शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

आस्तीन के सांप...

आधुनिकता के
इस दौर में
पाश्चात्य सभ्यता के
अनुगमन कि होड़ में..
हम दौड़ रहे हैं...
अंधी दौड़ में...
बहुत आगे,
मगर पदचिन्हों पर किसी के..
हर बदलते पल के साथ,
कभी पतलून
बदल जाती है
बैलबोटोम में..
कभी पजामे में,
कभी जींस
तो कभी बरमुडे में...
सिर्फ जींस नहीं रोक सकती,
केवल धोती नहीं
बाँध सकती
इन भागते
फैशनपरस्तों के क़दमों को..
कुछ लोग जो
कईयों के
आदर्श है..
प्रेरित करते हैं
पूर्वजों सरीखे प्राकृतिक होने को भी..
मगर तुम
अपने कमीज़ की..
अपने कुरते की
या जो भी कहें इसे
अगली घड़ी में...
इसकी बाहें
इतनी न फैला लेना..
इतनी न बढ़ा लेना..
और ना ही इतनी चौड़ी करलेना
कि पल सकें उनमे
आसानी से
बिना परेशानी के..
आस्तीन के सांप...
दीपक मशाल

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढिया...उम्दा सोच के साथ लिखी गई रचना

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  2. इसकी बाहें
    इतनी न फैला लेना..
    इतनी न बढ़ा लेना..
    और ना ही इतनी चौड़ी करलेना
    कि पल सकें उनमे
    आसानी से
    बिना परेशानी के..
    आस्तीन के सांप...
    बहुत गहराई से सोचते हैं आप...अच्छा लगता है आपकी रचनाओं को पढना.

    जवाब देंहटाएं
  3. मियां, छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी बातें करने लगे हैं आप।
    शानदार और असरदार रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. दीपक जी यह भाव बहुत अच्छे लगे..वैसे कोई शक़ नही आप की रचनाएँ अच्छी होती है..धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या बात है दीपक ...भई घातक टाईप रचना है ..एक दम ठसकदार ..नसीहत जैसी

    जवाब देंहटाएं
  6. इसकी बाहें
    इतनी न फैला लेना..
    इतनी न बढ़ा लेना..
    और ना ही इतनी चौड़ी करलेना
    कि पल सकें उनमे
    आसानी से
    बिना परेशानी के..
    आस्तीन के सांप...

    ---काफी गहरी बात कह गये भाई..बहुत खूब!!

    जवाब देंहटाएं
  7. अत्यन्त प्यारी कविता..........

    जीवन से जुडी बात..............धन्यवाद !

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  8. बहुत गंभीर बातें कह दी आपने .. बहुत बहुत बधाई !!

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  9. आस्तीन के साप अब आस्तीनो मे नही पलते अब तो ये पैबश्त हैं रूह तक में
    बहुत खूबसूरत भाव की कविता.

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  10. नसीहत तो ठीक ही है ...मगर आस्तीन में पलते सांप नजर कहाँ आते हैं ...कैसे बचे कोई ...!!

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  11. सांप इंसान की केंचुली में बस गया है
    अपनों को काटना इंसान का धर्म हो गया है..
    (दीपक प्यारे, हो कहां)
    जय हिंद...

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
    सूचनार्थ!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  13. गहन अहसास संजोये बहुत सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं

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