''अंकल मैं उस कॉमिक्स का दो दिन का किराया नहीं दे पाऊंगा.'' कॉमिक्स को एक दिन ज्यादा रखने का किराया देने में असमर्थता ज़ाहिर करते हुए बल्लू ने दुकानदार से कहा. लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव ना देख बेचारगी सी दिखाते हुए बोला-
''प्लीज एक ही दिन का किराया ले लीजिये ना अंकल..''
''हम्म.. पैसा तो पूरा देना पड़ेगा'' सपाट सा जवाब मिला और फिर थोड़ी देर तक खामोशी
''रहता कहाँ है वैसे तू? किसका लड़का है?'' उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए सवाल हुआ..
जेब में सिर्फ अठन्नी लिए बल्लू को कुछ आशा जगी- ''अरे अंकल वो नाले के पास छिद्दन कारीगर को जानते हैं, उन्हीं का बेटा हूँ.''
''ठीक है माफ़ कर देता हूँ.. और मेरा काम करेगा तो फ्री में भी पढ़ सकेगा'' कुछ सोचने के बाद जवाब आया
''लेकिन कल दोपहर १ बजे आना जब दुकान के आसपास कोई ना हो, सब समझा दूंगा''
खुशी से झूमता बल्लू सर हिला के चला गया लेकिन रास्ते भर सोचता रहा कि कौन सा काम होगा जिसकी वजह से उसे इतनी ढेर सारी कॉमिक्स फ्री में पढ़ने को मिलेंगीं. खैर जो भी हो करने का निश्चय कर लिया उसने और अगले दिन नियत समय पर दुकान पर पहुँच गया.
''आ गया तू!! किसी ने देखा तो नहीं?''
''नहीं'' उसने सिर हिलाकर संक्षिप्त सा उत्तर दिया
''हम्म.. चल अन्दर वाले कमरे में''
थोड़ी देर खामोशी छाई रहने के बाद अन्दर वाले कमरे से आवाजें आ रहीं थीं- ''छिः अंकल ये गन्दा काम है.. मुझे घिन आती है''
''तुझे कॉमिक्स पढ़नी है या मैं किसी और को फ्री पढ़ाऊं?''
कुछ पल की खामोशी के बाद अब बल्लू फ्री में कॉमिक्स पढ़ने के नए ज़रिये के लिए राज़ी हो गया था.
दीपक 'मशाल'
फिल्म चांदनी बार की याद दिला दी तुम्हारी कहानी की कड़वी सच्चाई ने...
जवाब देंहटाएंइस संसार में हर तरह के लोग हैं, बच्चों को इन दरिंदों से बचाने की ज़िम्मेदारी मां-बाप समेत पूरे समाज की है...
जय हिंद...
dardnaak aankhein sharm se jhuk gayi...ek bachche ki bholepan ki hatya....bahut hi jhakjhorne waali katha...deepak ji is prastuti ke liye bahut dhanyawad...
जवाब देंहटाएंdear dipakji,
जवाब देंहटाएंhumaara samaj aise dooshit vikrati baale purushon se bhra pada hai, jinki havas ki niyat apno tak ko nahin chhodati, aur nahin dekhti masoom bachchon ko bhi
उफ्फ!!!
जवाब देंहटाएंकड़ुवा सच
जवाब देंहटाएंबच्चों को गंदी मानसिकता के लोगों को बचाना जरुरी है।
:(
जवाब देंहटाएंदरिंदों का कड़वा सच है यह ...हिम्मती रचना के लिए बधाई दीपक !
जवाब देंहटाएंयहाँ माँ बाप की ज़िम्मेदारी आ जाती है, बचपन से बच्छे को कुछ हिंट्स देकर, भले ही पूरी बात खुलकर न बताई जाये, पर कुछ बातें समझाई जा सकती है, और उनको ये समझाई जा सकती है कि इस तरह की परिस्थिति से कैसे निपटना है !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
fir bhi zanaab netaa aur samaaj ,maa -baap aur ham log sabhi to milkar karten hain 'sex ejukeshan' kaa virodh .yah yog kaa nahin 'chog -bhog 'ka daur hai jahaan shrir sirf ek jins hai ,faast food ki tarh .
जवाब देंहटाएंveerubhaai .blogspot.com
(BADHAAI,MERE HOOZOOR . )
@दीपक जी
जवाब देंहटाएंयही झिझक ख़त्म करनी है,बच्चो को जीवन के हर पहलु से वाकिफ करवाना है , ये कुंठित लोग सबसे भयानक है क्योंकि ये हमारे आस पास घूम रहे है ... अगर बच्चे जागरूक रहेंगे तो खुल के बात कर सकेंगे.
उफ़.....दरिंदगी कि हद है...मासूम बच्चे इस गिरफ्त में आ जाते हैं...चिन्ता करने योग्य लघु कथा
जवाब देंहटाएं..........उफ्फ कड़ुवा सच हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों का ध्यान रखना माता-पिता का या घर के बडों का काम है ,पर ऐसी परिस्थितियों से बच्चे को बचाना हमारा कर्तव्य है.......
जवाब देंहटाएंuff.........ek kaduva sach samne laye hain.
जवाब देंहटाएंOh My God......ufff..
जवाब देंहटाएंरोंगटे खड़े कर दिए,इस लघु कथा ने...इतना आक्रोश आता है...गुस्से से काँप जाता है,मन
जवाब देंहटाएंइतना कडुवा सच मत बयान किया करो दीपक भाई, घिन आने लगती है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत ही कड़वी सच्चाई है , कहानी पसंद आई इसलिए एक पसंद का चटका आपके लिए उपहार दीपक भईया ।
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे कभी नेगेटिव चटकों से फर्क नहीं पड़ता दोस्त लेकिन तुम जो लगा कर गए हो उससे इतनी तकलीफ जरूर हुई जानकर कि ब्लॉगजगत में भी ऐसा कोई है जो बच्चों के साथ इस तरह की अश्लील, अनैतिक और अमानवीय हरकतें पसंद करता है.
जवाब देंहटाएंbaap re !!
जवाब देंहटाएंman kaisa kaisa ho gaya ise padh kar...
kisi bacche ke bachpan ka sarvnaash kar dena kuch logon ke liye kitna aasan hai...
Dipak tumhari kalam ki dhaar ko kya kahun..!
..didi
aur napasnd ke chatke waalon ko to chulhe mein jaane do...
जवाब देंहटाएंhaan nahi to..!!
इस सचाई से सबक लेना ज़रूरी महत्व पूर्ण पोस्ट
जवाब देंहटाएंकडुआ सच ..
जवाब देंहटाएंएक कडवी सच्चाई के बारे में लिखा है आज. पता नहीं कब सब ठीक होगा?
जवाब देंहटाएंबच्चो का मां बाप को मित्र बनाना चाहिये, ओर उन्हे समय समय पर एसी बातो से सतर्क करते रहना चाहिये, बच्चो का विशवास जीतना चाहिये मां बाप को ताकि वो कोई भी बात मां बाप से ना छिपाये
जवाब देंहटाएंhaay !..raam ..kitani ghinuani harqat ..?????????
जवाब देंहटाएंमेरे भाई, वो कह दिया आपने जो कहने से हम सब डरते है.
जवाब देंहटाएंऔर हा
लोभ सकल ब्याधिन कर मूला.
बात यही कि ऐसे प्रलोभनो से बच्चो को दूर रखा जाये और उन पर थोडी नज़र भी रखी जाये.
हा नही तो..... (अदा जी से साभार)
यह जरिया भी एक नजरिया है
जवाब देंहटाएंअत्यंत तीव्रता से चोट करती रचना
यह समाज की गंदगी है, और इनको उखाड़ा भी नहीं जा सकता क्योंकि ये छद्मभेषी पता नहीं कहाँ कहाँ छुपे बैठे हैं।
जवाब देंहटाएंएक ही रास्ता है इन सबसे बचने का बच्चों को जागरुक बनाया जाना चाहिये और शिक्षा भी कि इन परिस्थितियों से कैसे निपटें ।
आपकी लघु-कथा बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंकडुआ सच ,तीव्रता से चोट करती रचना .
जवाब देंहटाएंगर्हित,घृणित,निन्दनीय..
जवाब देंहटाएंवाह दीपक जी !
जवाब देंहटाएंबड़ी बारीकी से इस घिनावनी सचाई से पर्दा उठाया आपने...
बधाई !
इंसान की फितरत कितनी बदल गई है ।या ये कहें कि इंसान अब इंसान कहाँ रह गया है।क्या कुछ हद तक गरीबी भी जिम्मेवार है ?चाहे जो भी हो बेह्द शर्मनाक है
जवाब देंहटाएंsahi likha aap ne..
जवाब देंहटाएंकोमिक्स पढने के लिए लालायित बच्चे कि कोशिश का मार्मिक वर्णन किया आपने......! ऐसा लगा कि हम भी इस जीवन के इर्द गिर्द घूमते रहें हैं बचपन में....दीपक जी बहुत मार्मिक रचना...!
जवाब देंहटाएंक्या कुसूर था मेरा , क्यूँ मेरे बचपन को जला डाला तुमने ,
जवाब देंहटाएंखुदा का तोहफा लेकर आया था, पाँव से कुचल डाला तुमने |
अभी तक महिलाओं के लिए ही समझ आता था पर अब तो बचपन भी सुरक्षित नहीं है कहीं | हे मेरे ईश्वर, क्यूँ इंसान को दरिंदा बनाने पर मजबूर हो तुम ? कुछ तो जवाब दो .....
He bhagwaan!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सबका
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