शुक्रवार, 14 मई 2010

रौंग नंबर(कविता)----------------------------------->>>दीपक 'मशाल'

तुम्हारे भेजे आखिरी ख़त
अब तक मुझे ये समझाने में नाकाम रहे थे
कि मैं क्यों नाकाबिल था तुम्हारे लिए..

क्या तुमने अपनी अनुभवी आँखों के दूरबीन में
अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के लेंस लगाकर
दूर खड़े भविष्य के आस-पास
मेरे साथ बाँहों मे बाहें डाल चलती
जो आकृति देखी थी
जो सुनहरे सपने देखे थे.. वो भ्रम थे
या था मेरा फैलाया तथाकथित मायाजाल

पता नहीं समझ नहीं पा रहा था मैं
या समझा नहीं पा रहा था खुद को
कि जो भी था वो बस हवा में तैरते
साबुन के सतरंगी बुलबुले सा था..

तुम्हारे घर बसने के बाद भी
मैं पागल यही उम्मीद पाले रहा
कि चलो उम्र भर का साथ ना हो पाया तो क्या
प्यार तो जिंदा रहेगा ताजिंदगी
मेरे दिलो-दिमाग में और तुम्हारे भी
तुम्हारे दिमाग में नहीं तो कम से कम  दिल में तो रहेगा ही

देखो ना आज महीनों बाद लगा
कि तुम वहीं हो शायद
तुम्हारे पुराने घर में....
जहाँ हमने साथ-साथ सपने देखे थे.. बिना सोये हुए
और मेरे दिल ने झूठ नहीं बोला..
तुमने ही फ़ोन उठाया था ना...

और मेरी आवाज़ सुनते ही कह दिया 'रौंग नंबर'

जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके
वो एक लफ्ज़ ने कर दिया..
पर अभी भी उलझा हूँ इसी सोच में
कि मैं रौंग नंबर पहले था
या कि अब हूँ......

दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से

31 टिप्‍पणियां:

  1. कि मैं रौंग नंबर पहले था
    या कि अब हूँ......
    वैसे नम्बर कभी रांग नहीं होता
    सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय दीपकजी,
    किसने आपको रोंग नंबर कह दिया
    आप तो हमेशा सही नंबर डायल करते हैं , आपकी तो हर बात निराली है

    जवाब देंहटाएं
  3. यह ब्लॉग यहाँ से लिंक किया हुआ वेब
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    शुक्रवार, १४ मई २०१०
    रौंग नंबर(कविता)----------------------------------->>>दीपक 'मशाल'
    तुम्हारे भेजे आखिरी ख़त
    अब तक मुझे ये समझाने में नाकाम रहे थे
    कि मैं क्यों नाकाबिल था तुम्हारे लिए..

    क्या तुमने अपनी अनुभवी आँखों के दूरबीन में
    अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के लेंस लगाकर
    दूर खड़े भविष्य के आस-पास
    मेरे साथ बाँहों मे बाहें डाल चलती
    जो आकृति देखी थी
    जो सुनहरे सपने देखे थे.. वो भ्रम थे
    या था मेरा फैलाया तथाकथित मायाजाल

    पता नहीं समझ नहीं पा रहा था मैं
    या समझा नहीं पा रहा था खुद को
    कि जो भी था वो बस हवा में तैरते
    साबुन के सतरंगी बुलबुले सा था..

    तुम्हारे घर बसने के बाद भी
    मैं पागल यही उम्मीद पाले रहा
    कि चलो उम्र भर का साथ ना हो पाया तो क्या
    प्यार तो जिंदा रहेगा ताजिंदगी
    मेरे दिलो-दिमाग में और तुम्हारे भी
    तुम्हारे दिमाग में नहीं तो कम से कम दिल में तो रहेगा ही

    देखो ना आज महीनों बाद लगा
    कि तुम वहीं हो शायद
    तुम्हारे पुराने घर में....
    जहाँ हमने साथ-साथ सपने देखे थे.. बिना सोये हुए
    और मेरे दिल ने झूठ नहीं बोला..
    तुमने ही फ़ोन उठाया था ना...

    और मेरी आवाज़ सुनते ही कह दिया 'रौंग नंबर'

    जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके
    वो एक लफ्ज़ ने कर दिया..
    पर अभी भी उलझा हूँ इसी सोच में
    कि मैं रौंग नंबर पहले था
    या कि अब हूँ
    no. kabhi wrong nahi hota ..bas paristithiyan wrong ho jati hain ....
    behad sanvedansheel kavita...

    जवाब देंहटाएं
  4. waah Deepak ji....ek shabd ne sab kuch keh diya....bahut sundar abhivyakti...

    जवाब देंहटाएं
  5. आधुनिक कविता - इस मायने में कि इस धक्के के बाद भी परीक्षण में लगी है। दौर का अंतर है। मैं लिखता तो
    "पर अभी भी उलझा हूँ इसी सोच में
    कि मैं रौंग नंबर पहले था
    या कि अब हूँ"
    की जगह बस लिखता "सब समझा दिया" ।
    ..यह कविता कहीं नए दौर की व्यावहारिकता को दर्शाती है। ऐसे मामलों में मानुख अब पहले से मज़बूत है।
    ..आभार दीपक। ऐसे काव्य मुझे ताज़ा कर देते हैं। सोच रहा हूँ इसे अपूर्व कैसे लिखते?
    पूजा कैसे लिखतीं?

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  6. Sach me vismay kaari abhiwyakti hai aapki!Qismat kee vidambana kitni saraltaa se baayan kar dee!

    जवाब देंहटाएं
  7. जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके
    वो एक लफ्ज़ ने कर दिया..
    पर अभी भी उलझा हूँ इसी सोच में
    कि मैं रौंग नंबर पहले था
    या कि अब हूँ

    सब वक्त की बात है.....जज्बातों को बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है....वैसे मैं भी गिरिजेश जी से सहमत हूँ...

    जवाब देंहटाएं
  8. जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके
    वो एक लफ्ज़ ने कर दिया..goodness.....क्या अभिव्यक्ति है...बहुत ही संवेदनशील कविता

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या बात है दीपक जी ,वैसे-
    ’कुछ तो मजबूरियां रहा होंगी
    यूं कोई बेवफा नही होता "

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह दीपक मुझे अक्सर लगता है कि मारक तो तुम हो ही मगर पद्य में अक्सर बोफ़ोर्स की तरह अचूक हो जाते हो । जाने क्या क्या फ़साने गढ गई तुम्हारी ये कविता ....

    जवाब देंहटाएं
  11. रौंग नंबर कविता का नाम है पर है बिलकुल सही नंबर पर ये कविता, तुम्हारी कविताओं में टॉप नंबर पर

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  12. वाह दीपक जी !

    mere paas aaj sachmuch shabd nahin hain is kavita ki prashansa ke liye isliye keval badhai !

    बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  13. jara number dijiye to hum dekhte hain , rahna bahut acchi lagi

    जवाब देंहटाएं
  14. अजी यह रांग नमबर इस उम्र मै हमे भी लगा था.... मै जिन्दगी का साथ निभाता चला गया.... हर फ़िकर... मस्त रहो यार

    कविता बहुत सुंदर है, यानि आप की रचना... अरे आप की लिखी हुयी यह रचना:)

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  15. वो प्यार रौंग था या इंतज़ार रौंग था ...
    जिन्दगी का इज़हार ही रौंग था ...
    नंबर तो सही मिलाया था
    मिलाने वाला ही रौंग था .....

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  16. ye kahaninuma nazm pasand aayi .....achhi padtal ki hai aapne baaton ko janne ke liye.. :)

    जवाब देंहटाएं
  17. मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था,
    के वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको,
    हवाओं में लहराता आता था दामन,
    के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको,
    मगर उसने रोका, न दामन ही पकड़ा
    न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया,
    यहां तक कि मैं उससे जुदा हो गया,
    जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया...

    जय हिंद...

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  18. great..........amazing.........wrong no????
    ab kya kahun? sirf soch mein doobi hun ki aisa bhi hota hai shayad.....ya yakinan yahi hota hai........kab kaun wrong no ban jata hai.bahut khoob.

    जवाब देंहटाएं
  19. आप सबसे सच्ची-सच्ची कहता हूँ.. ये सब बस एक सोच है.. यथार्थ से इसका कोई लेना देना नहीं. शुक्रिया..

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत बढ़िया लिखा आपने...

    _________________
    पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'

    जवाब देंहटाएं
  21. जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके
    वो एक लफ्ज़ ने कर दिया..
    पर अभी भी उलझा हूँ इसी सोच में
    कि मैं रौंग नंबर पहले था
    या कि अब हूँ......

    sundar atisundar ..vaise aaj tumhaara bhi number nahi mila ...hahahaha
    in panktiyon ne to kamaal kar diya...tumhaari abhivyatiki ka star itna utkrishth hai ki ab to tippani karte hue bhi ghanrahat hoti hain...bahut sundar likha hai..
    ...didi

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत बढ़िया और संवेदनशील रचना है ...
    चलिए गनीमत मानिये कि 'रोंग नंबर' सुनने को मिल गया वरना यहाँ तो एक ही रट लगाये रखता है 'इस रूट कि सभी लाइनें व्यस्त हैं'
    सारी गलती इस टेलीफोन की ही है, न ये होता, न रोंग नंबर लगता ... अबके ईमेल कर देना ...

    ...

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  23. इस सवाल का जवाब बहुत कठिन है, दीपक भाई !!

    जवाब देंहटाएं
  24. भई अब के जमाने मे हैंड-सेट बदलने से भी पहले लोगों की आवाजें बदल जाती हैं..और कुछ सही नम्बर भी कभी कभी गलत लग जाते हैं..या यह अहसास दिला देते हैं कि सारे नंबर्स सारी जिंदगी सही नही रहते..वैसे मैं तो कहूँगा कि जब तक लाइफ़ का नेटवर्क-कवरेज बाडी के हैंडसेट पे मिलता रहे..तब तक रिश्तों के नम्बर डायल करते रहना चाहिये..हर नंबर तो रांगनंबर नही होता ना..
    खैर आपको भी उस नंबर को रांगनंबर कहने का मौका जल्द मिले :-)

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  25. अक्सर कुछ होने के बाद इस तरह का पछतावा जीवन भर रहता है ... क्योंकि दोनो ही पल गुज़रे हुवे होते हैं और एक दूजे से विपरीत होते हैं ... ये कशमकश चलती रहेगी जीवन भर ... अच्छी रचना है दीपक जी ....

    जवाब देंहटाएं

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