सोमवार, 12 जुलाई 2010

बीहड़ की शादी(अंतिम भाग)------->>>दीपक'मशाल'

धर्मशाला में कुछ देर आराम फरमाने के बाद जब नाश्ते-खाने के वक़्त वीडिओ कैमरे की हैलोजन लाईट के लिए जनवासे के जनरेटर मालिक से कनेक्शन देने के लिए कहा तो वो ऐसे नखरे दिखाने लगा के जैसे मन्नू बाबा(मनमोहन सिंह) से कीमतें कम करने के लिए कह दिया हो.. किसी तरह दुल्हन के भाई को समझाया कि बिना लाईट के शादी की रेकोर्डिंग नहीं हो पायेगी, तब जाके कहीं थोड़ी सी उधार की बिजली नसीब हुई.. उसके बाद हमारा तहलका डोट कॉम चालू हुआ कि किसने कितनी कचौड़ी और कितने रसगुल्ले उड़ाए.. एक सच्चाई से वाकिफ हुआ कि चाहे गाँव हो, क़स्बा हो या शहर हो चाट के चटोरे हर जगह पाए जाते हैं.. सो यहाँ भी कोई अपवाद ना मिला और चाट के लगाये गए छोटे से ठेले पर सब एक दूसरे को ऐसे ठेले जा रहे थे जैसे कि किसी ने कह दिया हो 'कल क़यामत का दिन है जितनी चाट खानी हो आज ही खा लो' 
अब बरात को लगाने का वक़्त आया तो पता चला कि गाँव में घोडा-घोडी तो थे नहीं अलबत्ता ट्रेक्टर को ही हंस का रूप दे दिया गया और बड़ी शान के साथ दुल्हेराजा 'ये देश है वीर जवानों का.. ' के उत्साहवर्धक संगीत के साथ(बैंडबाजे वाले मिल गए थे ये गनीमत रही) वधूपक्ष के घर की तरफ चले.. हमें शूटिंग करने में बहुत मुश्किलें हुईं.. एक तो मुझे रात में जागने की आदत नहीं थी तो आँखों में नींद भरी थी.. ऊपर से हर मवाली अपनी बत्तीसी कैमरे को डैन्टोव्हाईट के एड की तरह पेश कर रहा था.. लगता था कि अभी उसी में घुस जाएगा.. ऊपर से बार-बार कैमरे और हैलोजन की वायर पर चढ़ जाते और पूरी दम से लगते उसे कुचलने.. कभी मन करता कि जोर से खींच दूँ तोअभी एकाध गिरेगा लेकिन अगर डोरी टूट जाती तो कोई झटका खाता इसलिए मन मसोस कर रह गया.. 
थोड़े से धूम-धड़ाके और सुर-असुरों(शराबी-गैरशराबी) को ढोती हुई वो बरात लड़की वालों के दरवाजे पर पहुँची जहाँ लाईट की सिर्फ एक-दो झालर लटकी थीं, दो-चार बल्ब, ४ ट्यूब लाईट और  चिलकनी वाली झालरें लेकिन ऐसा कुछ नहीं की वधूपक्ष वाले ऊर्जा का अपव्यय न करने के पक्ष में थे.. असल में ये मजबूरी थी क्योंकि बस एक ही जनरेटर जो था.. तिरपाल खिंची हुई थी और ४ तख्तों को मिला कर बनाये गए मंच पर दो लाल रंग की महाराजा कुर्सियां सजाई गयीं थीं, जिसके सामने एक चाय-टेबल पर गुलदान भी रख दिया गया था.... उस समय लोहे की कुर्सियां बहुत चलती थीं जिन पर टेंटहॉउस का नाम बुना रहता था, सो वही सभी बारातियों के लिए लगाईं गयी थीं.. गले में गेंदे की माला डाल और चन्दन का तिलक लगा हर बाराती का स्वागत हुआ तो आप ही बताइए हर कोई अपने को नवाब क्यों न समझता भला.. एक बार फिर शरबत आया केवड़े का.. 
उधर चमकीली पगड़ी पहने, मुँह में पान दबाये और सफ़ेद सफारी सूट में सजे बन्ने को हंस से लड़की के मामा ने उतारा और कईयाँ में ले के द्वारचार के लिए ले गए.. वहीं पर अपने सिरों पर ३-४ कलशे सजाए खड़ीं और ब्याह गीत गा रही महिलायें थीं.. २-३ मुच्छड़ दुनालीधारी लोगों ने जब फायरिंग की तो मुझे लगा की अब कोई दस्यु-सम्राट आ गया.. लेकिन पता चला की दुल्हे के दोस्त महाशय थे.. और ये बंदूकबाजी बड़ी शान समझी जाती है ब्याह-बारातों में.. टीका-जयमाल के लिए लड़की भी आ गयी अपने हाथों में गेंदे और गुलाब की माला लिए, जिसे देवी-देवताओं के जयकारों के बीच वर-वधु ने एक दुसरे को पहिनाया.. अभिनन्दन पत्र पढ़ा गया जिसमे सभी रिश्तेदारों के नाम सहेजे गए थे..
अब एक बार फिर सब खाने पर मक्खियों कि तरह भागे लेकिन गाँव में वुफे जैसा कुछ नहीं था इसलिए सबको शराफत से जमीन पर ही आसन लगाना पड़ा.. पिछली से पिछली पोस्ट में जो बताया था उसी तरह का खाना परोसा गया.. महकती पत्तलों पर.. सब ठीक था लेकिन मोटी-मोटी पूड़ियों ने जरा सा मज़ा खराब कर दिया था.. हाँ मगर बैगन-टमाटर की सब्जी लाजवाब थी.. पर मुझे क्या पता था कि ये बैगन-टमाटर कि सब्जी ही अभी मेरे लिए  दुश्मन बन जायेगी(अरे बात को सुबह तक मत ले जाइए.. डर्टी माइंड.. अभी थोड़ी देर बाद ही कुछ होने वाला है)
खाने-पीने के बाद मंडप-तेल चढ़ाने, पाँव-पखारने की रस्म चालू हुई.. पीछे से गारियों के स्वर सुनाई दे रहे थे.. लड़के के मामा-पापा-चाचा पर जम के अश्लील शब्दों का प्रहार हो रहा था.. उस समय मुझे ऐसी चीजों से बड़ी नफरत थी. लगता था ये भी कोई बात होती है भला कि शादी जैसे मौके पर इतनी गंदी बातें बोली जा रही हैं.. 
अचानक वहाँ की कुछ मसखरी लड़कियों और औरतों को क्या सूझा कि उन्होंने मुझे निशाना बनाया और एक बाल्टी में बैगन-टमाटर और आलू की सब्जी को तनु(डायल्यूट/पतला) कर, पानी में घोल बनाया और जोर की छपाक की आवाज़ के साथ मेरे ऊपर फेंक दिया.... २ मिनट को मेरी समझ में ही नहीं आया कि ये हुआ क्या.. आँखों में बैगन(भाटे) के बीज और नमक से तिलमिलाहट हो रही थी.. पर मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ थी कि मेरे कपड़ों का सत्यानाश हो गया था. जाने वो सब मेरे कपड़ों पर रीझी थीं या मेरे चौखटे पर या सिर्फ कोई खुन्नस निकाल रही थीं.. सभी मेरी दशा पर हंस रहे थे और वो औरतें और लड़कियां हर दूसरे सेकेण्ड दाँत निपोरे जा रही थीं.. 
बस पापा ने आव देखा ना ताव और बोले अब कोई रेकोर्डिंग नहीं होगी.. 
सब परेशान हो गए कि ठाकुर साब को क्या हो गया(असल में ऊंची-पूरी कद-काठी के कारण कई लोग पापा को ठाकुर ही समझते/कहते थे).. पर उन्होंने साफ़ कह दिया कि, ''ये औरतें हैं आपके यहाँ की? इन्हें जरा भी तमीज नहीं.. अगर कोई शोर्ट-सर्किट हो जाता.. हैलोजन पकड़े जो मेरा बेटा खड़ा है उसको करेंट लग जाता तो उसका कौन जिम्मेवार होता? एक तो काम वाले लड़के ना होने पर भी मैं खुद शूटिंग करने आया कि बरात ना ख़राब हो और उसका ये नतीजा मिला?''
अब यहाँ पासा उल्टा पड़ते देख वो औरतें भी माफ़ी मांगते सामने आयीं और लम्बे से घूंघट के पीछे से ही क्षमा याचना करने लगीं.. मुझे लगा कि बेचारे दुल्हे को भी फील हो रहा होगा कि मेरी शादी में किसी और के मनौये लिए जा रहे हैं.. आखिरकार पिताश्री मान गए पर इस शर्त पर कि अब लाईट पकड़ने के लिए लड़की पक्ष का ही कोई व्यक्ति मदद करेगा क्योंकि मैं बुरी तरह भीग चुका था और शायद बारिश की वजह से काँप भी रहा था.. 
मैं वापस धर्मशाला आकर कपड़े बदलकर सो गया और बाकी की शादी ना देख पाया.. पर उस समय मुझे उसका कोई मलाल भी ना हुआ था क्योंकि आँखों में नींद जो भरी थी और खुद ही निद्रादेवी की गोद की तरफ भागना चाह रहा था वो तो भला हो उन महिलाओं का जिन्होंने मुझे बहाना दे दिया... 
दूसरे दिन सुबह जब आँख खुली तो पिताश्री की आँखें नींद कि वजह से लाल थीं और विदा होने वाली थी.. मैंने चाय के साथ वो ग्रामीद क्षेत्रों का टिपिकल जलेबी-पकोड़ियों का नाश्ता किया और महिलाओं के रूदन के बीच में से निकलता हुआ ट्रेक्टर में जा बैठा.. क्योंकि बस वाले भाईसाब ने इसबार अन्दर आने से साफ़ इंकार कर दिया था और मुख्य सड़क तक ट्रेक्टर से ही जाना था, और फिर हिचकोले खाता बस की तरफ चल दिया.. वैसे आपलोग अगर कभी ट्रेक्टर की सवारी करेंगे तो मेरी तरह मानने लगेंगे कि शकीरा के डांस को ट्रेक्टर सवारी डांस भी कह सकते हैं..

ऐसे ही एक बार एक और गाँव गया था जहाँ धर्मशाला के नाम पर एक खलिहान था और वो गाँव बिच्छुओं के लिए कुख्यात था.. जब रात में खलिहान में, खुले में खटिया पर सोने को कहा गया तो सारे बाराती भाग कर बस में चढ़ के सो गए.. अच्छा था कि उस गाँव में बस जा सकती थी.. और तो और सुबह नहाने के लिए सबको एक पक्के तालाब का रास्ता दिखा गया था..वो तो अच्छा था कि उसमे मैं भी ठेठ बाराती बन के गया था तो जल्दी ही बिना पूरी शादी किये विपक्षी सांसदों की तरह उस शादी-संसद से वापस खिसक लिया था.. पर घबराइए नहीं अब और शादी के किस्से सुनाकर आपको पकाऊंगा नहीं.. :)
इतना लम्बा किस्सा झेलने के लिए शुक्रिया कहूं तो चलेगा क्या???
एक झलक ये भी देखिये..  
आपका-
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल और विडियो यूट्यूब से..

32 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रपट है,
    बैंगन की सब्जी यादगार रही।
    गारी तो चलती ही है शादियों में।
    सोचता हूँ कभी मौका लगा तो रिकार्ड किया जाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. अमां और पकाओ न !
    ’ये देश है वीर जवानों का’ एक इस धुन ने कितने शहीद करवा दिये:)
    शकीरा का डांस और ट्रैक्टर की सवारी, गज़ब हो यार।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्‍तुत किया है !!

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या बात है..हम तो बड़े लकी हैं..आज ही दूसरी कड़ी भी मिल गयी पढने को..
    गाली वाली तो ठीक है...पर ये आलू -बैंगन की सब्जी की बारिश :)...पर तुम्हारे हक़ में अच्छा ही हुआ....रात भर सोने को मिला.
    वहाँ ट्रैक्टर को हंस बनाया गया, आज भी ,छोटे शहरों में रथ का रिवाज़ है...एक ऐसे ही बारात को देख मेरे आठ साल के बेटे ने कहा था,"ये ब्राइड ग्रूम , ट्रॉली पर बैठकर क्यूँ आ रहा है?" और मैने जल्दी से उसका मुहँ बंद किया...कोई और ना सुन ले.

    बहुत ही रोचक विवरण...मजा आ गया,पढ़कर

    जवाब देंहटाएं
  5. हाँ जनाब दीपक जी थेंक यू तो कह ही दीजिए आखिर कार ३ लेख आपके आज ही पढ़ डाले...चित्रण कर लिया सरी बारात का.

    ट्रेक्टर की सवारी हमने की है जी....पूरी एक्सरसाइज हो जाती है जी शरीर की.

    जवाब देंहटाएं
  6. अरे भाईया हम भी गये थे एक बार ऎसी ही शादी मै गाजिया बाद, शराब पीतल की बाल्टियो मै आई थी, ओर बरात को रात को ट्रेकट्र्र पर ढोया गया,ओर ऊस ट्रेकटर की दोनो लाईटे खराब थी, तो थोडी थॊडी देर वाद टार्च जला कर रास्ता देखते थे... ओर पता ही नही चला ट्रेकटर कब गन्ने के खेत मै पहुच गया था

    जवाब देंहटाएं
  7. मजेदार रही ये शादी की पोस्ट .......दुल्हा तो नोटों की खान ही लग रहा है ...सब जगह अलग अलग संस्कृति देखने को मिलती है तो अपने देश की एक बात याद आती है ‘अनेकता में एकता’

    जवाब देंहटाएं
  8. मस्त रही किस्सागोही. बैंगन आलू में नहाना भी अपने आप में अजूबा ही रहा होगा. हद है लिकिन सुकून इतना ही है कि कम से कम सोने मिल गया. ट्रेक्टर में तो मैं भी खूब चला हूँ और सहमत हूँ..चलो, शुक्रिया किस्सा सुनाने का.

    जवाब देंहटाएं
  9. दीपकजी क्या गजब लिखा है,पूरा विवरण एकदम जायकेदार अंदाज में ।
    हां ये सब्जी स्नान जोरदार रहा ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सटीक और लाजवाब चित्रण के साथ एक बहुत उम्दा पोस्ट. पढ़ कर के मजा आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  11. भाई सचित्र वर्णन के लिए धन्यवाद। अच्छा है भाई

    जवाब देंहटाएं
  12. rapt to theek hai hi, isaki sabase badee visheshataa hai, bhasha., ranjakataa. kaheen vyagya, kaheen parihaas. ek tarah se lalit nibandh kaaa anand aayaa. badhai, aise lekhan k liye.

    जवाब देंहटाएं
  13. विडियो बहुत मजेदार है और पोस्ट गज़ब की...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही रोचक रहा मगर इतना सब झेला कैसे?वो भी बैंगन की सब्ज़ी का घोल!

    जवाब देंहटाएं
  15. दीपकजी मेरे ब्लॉग पर आने और एक प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आभार. आपका शादी वाला ये रोचक संस्मरण पढ़ा अच्छा लगा हमने तो पोस्ट पढ़ कर ही रसास्वादन कर लिया

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही शानदार प्यारे
    जबरदस्त
    लगा मैं भी वही कही आसपास हूं

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहद रोचक और शानदार पोस्ट, बहुत आभार.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  18. पढकर आनद आ गया. काश में भी ऐसी शादी में गया होता - और बेगन की सब्जी से साथ साथ (ग्रामीण भाभियों द्वारा) गालियाँ खाने को मिलती तो क्या बात थी.

    जवाब देंहटाएं
  19. दीपक जी!... भई यह शादी भी क्या खूब रही!...और बैगन की सब्जी वाली बात...चटाकेदार है!... बहुत सुंदर प्रस्तिति!..मजा आ गया!

    जवाब देंहटाएं
  20. vaah....mazza aa gaya....main piche ek saal se bangalore mein hu.....aur apne U.P. ki shaadiyo ko bada miss kar raha hu........tumne yaad tazza karwa di.....began-tamatar ki sabzi abb hamesha yaad rahegi tujhe...........

    aur shaadiyo mein golliya chalana toh shaan hoti hai........jisska jitna bada rutaba.....utni zayada golliyaa........

    जवाब देंहटाएं
  21. बड़ी शान के साथ दुल्हेराजा 'ये देश है वीर जवानों का.. ' के उत्साहवर्धक संगीत के साथ(बैंडबाजे वाले मिल गए थे ये गनीमत रही) वधूपक्ष के घर की तरफ चले..
    हा हा हा क्या मारा है एकदम पॉइंट पर ..वाकई हर बरात में ये गाना जरुरी होता है शायद आज भी .
    कस्बाई शादी का बेहतरीन और रोचक वर्णन. मजा आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  22. दीपक भाई आप भी मस्‍त आदमी हो। पकाने का शुक्रिया। वैसे एक बात कहूँ, आपने मस्त पकाया।
    --------
    पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
    सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।

    जवाब देंहटाएं
  23. लंबी पर रोचक प्रस्तुति है आपकी ... शादियों के किस्से कुछ न कुछ नया परोसते हैं ...
    अच्छा लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  24. रोचक विवरण, अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  25. मैं सोचती हूँ कि यदि आप आत्ममुग्ध हो भी गए तो भी यह किसी भी तरह से बुरा नहीं है.आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और आत्मअभिस्वीकृति कोई दोष नहीं ..शुभकामनाओं सहित .....^_^ ईश्वर आपकी लेखनी को इसी प्रकार हमारे लिए सुलभ करवाता रहे .

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...