पहली बार गुलज़ार साब द्वारा विकसित विधा 'त्रिवेणी' लिखने की कोशिश की है, ज्यादा नहीं पता इसके बारे में इसलिए आपकी अमूल्य राय अपेक्षित है(इसको भ्रष्टाचार से जोड़ कर देखिएगा)... कई लोग आजकल मेरी लघुकथाओं से ऊब से गए हैं इसलिए आज लघुकथा से ब्रेक लेकर ये कल ही लिखी गई एकदम ताज़ी, जिहन के तंदूर से निकली कविता आपके सामने रखता हूँ.. जिसमे कि किसी व्यक्ति के जीवन के उस मोड़ के बारे में लिखा गया है जब वो संतृप्त हो जाता है.. और हाँ अगर आप लोग चाहें तो अभी भी १८ लघुकथाएं शेष हैं आपकी नज़र में लाने के लिए :) बताएं जरूर लाऊं कि नहीं ?????
१-
अब ख्वाब भी हो गए हैं रेवड़ियों की तरह
जो हर निंदिया की झोली में नहीं गिरते
चलो अबकी किसी पहिचानवाले से बंटवाए जाएँ.
२-
जाने कोई ख्वाहिश नहीं बची क्या अब
क्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
या कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
अब खुली आँखों से भी तो नहीं दिखती मंजिल कोई
न बरबस ये हाथ ही बनाने लगते हैं कोई तस्वीर
नाखून भी तो नहीं मचलते
इस कलई वाली दीवार पर कुछ-कुछ उकेरने को
आज संदेशा आया है कि इस बार साल का
सबसे बड़ा सम्मान मेरे नाम हो गया
और अभी कुछ दिन पहले
वो चला गया दुनिया से
जिसे लोग सूरज कहते थे
और मुझे सूरजमुखी
न तो उस दिन कतरा-कतरा करके
बहते दिखा दरिया दृग से कोई
न आज है सारंगी सी बज रही दिल में
अब क्या आँखों को पलकों की चादर ओढ़ा
पूछना चाहिए खुद से ये सवाल
कि ''क्या मैं बुद्ध हो गया हूँ...''
दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से
आज संदेशा आया है कि इस बार साल का
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा सम्मान मेरे नाम हो गया
और अभी कुछ दिन पहले
वो चला गया दुनिया से
जिसे लोग सूरज कहते थे
और मुझे सूरजमुखी
Aap bolti band kar dete hain! Kahen to kya kahen?
बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअब क्या आँखों को पलकों की चादर ओढ़ा
जवाब देंहटाएंपूछना चाहिए खुद से ये सवाल
कि ''क्या मैं बुद्ध हो गया हूँ...''
त्रुवेनी का तो हमें भी नहीं पता पर आपके गूढ़ विचार यहाँ जरूर मिले....
कुंवर जी,
बहुत अच्छा लिखा है...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
जवाब देंहटाएंDeepak bhaiya ji
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं.......!!!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_26.html
क्या पता कोई ख्वाहिश नहीं बची क्या अब
जवाब देंहटाएंक्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
या कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ...सुन्दर रचनाएं हैं
और कौन ऊब गया है आपकी लघु कथाओं से ...हाँ, लगातार आप जैसे सुन्दर बालक के मुख से इतनी गंभीर बातें..सुनने पर डर लगने लगता है..अरे खेलने खाने के दिन हैं...प्यारी सी नज्में, प्यार की.. विरह की..सुन्दर अहसासों की लिखा करो..बीच बीच में वे लघुकथाएं भी पढवाते रहो..
कोशिश अच्छी रही. बाकि वाली लघुकथाओं का इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएंक्या पता कोई ख्वाहिश नहीं बची क्या अब
जवाब देंहटाएंक्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
या कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
Badhiyaa deepak ji,पहली लाईन में से दूसरा वाला क्या हटा दीजिये !
शुक्रिया गोदियाल सर.. कुछ और बदलाव किया है अभी.
जवाब देंहटाएंअब पहिचान वाले भी हो गए है गैरों कि तरह ,
जवाब देंहटाएंअपनो कि तरह रेवडिया नहीं बाँटते .
क्यों न सब गैरों को अपना बना लिया जाए ...
अब खुली आँखों से भी तो नहीं दिखती मंजिल कोई
जवाब देंहटाएंन बरबस ये हाथ ही बनाने लगते हैं कोई तस्वीर
नाखून भी तो नहीं मचलते
इस कलई वाली दीवार पर कुछ-कुछ उकेरने को
जेहन के रंदूर से काफी भुनी हुई रचना निकली है....बेहतरीन....और लघुकथा का हमेशा इंतज़ार रहता है...
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबेमिसाल!
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं दीपक । मुझे विधा की जानकारी और समझ नहीं है मगर यकीनन, एक आम पाठक के रूप में भी इतनी प्रभावित करने वाली हैं कि सीधे दिल में उतर जाती हैं । शुभकामनाएं । हां भाई लघु कहानियां भी पढना चाहेंगे
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
triveni to pahli baar me hi qayamat ho gayi deepak bhai ..aur nazm ne dimaag ki varjish karwa di achhi khasi ..do baar padhni padhi ... vairaag yahi to hota hai ...behad achhi rachna..aur maine to bas abhi abhi aap ki laghu katha padhni shuru ki hai .. intezar rahega aage bhi ..jab tak oob na jaaun main bhi .. :D
जवाब देंहटाएंरचनाओं ने प्रभावित किया. सुन्दर विधा है लिखें जरूर.
जवाब देंहटाएंकिस किस पंक्ति कि तारीफ करूँ समझ नहीं पा रही हूँ ..फिर भी ये पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है.
जाने कोई ख्वाहिश नहीं बची क्या अब
क्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
या कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
अब खुली आँखों से भी तो नहीं दिखती मंजिल कोई
न बरबस ये हाथ ही बनाने लगते हैं कोई तस्वीर
नाखून भी तो नहीं मचलते
इस कलई वाली दीवार पर कुछ-कुछ उकेरने को
हाँ लघु कथाएं जरुर पढ़ो बहुत अच्छी होती हैं ..पर बीच बीच में कवितायेँ डालने से मूड बन जाता है :) .
आनन्द करा दिया............
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा !
परन्तु आपकी लघुकथाओं से हम तो नहीं ऊबे भाई !
ले आओ..........बाँच बाँच कर टिप्पणियां करेंगे...........
क्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
जवाब देंहटाएंया कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
क्या बात है ... बहुत सुन्दर !
are tareef karte karte to ab munh dukhaane laaga hai...bachawa..
जवाब देंहटाएंka dhadadhad likhte ho...kauno printing press ho kaaaaa??
haan nahi to..!!
इस त्रिवेणी का क्या पैमाना है हमें समझ में नहीं आया है..........क्या किसी भाव को तीन पंक्तियों में स्समेत देना ही त्रिवेणी है?
जवाब देंहटाएंवैसे कविता तो हमेशा की तरह ही///// बाकि त्रिवेणी का पता नहीं.............हाँ भाव उन तीन पंक्तियों में भी उत्तम हैं....
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
कविता बढिया लगी और त्रिवेणी जबरदस्त .. आपके लघुकथा लिखने से तो ...माहौल बना था गद्द के लिए बहुत ही उम्दा और संवेदनशील होती है आपकी लघुकथा ..जारी रखिये
जवाब देंहटाएं" जेहन का तन्दूर " पढ़ने के बाद मैने आगे पढ़ा ही नहीं ।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह रचना
जवाब देंहटाएंलघु कथा से हटकर एक अच्छा प्रयोग... त्रिवेणी भी पसन्द आयी और आपकी नज़्म भी..
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा सोच पर आधारित रचना / एक एक शब्द अनमोल हैं /
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना..प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया तो हैं..उम्दा प्रयास!!
जवाब देंहटाएंलघु कथा जारी रखो...बीच बीच में जायका बदलने को यह भी लाते रहें. शुभकामनाएँ.
बढ़िया है । एकरसता से बचना चाहिए । नए नए प्रयोग करते रहना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंek do pankti chunna bahut kathin hai...poori rachna bahut badhiyaa.. laghukathayein shuru :)
जवाब देंहटाएंई मेल द्वारा वंदना जी ने कहा-
जवाब देंहटाएंअब ख्वाब भी हो गए हैं रेवड़ियों की तरह
जो हर निंदिया की झोली में नहीं गिरते
चलो अबकी किसी पहिचानवाले से बंटवाए जाएँ.
gazab kar diya .
जाने कोई ख्वाहिश नहीं बची क्या अब
क्यों ख्वाब नहीं आते वर्ना
या कि वो.... वो सब सांचे टूट गए
जिनमें दिमाग की सोच ढलकर बन जाती थी सपने
kin lafzon mein tarif karun...........bhavon ko na jaane kaun se gahre sagar mein doobkar ukera hai.
triveni aur kavita dono hi lajawaab hain .
laghukatha to aapki hamesha hi gazab karti hain phir kisne kah diya ki bore ho gaye.........aap likhte rahiye hamein to intzaar rahta hai.
न तो उस दिन कतरा-कतरा करके
जवाब देंहटाएंबहते दिखा दरिया दृग से कोई
रोचक रचना पर बधाइ सवीकार करें जी।
अब क्या आँखों को पलकों की चादर ओढ़ा
जवाब देंहटाएंपूछना चाहिए खुद से ये सवाल
कि ''क्या मैं बुद्ध हो गया हूँ...''
बहुत गहरे मंथन से निकली रचना ....
आपकी त्रिवेणी भी आज का यथार्थ है ...
bahut behtreen dipakji
जवाब देंहटाएंkaafi soch vichar kar likhi gayi
rachna
ye na socho ki ham aaye nahi blog par
जवाब देंहटाएंto aap acchha nahi likhte...
aap to acchha likhte hai..
lekin hamari ankho ko hunar nahi
ki vo acchho ko dekhe...:)
intzar rahega laghu katha ka.
अनामिका मैम, बहुत शुक्रिया आपकी स्नेह भरी टिप्पणी का.. :) वैसे आपही की तरह मैं भी परवाह नहीं करता इन सब बातों की.. :)
जवाब देंहटाएंमुझे लघुकथाओं का इन्तजार रहेगा। आपकी पहचान है यह कथाएं।
जवाब देंहटाएंत्रिवेणी लेखन के प्रथम प्रयास को सराहने के लिए आप सबका आभार.. कोशिश करूंगा आगे बेहतर कर सकूं..
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