मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

महान बलिदान...........दीपक मशाल



इन ज़ख्मों को
हरा रखना मेरे दोस्त,
पीते जाना
इनका दर्द..
मेरी खातिर,
तब तक
जब तक कि मैं..
उन गोली,
बन्दूक,
खंजर और
तलवारों कि धारों को
मोथरा न कर दूं..
जिसने इनमे
भर दिया है गर्म लाल रंग..
और
तकलीफ का सागर...
मगर,
माफ़ करना मेरे दोस्त..
ये धार मैं
तुम्हारी खातिर नहीं
बल्कि उन मासूमों की खातिर
मोथरा करूंगा..
जिनको ये
आगे घाव दे सकते हैं,
तुम्हारा
इन घावों को
हरा रखना तो होगा
सिर्फ एक
महान बलिदान....

दीपक मशाल
चित्र साभार गूगल से

17 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक है , रचना और फोटो दोनो

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  2. अगली पीढ़ी के लिए है संदेश कमाल।
    दीपक से तम दूर कर जलता रहे मशाल।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. ये धार मैं
    तुम्हारी खातिर नहीं
    बल्कि उन मासूमों की खातिर
    मोथरा करूंगा..
    जिनको ये
    आगे घाव दे सकते हैं,

    दिल से निकला कवित्त, आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया मार्मिक रचना है।बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर् और आक्रोश युक्त रचना. हर एक के मन में इनके प्रति यही आक्रोश उपजे तो --
    बेहरीन

    जवाब देंहटाएं
  6. मशाल की आग यूँ ही भभकती रहे
    बधाई।
    एक शंका..
    हम 'मोथरा' नहीं
    'भोथरा' शब्द का प्रयोग करते हैं
    मैं गलत भी हो सकता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी कविता आज के लोगों को बलिदान का संदेश देती है नवकोपलों के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बरसात की पहली बूंद को तपती ज़मीन पर फ़ना होना ही पड़ता है...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं

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