माफ़ी चाहूँगा लेकिन मुझे पता नहीं कि ब्लोगवाणी नियंत्रक तक कैसे अपनी बात पहुंचाई जाती है.. बस सिर्फ इसीलिए यहाँ पर लिख कर उनका ध्यान बंटाना चाहूंगा उस एक गलती पर जो मैं कई महीनों से देख रहा हूँ लेकिन अभी तक सुधर नहीं पायी और इस पर किसी का ध्यान भी नहीं गया..
--> जब भी कोई पोस्ट दोपहर के १२ बजे के बाद प्रकट होती है तो उसके प्रकाशन का समय ब्लोगवाणी पर P.M. में भी दिखाई पड़ता है और २४ घंटे के अनुसार भी.. यानी शाम ८ बजे प्रकाशित हुई पोस्ट के साथ समय दर्शाया जायेगा २० P.M. .. मुझे ये भी पता नहीं कि ये यहाँ यू.के. में ही दिखता है या सारी दुनिया में.. लेकिन बस आपसे इतनी गुजारिश है कि या तो इसे A.M. और P.M. के अनुसार रखें या २४ घंटे के अनुसार.. और ऐसा समय हर ब्लॉग की उस पोस्ट के साथ दिखता है जो दोपहर १२ बजे के बाद लगाई जाती है... सुधार अपेक्षित है.. धन्यवाद.
वैसे भारत में अधिकांश जगहों पर रक्षा-बंधन के अलावा भाई-बहिन के प्यार का पर्व भाईदूज सिर्फ दिवाली की पडवा के अगले दिन मनाया जाता है.. लेकिन मेरे क्षेत्र में इसे होली की पडवा के अगले दिन भी मनाते हैं..
बस इसीलिए आज अपनी छोटी और इकलौती बहिन को याद कर ये कविता फूट निकली..
मेरे ज़ज्बातों को हालातों के पत्थर
हर दिन ऊंची होती दीवार में चिनते जा रहे थे..
कि अचानक आज के दिन ने आकर
उस दीवार में एक ऐसी ठोड लगा दी
कि संवेदनहीनता के सीमेंट में सनी इन पत्थरों की दीवार
गिर पड़ी है.. भरभरा के...
अचानक फिर से ज़ज्बातों को ताज़ी हवा जो मिली तो
होश आया कि आज तेरा दिन है छुटकी..
भाईदूज है आज... भाई-बहिन के प्रेम के प्रतीक तीन पर्वों में से एक..
याद आया कि कैसे तेरे साथ दुफरिया भर
घर की दाल्हान में खेलते हुए
बिता देते थे गर्मी की छुट्टियां...
अपने बचपन में पहाड़ ना तूने देखे ना मैंने..
हिलस्टेशन कहें, देश भ्रमण या पिकनिक
हमारे लिए तो बस पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर बसा
धूल में नहाता वो नानी का गाँव ही सब कुछ था..
याद आया कैसे खाते थे सर्दी के दिनों में
परांठे आलू के... बैठकर के मम्मी के आँचल में
और करते थे वो बनावटी झगडा..
मेरी मम्मी- मेरी मम्मी चिल्ला के..
तेरे सांवले रंग को लेकर वो तुझे चिढाना
के तू मेरी बहिन नहीं.. किसी भंगी के घर जायी है..
सब याद आया.. पलकों पर पानी के साथ..
याद आया तेरी गुड़िया की शादी के वास्ते
दहेज़ जुटाने की कवायद में
ईंट को दुरदुरे फर्श पर घिस कर बनायी गई वो बर्फ..
और बर्फ की वो दुकान.. वो बर्फवाले का स्वांग..
शायद इसी खेल ने पहली बार अहसास कराया था मुझे
उस बाप, भाई की तकलीफ का.. जिनके खेल के हिस्से में गुड़िया
और घर में बेटियाँ आती हैं..
हाँ.. अगर आज मैं दहेजविरोधी हूँ तो..
खेल-खेल में सीखे उस सबक के कारण..
याद आया कैसे तेरी आँख में आये एक आँसू के कारण
मैंने पीटा था उस लड़के को जिसने...
चोरी से स्कूल में तुम्हारा टिफिन खा लिया था..
ये और बात है कि बाद में आचार्य जी से खुद भी मार खाई थी..
लेकिन इसी से मिलता-जुलता सबक लिखा है गीता में
कि घात पाप है.. प्रतिघात नहीं..
और ये भी कि कानून भी कुछ होता है..
खेल-खेल में तेरे कारण कितने ही सबक सीख लिए मैंने ज़िंदगी के..
और जाने कितने जान कर ही नहीं सीखा..
आज... भाईदूज पर.. तेरा इतनी दूर होना
तकलीफ भी देता है.. और कराता है अहसास भी
कि क्या होता है एक बहिन का भाई होना
और कैसा होता है अहसास
अपनी बहिन के लिए.. इक भाई के जज़्बात का..
(मेरी प्रिय बहिन रानी को समर्पित)
दीपक 'मशाल'
चित्र- साभार गूगल से..
भाई दूज पर बहना को याद करते कितनी प्यारी रचना प्रस्तुत की है आपने..वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा.
ब्लॉगवाणी को ईमेल कर अपनी समस्या बता सकते हैं.
Arre wah....sach kaha aapane hamare yaha bhi bhai duj diwali ke bad wali padawa par hi hoti hai, lekin holi ke baad wali duj ko bhi mahatvpurn mana jata hai!
जवाब देंहटाएंAapki bahan ka naam Rani hai ye bhi duja kamaal hua :) bahut bhavmayi sundar abhivyakti hai yakinan aapki chutaki aapke is pyar ko aaj hi nahi har vakt mahsush karati hongi apane jivan me.....behad khubsurat abhivyati!!
Aapko bhai duj ki bahu bahut shubhkaamnae
बहन को प्यार भरी सौगात और बहना को क्या चाहिये..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना लगी।
nice
जवाब देंहटाएंदीपक जी!
जवाब देंहटाएंआपने अपने मन के भावों को
बहुत ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है!
दीपक जी-
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत अच्छी रचना,
भाईदुज पर
होली अभी पंचमी तक चलेगी।
अभी चलने दिजिए फ़ाग
दीपक जी,
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी से पहले आप अपने ब्लॉग की घड़ी ठीक कीजिए :-)
मैं इस वक्त टिप्पणी दे रहा हूँ भारत में 2 मार्च की सुबह 8 बजे और आपके ब्लॉग की घड़ी दिखा रही है 1 मार्च की शाम 6:30 का समय!!
इसे ठीक करने के लिए देखिए यह पोस्ट http://bspabla.blogspot.com/2009/03/blog-post_24.html
समीर जी, मैं कोशिश करता हूँ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पाबला सर.. मैं वो ठीक करता हूँ.. लेकिन ये ब्लोगवाणी वाली समस्या तो यूनिवर्सल है सिर्फ मेरी पोस्ट के साथ नहीं.. :(
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंPabla sir ho gaya.. aabhar aapka
जवाब देंहटाएंत्वरित कार्रवाई!?
जवाब देंहटाएंबढ़िया!!
बढि़या कविता भाई, मर्म को समझा है आपने
जवाब देंहटाएंभाई द्दोज पर बहन को इससे बडी सौगात और क्या हो सकती है? बहुत सुन्दर रचना है। तुम दोनो को बहुत बहुत आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंwahh!!....bahut badhiya rachna .....padha kar ankhon mein pani tair gya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दीपक भईया , आपकी हर रचना तो जैसे दिल के दरख्तो से निकलती है , बहुत ही लाजवाब लगी कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना लगी।
जवाब देंहटाएंbahan ke liye isse pyaara tohfa aur kya hoga bhala !
जवाब देंहटाएंAah ....yaadon ka jharokha khulta hai to esi hi pyaari si bayaar nahti hai...
जवाब देंहटाएंkhubsurat.ahsason se bhari pyaari si rachna..
इस कविता के रूप में बड़ा प्यारा तोहफा दिया है बहना रानी को...ख़ुशी से फूली नहीं समाई होगी...भाई बहन का प्यार होता ही ऐसा है..बड़ी अच्छी तरह दर्शाया है...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी होली वाली तस्वीरें भी देखीं...बहुत अच्छा लगा देख...... परदेश में तुमने इतनी अच्छी तरह होली मनाई,दुआ है...ऐसे ही हमेशा मनाते रहो.
very very nice
जवाब देंहटाएंfhoolon ka taron ka sabka kahna hai
जवाब देंहटाएंek hazaron mai "teri" bahna hai
sari umar "hamen" sang rahna hai,
phoolon ka taro ka sabka.............
छोटी बहन के लिए बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने ।
जवाब देंहटाएंअच्छे संस्मरण।
आप की छोटी बहन बहुत खुश नसीब है जिसे तुम जेसा भाई मिला, बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंek bhai behan ke riste ko bahut hi sundar tarike se poem mein likh dala.....
जवाब देंहटाएंदीपक , भाई बहन के रिश्तों पर तुम्हारी भावनाओं का यह उफान इस तरह यहाँ शब्दों के रूप में अंकित हुआ है जिस पर प्रतिक्रिया देने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं । हम सभी बचपन में इस दौर से गुजर चुके हैं और आज इस उम्र मे आकर उन छोटी छोटी बातों को याद करते हैं । कागज़ की कश्तियाँ और बारिश का पानी हर एक के जीवन मे होता है लेकिन वक्त के साथ वे कश्तियाँ डूब जाती है और पानी बह जाता है लेकिन उनके बिम्बों को हम याद रखते हैं जो जीवन भर हम रिश्तों की महत्ता बताते है और मनुष्य होने का स्मरण दिलाते हैं । इस ज़ज़्बे को बनाये रखो ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंभगवान आपकी कलम को और ताक़त दे....
दिल को छूने बाली यादे जो हम सबकी एक जैसी है. हमारे यहा भी होली पर भाई दूज होती है और जमकर होली भी होती है.
जवाब देंहटाएंबहिन रानी को होली भाई दूज और होली की बहुत बहुर शुभकामना.
और हा आज आपसे बात कर मजा आ गया.