बुद्धिजीवी!!! एक ऐसा शब्द जिससे मेरा तब पाला पड़ा जब उसका मतलब समझ में आने लगा था.. असल में है क्या कि मैंने ये महसूसयाया है कि शब्दों का भी ज़िंदगी के सफ़र में पहिचान होने के आधार पर वर्गीकरण कर सकते हैं.. जैसे कि कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनके आप नाम पहले जानते हैं और मतलब बाद में, कुछ ऐसे होते हैं जिनके मतलब पहले जानते हैं और उनसे आमना-सामना बाद में होता है.. बहुतो ऐसे भी होत हैं कि जिनके न ता नाम से मुठभेड़ होती है और न मतलब से लेकिन जिन्हें बेमतलब में आप खुदई ईजाद कर लेते हैं.. अपने हुनर के बल बूते पे. लेकिन अब अगर इहाँ हम इस बेकार के लफड़े में पड़ गए कि इनके उदाहरण कौन-कौन हैं तो पोस्ट के मूल मुद्दे से भटक जावेंगे और फिर जिस नाम को लेकर ये पोस्ट लिख रहे हैं तनिक उनके सोचवे काजे भी कछू छोड़ दिया जावे..
तो बात हो रही थी बुद्धिजीवी की.. नाम के हिसाब से देखें तो एक ऐसा जीव जिसके पास बुद्धि या बुद्धि का बक्सा या बुद्धि का खजाना हो(जीव क्या इंसान कहो ना यार, अब गाय-भैंस, भेड़-बकरियां थोड़ेई ना इस गिनती में चलेंगे)........ सिर्फ हो नहीं बल्कि जो उसका उपयोग भी करना जानता हो.. लेकिन ऐसा उपयोग नहीं जैसा आजकल यहाँ छद्म जगत में कुछ लोग कर रहे हैं.... अरे भाई यहाँ उपयोग की बात हो रही है दुरूपयोग की थोड़े ना..
अब यूंकी देखने वाली बात ये है कि बाज़ार में बढ़ रही महंगाई के मद्देनज़र हर चीज़ नकली आने लगी तो ये बुद्धिजीवी प्राणी कैसे इससे अछूता रहता. तो असली बुद्धिजीवी के बीच कुछ नकली भी पनप गए. अब जब पनपे तो ऐसे पनपे कि जैसे पार्थेनियम हिस्टीरियोपोरस (एक बहुत तेजी से फैलने वाला खर-पतवार जिसे कांग्रेस घास भी कहते हैं) यानी बाकी की जमी-जमाई फसलों अर्रर्रर मेरा मतलब असली बुद्धिजीवियों को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल पड़ गया. उफ्फ्फ्फफ्फ़... मैं जाने क्या गच्च-पच्च बोल रहा हूँ .. क्योंकि वो बुद्धिजीवी ही क्या जो अपने अस्तित्व के बारे में सोचने लगे, अगर सच्ची-सच्ची परिभाषा बताऊँ तो असली बुद्धिजीवी है ही वही जिसे कोई परवाह न हो कि कहाँ कौन उसे क्या कह रहा है और क्या कर रहा है.. क्योंकि वो तो पहले ही जीवन का सार जान चुका होता है और फिर उसे इन थोथे तमगों में कोई इंटरेस्ट भी नहीं रह जाता.
अब यहाँ मतभेद हों उससे पहले ही मैं नकली और असली बुद्धिजीवी दोनों में भिन्नताएं बतलाये देता हूँ.. तो देखिये जनाब ये जो हम सब दिन-रात जान खपा-खपा कर और ठोड मार-मार कर पोस्टें ब्लॉग पर लाने में लगे हैं ये सब नकली या छद्म बुद्धिजीवीगीरी है(मेरी राय में). अब कहें 'काहे ई बात की गारंटी का है???' तो है का कि हम जब अपनी अक्कल लगा के कौनौऊ पोस्ट लिखने का सोचते हैं तो कहीं न कहीं मन में ससुरा ये ख्याल आ ही जाता है कि कितने चटके, कितने टिप्पणी, कितने पिछलग्गू(अरे वही फोलोवर) आ जावे करेंगे.... और कितना हम इम्प्रेशन झाड लेंगे पब्लिक के ऊपर एक ज़रा सी पोस्ट से... लिखेंगे और फिर नेपोलियन बोनापार्ट की मूर्ती की तरह इठ के, अकड़ के बैठ जायंगे ये दिखाने को कि 'ओ तेरे की मैंने तेरे से कित्ता बेहतर लिख दिया रे.... देख तूने ६ पुराने क्षेत्रीय शब्द ढूंढ के, फेंक के मारे थे पढने वालों को और मैंने पूरे ८ मारे हैं... अब तो पक्का हो गया मैं तेरे से बेहतर बुद्धिजीवी.. कोई मेरी पोस्ट आसानी से समझ ही नहीं सकता.. जो समझेंगे वो समझेंगे.. जो ना समझेंगे वो बिचारे इस लपेटे में नतमस्तक हो जावेंगे कि ऊंचे लोगों की बातें हम मूरख नहीं समझ सकते.. हम सिद्ध कर देंगे और तब लोग कहवे करेंगे कि 'महाराज बस जेई हैं किरपानिधान और जिनके अलावा अक्कलमंद कोऊ हेई नईयां'..
अब देखा जाए तो अक्कलमंद और अक्कलबंद में लिखने में ज़रा सा फर्क होता है म को ब से फेर दिया तो बेडा गरक ही समझिये.. जब भी अक्कल के घोड़े दौड़ते हैं और बुद्धिजीवी बनने या दिखने के लिए कोई षड़यंत्र रचाते हैं तो बुद्धिजीवी बनने का ख्याल जैसे ही उपजता है कि तैसे ही हम हो जाते हैं नकली बुद्धिजीवी(वैसे सिर्फ नकली कहना बेहतर होगा क्योंकि बुद्धिजीवी समझना न समझना तो पोस्ट पढने वालों की समझ का फेर है).
फिर भी हमारा दिमाग संसार के माया-मोह में पढ़कर बुद्धिजीविता के कीड़े को कुलबुलाने के लिए स्पेस दे ही देता है.. और बस फिर दिखलाऊ/ नकली/आर्टिफिशियल बुद्धिजीवी बनने के लिए आजीवन प्रयास करने की कसम खा के बैठ जाते हैं और सतत अपनी साधना में बगुला-भगत की तरह लींन रहते हैं एक टंटा पाल कर..... बहुत सारे समझदार तिकड़मबाज़ ये सिद्ध करने में कामयाब भी हो जाते हैं कि वो बुद्धिजीवी हैं.. पर हकीकत में नकली शब्द उपसर्ग बना उसके साथ-साथ चिपका ही रहता है... और जब भी वो अंतर्मन में झांकते हैं तो ये 'नकली' नालायक ''पकड़े रहना......... पकड़े रहना'' की रट लगाये फेविकोल के एड की तरह मुंह चिढ़ाता रहता है....
किया क्या जाए भाई???? है भी यही कि बुद्धिजीविता और दिखावे का न जाने किस जनम का बैर है कि दोनों एक दुसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते.. ३६ का आंकड़ा धरा है दोनों में. जरा पीछे मुड़ के एक बार फिर नज़र तो डालियेगा इस छत्तीस के ३ और ६ पर कैसे इठे जा रहे हैं एक दूसरे से दोनों.. जो ज़रा सा पलटा नईं कि दूसरे की तरह होके मान ही बदल देता है. बिलकुल ऐसे ही अगर दिखावे की तरफ बुद्धिजीविता ने मुंह कर लिया तो नकली बुद्धिजीविता और अगर दिखावे ने दिखवइयापन(दिखावा) छोड़कर बुद्धिजीविता की तरफ मुंह कर लिया तो असली बुद्धिजीविता.....
यही तो संकट है भाई कि हम जीवन भर लाख- करोड़ और अरब की संख्या में कोशिश कर-कर के बुद्धिजीवी बनते रहते हैं और दुनिया को दिखाते रहते हैं पर जब असल बुद्धिजीविता आती है तो फिर न तो इस नवागंतुक बुद्धिजीविता को दुनिया को दिखाते हैं और ना ही ये अहसास बाकी रह जाता है कि हम बुद्धिजीवी हैं.. अर्थात जब यह अहसास ख़त्म हो जाए कि हम कुछ हैं.. बस समझ लीज़िये कि उसी दिन आप बुद्धिजीवी हो गए.
पर देखिये न फिर वही धर्म संकट, वही अज़ब खेल कि बुद्धिजीवी होकर न तो जश्न मना सकते हैं कि बुद्धिजीवी हो गए, न तो फिर किसी से कहने का या जतलाने का मन करता है कि हम बुद्धिजीवी हैं और ना ही अपनी लालबुझक्कड़ोइं दिखा औरों का अंटागफील करने में लगे रहते हैं . ये तो वही बात हो गयी कि बर्फ उबलने को मचले तो पानी हो जाए और पानी ज़मने को मचले तो बर्फ हो जाये और वाष्प संघनित होने को मचले तो पानी हो जाये.. यानी अगर कुछ बनना है तो हर हाल में अपना अस्तित्व खोना ही खोना है.. तो फिर धरा ही क्या है इस छद्मभेषधारी, महाठगिनी बुद्धिजीवीबाज़ी याने बुद्धिजीविता में.. सबके साथ सबकी तरह रहो ना यार..
दीपक 'मशाल' (अब देखिये यहाँ भी पेल ही दिए अपना नाम ये सिद्ध करने के लिए कि ये नाम बुद्धिजीवी है)
देखिये मेरी पसंद के चिट्ठे भी- http://archanachaoji.blogspot. com/
http://rashmiravija.blogspot.com/
चित्र साभार गूगल से
देखिये मेरी पसंद के चिट्ठे भी- http://archanachaoji.blogspot.
http://rashmiravija.blogspot.com/
चित्र साभार गूगल से
"जब यह अहसास ख़त्म हो जाए कि हम कुछ हैं.. बस समझ लीज़िये कि उसी दिन आप बुद्धिजीवी हो गए."
जवाब देंहटाएंऊँची बात ,मगर यहाँ है इसके एकदम उलट !
बहुत बुद्धिजीवी पोस्ट है......: ) :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...मज़ा आ गया....अभी मैं तो इस श्रेणी में नहीं हूँ कम से कम..
जब यह अहसास ख़त्म हो जाए कि हम कुछ हैं.. बस समझ लीज़िये कि उसी दिन आप बुद्धिजीवी हो गए.
जवाब देंहटाएंsach me deepak bhaiya
देख तूने ६ पुराने क्षेत्रीय शब्द ढूंढ के, फेंक के मारे थे पढने वालों को और मैंने पूरे ८ मारे हैं... अब तो पक्का हो गया मैं तेरे से बेहतर बुद्धिजीवी.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया,शब्दको्ष में वृद्धि हो रही है.
बुद्धिजीवी वैसे ही जैसे श्रमजीवी... श्रमजीवी को यह कहने में आपत्ति नहीं होती कि वह अपना श्रम बेचकर जिन्दा है लेकिन बुद्धिजीवी...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंआप से सहमत है जी,
जवाब देंहटाएंबुद्धिजीवी........
जवाब देंहटाएंबहुत भ्रामक शब्द है।
अकलमंद शब्द के अंत में भी 'मंद' ही आता है ..मतलब जिसकी अक्ल मंद-मंद चले ,,,अब ये बताएं की आप क्या है ,,,'अक्लमंद' या फिर 'अक्ल्बंद ' .....ये मत बताना की हम क्या है :) :) :)
जवाब देंहटाएंआज हमें फिर ये शंका थी की 'लघुकथा' होगी इस चक्कर में कब से 'लघुशंका' रोक कर बैठे थे इतंजार में...ये भी बढ़िया लिखा है :):):):):)
Baap re baap!Buddheejeevee suntehee,yaa to Arundhati saamne aati hai yaa,Rashdi! Is jaatee se bhagwaan bachaye!
जवाब देंहटाएंजब यह अहसास ख़त्म हो जाए कि हम कुछ हैं.. बस समझ लीज़िये कि उसी दिन आप बुद्धिजीवी हो गए.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सर्वोत्तम विचार *******
दीपक भाई अच्छा लिखा है :)
जवाब देंहटाएंmast post
जवाब देंहटाएंबुद्धिकीवी कि एक परिभाषा है ...वो भी सही.... जो विपरीत परिस्थितियों में .... कूल बिहेव करे....
जवाब देंहटाएंsirji bechara buddhijeevi hai to jeev hi...apne astitv ke liye kulbulayega hi...aur agar ye prajati insaano me mile tab to aag laga de apne baalon me apni pehchaan ke liye....sahab dikhega nahi to bikega kaise....buddhijeevi namak keet par aapki ye post gudguda gayi...
जवाब देंहटाएंबुद्धिजीवी तो अल्पसंख्यकों में भी अल्पसंख्यक है!
जवाब देंहटाएंIt's a beautiful post . Written very systematically and logically. Enjoyed reading. Without intellect, nothing is possible . Specially writing is indeed intellectual's domain.
जवाब देंहटाएंWitnessed your superlative intellect throughout the post. Such posts are rare. I'm loving it.
Congrats !
Divya
:) नकली पर असली का खूब तडका लगाया है ...बहुत बड़ी बड़ी बात कह दीं ..
जवाब देंहटाएंएक बुद्धिजिवी पोस्ट के लिए शुक्रिया .
बहुत ही विचारपूर्ण पोस्ट...मेहनत साफ़ झलक रही है...बहुत ही बारीकी से असली और नकली के बीच की रेखा बतायी है...यह तो सच है बिलकुल...बुद्धिजीवी का चादर ओढ़ कर कोई बुद्धिजीवी नहीं बन सकता...अंदर से झलकना चाहिए और वह सबको नज़र आ ही जाती है..चादर का क्या है एक ना एक दिन उड़ कर सारी असलियत खोल ही देगी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट.
बुद्धिजीवी शब्द ६३ बार आया है -अगर आप असली बुद्धिजीवी होंगे तो गिनेगे जरूर ,यह एक बुद्धिजीवी का आकलन है और दुसरे बुद्धिजीवी भी इसे मानेगें जो बुद्धिजीवी नहीं होंगे या केवल बुद्धिजीवी होंने का ढोंग करते होंगे वे ही इस बुद्धिजीविता असे परिपूर्ण बात नहीं मानेगें ..मगर मैं बुद्धि ...अरे रे रे रे ...मैं तो पूरा बुद्धिजीवी बनने लग गया !
जवाब देंहटाएंदीपक जी ,अच्छी खासी मशक्कत की है इस पोस्ट में ..ये रंग भी मजेदार है
जवाब देंहटाएंबुद्धिजीवी यहां शुतुरमुर्ग हो चला
जवाब देंहटाएंव्यवस्था को यहां अधमरा देखिये
दीपक आज के वातावरण में इस बुद्धिजीवी शब्द को हमने नया नाम दिया है.........बुद्धिभोगी....इसे अब तुम भी दुरुस्त कर लो....
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
वाह जी!! बहुत जबरदस्त विश्लेषण...हम बुद्धुजीवी भी पढ़कर समझ गये पूरी बात...हा हा!!
जवाब देंहटाएंदीपक, हम तो पुराने बुद्धूजीवी है:)
जवाब देंहटाएंएक बार ये लेबल लग जाये न, तो बस चैन ही चैन है, सुकून ही सुकून। जबकि बुद्धिजीवी बनना तलवार की धार पर चलना है।
दीपक भाई क्या बात है? बुद्धिजीवियों पर थीसिस ही लिख मारी। वैसे बुद्धिजीवी वो है जो बुद्धि से आजीविका कमाता है। पढाई की और रोजगार किया और बन गए बुद्धिजीवी। इनका अक्सर ज्ञान से लेना-देना नहीं होता है। हाँ कुतर्की अवश्य हो जाते हैं और अपने आपको ही सर्वाधिक ज्ञानी भी मानते हैं। बिना पैसे का धेला भर काम नहीं करते, पैसा दो और काम कराओ। बढिया पोस्ट है भाई, बधाई।
जवाब देंहटाएंनाम ही क्यूं .. आपका चेहरा भी आपके बुद्धिजीवी होने की पुष्टि कर रहा है !!
जवाब देंहटाएंहम और तुम महाबुद्धिजीवी हैं ..किसी को डाउट हो ही नहीं सकता...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा रहा विश्लेषण...और सारे उदाहरण भी दृष्टिगत हो गए एकदम से ....असली नकली सब...
हमेशा की तरह लाजवाब...बेमिसाल...और अचूक....
शाबाश...
...दीदी..
नकली बुद्धीजिवी नहीं परजिवी ठीक रहेगा मेरे भाई
जवाब देंहटाएंराचक लगी ये पोस्ट
बुद्धि जीवी नामक प्राणी आज कल बहुत मात्रा मे मिलते है किन्तु ये उचित तवज्जो न मिल पाने के कारण लुप्तप्राय हो रहे है।
जवाब देंहटाएंare !hmari to budhhi hi gol ho gai pdhte pdhte .
जवाब देंहटाएंbahut achha vishleshan .
अब तो जैसे तुमको पढ़ना मेरी आदत मे शामिल हो गया है।
जवाब देंहटाएंकुछ तो तुम्हारे व्यवहार ने कर दिया है और उससे ज्यादा तुम्हारी रचनाओं ने। अरे भाई कभी-कभी मैं आपको लिखते-लिखते तुम लिख बैठता हूं। बुरा मत मानना। यह अधिकार तुमने मुझे नहीं दिया... मैंने ही अनजाने में हासिल कर लिया है।
:)fantastic..."beej" ka bhi jawab nahi...
जवाब देंहटाएंराजकुमार जी, जब आपने इतने प्रेम से कहा है तो भला मैं कौन होता हूँ मना करने वाला.. और फिर मैं तो बुद्धिजीवी भी नहीं.. :)
जवाब देंहटाएंlekin bhai, main budhijivi nahin hoon
जवाब देंहटाएंहे भगवान्…………बडा गडबड घोटाला है………………इतने बडे बडे शब्द …………अर्थ ढूँढ आऊँ जरा………………बेचारा नया ब्लोगर तो डर के भाग ही जाये……………वैसे बहुत अच्छा विश्लेषण किया है।जै हो बुद्धिजीवी की।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...........
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट.........
आनन्द आ गया........
बधाई !
aise post ek buddhijeevee hee likh sakta hai:
जवाब देंहटाएं]:]
शुक्रिया , चलो मान लिया ;
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही सुना है मेरे भाई .इसीलिए तो 'बुद्धिजीवी' से लेकर 'बड़ा आदमी' तक पढ़ पायी .
बुद्धि ने हंसाया.तो फाँसी ने रुलाया और तुम्हारी छमिया ,बड़ा आदमी तो बहुत ही पसंद आई
तुम्हारी दी
किसी बुद्धिजीवी का पता बताइये जिससे हम ई पोस्टवा का मतलबवा समझ सकें :D
जवाब देंहटाएंसभी बुद्धिजीवियों को साधुवाद.. :)
जवाब देंहटाएंsahi hai bhai sahab........:)
जवाब देंहटाएंham to sirf jeev hain......:(
bahi deepak bhai .. s jeev ko itni buddhi lagani p[adi is post ko padhne me ki ..ye samjh gaya ki yue kattai buddhijeevi nahi hai ...jokes apart...bahut achhi post hai ..muskaan bikherti hui ..aur nakkalon se swaadhan ka board chamkati hui ..
जवाब देंहटाएंyeh toh bahut chakkar ghinni post hai yaar , ghumaaye diye
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