बड़ा जुझारू शहर है वो
उसमें रहते हैं साहसी लोग
जो नहीं डरते किसी तकलीफ से
ऐसा नहीं कि वहाँ नहीं आते
दैहिक दैविक और भौतिक ताप
बेशक रामराज्य नहीं वहाँ
पर लोग जिंदादिल हैं
तभी तो उसकी जड़ें नहीं खोखला कर पाता
कोई भी दीमक
कोई उसकी नींव को
नोना नहीं लगा पाता
उसके फौलादी इरादों को
जंग नहीं लगती कभी
ना बम धमाके रोक पाए उसे बढ़ने से
ना पड़ोसी देशों के घृणित इरादे
ना राम-रहीम के दंगे
ना भाषाई लड़ाईयाँ.. ना वर्गों के बीच के पथराव
ना डिगा सका भूकंप
ना डेंगू.. ना कोई स्वाइन या बर्ड फ़्लू
ज़रा थम के अगले ही दिन वो लगता है दौड़ने
शल्य चिकित्सा के बाद
रगों में दौड़ते नए लहू की मानिंद
ये सब सुना-पढ़ा था मैंने उसके बारे में
कभी अख़बारों कभी टी.व्ही. पे
करीब से जाना ये सच
फिर उस शहर में जाके..
सच में लोग चलते रहते हैं
बिना विचलित हुए
लपटों के बीच से.. शोलों की ज़मीन पर भी
बाढ़ के पानी में भी
आज उस शहर के जुनून को दुनिया को दिखाने के लिए
मैं ढूँढने निकला था कुछ पात्र
मैं ढूँढने निकला था कुछ पात्र
करने एक नायिका की तलाश
आज ही किसी ने बताया
उस तथाकथित हिम्मती शहर में
लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं
कई साल पहले शहर की
एक मंचीय अभिनेत्री
पड़ गई थी प्रेम में साथी कलाकार के
तभी से
वहाँ की लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल से मारा है दोस्तों...
Are bhai,wahan kee ladkiyan to khoob natak,nautanki karti hain!
जवाब देंहटाएंतभी से
जवाब देंहटाएंवहाँ की लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं
संवेदनशील प्रस्तुति।
अब क्या कहूँ……………बेहद शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संवेदनशील रचना !
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंउम्दा ...........बेहद उम्दा रचना और प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना उम्दा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंतभी से
जवाब देंहटाएंवहाँ की लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं
बहुत करीबी रचना. विसंगतियाँ सालती तो हैं ही....
शहर कितना भी आलीशान हो कुछ चीजें नहीं बदलती
जवाब देंहटाएंवहां की लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं .....
संवेदनशील लेखन .
अच्छी अभिव्यक्ति तथा सामाजिक बदलाव व समस्याओं को दर्शाती कविता ...
जवाब देंहटाएं" नाटक में काम करने वाली लड़की "------------(शरद कोकास जी की रचना )
जवाब देंहटाएंअब ---"नाटक में काम नहीं करती "-------------(दीपक "मशाल की रचना)
इस कविता के जरिये आपने आदमी की सच्ची दुनिया सामने रखी है, वह सच्ची दुनिया जो भीषण संक्रमण से गुजरती है और फिर भी संभावनाओं की ओर संकेत करती है कि अभी उसे मानवानुरूप और बदलना है।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कविता जो सामान्य तरीके से शुरू हो कर फिर अंत मे अपनी गिरहें खोलती है..यथार्थ की भयावहता को बड़े तटस्थ रूप मे मगर ईमानदारी के साथ उघाड़ती कविता...नाटक मे काम करने वाली लड़कियाँ बड़े शहरों मे भी तमाम आदिम आँखों की उत्सुकता का केंद्र होती हैं..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन........ हमेशा की तरह................. ये रचना भी कुछ सोचने पर मजबूर करती है ........
जवाब देंहटाएंअच्ची रचना
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना लगी, दीपक!
जवाब देंहटाएंदीपक जी हमेशा की तरह एक बेहतरीन भाव समेटे सुंदर रचना...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनाटक में तो शादी के बाद लड़के काम करते हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
ये रचना भी कुछ सोचने पर मजबूर करती है ........
जवाब देंहटाएंकई साल पहले शहर की
जवाब देंहटाएंएक मंचीय अभिनेत्री
पड़ गई थी प्रेम में साथी कलाकार के
तभी से
वहाँ की लड़कियां नाटक में काम नहीं करतीं
....बेहद उम्दा रचना और प्रस्तुति।
uss shahar ki duniya sach me lagta hai SACH ke kareeb hai..............hia na!!
जवाब देंहटाएंएक जोरदार रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयीं....
मुझे तो दिलचस्प लगती हैं उस शहर की ही नहीं हर शहर की लडकियाँ।
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सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।
bhaut sundar rachna dipakji
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील कविता....लडकियाँ बड़े शहरों की हो या छोटे शहर की , उनपर लगी पाबंदियां उनके जीवन का दुख एक सा होता है ...बहुत अच्छे से उकेरा है उस दर्द को...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना उम्दा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंवो शहर कौन-सा है?
कविता के भाव बहुत बढ़िया हैं ...पर यह शहर कौन सा है? वैसे एक राज़ की बात है :):) हर लड़की ज़िंदगी भर नाटक करती है....और इतना जीवंत कि किसी को एहसास ही नहीं होता ... :):)
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