ये तो आपको पता ही होगा कि भोजन के आधार पर मनुष्य को सामान्यरूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है... एक शाकाहारी और दूसरा माँसाहारी वर्ग, लेकिन जो लोग संविधान, न्याय और कानून में भरोसा करते हैं उनके लिए एक और वर्ग अंडाहारी भी मान्य है.. किन्तु-परन्तु-अगर-मगर भाईसाहब बीते कुछ सालों से एक नया वर्ग बड़ी तेज़ी से उभरकर सामने आया है और वो है भी ऐसा लुभावना वर्ग जिसकी तरफ अन्य वर्गों के सदस्य बिना खरीद-फरोख्त के सरकार को समर्थन देने वाले सांसदों(जो कि प्राकृतिक रूप से असंभव प्रक्रिया/घटना है इसलिए इस वाक्य पर ज्यादा मगज़मारी न करें) की तरह खिंचते ही चले आ रहे है..
आप घर से किसी दूसरे शहर में पढ़ने, नौकरी करने, कुछ सीखने के लिए निकले नहीं कि हो गए उस वर्ग के आहारी.. या उस वर्ग के शिकार.... जी-जी-जी वो वर्ग है मैगीहारी वर्ग.
हाँ हाँ वही वाला मैगी जिसके तारीफ के पुल हम बचपन से ''मम्मी भूख लगी....... दो मिनट रुक सकते हैं.. सर के बल रह सकते हैं.. मैगी-मैगी-मैगी'' के उद्घोष के साथ सुनते आ रहे हैं. एक बात बताऊँ? कभी मैं इस मैगी को लेकर खुद को बड़ा ही स्तरहीन समझा था कि 'साला इत्ता बड़ा हो गया अभी तक मैंने मैगी नहीं खाई'.. १९९२ की बात है जब मैंने इस सुपाच्य आहार को कभी चखा तक नहीं था, पर इसका विज्ञापन जब भी आता तो उन टेढ़ी-मेढ़ी, रेशमी सेवईयों के लच्छों को देख मुंह में पानी भर आता.
एक दिन हुआ क्या कि मेरा एक दोस्त स्कूल में बड़े गर्व मिश्रित स्वर में बोला ''पता है आज मैं फिर मैगी ले के आया हूँ''.. मैं बेचारा पराठा निगलने वाला जीव उससे जाने किस रौ में पूछ बैठा, ''मुझे चखायेगा?'' उसने अहसान सा जताते हुए मुझे इंटरवल में अपना टिफिन खोल के दिया तो बड़े खुश होके मैंने जैसे ही पहली चम्मच भर के अपने मुंह में उड़ेली कि अजीब सी वमन टाइप फीलिंग हुई.. कारण कि सुबह ६ बजे बनी मैगी मैं दोपहर ११ बजे निगल रहा था, पहली बार में इस अतिप्रभावी खाद्यपदार्थ ने मेरा मोह भंग कर दिया. (इस तरह यह बन्दा जीवन में पहली बार मैगियातत्व को प्राप्त हुआ)
बस फिर कई सालों तक मैगी नहीं खाई... एकबार मेरी बहना ने जब मैगी में प्याज-मिर्चा-टमाटर-अदरक डाल कर गरमागरम परोसा तब जाकर इसका असली जायका समझ में आया और बस तबसे जब भी कुछ खाने को नहीं होता तो मैगी होता है न!!!!.. कोंच से निकल कर फिर उरई, झाँसी, लखनऊ, जबलपुर, दिल्ली, यू.के. तक के सफ़र में हमेशा हमसफ़र रही मैगी.
अब आते हैं उन आदतों की तरफ जिन्हें एक तबका बुरा कहता है तो दूसरा जीवन-शैली.. जैसे कि सुट्टापान(धूम्रपान का सबसे प्रचलित प्रकार याने सिगरेट).. तो बताते हुए कोई शर्म नहीं आ रही(बेशर्म हो गया हूँ.. क्या करूँ?) कि जब मैंने झांसी में परास्नातक में प्रवेश लिया तो पहली बार गोरखियों(गोरखपुर निवासी) से पाला पड़ा.. जहाँ ये सब राजसी शौक माने जाते हैं.. अब ये देखिये कि इतने लोग गोरखपुर क्षेत्र से थे कि मेरे रूममेट, क्लासमेट, बैचमेट, मोहल्लामेट सब गोरखपुरी.. लगता था पूरा झाँसी ही गुरखामय हो गया.. जो भी हो.. थे मेरे बड़े अज़ीज़ दोस्त(हमप्याला-हमनिवाला वाले), दो-चार ऐब तो सभी में होते हैं पर देखा जाए तो दिल के सभी अच्छे और सच्चे थे.. या यूं कहें कि दिल के सभी अच्छे और सच्चे थे पर क्या है कि दो-चार ऐब तो सभी में होते हैं(जो भी ज्यादा प्रभावी लगे आप वही बांचियेगा)..
तो जो हमारे सबसे तगड़े मित्र थे(तगड़े इन द सेन्स... वैरी मच सिमिलर टू माय पर्सनैलिटी एंड आइडियाज) उन्हें एक शौक चढ़ा था कि सुट्टेबाजों के समुदाय को बड़ा किया जाए... शुरू में मैंने ना-नुकुर तो की लेकिन जल्द ही उनके रंग में रंग गया और उनके कहने पर उन्ही के पैसों पर एक महीने तक जम के सिगरेट पी.. हो ना हो उन कड़की के दिनों में भी रोज के ५-६ सुट्टे तो पी ही जाता था मुफ्त के.. ये बात और है कि कभी इस सब में कोई सवाद ना मिला और एक महीना होते होते मोहभंग भी होने लगा.. ऐसे में इस मोहभंग रूपी कोढ़ में खाज कर दिया उन भाई ने.. इस तरह से कि एक दिन लगे कहने कि, ''भाई मैं एक महीने से तुम्हें पिला रहा हूँ आज तुम्हारी बारी है..''
बस जाने वो मोहभंग था या उनकी बात नागवार गुज़री कि मैंने बोल दिया,'' देख भाई तुम एक महीने में भी मुझे आदत ना डाल पाए और इसे पीते हुए ३० दिन गुजरने के बाद भी मुझे समझ नहीं आता कि लोग इसे पीते क्यों हैं.. सिवाय मुंह कड़वा करने के ये करता क्या है सुट्टा तुम्हारा?'' भाई वो सब मुझे ऐसे देखने लगे जैसे हफ्ते भर से भूखे शेर ने मांस खाने से इंकार कर दिया हो..
''स्स्साला हम समझते रहे कि ढाई रुपये में किसी का लौंडा बिगड़ रहा है तो अपने बाप का क्या जाता है(उस समय विल्स नेवीकट इतने में ही आती थी).. कल को लत पड़ेगी तो हमें भी पिलाएगा. पर यहाँ तो हमें ही चूना लगा दिए.'' प्यार मिश्रित गुस्से में जनाब बोल पड़े..
मैंने समझाया, '' देख भाई, जो चीज मुझे पसंद नहीं और जिसको पीने का कोई फ़ायदा नहीं वो तो मैं नहीं पिला सकता.. हाँ अगर श्याम(एक चायवाले भाई जी) के यहाँ चाय और ब्रेडपकोड़े खाने हों तो अभी चलो..''
बस सभी 'दुश्मन' फिल्म के आशुतोष राणा की स्टाइल में बोले' ''जो मिले सो अच्छा'' और इस तरह ये बुरी आदत(मेरे हिसाब से) पड़ कर भी नहीं पड़ी... :)
अगली बार सुनाते हैं पहली बार शराब पीने का किस्सा जो इससे भी ज्यादा रोचक है... सुनना चाहें अगर तो...
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल से मारे हैं..आभार बोल देते हैं भाई.. अब ठीक?
"जो मिले सो अच्छा"
जवाब देंहटाएंसो
बहुत बढ़िया लिखे हो भैया !
सुट्टे बाज़ तो हम भी पर वह क्या कहते है ना "socially" ! काहे unsocial बने भैया ?
my my my ....क्या कहूँ ...झक्कास..बोले तो एकदम मक्खन के माफिक लिखा है ..कि जो पढ़ना शुरू करो तो रुका ही न जाये.ये मुझे अबतक की तुम्हारी सबसे अच्छी पोस्ट लगी .
जवाब देंहटाएंहां हां भाई, जरूर सुनना चाहते हैं अगली बार शराब का किस्सा। और उससे अगली बार ...... का किस्सा। हा हा हा।
जवाब देंहटाएंदीपक, हमें तो भाई किसी और ने नहीं सीधे देव आनंद ने ही बिगाड़ा था, ’हर फ़िक्र को धुंये में उड़ाता चला गया।’ ब्रांड अपना भी यही था, मेड फ़ार ईच अदर। अच्छा लगा तुम्हारा अंदाजे बयां।
अंदाज़े बयां बहुत बढ़िया.....अच्छा लगा पढ़ना ..तुम इन आदतों से बचे रहे यह अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंभाई, पहली मैगी की अनुभूति पहली बार मुझे 1999 के आस पास हुई थी मुझे भी टीवी वाले वर्ग से जुड़ने की सुखद अनुभूति हो रही थी।
जवाब देंहटाएंरही बात सुट्टा-सुट्टी तो जब मै पहली बार ब्लागगिंग में आया था किसी ने एक गाना सुट्टा वाला भेजा था और तब पता चला कि सिगरेट को सुट्टा भी कहते है । अभी तक किसी भी प्रकार के व्यसन से दूर हूँ, साथी संगाती हमेशा करते है पर मैने जरूरी नही समझा कि यह अधुनिकता जरूरी है।
एक साईट मे इतनी बढि़या पोस्टो और और दूसरी साईड मे बेहतरी सेक्सी फोटो के साथ एक ब्लागरिनी जरूर आपको मिल जायेगी :) वाकई फोटो मे दम है क्योकि जो फोटो मे है उसमे भी दम है।
जवाब देंहटाएंmain bhi sigrate nahin peeta, aur apne saath baale ko bhi bolta hoon, bhai band karle ise
जवाब देंहटाएंye to tujhe pee rahi hai, saari aadaten insan swayam apne se chipka kar rakhta hai,
bahut khoob likha dipakji aapne
शुक्र है आदत नही पडी ……बच गये मगर मैगी ऐसी है जो पीछा नही छोडती………………अच्छा आलेख्।
जवाब देंहटाएंhahahah.....are deepak bhai ..maggie ka hisaab kitaab to shandar raha aap[ka..main bhi usi varg me aata hun ..maggie, pasta macronihari varg me... lekin ye ciggy wali baat sabse solid rahi ..maine to inspiration me aa ke peeni shuru ki thi ... :P aap ke agle kisse ka intezar rahega...
जवाब देंहटाएंवाह! हम दोनो भाई तो कई बरस तक मैगी खाते रहे है लाल मिर्च और जीरे का तड्का लगाकर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर मैगी दास्तान
जवाब देंहटाएंचलो भैया .. अब सुट्टापन तो सुन लिया अब शराब ... सुना ही
डालो
मैगीहारी वर्ग :-))
जवाब देंहटाएंमैगी की आदत तो बच्चों के बड़े होने पर भी नहीं जाती । लेकिन है तो जंक फ़ूड ही ।
जवाब देंहटाएंसुट्टा मारना बड़ी खतरनाक आदत है । एक बार सिगरेट मूंह से लगी तो छूटने में पसीने छूट जाते हैं ।
सही किया आपने जो सुट्टेबाज़ नहीं बने ।
मैगी वाला किस्सा अच्छा लगा. दूसरा और भी बढ़िया था, दूसरों को चूना लगा दिया. अगले का इंतज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंपहली बार इस तरह कुछ करने का और वो भी जो छिप कर करना पढ़े (यहाँ मैगी की बात नहीं हो रही) उसका अपना मजा अलग है..........तुम्हारी सिगरेट का सुट्टा अलग तरह का सुट्टा है...............
जवाब देंहटाएंअपना भी सिगार का एक सुट्टा (किस्सा) है गज़ब का................
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
खाकर मैगी मस्त है ले मशाल निज हाथ
जवाब देंहटाएंसुट्टा पीकर तज दिया तजा धुए का साथ
ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म......धीरे-धीरे सब बता देना .....एक के बाद एक ...
जवाब देंहटाएंआईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंha ha ha...jo mile so achcha...college ke din yaad aa gaye jab treat ke naam par daaru pilaane ki shart rakhi jaati...aur main bechara gaay, us samay to tha...waise un sab maamlon me abhi bhi hun....khaane ki treat me hi khush ho jaate the....bada rochak aur mazedaar sansmaran
जवाब देंहटाएंNet band karne ja rahi thi,ki,aapki post kee suchana dikh gayi..bina padhe rah na saki..neend ke mare,sir gardan pe tik nahi raha...aisi kashish hai aapke lekhan me!
जवाब देंहटाएंमैगी वैगी सब अपनी जगह है पसंद की बात होती है...घर के बने पराठो की बात तो और अलग है..
जवाब देंहटाएंसिगरेट की कहानी तो बहुत बढ़िया रही..मजेदार भी...धन्यवाद
बहुत अच्छा लिखा .. और अपना भेद खुद खोलने जा रहे हैं !!
जवाब देंहटाएंमेगी पुराण बहुत ही अच्छा लगा। जैसे बच्चे सुपड़ सुपड़ करके मेगी खाते हैं वैसे ही हम भी पढ़ते चले गए। कहीं भी मेगी का लच्छा टूटने नहीं दिया। बढिया।
जवाब देंहटाएंgood going, carry on pls, jab jab aapke blog par aata hu ye hi paata hu ki aapka blog kaafi se bhi kaafi heavy hai, ho sakta hai aapki tasveero ke karan ya aur kisi bhi karan se lekin pura load hone me kafi samay leta hai. i think pathak usi blog pe jyada aasani se jana chahega jo aasaani se aur jaldi load ho... baaki aap khud samajhdar hai bhai sahab.......
जवाब देंहटाएंआभार सुजीत जी.. कुछ तस्वीरें निकाल दीं.. कुछ छोटी कर दीं.. अब शायद कुछ हल्का हुआ हो.. बताइयेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढियाँ प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंऔर सबसे अच्छा लगा जान कर कि इस मुई सुट्टे की आदत से बच गए बच्चा....
बाकी मैगी की आदत तो सब बचवन-बुढवन को हो ही जाती है...और फिर टमाटर प्याज डाला हुआ तो लगता भी है फस्ट किलास....
ज़बदस्त लिखे हो ...
बस लिखते रहो.....
..दीदी.
सुनाये बिना भला कहाँ मानोगे...सुना ही डालो!! :)
जवाब देंहटाएंअच्छी लगे ये पोस्ट भी
जवाब देंहटाएंहाँ ...... नयी पोस्ट का इन्जार भी रहेगा
मजेदार लेख
जवाब देंहटाएंसही किया आपने जो सुट्टेबाज़ नहीं बने ।
जवाब देंहटाएंहाँ क्या खूब याद दिलाया मुझे भी भूख लगी है तो फिर मैगी ही खाई जाये? बडिया संस्मरण आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति........बधाई.....
जवाब देंहटाएंसुट्टेबाजी की आदत तो नही है ,हां मैगी का सेवन कभी कभी कर लेता हूं । अच्छा संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंरोचक है। आगे के किस्से भी सुना ही दो अब!
जवाब देंहटाएंमैगी का indianized version ही हम भारतीयों को पसंद आता है...पर आजकल के छोटे बच्चे उसे वैसे ही पसंद कर लेते हैं....और धडकते दिल से पढ़ रही थी...कि सुट्टे की आदत कुछ ज्यादा दिन तो नहीं चली.
जवाब देंहटाएंअब इंतज़ार है ,इस 'प्रथम अनुभव ' की यात्रा के और संस्मरणों का...लिस्ट लम्बी है,ना :)
रोचक डियर!
जवाब देंहटाएंक्या यह सुविधा नहीं है कि टिप्पणी को भूतकाल में दर्ज किया जाय माने कि मेरी टिप्पणी सबसे ऊपर हो जाय?
अगली कड़ी कब आ रही है?
मैगी और झाँसी से तो सम्बन्ध रहे हैं पर सुट्टे से नहीं रहे । बच्चों के नाम पर हम भी मैगी सटक लेते हैं । पिता जी का पैसा सुट्टे में उड़ाना सही नहीं लगा इसलिये कभी हाथ भी नहीं लगाया । नारायण की चाट के अभी तक दीवाने है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण ।
दीपक, एक बात पूछनी भूल गया था कि ये मैगी और विल्स की पब्लिसिटी करने के कितने पैसे मिले हैं तुम्हें? :)
जवाब देंहटाएंमैंने सोचा कि कोई नामी ब्लॉगर फ़र्जी प्रोफ़ाईल बनाकर ये सवाल करे, इससे अच्छा है कि अपन ही पूछ लेते हैं, कुछ तो मेहनत बचेगी बेचारे की। हा हा हा
@मो सम कौन... भाई मैंने अपनी तरफ से कोशिश तो पूरी कि पर कोनाऊ प्रायोजक ससुर मिला ही नहीं... और हम हैं के मुफत में ही विज्ञापन करे जा रहे हैं..
जवाब देंहटाएं@प्रवीण त्रिवेदी जी, जान कर अच्छा लगा कि आप भी झाँसी से जुड़े रहे हैं... पर इसे क्षेत्रवाद ना समझें सर.. :)
@गिरिजेश राव भैया जी.. कोई बात नहीं पहले हो या बाद में क्या फर्क पड़ता है..
जवाब देंहटाएंअगर आपलोग सच में पार्ट-२ पढना चाहते हैं तो सोमवार शाम ६:३० के शो में जरूर आइयेगा.. :P
Maza aa gaya bhai......
जवाब देंहटाएंAchcha hua baat Maggie tak hi simat gayi aur Sutta suit nahi hua
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