चलिए आज आपको २ समाचार सुनाता हूँ..
इतना कह कर वो खामोश हो गया और महात्मा जी की तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगा.
महात्मा बहुत सिद्ध पुरुष थे और बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे लेकिन उन्होंने धैर्य पूर्वक बात सुनने के बाद उस व्यक्ति से सुबह ५ बजे उनके पास आने के लिए कहा..पहली तो खुशखबरी है कि अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा समुदाय का आयुर्वेद में विश्वास बढ़ता ही जा रहा है.. खुद ही देख लीजिये, 'हाथ कंगन को आरसी क्या??(चित्र पर चटका लगा बड़ा कर देखें..)
अब बढ़ते हैं दूसरे समाचार की तरफ जिसमे की आपकी वर्षों पुरानी परेशानी का हल ले के आया हूँ...
'तो अबकी बार जब आपके घर कोई मेहमान आये और ''क्या लेंगे''? पूछने पर जवाब मिले की ''कुछ नहीं..'' तो अंततः आपके लिए अब कुछ नहीं बाज़ार में उपलब्ध है..' चित्रों को बड़ा कर एक नज़र डालियेगा... :) (ये दोनों समाचार एक सार्वजनिक ई पत्र से लिए गए हैं..) आप यहाँ भी देख सकते हैं- http://www.kuchhnai.com/where.htm
अब अंत में कि अगर आपको सिगरेट की आदत पड़ जाए और लगे कि ये छूटती नहीं तो ये प्रेरक प्रसंग बांचें(वैसे ये एक टिप्पणी दी थी समीर जी की पोस्ट पर लेकिन उनका आदेश था कि इसे पोस्ट बनाया जाए)....
एक पहुंचे हुए महात्मा के पास एक हताश-निराश व्यक्ति पहुँचता है और उनसे कहता है कि 'महात्मा जी, मैं बहुत परेशानी में हूँ.. कई सालों से सिगरेट पीने की बुरी लत लगी हुई है.. वैसे मुझे इसके सारे दुष्प्रभावों के बारे में पता है और कई बार इसे छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर ये आदत है कि मुझे छोडती ही नहीं.'
इतना कह कर वो खामोश हो गया और महात्मा जी की तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगा.
वो व्यक्ति कुछ समझा नहीं लेकिन जैसा कि महात्मा जी ने कहा था वैसे ही अगले दिन सुबह ५ बजे उनके समक्ष उपस्थित हो गया.
महात्मा जी ने कहा कि 'भाई सुबह का वक़्त है चलो नज़दीक के बगीचे में टहल कर आते हैं..'
अब उन सज्जन को अपनी समस्या का हल जो चाहिए था तो जैसे महात्मा जी ने कहा वैसे वो करते गए..
बगीचे में दोनों काफी देर तक चुपचाप टहलते रहे.. जब वापस लौटने का वक़्त हुआ तो अचानक महात्मा जी ने एक पेड़ की डाल को जोर से पकड़ लिया और लगे चिल्लाने कि 'बचाओ.. बचाओ..'
अब वो व्यक्ति देख परेशान हो गया मगर फिर भी उनके हाथ पकड़ कर डाल को छुड़ाने लगा..
व्यक्ति जितनी छुडाने की कोशिश करता महात्मा जी उतनी ही जोर से डाल को और कस के पकड़ लेते..
जब काफी देर हो गई तो उस व्यक्ति ने कोशिश करनी बंद कर दी और महात्मा जी पर झल्लाते हुए बोला, 'अजीब आदमी हैं आप खुद तो डाल छोड़ नहीं रहे और दुनिया भर का शोर मचा रहे हैं.. भला ये डाल भी किसी को पकड़ सकती है क्या?'
महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए तुरंत डाल को छोड़ दिया और कहा, ' यही बात तो मेरे समझ में नहीं आ रही कि सिगरेट किसी को कैसे पकड़ सकती है.. ये सिगरेट तुम्हें नहीं छोड़ना चाहती या तुम सिगरेट को?'
कहने की जरूरत नहीं कि दृढ निश्चय से कुछ ही दिन में उन महाशय की सिगरेट की लत छूट गई.
दीपक 'मशाल'
मस्त पोस्ट है दीपक जी !
जवाब देंहटाएंवैसे एक बात और जोड़ना चाहता था इसमें कि " भारतीय मसालों से ........ बशर्ते उसमे मिलावट न की गई हो !!!
दोनों खबरें बढिया हैं…………………एक मरते को जिलायेगी और दूसरी सुरूर चढायेगी।
जवाब देंहटाएंकुछ नई तो एकदम नई चीज़ है भाई ।
जवाब देंहटाएंहमें तो और कुछ नहीं , बस कुछ नई चाहिए ।
बेहतरीन पोस्ट जनाब...."
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं तो चहिये ही चहिये
जवाब देंहटाएंअब तो जिसे जो पिलाना हो पिला देना चाहिए, पूछा और व्यक्ति ने कुछ नहीं माँग लिया तो कठिनाई होगी।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ये कुछ नहीं तुम्हारी पिछली पोस्ट में दिखी थी :) तभी लगा कि अब किसी से नहीं पूछना चाहिए बस पीला दो जो है घर पर .ही ही ही .
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार बनात कही है | पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत खूबसूरत बाते है यंहा पर |
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार बाते कही है | पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत खूबसूरत बाते है यंहा पर |
जवाब देंहटाएंओह!! मैने सोचा तुमने कुछ नुस्खे बताएं हैं तो कमेन्ट में यही लिखूंगी कि लाख नुस्खे बता दो...पर जबतक उसकी खुद की इच्छा नहीं होगी ये 'लत' नहीं छूट सकती....पर इस प्रेरक कथा में तो यही बात है...अब मेरा कमेन्ट गया ना..:)...क्या लिखूं?:)
जवाब देंहटाएंये Kuchh Naiकिस भाषा के शब्द हैं?..जर्मन?? हम महिलाओं को इतना ही बता देते :)
saar yahi n ki jahan chaah wahan raah
जवाब देंहटाएंयह खुशखबरी बहुत उपयोगी है!
जवाब देंहटाएंKya dimag ladaya Mahatma ji ne!Maza aa gaya padh ke!
जवाब देंहटाएंप्रेरक रोचक..आभार
जवाब देंहटाएंउपयोगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंओह!! दीपक... हमने बॉटल का लेवल तो पढ़ा ही नहीं...सोचा हमारे किस काम का...ये तो अपना हिंदी शब्द है..:)
जवाब देंहटाएंsahi post likhi hai...kambal to aapko chhod de lekin aap kambal ko na chhodein ...
जवाब देंहटाएंbadi hi upyogi baaton ki or dhyan dilaaya hai ...yahan aaj kal doctors indian khaana khaane ki liye prescribe bhi kar rahe hain...
aur bottle ka lable 'kuchh nahi' ye kya bat hui ...main ek shuru karti hun 'haan nahi to'
didi..
दीपक,
जवाब देंहटाएंएक ’कुछ नहीं’ था हमारे (हिन्दी वालों के)पास, उसे लेकर भी यारों ने कितना कुछ बना लिया। उन्होंने डीलक्स व्हिस्की बना ली, तुमने पोस्ट बना ली।
बहुत बढ़िया पोस्ट, पसंद आई।
आपकी इस टिप्पणी को पढा था मैने :)
जवाब देंहटाएंअति उत्तम पोस्ट।
जवाब देंहटाएंFirst news is indeed good. Ayurveda will have a better future now.Some awareness is required in this direction.
जवाब देंहटाएंRegarding second news a story is reminded in my mind..sharing here..
Once a farmer came to King Akhbar and asked for 'kuchh nahi'.
Akhbar said .'How can i give you that? It's not possible to give you 'kuchh nahi'. Arrey kuchh to maango.
He said, i want only kuchh nahi !
Akhber was worried, He went to his wise minister and narrated the instance.
Birbal used his presence of mind and asked the farmer to follow him..
Farmer followed Birbal to the main room.
Birbal picked up the carpet and asked the farmer to pick the thing.
Surprised farmer said- "wahan to 'kuchh nahi' hai.
Bairbal said...To le lo na ! You only requested for 'kuchh nahi'
Deepak ji....From now onwards i will be utterly careful in asking for 'kuchh nahi'
sab kuchh chahiye !
अब तो यह कहना पड़ेगा कि कुछ नहीं, नहीं चाहिए। बढिया जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमैं भी छोड़ने को सोच रहा हूँ ... पर मैं तो पीता ही नहीं, चलो पहले शुरू कर देता हूँ फिर छोडूँगा.
bahut khoob...
जवाब देंहटाएंbus aise hee bundelkhand ka naan roshan karo.......
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंदॄढ-निश्चय !!!!! सिर्फ़ यहीं नही .......हर कहीं काम आता है ....
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आया और मुरीद हो गया। वाह। मुझे लगता है सिद्ध पुरुषों का सिखाने का तरीका ऐसा ही होता है। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंhttp://udbhavna.blogspot.com/
आप की इस पोस्ट मे बहुत कुछ होते हुए भी " क़ुछ नही " है ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया दोस्त ...!!!!
'कुछ नहीं' बस यूँही घुमती घुमती चली आई...देखा तो यहाँ बहुत कुछ है :)
जवाब देंहटाएं@पी.सी.गोदियाल जी
जवाब देंहटाएंयही तो फर्क है ना सर कि मिलावट वाले मसाले से टी.बी. शुरू होती है और बिन मिलावट वाले से ख़त्म होती है..
@मो सम कौन
संजय जी यहाँ सभी कुछ ना कुछ बनाने में लगे हैं ना.. देखिये आपने भी मजाक बना ही दिया ना मेरा.. :P
@Divya ji
Thanks for sharing such a nice story(joke) of Akbar-Birbal.. :)
@अपनत्व
शुक्रिया मैम.. कोशिश करता रहूँगा
@पंकज मिश्र, @स्तुति जी
स्वागत है दोस्त.. अच्छा लगा आपका आना आते रहिएगा..
@अर्चना जी
एकदम दुरुस्त फरमायद..
@अखरन दा वंजारा
आपसे मीणा बहुत सुखद रहा था सर.. शुक्रिया..
लहसुन वाला नुस्खा तो मैने बहुत से मरीजों पर आजमाया है जहाँ तक कि बच्चों मे खाँसी नुमोनिया आदि मे लहसुन सुँघाने से रोग ठीक होता है मै तो अपने नाति नातिनों को दवा की जगह यही नुस्खा देती हूँ। और जब मै तुम्हारे पास आऊँगी तो कभी नहीं कहूँगी "कुछ नही; अगर तुम ने मेरे आगे कुछ नही रख दी तो क्या होगा?????? मस्त पोस्ट है आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंमैं तो कुछ नई लूँगा... :)
जवाब देंहटाएंहमारी औषधीय गुणों से कौन परिचित नहीं है, अच्छे अच्छे रोगों के इलाज है पर हम भारतीय विदेशी दवाईयों के लिये भागते हैं और विदेशी भारतीय दवाईयों के लिये। अब देखिये बाबा रामदेव जी ने औषधीय गुण बताये और योग का सही तरीके से प्रचार किया और इस प्राचीन संपदा के बल पर कितना बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया है।
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं के लिये सोचना पड़ेगा और धूम्रपान तो हम वर्षों पहले छोड़ चुके हैं।
प्रश्न - क्या पिया ?
जवाब देंहटाएंउत्तर - कुछ नहीं ।
कुछ नहीं को देख कर मज़ा आ गया..... यह भी अच्छा लगा कि विदेशों में हिंदी शांदों की इम्पोर्टेंस बढती जा रही है.... मैं तो सिगरेट पीता नहीं..... और ऐसा भी नहीं है कि पिया नहीं..... हाँ ! यह है कि लती नहीं हुआ.....
जवाब देंहटाएंकमेन्ट रात में ही देता ....लेकिन पढ़ते पढ़ते कैसे नींद आ गई ..... पता ही नहीं चला......
जवाब देंहटाएंमहात्मा जी ने मुस्कुराते हुए तुरंत डाल को छोड़ दिया और कहा, ' यही बात तो मेरे समझ में नहीं आ रही कि सिगरेट किसी को कैसे पकड़ सकती है.. ये सिगरेट तुम्हें नहीं छोड़ना चाहती या तुम सिगरेट को?'
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा महात्मा ने.
aapki Cigrette ki baat se purnaya sahmat hoon.....badi pyari example dee aapne!!
जवाब देंहटाएंwaise bhi govt. kitna bhi chah le, cigrett ki dibbi pe kuchh bhi likh daale kuchh nahi hoga.......agar koi naa chhodna chahe to....:(
dipakji, sigrate ki lat ke alaava bhi
जवाब देंहटाएंbahut si laten hain, jo insan apne se chipkaye huye hai, unhen bhi chhudane ka nuskha batayen
आपकी लाभदायक व जानकारी बर्धक पोस्ट पढ़कर दिल वाग-वाग हो गया।
जवाब देंहटाएं"कुछ नहीं" बड़ी दिलचस्प लग रही है..कुछ है इसमें या कुछ नहीं है?
जवाब देंहटाएंनीरज
अब लोगों के घर जाने पर कुछ नही कहने के पहले सोचना पड़ेगा भाई ... ।और सिगरेट छोड़ने के बारे सोचना कब छोड़ोगे भाई ?
जवाब देंहटाएं@संजय जी, ये महात्मा जी का नुस्खा हर व्यसन के लिए लाभकारी है.. :)
जवाब देंहटाएं@नीरज जी, मैंने भी अभी तक कुछ नईं नईं पिया.. :)
@शरद भैया, ये भी सही सवाल है.. सोचना ही छोड़ दें तो भी हल निकले..
आप सबका आभार..
सच कहा है दीपक जी ... आत्मिक बाल से यह संभव है .... पर मन बहुत चंचल है .. फिसल जाता है .... और अब तो कुछ नही भी मिलने लगी है ... बचना मुश्किल है ....
जवाब देंहटाएंare deepak bhai ..maafi chahunga,...kuch dionon se vilupt tha... jugaad nahi ho pa raha tha time ka..ka karen.. heheh.....badi dhansu news mili yahaan se..pehli wali news jaisi bat to aksar aati hai .. jaise gau mutra se falaan rog door honge..to maerica ne petent karwa liya ..ityqadi ityadi..par is kuch nahi par to wari javaan .. :) hahah
जवाब देंहटाएंhaan jaldi hi kuch dhundh dhandh ke post karta hun .. :)
BHAHUT ACHCHA HAI.
जवाब देंहटाएंkya mast article hai.... very inspirational...
जवाब देंहटाएंaise hi article stories k roop me likhe jane chahiye aur publish kiye jane chahiye.
महात्मा जी ने शिष्य को ज्ञान देने के लिए जो तरीका अपनाया वो सराहनीय हैI आयुर्वेद को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हमारे लिए गौरव की बात हैI ईसको मिलावट करने वाले मुनाफाखोरों से बचाना होगाI जानकारी रोचक एवम उपयोगी हैI धन्यवाद
जवाब देंहटाएं-नारायण भूषणिया
:) ab yeh toh cigarette peene wala hi bataayega ki inspiration mili ki nahi, kahaani badhiya hai...sameer ji ke Wills ke packet se toh nahi uthaai yeh kahaani
जवाब देंहटाएंyour blog's header is nice
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमैं भी छोड़ने को सोच रहा हूँ ...
~!~ आदरणीय लेखक महोदय व न्यूज संवाददाता , आखिर वो दिन कब आएगे
जवाब देंहटाएंजब हम मानसिक गुलामी से बाहर आयेगे भारतीय ओषधियों को '' मसाला '' नही !! औषधि !! कह कर बुलायेगे !
~!~अमित आनंद ~!~