''निकल बाहर यहाँ से... बदतमीज़ कहीं का..'' बरसाती गंदे पानी से सनी चप्पलें पहिनें कल्लू को अपने घर में अन्दर घुसते देख शोभा आंटी ने अचानक काली रूप धारण कर लिया और उसकी कनपटी पर एक तमाचा जमाते हुए उसे घर से बाहर निकाल दिया.
''रमाबाई तुमसे कितनी बार मना किया है कि अपनी संतानों को यहाँ मत लाया करो.. सारा धुला-पुंछा घर जंगल बना देते हैं..''
आंटी ने अपनी कामवाली बाई को डांटते हुए कहा.
''आगे से नईं लाऊँगी मेमसाब.. मैं लाती नहीं पर क्या करुँ ये छोटा वाला मेरे पीछे-पीछे लगा रहता है..'' अपनी आँख में भर आये पानी को रोकते हुए घर के बाहर खड़े होकर कनपटी सहलाते कल्लू की तरफ देख बेबस रमाबाई बोली.
रमाबाई ने चुपचाप पोंछा लेकर पायदान के पास बने कल्लू के तीनों पदचिन्हों को मिटा दिया.
थोड़ी देर बाद आंटी का बेटा प्रसून स्कूल बस से निकल कीचड़ में जूते छप-छप करते घर में घुसा तो उसे देख आंटी का वात्सल्य भाव जाग उठा,
''हाय रे कितना बदमाश हो गया मेरा बच्चा!!!'' और प्रसून को सीने से लगा लिया..
''सॉरी मम्मी फर्श गन्दा हो गया'' प्रसून ने ड्राइंग रूम के बीच में पहुँच कर मासूमियत से कहा
शोभा आंटी उसकी स्कूलड्रेस उतारते हुए बोलीं, ''कोई बात नहीं बेटा 'दाग अच्छे हैं' है ना??? अभी बाई फर्श साफ़ कर देगी डोंट वरी''
बाहर खड़ा कल्लू गंदे पानी से भीगी अपनी चप्पलें प्रसून के कीचड़ सने जूतों से मिला रहा था.
दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से
कितना सच है आपकी कथा में और कितनी झूठ है हमारी ऐसी सोच में ... लाजवाब !
जवाब देंहटाएंआप तो trend setter बन गए हैं ...
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंयथार्थ दर्शन...बहुत बढ़िया कथा.
जवाब देंहटाएंबधाई.
ऎसा हम ने अपनी आंखो से देखा है, बहुत मार्मिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंwaah Dipak ji kitna kadwa sach rakh diya hamaare saamne...bahut hi maarmik
जवाब देंहटाएंसुंदर..प्रेरक.
जवाब देंहटाएंइधर प्रकाशित हो रही लघुकथाओं ने अत्यधिक प्रभावित किया है.
अच्छा किख रहे हैं आप.
..बधाई.
ये हकी़कत है
जवाब देंहटाएंHaiku in prose! Very nice.
जवाब देंहटाएंThanksNOThanks.
ममता का अजब विरोधाभास ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...!!
संवेदनशील प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसच को दर्शाती सुन्दर लघु कथा
जवाब देंहटाएंmaun hi meri abhivyakti hai...tumko sneh
जवाब देंहटाएंएक सच जो बहुत कड़वा है.....हमारी विचित्र विरोधाभास प्रकृति को बताता है....आँख खोलने वाली लघु कथा
जवाब देंहटाएंबहुत दमदार लिखाई है आपकी
जवाब देंहटाएंजीवन का एक और सत्य बताया आपने ................... जो अपना सो भला ........जो पराया सो बुरा....................... भले ही सत्यता कुछ भी हो !!
जवाब देंहटाएंकष्ट है दुखद है
जवाब देंहटाएंयह भी सच है.
बहुत ही मार्मिक और सच्चा चित्रण....
जवाब देंहटाएंआजकल तुम्हारी कहानियां मन उदास कर देती हैं..इतना विरोधाभास है हमारे समाज में और हम भी उसी का हिस्सा हैं..क्या पता जाने-अनजाने हम भी ऐसा कर जाते हों...मन बहुत दुखी हो गया
जवाब देंहटाएंवैसे लघु कथाएं बहुत अच्छे लिख रहें हो..
मारक,उत्प्रेरक लघुकथा....
जवाब देंहटाएंविरोधाभास का सटीक चित्रण किया है आपने...
अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंaaj ka kadva sach
जवाब देंहटाएंyah hum aajkal roj dekhate hain,
yah oonche log, aur khoti inke ander se doosaron ke liye, manviyta
bahut sateek likha dipakji aapne
kya sachmuch esa hota hai ? virodhabhas ka achcha chitran kia hai.
जवाब देंहटाएंहोता है जी.. हर जगह होता है.
जवाब देंहटाएंयार गजब के आदमी हो। इतनी संवेदना लाते कहां से हो भाई कि आदमी शून्य बटे सन्नाटा हो जाता है।
जवाब देंहटाएंहम लोग एक ही स्थिती में दो तरीकों से कैसे पेश आते है इसको इस लघुकथा से बहुत ही अच्छे तरीके से पेश किया है
जवाब देंहटाएंसुबह पढा था इसे फ़ायरफ़ाक्स मे.. कमेन्ट का बक्सा उसमे गायब हो जाता है इसलिये अच्छी लगने के बावजूद कमेन्ट नही कर पाया..
जवाब देंहटाएंवेरी सेन्सिटिव स्टोरी..
chhoti chhoti ghatnaon ke maddyam se samajik visangatiyon ki khub padtaal karte ho dost...achhi laghu katha hai ..
जवाब देंहटाएंकथाओं से लघू कथाएं अच्छी हैं, जैसे फीचर फिल्मों से डाकूमैंट्री फिल्में
जवाब देंहटाएंघृणा………………… यही एक भाव उँचाई पर दिखता है, और उसके नीचे एक बेबसी नज़र आती है…
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना। समाज के दोहरे सोच को उजागर करती एक अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंदुखद किन्तु सत्य।
जवाब देंहटाएंवाकई दिल के अन्दर तक भेद गयी आपकी ये रचना !!!
जवाब देंहटाएंमगर सिर्फ शाब्दिक वाहवाही से कुछ नहीं होगा इसके लिए तो ज़िम्मेदार है हमारी वह सामाजिक संस्कृति जो भेदभाव के भाव को पूरी तरह से संरक्षण देती है और मान्यता भी... इसके समूल नाश के लिए अति-आवश्यक है की हमें विश्लेषण करना होगा कि कौन सी ऐसी व्यवस्था है जो इसके निदान में पूरी तरह सक्षम हो !!!
सलीम ख़ान
9838659380
वाकई दिल के अन्दर तक भेद गयी आपकी ये रचना !!!
जवाब देंहटाएंमगर सिर्फ शाब्दिक वाहवाही से कुछ नहीं होगा इसके लिए तो ज़िम्मेदार है हमारी वह सामाजिक संस्कृति जो भेदभाव के भाव को पूरी तरह से संरक्षण देती है और मान्यता भी... इसके समूल नाश के लिए अति-आवश्यक है की हमें विश्लेषण करना होगा कि कौन सी ऐसी व्यवस्था है जो इसके निदान में पूरी तरह सक्षम हो !!!
सलीम ख़ान
9838659380
सत्य वचन
जवाब देंहटाएंपर क्या करें
इसे पढकर भी
हम वही करेंगे
कल्लू वही मुंह लटकाए घर के बाहर होगा
और रमाबाई मन ही मन सुबक रही होगी
वैसे सर्फ एक्सेल का ऐड बढिया किया आपने
:))
true
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