वैसे तो ये कविता कल ही लगा देनी चाहिए थी, लेकिन आज ही सही...
आज हमें मनाना है,
उस शुभ दिवस को,
हुआ था लागू
संविधान जिस दिवस को.
वो संविधान जो जलता है,
नहीं... जलाया जाता था हर रोज
चौराहे पर....
हाँ वही.. जिसमे
संशोधनों की नई कीलें
ठोक दी जातीं हैं
जब चाहें...और जब ना चाहें तब भी.
हाँ! हाँ! वही संविधान
जिसे दुनिया के संविधानों की
नक़ल की पोथी भी कह देते हैं...
और बदल लेते हैं सफ़ेद लबादों को ओढने वाले
इसे बरसात में बरसाती में..
और सर्दी में शॉल में.
उसी संविधान के
लागू होने की शुभ तिथि
या फिर 'शायद'
एक दिन तीन सौ पैंसठ दिनों में..
कोशिश करते हैं हम मनाने की
'संविधान सराहना दिवस'
दीपक मशाल
चित्र- साभार गूगल से
बात तो सही है... हमारा संविधान.... कट, कॉपी और पेस्ट है....
जवाब देंहटाएंकविता के रूप में .... यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
ग्रेट वर्क....
आपके कविता का ये रुप देख कर बहुत अच्छा लगा । आपको गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंदीपक भईया पहले आपकी टिप्पणी देखता था किसी ब्लोग पर, तो टिप्पणी के अंत मे आप हमेशा लिखते थे बस जय हिंद, परन्तु कुछ दिंनो से देख रहा हूँ कि आप जय हिंद के बाद जय बुंदेलखंड भी लिख रहे हैं , कहीं ये क्षेत्रवाद की तरफ बढता पहला कदम तो नहीं ? उम्मीद है कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे ।
प्रिय मिथिलेश, तुलसीदास जी ने लिख है कि 'मुखिया मुख सो चाहिए खान-पान को एक, पाले पोसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक' ये तुम्हें भी पता होगा...
जवाब देंहटाएंलेकिन अगर मुखिया मुख कि तरह ना हो तो जो अंग अविकसित रह गया है उसको भी और अंगों के बराबर आने के लिए स्वयं कुछ प्रयास करना पड़ता है.. क्योंकि यदि वो पीछे रह जाता है तो अवशेषी अंग बन जाता है और अवशेषी अंग का शरीर में कोई उपयोग नहीं होता... मेरा उद्देश्यसिर्फ़ एक अविकसित और ऐसे खण्ड की ओर सरकार का ध्यान दिलाना है जो हर दृष्टि में संपन्न है लेकिन उसके संसाधनों का उपयोग सिर्फ वोट बैंक के झगड़े की वजह से नहीं किया जा रहा है... उसको पुनः स्वस्थ करके देश के हित में लगाया जा सकता है... कभी महाराज छत्रसाल का राज्य रहा ये क्षेत्र आज सूखा होने पर भी सूखाग्रस्त ना घोषित होते हुए और मुआवजा ना मिलने के कारण किसानों की, आत्महत्या, समाजवादी पार्टी के छुटभैया नेताओं कि गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार के लिए जाना जाने लगा है... क्या इसको पुनः आगे बढ़ाने के लिए ध्यान अपनी तरफ खींचना गलत है.. कहते भी हैं कि जब तक बच्चा रोये ना तो माँ भी दूध नहीं पिलाती..
वैसे भी आगे तो हमेशा जय हिंद ही रहेगा भाई... मामला
क्षेत्रवाद का नहीं बल्कि पिछड़े खण्ड को जोकि गड्ढे में है उसे गड्ढे से बाहर लाने का है... याद हो तो गाँधी जी कि दांडी यात्रा में एक कोढ़ का रोगी था जो बहुत धीमे चलने कि वजह से पीछे रह गया था तो सबसे तेज़ चलने वाले गाँधी जी स्वयं उसको आगे लेन के लिए पीछे तक गए थे..
उम्मीद है तुम बुरा नहीं मानोगे.. और मैं तो हर उस खण्ड के उत्थान के लिए कहता हूँ जो पिछड़ा हो... लेकिन हाँ जो इसको आगे लाना चाहते हैं उनके व्यक्तिगत स्वार्थों पर खुद लात मारना चाहूँगा..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
कीलें चाहे ठोकी जाती हैं संविधान में संशोधनों की
जवाब देंहटाएंपर ठुकती वे आम पब्लिक के बदन पर ही हैं
मसीह हो गई है पब्लिक हमारी यही है लाचारी।
uttam kathan
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सशक्त रचना!
जवाब देंहटाएंसच यही है कि नेताओं द्वारा हमारे संविधान को उनकी अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के आधार पर जब चाहे...तोड़ दिया जाता है...जब चाहे मसल दिया जाता है
जवाब देंहटाएंjai hind !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ्ा बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सही बात कही है। आज तुम्हारी पुस्तक की समीक्षा अपने ब्लाग पर लगा दी है । अनमोल अनुभूतियाँ हैं तुम्हारी उस पुस्तक मे भी । बहुत बहुत आशीर्वाद अपनी सेहत का ध्यान रखना।
जवाब देंहटाएंsundar aur satik baat kahi
जवाब देंहटाएंबहुत सही प्रस्तुति , २६ जनवरी मनाना एक फार्मेल्टी हो गई है
जवाब देंहटाएंकहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा,
जवाब देंहटाएंभानुमती ने कुनबा जोड़ा.
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कुछ इसी तरह से बना था हमारा संविधान.
अब लगता है कि उस समय संविधान बनाने में सहयोग करने वाले या तो दूरदर्शी नहीं थे या फिर उन्होंने जानबूझ कर देश को इस हाल में पहुँचाने का प्रयास किया होगा????
निर्दलीय प्रदेश का मुख्या मंत्री बनता है.
जीते कोई, सरकार कोई बना लेता है.
हारे लोग भी मंत्री बनते हैं.
अशिक्षित शिक्षा मंत्री बन सकता है.
आप जिसे नहीं जानते वो भी प्रधानमंत्री बन सकता है.
और भी है....और भी है........और भी है...........
वाह बहुत सुन्दर. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ्ा बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त कविता...बिलकुल सटीक..
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंभाई हमारा सविधान किस ने लिखा? कुछ बाते फ़ांस के सबिधान से तो कुछ बाते अग्रेजो के सबिधान से ली गई है बाकी भी इधर उधर से ले कर एक जुगाड बना दिया जिस का नाम सबिधान रख छोडा है
आप की बात से सहमत हु
प्रिय दीपक तुमको भी गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं....एक दिन देर से ही सही.
जवाब देंहटाएंआज तुम्हारी लिखी पुस्तक की समीक्षा निर्मला जी के ब्लॉग पर पढ़ी और पढ़ कर धन्य हुआ. इस उम्र में इतना परिपक्व लेखन अद्भुत है...इश्वर से प्राथना करता हूँ की माँ सरस्वती का वरद हस्त हमेशा तुम पर यूँ ही बना रहे...
नीरज
क्या परिभाषा दी है, क्या नजरिया है, क्या भाव हैं. लम्बे समय से आपका कोई पता नहीं चल रहा था, आज आप पकड़ में आ गए. आप शायद मुझे भूल गए हों, मैं भूला नहीं. कविता के क्षेत्र में इस कविता ने आपके विकास की पूरी कथा बयान कर दी. बधाई. उम्मीद है आप मुझे पहचान लेंगे और शायद निकट भविष्य में वार्ता का कोई रास्ता ढूंढेंगे.
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र पर मेरे भी ऐसे ही विचार हैं, मुझे खुशी हुई, कोई तो मेरे साथ है.
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जवाब देंहटाएं.
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हाँ वही.. जिसमे
संशोधनों की नई कीलें
ठोक दी जातीं हैं
जब चाहें...और जब ना चाहें तब भी.
हाँ! हाँ! वही संविधान
जिसे दुनिया के संविधानों की
नक़ल की पोथी भी कह देते हैं...
क्या यार दीपक,
काहे लिख दिया इतना साफ-साफ और ब्लन्ट,
पोलिटिकली करेक्ट रहने के इस दौर में ऐसा कोई करता है क्या ?
. . . . :)
आभार!
sadhe shabdon main prabhavi abhivyakti...
जवाब देंहटाएंSanvidhaan ka upyog durupyog dona hota rahta hai!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर्वत एम. सर आपको भूलना कोई आसान बात नहीं है... हाँ आपका कोई संपर्क न. ना होने कि वजह से बात नहीं हो पायी... अभी दें तो किसी दिन आपसे बात करता हूँ..
जवाब देंहटाएंजय हिंद.... जय बुंदेलखंड...
अजी एकदम नकल है। अंग्रेजों के दो कानून थे, एक राजा के लिए और एक प्रजा के लिए। हमारे संविधान में भी दो कानून हैं एक राजा के लिए और दूसरा प्रजा के लिए। राजनेता और नौकरशाहों पर कोई कानून लागू नहीं होता जबकि उनका बड़ा अधिकारी स्वीकृति न दे तो। यही कारण है कि ये सब चोर हमेशा बच जाते हैं। फिर भी हम बड़े ही शान से संविधान निर्माण का दिन मनाते हैं।
जवाब देंहटाएंgantantra divas ki shubhkamnaye...achchi post
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दीपक भईया आपका जवाब देखा , बहुत खूशी हुई । मेरा ये तनिक भी ना कहना था कि आप क्षेत्रवाद फैलाना चाहते है या कोई ऐसी मँशा है, जिस तरह से आजकल हमारे यहाँ चल रहा क्षेत्रवाद आप भी देख ही रहेंहोंगे, बस मन थोडा उसी को लेकर बिचलीत है, बहुत दुःख होता है जब देश को खुद से लडते हुए देखता हूँ । आपके जवाब से सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंदीपक जी हमारे संविधान मैं दुनिया के तमाम देशों के कायदे कानून की बहुलता मिलेगी सिवाय एक देश के और उस देश का नाम भारत है | कानून बनाते समय शुद्ध भारतीय व्यवस्था, जिसका लेखा जोखा अन्य शास्त्रों के साथ-साथ कौटिल्य अर्थशास्त्र मैं है, का ध्यान ना रख कर दुसरे देशों की व्यवस्था को तरजीह दिया गया |
जवाब देंहटाएंसही कहा राकेश जी..
जवाब देंहटाएंजय हिंद...