महान बलिदान...........दीपक मशाल
इन ज़ख्मों को
हरा रखना मेरे दोस्त,
पीते जाना
इनका दर्द..
मेरी खातिर,
तब तक
जब तक कि मैं..
उन गोली,
बन्दूक,
खंजर और
तलवारों कि धारों को
मोथरा न कर दूं..
जिसने इनमे
भर दिया है गर्म लाल रंग..
और
तकलीफ का सागर...
मगर,
माफ़ करना मेरे दोस्त..
ये धार मैं
तुम्हारी खातिर नहीं
बल्कि उन मासूमों की खातिर
मोथरा करूंगा..
जिनको ये
आगे घाव दे सकते हैं,
तुम्हारा
इन घावों को
हरा रखना तो होगा
सिर्फ एक
महान बलिदान....
दीपक मशाल
चित्र साभार गूगल से
मार्मिक है , रचना और फोटो दोनो
जवाब देंहटाएंअगली पीढ़ी के लिए है संदेश कमाल।
जवाब देंहटाएंदीपक से तम दूर कर जलता रहे मशाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ये धार मैं
जवाब देंहटाएंतुम्हारी खातिर नहीं
बल्कि उन मासूमों की खातिर
मोथरा करूंगा..
जिनको ये
आगे घाव दे सकते हैं,
दिल से निकला कवित्त, आभार
समयानुकूल रचना
जवाब देंहटाएंइस बलिदान को शत बार नमन
जवाब देंहटाएंइस नाजुक रेशमी रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मार्मिक रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर् और आक्रोश युक्त रचना. हर एक के मन में इनके प्रति यही आक्रोश उपजे तो --
जवाब देंहटाएंबेहरीन
मशाल की आग यूँ ही भभकती रहे
जवाब देंहटाएंबधाई।
एक शंका..
हम 'मोथरा' नहीं
'भोथरा' शब्द का प्रयोग करते हैं
मैं गलत भी हो सकता हूँ.
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त रचना, दीपक!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी और मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता आज के लोगों को बलिदान का संदेश देती है नवकोपलों के लिये ।
जवाब देंहटाएंबरसात की पहली बूंद को तपती ज़मीन पर फ़ना होना ही पड़ता है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मार्मिक और बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंbahut hi dhardar, marmik aur sashakt rachna.........badhayi
जवाब देंहटाएंwow..and again wow!
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