सोमवार, 5 जुलाई 2010

गाँव की शादी के बारे में एक पोस्ट(एक कविता मुफ्त में)----------->>>दीपक 'मशाल'



अभी दो दिन पहले रश्मि रविजा जी के ब्लॉग पर भारत के गाँव की शादी के बारे में एक पोस्ट पढ़ी तो सोचा कि इस विषय में मैं भी कुछ अपना भी ज्ञान बघार ही दूँ... वो क्या है कि एक तो मैं छोटे से कस्बे से हूँ.. और उसपे सोने पे सुहागा ये कि मेरे यहाँ पिछले ५५-६० सालों से फोटोग्राफी का व्यवसाय हो रहा है.. इसलिए कई बार मुझे भी इसी कारण ठेठ गाँव की शादियों में शामिल होना पड़ा.. अब एक बात जिसे मैं अकाट्य समझता हूँ वो ये है कि एक कस्बाई व्यक्ति ना सिर्फ शहर और गाँव के बीच की कड़ी होता है बल्कि दोनों संस्कृतियों को अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से समझ सकता है.. खासकर जब उसके कुछ रिश्तेदार गाँव में हों और कुछ शहर में.. वो एक ऐसे विशाल वृक्ष की तरह होता है जिसका तना तो कस्बे में होता है जड़ें गाँव में और पत्ते शहर में.. 
तो है क्या कि मेरा ननिहाल गाँव में ही पड़ता है.. इसलिए बचपन से ही गाँव की शादियाँ देखने का सौभाग्य मिलता रहा.. अभी तक अपने सर पर गत्ते की चमकीली टोपी पहने.. सीने से क्रोस आकार में सफा बांधे और गले में १-२  या ५ के नोटों की माला डाले.. माथे पर भोहों के किनारे से लाल सफ़ेद टिपकियां रचवाये, अपने एक हाथ में सींकों में पूड़ी फंसाए और दूसरे में दोने में कुछ बतासे वगैरह लिए दूल्हों की तस्वीर नहीं भूल पाया हूँ.. 
और अच्छे से याद है कि पहले जब कार्ड नहीं चलते थे तो जिसके घर से एक लोग को बुलाना हो उसके घर के बाहर एक ईंट और जिसके घर से सपरिवार(चूल) बुलाना हो उसके घर के बाहर २ ईंटे रख देते थे.. और शादी वाले घर के सगे लोगों को बुलाने के लिए नाइ चूल का न्योता देने जाता था..
खाने की पत्तल में वो देखने में लाल रंग की और खुश्बू से ही भूखदेव को निद्रा से जगाने वालीं आलू-टमाटर या कभी मटर की तरी वाली सब्जी, आलू-गोभी बैंगन(भटे-टमाटर) की या कद्दू की वो स्वादिष्ट सब्जियां.. बूंदी का रायता.. दही-बड़ा, नमकीन(दालमोंठ), पिसी हुई चीनी, रसगुल्ले, बालूशाही, बर्फी के दोने, कुल्हड़ में परोसा गया बर्फ की सिल्ली से ठंडा किया गया वो पानी और सबसे ख़ास वो गरमागरम पूड़ियाँ.. मुँह में पानी आ गया लिखते हुए ही..
बन्ने या बन्नी(शादी के प्रचलित लोकगीत) जब ढोलक की थाप पर गाये जाते थे तो क्या आनंद आता था ''आहहा आ.. क्या कहने''
''महंगाई का ज़माना.. मेहमान ना भुलाना.. बन्ना(दूल्हेराजा) याद रखोगे या भूल जाओगे...''
पंडित जी और नाइयों के झगड़े, नखरे.. दूल्हे के बाप-चाचा के मनौये.. जूता चुराई.. कुँवर-कलेऊ(हमारे क्षेत्र में गाँव में दोपहर के भोजन को कलेऊ और रात के को ब्यारू कहते हैं..), बाती-मिलाई में लड़के के अंदाज़.. सब एक से बढ़कर एक..
मेरा एक बड़ा रोचक किस्सा भी जुड़ा है एक बीहड़ के गाँव में शादी से.. पर अगली पोस्ट में ही लगाऊंगा.. अब इतना इन्तेज़ार तो कर ही लेंगे आप.. :) तब तक ये पुरस्कृत कविता भी झेल ही लीजिये..



अधूरी जीत



तुम्हारे सच के लेबल लगी फाइलों में रखी
झूठी अर्जियों में से एक को
एक कस्बाई नेता की दलाली के जरिये
मेरे कुछ अपने लोग
हकीकत के थोड़ा करीब ले आये

आज बोलने पड़े कई झूठ मुझे
एक सच को सच साबित करने के वास्ते
वो झूठ जो तुम्हारे ही एक
कानून के घर में सेंध लगाने वाले विशेषज्ञ ने 
लिख कर दिए थे मुझे

कतई नामुमकिन नहीं
कि कुछ भी अजीब सा ना लगे इसमें तुम्हें
क्योंकि तुम्हारे लिए हो चुका है ये
दाँत मांजने जैसा
पर मेरे लिए अभी भी अजीब
या शायद बहुत अजीब ही है ये
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई

किसी ने कहा भी तो था पीछे से
कि 'कुछ खर्च हुआ तो हुआ
पर सच जीत ही गया आखिरकार'
और आज मैं एक बिन किये अपराध का
छोटा सा अपराधी बन
मुचलके पर रिहा हो रहा हूँ
अब बस इंतज़ार है
कल के अदालती चक्करों का..

36 टिप्‍पणियां:

  1. माय माय माय .....क्या खाका खींचा है शादी का ..मैंने अपने पापा से सुने थे ऐसे किस्से ....मजा आ गया ..और कविता ...अब भाई पुरस्कृत है तो बढ़िया तो होनी ही हुई...बहुत सुन्दर है.

    जवाब देंहटाएं
  2. गाँव की शादी का गजब चित्रण रहा..हमें भी बहुत कुछ याद आया दोस्तों के यहाँ शादियों में गांव जाना.

    कविता बहुत जबरदस्त है, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. गाँ की शादी --रोचक विवरण।
    तुम्हारे सच के लेबल लगी फाइलों में रखी
    झूठी अर्जियों में से एक को
    एक कस्बाई नेता की दलाली के जरिये
    मेरे कुछ अपने लोग
    हकीकत के थोड़ा करीब ले आये
    बहुत सटीक अभिव्यक्ति

    कि मेरे सच की कमाई
    एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
    आज के जीवन का व्यवस्था का सच है इस रचना मे। आशीर्वाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. लार टपकने लगी!
    पर अब गांव की शादियों में वो रंग नहीं रहा।

    जवाब देंहटाएं
  5. मज़ा आगया आपका विचार क्या है किधर करेंगे गाव में या शहर्त में या उधर ही निपट के आवेगें

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया चित्रण किया गांव की शादी का..और कविता भी बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  7. हमारे यहाँ सपरिवार को चूल्हा न्यौत कहते थे ।
    लेकिन खाने में इतने व्यंजन तो कभी नहीं बनते थे ।
    हाँ कद्दू की सब्जी तो आज भी याद आती है ।

    कविता बहुत भावपूर्ण है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. यही चित्र हमारे जिले बदायूं में होने वाली शादियों का है ...लगता है आसपास के ही हो ! शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  9. इस कविता की जगह अगर एक बन्ना/ बन्नी गीत लगा देते तो इस पोस्ट का महत्व बढ़ जाता । कुछ इस तरह ...
    मेरे हरियाले बन्ने मेरे शहजदे बन्ने
    सुहानी रात आई खुशियाँ साथ लाई
    तेरा जूता तो क्या तेरी चप्पल तो क्या
    तेरे जूते मे पॉलिश चमकता रहे
    जैसे खिलता सुमन ,मुस्कुराता गगन
    सुखी जीवन हमेशा तुम्हारा रहे ... ओ ओ ओ ओ
    ( इसे रमैया वस्तावय्या की धुन पर गायें )

    जवाब देंहटाएं
  10. गाँव?????????? ये शब्द क्या है???? कैसा दीखता है ये?????
    दीपक आज के समय में गाँव को वही जान सकता है जो वहां रहा हो बाकी तो बस इसी तरह लिखा हुआ पढ़ कर ही मजा लेते हैं.
    फिल्मों में, टी वी में तो गाँव समाप्त ही हो गए हैं.....
    शेष अगली बीहड़ वाली शादी का इंतज़ार रहेगा. इस पर हम भी लिखेंगे क्योंकि कई मजेदार और हास्यास्पद किस्से अपने पास भी हैं.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

    जवाब देंहटाएं
  11. दीपक बहुत मैच्योर्ड पोस्ट... कविता तो बहुत ही अच्छी लगी.... हैट्स ऑफ टू यू...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढिय़ा चित्रण किया है दीपक जी.... वैसे अपुन भी ठेठ गांव वाले हैं। पिता नौकरी के लिए शहर आ गए और हमें तो आना ही पड़ा। लेकिन भाई गांव से आज भी नाता नहीं टूटा... गांव की शादियों में आना-जाना लगा रहता है। गांव की शादी की एक खास बात यह भी है कि सारा गांव पूरी मदद करता है। खासकर शादी अगर लड़की है तो पूरा गांव घराती बन जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  13. @शरद भैया.. चाहता तो मैं भी ऐसा ही कुछ था.. और अच्छा लगा सुनकर कि आपने भी वैसी ही ख्वाहिश की जैसा मैंने सोचा था.. लेकिन क्या करुँ कोई बन्ना गीत पूरा याद ही नहीं था :(
    @कुमारेन्द्र चाचा जी.. आप लिखेंगे तो बहुत सूक्ष्म विश्लेषण के साथ ही लिखेंगे इतना विश्वास है आप पर.. एक रोचक पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा..
    @महफूज़ भाई, लोकेन्द्र भाई.. अगर हम अपने गाँव की तरफ लौटें, कृषि की तरफ(आधुनिक यंत्रों का उपयोग कर) लौटें तो निश्चय ही और बेहतर एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था बन सकते हैं..

    जवाब देंहटाएं
  14. हम भी कुछ ऐसे ही - गाँव और शहरों दोनों तरफ जड़ें हैं ...
    अभी तो कई साल हो गए शादी में गए हुए और आजकल सुना है शादी भी शहरी हो गयीं है ...

    जवाब देंहटाएं
  15. पुराना याद ताजा हुई ,अभी गांव गया था ,पर कोई शादी नहीं पड़ी वरना कुछ फोटो तो आपके पोस्ट के लिये फ्री में देता ।

    जवाब देंहटाएं
  16. अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी। कविता तो वाकई उत्कृष्ट है - ज्वलंत यथार्थ को अभिव्यक्ति देती हुई

    जवाब देंहटाएं
  17. ईंटों से बुलावे मेरे लिए नई जानकारी है .धन्यवाद. कविता भी उतनी ही सुंदर है.

    जवाब देंहटाएं
  18. gaon ki saadi.........:) hame bhi yaad hai!!

    unn sadiyon me sabse badi visheshta hoti thi, ki pura gaaon lag jata tha barat ki aawbhagat me....janmaase(jahan dulhe raja rukenge) ki tayari ho, ya sarbat peelana ho.......

    kuchh aur bhi pal yaad hain, jaise marve pe dulhe ka narajagi dikhana, ya saari mahilaon ka baratiyon ko gaali sunana....waise we geet bhadde hote the.......lekin dil ko chhute the....

    hai na deepak bhai!!

    kavita to shandaar......

    जवाब देंहटाएं
  19. दीपक जी
    गाँव की शादी का सुन्दर खाका खींचा है………………और कविता के लिये तो शब्द भी नही मिल रहे फिर किन लफ़्ज़ों मे तारीफ़ करूँ………………आज के हालात का सजीव चित्रण किया है……………शायद हर इंसान की तकलीफ़ यहीं एक जगह समेट दी है………………पुरस्कृत तो होनी ही थी।

    जवाब देंहटाएं
  20. भाई वाह मजा आ गया , बहुत शानदार खाका खींचा शादी का आज भी याद आता है वो सैकरीन वाला शरबत जो अक्सर गाँव में दिया जाता है. वक़्त के साथ लेखनी रोचक तो है ही असरदार भी हो रही है.. .... सारी लंगोतियेपन की यादें तजा हो आयीं. कविता भी बहुत जानदार लगी, भावपूर्ण लेनें हैं जनाब.

    शाहिद "अजनबी"

    जवाब देंहटाएं
  21. आपने तो सच में पुराने वक़्त की शादियों के मज़े दिलवा दिए ....
    आपकी मुफ़्त में आई कविता ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया ...

    जवाब देंहटाएं
  22. आज बोलने पड़े कई झूठ मुझे
    एक सच को सच साबित करने के वास्ते
    वो झूठ जो तुम्हारे ही एक
    कानून के घर में सेंध लगाने वाले विशेषज्ञ ने
    लिख कर दिए थे मुझे
    waah, mujhe yah bahut raas aaya

    जवाब देंहटाएं
  23. और आज मैं एक बिन किये अपराध का
    छोटा सा अपराधी बन
    मुचलके पर रिहा हो रहा हूँ
    अब बस इंतज़ार है
    कल के अदालती चक्करों का..

    bahut sahi baat

    जवाब देंहटाएं
  24. लडके दूसरों की शादी का गुणगान तो बहुत हो गया ...ये बता कि ..हमारा ये बन्ना कब ले जा रहा है हमें ऐसी ही एक शादी में बाराती बना कर । कुल मिला कर धांसू पोस्ट तैयार हुई है ....और फ़ांसू कविता के बाद एकदम कौंबो पैक की तरह हो गई है

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत ही जानदार और शानदार लिखा है.... बहुत सारे शब्द भी याद है तुम्हे...काश मुझे भी याद होते :(...वो एक ईंट, दो ईंट वाली बात अच्छी बतायी....कुछ ऐसा ही हमारे गाँव में भी था...एक के लिए अलग शब्द ...दो लोगों को बुलाने के अलग शब्द .. ..एक शब्द याद है ...चुल्हानिवार....यानि कि चूल्हा जलाने की भी जरूरत नहीं,सपरिवार आमंत्रण है.

    बहुत कुछ याद दिला दिया तुम्हारी पोस्ट ने....अब जल्दी से वो मजेदार संस्मरण लिख डालो...और हाँ सॉरी इतनी देर से टिप्पणी की
    ...

    जवाब देंहटाएं
  26. सॉरी कविता की बात करना तो भूल ही गयी.....बहुत ही सच के करीब है यह रचना...बिलकुल पुरस्कार योग्य..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  27. kavita bahut achchhi lagi bhai..

    आज बोलने पड़े कई झूठ मुझे
    एक सच को सच साबित करने के वास्ते
    वो झूठ जो तुम्हारे ही एक
    कानून के घर में सेंध लगाने वाले विशेषज्ञ ने
    लिख कर दिए थे मुझे

    sach hai..

    Aur haan, aalekh bhi achchha laga. Mere jehen me bhi sab kuchh tair aaya...maine to haal filhaal (5-6 saal ko agar ye kah sakein) aisi shadiyaad attend ki hain.

    जवाब देंहटाएं
  28. हमारी लोक संस्कृति अब सिर्फ ऐसे ही गावों में देखी जा सकती है ।चलो कहीं न कहीं अब भी लोग अपनी संस्कृति से जुड़े हैं।आपके लेखन पर क्या टिप्पणी करू आप तो अपने हर प्रकार के लेखन में माहिर हैं । एक प्रयास मेरा भी कहानी लेखन में आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  29. Mai khud,gaanv,kasba aur shahar,teenon jagahon pe rah chuki hun...!
    Fabulous article! One more gem in the crown!

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...