि यहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है... और मेरे अजीजों से मेरा यही कहना है कि किसी भी बीमारी के मामले में मेरी तरह लापरवाह ना हों.. वर्ना बेवजह आपके उद्देश्य में बाधा बनते हुए, जीवन के कुछ अतिमहत्वपूर्ण दिन बर्बाद हो सकते हैं.. या क्या पता सारा जीवन भी....
इसी के साथ एक आशावादी कविता -
-उम्मीद-
हर रोज
बिस्तर पर जाने से पहिले
सहसा चली जाती है नज़र...
इन हाथों की लकीरों पर
और....
और इस उम्मीद से कि
काश....
ये कुछ बदल जाएँ कल तक..
और बदल जाए बहुत कुछ
इनके बदलने से..
जैसा कि
लोग कहते हैं अक्सर...
मगर...
हर सुबह
वही नाउम्मीदी,
ना बदलती हैं ये लकीरें
और ना ही हर शाम
बदलती है उम्मीद
इनके बदलने की.......
दीपक मशाल
चित्र- अपने ही कैमरे से...
(नोट-ये आलेख सिर्फ हलके फुल्के मजाक के लिए लिखा गया है इसे ज्यादा गंभीरता से ना लें)
दीपक ...प्लीज़ शीर्षक सही करो..... तुमने तो रुला दिया.... भाई.....
जवाब देंहटाएंखुद को हमेशा अच्छा कहो.... I am the best का फंडा लेकर चलो.... हमेशा खुश रहो.... और सूपीरिअरिटी काम्प्लेक्स डेवलप करो.... सारी बीमारी दूर भाग जाएगी.....
जवाब देंहटाएंऔर कभी ऐसा नहीं कहते.... चलो शीर्षक चेंज करो....
दीपक,
जवाब देंहटाएंये कैसी बातें कह रहे हो..??
ऐसा कुछ भी नहीं है..पहली बात तुम्हें टी.बी हो ही नहीं सकती...ये बिमारी रातों रात नहीं होती...दूसरी बात अगर हो भी गई तो इस्ला इलाज है और बहुत आसन इलाज़ है..
अब मुझे कल अपने बारे में लिखना पड़ेगा...तुम तो अनुमान लगा रहे हो कि ऐसा कुछ होगा...और मैं ??
खैर कल बताती हूँ..
मेरे प्यारे भाई को कुछ नहीं हुआ है...
हाँ .. ज्यादा बुखार में लोग बडबडाते हैं और तुम वही कर रहे हो..
जल्दी ठीक हो जाओ और धूम धाम से बढ़िया बढ़िया पोस्ट लिखो
सबका प्यार और आशीर्वाद है..
दीदी..
ओए लडके अब पिटेगा तू , अबे नज़ला ,जुखाम, खांसी ..और कहां से कहां ..सारे जीवन के फ़लसफ़े पढ डाले , एक काम कर कल से कुछ मत लिख , कुछ दिन किसी अंग्रेजी मेम के साथ थ्री इडियट देख के आ , उसको बताना कि रणछोड्दास श्यामलदास चांचड ही बाद में फ़ुनसुक बांगडू बनता है ,आज बहुत ही गुस्से में हूं इसलिए ऐसे लिख रहा हूं , अबे कुछ नहीं होगा मेरे भाई , बस तबियत थोडी खराब है , ठीक हो जाएगी । अपना ख्याल रखो और ज्यादा मत सोचो , समझे कि और समझाऊं
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
हाँ! अब ठीक है.....
जवाब देंहटाएंअब रुलाना मत.....
सिर्फ एक्सरे हुआ है अभी तक .. रिपोर्ट भी नहीं आयी बनकर .. और इतने परेशान हो गए आप .. यह जानते हुए कि टी बी भी लाइलाज बीमारी नहीं .. आखिर इतने सारे डाक्टर हमारे स्वास्थ्य के लिए ही तो इतने रिसर्च कर रहे हैं .. छोटी छोटी बातों पर इतना घबडा जाने से जीवन कैसे कटेगा .. अभी बहुत लंबी उम्र है आपकी .. वैसे आपके बेहतर स्वास्थ्य के लिए मेरी शुभकामना सदैव आपके साथ रहेगी !!
जवाब देंहटाएंअरे नहीं दीपक भाई ये आपको हो ही नहीं सकता, हमारा प्यार जो आपके साथ है, अदा दीदी की बातो पर ध्यान दीजियेगा ।
जवाब देंहटाएंअरे यही prob .होती है कवी मन लोगों की जरा सी बात का पता नहीं क्या क्या सोच लेते हैं.....अभी रिपोर्ट भी नहीं आई ..खासी क्या हुई न जाने क्या सोच लिया...कुछ नहीं होने वाला अभी बहुत झेलना है लोगों को आपकी कविताओं को :) ..ऐसी बातें न किया करें आप कृपया करके...
जवाब देंहटाएंबरहाल कविता बहुत बहुत अच्छी है..
बिना पिए ऐसी बहकी बहकी बातें नहीं करनी चाहिए, पाप लगता है
जवाब देंहटाएंस्वस्थ रहो !
मस्त रहो !
और व्यस्त रहो !
टी. बी. की लोंगफॉर्म अगर टिप्पणी की बीमारी है तो हा हा हा
वर्ना ..........शीर्षक बदलो.............आहत कर रहा है ...
दीपक तुमसे अब गद्य लिखने को कहा था पर ऐसा नहीं. अभी तुमसे मरने जैसी बातों की नहीं वरन अनुभूतियाँ जैसी और दूसरी पुस्तकों की अपेक्षा है.
जवाब देंहटाएंभले ही ये आलेख हंसी मजाक के मूड में लिखा हो पर ................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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वैसे खांसी तुमको उस समय भी आ रही थी जब तुम यहाँ आये थे.....................
अरे भइया दीपक,
जवाब देंहटाएंतुझे तो अच्छा खासा वापस भेजा था...ये कौन सी भूतनी तेरे सिर पर बैठ गई है जो बहकी-बहकी बातें कर रहा
है...अरे तू भारत में दो महीने लगा कर वापस गया है...भारत और उत्तरी आयरलैंड की आबोहवा में खासा फर्क है...प्रतिरोधक शक्ति कम होने की वजह से नजला-जुकाम के कीटाणुओं ने तुझे आ घेरा...बस इतनी सी बात है...
थोड़े दिन उस फिज़ा में रहेगा, फिर एडजस्ट हो जाएगा...माना तू कवि आदमी है...कोमल दिल वाला है...लेकिन इस तरह दिल पर लेना ठीक नहीं है....अपने महफूज़ उस्ताद से ही कुछ सीख...किस तरह तमाम परिस्थितियों के बावजूद
अपने पर भरोसा करता है...कहीं भी भिड़ने को तैयार रहता है...ऐसी ही स्प्रिट की ज़रूरत है...अरे ये बीमारी-वीमारी
कुछ नहीं बस मन का वहम होती हैं...बस टाइम पर दवा ले और सब कुछ भूल जा...तुझे कुछ नहीं हुआ है...ये मैं कह रहा हूं...और तू मेरी बात पर भरोसा करता है, ये मैं जानता हूं...
जय हिंद...
ओह्ह ये दीपक मशाल की ही पोस्ट है या किसी आठ साल के बालक की...ऐसे भी कोई घबराता भला ....वैसे समझ सकती हूँ आप बहुत अकेलापन महसूस कर रहें हो..खासकर अभी अभी यहाँ से लौट के जाने के बाद..ज्यादा ही मिस कर रहें हो...chill बाबा कुछ नहीं हुआ है आपको..हम सब लिख कर दे दें??..U r fit n fine..b happy :)
जवाब देंहटाएंऔर ये कविता थोड़ी निराशावादी ज्यादा हो गयी..जरा जोश,प्यार वाली लिखो..अभी उम्र है,आपकी
कवि दीपक मशाल जी,
जवाब देंहटाएंएक काम कीजिए सोमवार तक लम्बी तानकर सोइए, ढेर सारी पुस्तकें पढ़िए। तब तक के लिए चिन्ता स्थगित कर दीजिए।
एक किस्सा सुनाती हूँ। सच है। लगभग अट्ठाइस साल पहले एक भले डॉक्टर ने मुझे भी यही शक व्यक्त किया था। एक्सरे करवा लिया। मेरे मन में कोई शंका नहीं रही किन्तु उनके मन में बनी रही। जान पहचान के थे तो कभी कहीं पार्टी में भी मिल जाते तो कहते कि आप फिर से चैक अप करवाइए। इस बात के तेरह चौदह वर्ष बाद जब पहली बार भयंकर दमे का अटैक हुआ तब समझ आया कि यही रोग रहा होगा जिसे वे पकड़ नहीं पाए और टी बी की शंका सदा जताते रहे। मेरी गोद में तो तब साल दो साल की बिटिया थी किन्तु फिर भी इतनी चिन्तित नहीं हुई। और तब से ब तक तो चिकित्सा ने इतनी प्रगति कर ली है। सो निश्चिन्त रहिए। और समय पर दवा खाना सीखिए। दवा निश्चित अवधि से पहले अपने आप कभी बन्द मत कीजिए।
एक बात और, उन्हीं दिनों एक अन्य डॉक्टर को शक हुआ था कि ब्रैन ट्यूमर हुआ है। ब्रैन अभी भी मजे में है। तब भी मुम्बई में थी और अब वापिस मुम्बई आ गई हूँ। मन होता है कि उन डॉक्टरों से मिलूँ और बताऊँ कि अभी तक साबुत सही सलामत हूँ। आप भी तीस साल बाद किसी को यह मजेदार किस्सा सुना रहे होंगे। यदि कुछ गड़बड़ निकला तो भी खूब खाइए, दवा लीजिए, खुश रहिए और देखते ही देखते रोग भाग जाएगा। वैसे अपनी मृत्यु की कल्पना में डूबने की बीमारी सबसे खतरनाक होती है।
शुभकामनाओं सहित,
घुघूती बासूती
तब से अब* तक
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
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जवाब देंहटाएंआलेख मजाक में लेते हुए बस इतना कहना चाहेंगे कि भाई, किताब डाक से भेज दो...हमारे आने में तो अभी समय है...क्या पता???
जवाब देंहटाएंकिताब रहेगी तो पढ़ लिया करेंगे..
:)
कौन टाईप की बातें सोचते हो भाई..अजब आईटम हो!!
दो कॉपी भेज देना...एक लायब्रेरी में दान कर देंगे... हा हा!!
जवाब देंहटाएंबहुत डराते हो दीपक भाई, क्या हो गया है, भगवान सब अच्छा करेगा, चिंता मत कीजिये, ब्लॉगवाणी पर आपका लिंक देखकर भागे आ रहे हैं कि दीपक भाई को क्या हो गया।
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी जैसा धमकाऊँ?
जवाब देंहटाएंतुझे तो अच्छा खासा वापस भेजा था...ये कौन सी भूतनी तेरे सिर पर बैठ गई है जो बहकी-बहकी बातें कर रहा
उन्ही के जैसा गाना गुनगुनाऊँ तो
मुश्किल में हो तारे, ना घबराना प्यारे
गर तू हिम्मत ना हारे, तो होंगे वारे-न्यारे
नहीं समझ आया ना?
ओए लडके अब पिटेगा तू (सौजन्य:अजय झा)
kya deepak ji hum to dar hi gaye!
जवाब देंहटाएंchalo apni sehat ka khyal rakho sahi ho jayega sabkuch.
apki kavita badi sundar lagi....
उम्मीद पे दुनिया कायम है।
जवाब देंहटाएं--------
औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने!
My Friend,
जवाब देंहटाएंThe woods are lovely dark and deep
but you have a promise to keep
and miles to go .....!
अरे दीपक भाई, इतने सारे ब्लोगर बंधुओं ने डॉक्टर का रोल निभाते हुए आपको फिट घोषित कर दिया , फिर काहे का डर।
जवाब देंहटाएंअगर फिर भी आपको सांत्वना नहीं मिली हो तो इन सवालों का ज़वाब खुद से लो :
क्या आपको बचपन में बी सी जी का टीका नहीं लगा, ज़रा देखें बाएं बाजु पर कंधे के पास--निशान अवश्य होगा।
क्या आप किसी टी बी के रोगी के संपर्क में रहे इन दिनों?
क्या खांसी को ३ हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं ?
क्या साथ में बुखार भी है ?
क्या भूख नहीं लगती ?
क्या वज़न कम हो गया है ?
क्या बलगम में खून आ रहा है ?
क्या आपने एंटीबायोटिक कम से कम सही डोज़ में ५-७ दिन तक नहीं खाई थी ?
अगर ऐसा नहीं है तो काहे चिंता करते हो यार। खाओ पियो और मस्त रहो।
दीपक, कुछ भी नहीं हुआ है तुम्हें। आलतू फालतू बातें सोचना बिल्कुल छोड़ दो और मस्त रहो। मैं डॉक्टर नहीं हूँ किन्तु मेरा एक परिचित दवा निर्माता है इसलिये मुझे पता है कि ciprofloxasin सिर्फ सर्दी खाँसी की एक सामान्य दवा है। पता नहीं कैसा डॉक्टर है तुम्हारा जो ऐसी सम्भावना जता दिया उसने।
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा रोग वहम होता है। वहम बिल्कुल त्याग दो और मस्त रहो। कभी कभी सर्दी खाँसी जैसी छोटी बीमारी भी ठीक होने में लंबा समय ले लेती है इसलिये बेकार की बातें सोचना बिल्कुल छोड़ दो।
अरे दीपक भाई
जवाब देंहटाएंआपको कुछ नहीं हुआ है बस आराम करिये जल्दी ही स्वस्थ हो जावेगे
मुझे ९ साल पहले आँख के डाक्टर ने कहा था मोतियाबिंद है जल्दी ओपरेशन करवा लीजिये पर मुझे तब भी कोई तकलीफ नहीं थी बस यू ही चेक अप करवाया था और आज भी कोई तकलीफ नहीं है ।
आपको अभी बहूत लोग ऐसे ही अनुभव सुनायेगे और आपका मनोबल सुद्रढ़ बना देगे
आशीर्वाद औए शुभकामनाये
दीपक भाई ,
जवाब देंहटाएंएक बार आप की तरह मै भी एक मामूली सी बीमारी को बहुत भयंकर समझ बैठा था और निराशा असीम था .
लेकिन सही समय पर ताऊ जी और अरविंद मिश्रा जी से बात चित से ही बीमारी आधी हो गयी अभी हम अच्छे हो तो बड़ो का बात तो मानना पडेगा ना .
आप राज भाटिया जी की बात मानिए और तुरंत किसी अच्छे हास्पिटल में जाच करवाइए .
और कल एक खुशनुमा पोस्ट लागाइये .
Sahi hai khansi ko kaha tak le jaaya jaa sakta hai isi baat se pata chalta ki kalpana shakti kitni mazboot hai
जवाब देंहटाएंmujhe aapki ye kuch panktiyan bahut bahut pasand aayi
जैसा कि
लोग कहते हैं अक्सर...
मगर...
हर सुबह
वही नाउम्मीदी,
ना बदलती हैं ये लकीरें
और ना ही हर शाम
बदलती है उम्मीद
इनके बदलने की.......
umeed laqeeron ke badalne ki
अरे भाई क्यू डरते हो, आप सीधे अस्पताल क्यो नही चले जाते, ऎसी बातो मे ठील नही करते, अगर अभी तुम मेरी टिपण्णी पढ रहे हो तो सुबह सब काम छोड कर सब से पहले अस्पताल जाओ, या फ़िर मुझे अभी या कल दिन मै किसी भी समय मेरे मोबाईल पर फ़ोन करे.... ०००० मै डाकटर तो नही लेकिन राय दे सकता हुं, वेसे घबराने की बात नही ओर ना ही लापरवाह होने की बात है, अभी मै आधा घंटा जाग रहा हुं
जवाब देंहटाएंAadarneeya Bhatiya Sir, aapka no. to hai nahin us tippani me sirf 0000 likha hai..
जवाब देंहटाएंaap please no. de diziye ya agar possible ho to 0044-7515474909 par missed call de diziyega..
main wapas call karta hoon
Jai Hind...
दीपक भाई-ये टीबी नही है। ये नजला जुकाम ही है। जो शीत के कारण है। "शीतोप्लादि चुर्ण लो शहद मिला कर एक चम्मच दिन मे तीन बार अगर बलगम आता है तो या फ़िर महालक्ष्मी विलास रस स्वर्णयुक्त लो इस खांसी बुखार का पता ही नही चलेगा।
जवाब देंहटाएंफ़ालतु टेंसन नही लेने का। मजे मे रहने का
Lalit sir, aapke sneh se abhibhoot hoon, satopaladi choorna yahan milna bahut mushkil hai.. fir bhi main pata karta hoon..
जवाब देंहटाएंdipak ji
जवाब देंहटाएंaapka nam kamaal ka hai
dipak se shuru hokar mashaal par poora hota hai
aapka raasta koi nahin rok sakta
aisa mera dridh vishwaas hai
wish you all the very best & enjoy your talent !
www.albelakhatri.com
बहुत मार्मिक है जी हम भी पढ़ने की आस लगाए बैठे हैं।
जवाब देंहटाएंऔर अगर ये सोच लिया की कुछ नहीं हुआ है तो सचमुच कुछ नहीं होगा ....बी पोजिटिव ...
जवाब देंहटाएंखत्री जी की सितोप्लादी चूर्ण लेने की सलाह बहुत ही लाभदायक है ...!!
दीपक ! ये क्या? क्यों सब को रुलाना चाहते हो? कितने दिन से तुम्हें कह रही थी कि अपनी सेहत की ओर ध्यान दो। जब से तुम मिले थे मुझे तब से ही चिन्ता थी। खैर अभी रिपोर्ट आने तक इन्तज़ार करो। अगर भगवान न करे कुछ ऐसा भी हुया तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। आज कल किस बिमारी का इलाज नहीं फिर जहाँ तुम बैठे हो वहां तो और भी अच्छा इलाज है। तुम ने मुझे नहीं देखा मेरी बिमारी का तो इलाज भी असंभव था मगर मेरी इच्छा शक्ति ,योगा , अक्यूप्रेशर .दवा सब ने मिल कर मुझे ठीक कर दिया। शायद अधिकतर लोगों ने इस बिमारी का नाम भी नहीं सुना हो। ये समाल वेसेल वेस्कोलाईटिस थिऔर आज मैं सब काम करती हूँ। पूरा दिन काम करती हूँ। कम से कम ये सब कहने से पहले अपनों के बारे मे तो सोचो उन्हें कितना दुख होगा कह देना आसान है। इसमे सिर्फ इच्छा शक्ति और खुराक काम करती है । दवा के साथ अच्छी खुराक न लो तो नुकसान होता है और कुछ परहेज भी किया करो ठंड से बचो। जल्दी से अपनी रिपोर्ट की कापी मुझे भेजो। मैने जो मेल मे तुम्हें नुस्खा बताया था साथ मे उसे करो 3 माह तक लगातार साथ मे दवा भी लो। लापरवाही बिलकुल नहीं पहले सेहत फिर कुछ और । अगर फिर से ऐसी बात की तो कभी बात नहीं करूँगी। तुम्हारी किताब पढ ली है दो तीन दिन मे समीक्षा लिखूँगी आज कल रीढ की हड्डी ने परेशान कर रखा है इस लिये अधिक देर बैठ नहीं पाती। चलो फिर अपना ध्यान रखना। सकारात्मक सोच हमेशा आदमी को विजय पथ पर ले जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आशीर्वाद भगवान तुम्हें लम्बी आयू और हर खुशी दे।
aap pagal ho gaye hain aur mere tamache khane ke kaam kar rahe hain mr.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंइतनी सी बात में मरने की सोचने लगे .. होता है इस उमर मे होता है ऐसा .. मस्त रहो ठीक हो जाओगे ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंbachpan me lagta hai "The Best" banen...
जवाब देंहटाएंfir pata chalta hai "THe Betters" are only the best...
:-)