मेरा मानना है कि यदि हमें हिंदी को समृद्ध करना है तो क्षेत्रीय भाषायों को भी जीवित करना होगा और उन्हें साहित्य की मुख्यधारा से जोड़ना होगा.. आपका क्या ख्याल है???--

आज मुनईयाँ के ससुरे सें चिट्ठी आई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(आज मुन्नी के ससुराल से चिट्ठी आई है
उसको पढ़कर मन में एक अजीब सी हूक उठी और दिल भर आया है)
दद्दा बाई खों उनकी, मोड़ी परनाम करत है
हलके दद्दे सुमरे से आंखन अँसुआ ढरकत है
आंखन से टारी ना टरवे हल्कीबाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(लिखा है कि-
पापा-मम्मी को उनकी बेटी प्रणाम करती है
चाचा को याद करके आँख से आँसू निकलने लगते हैं
और प्यारी चाची आँख से ओझल ही नहीं होतीं
उसे पढ़ कर मन भर आया और...)
महादेव देव की किरपा से, सब भांत कुशल है मोरी
रामलला सें नित मांगत हों, मैं खुशियाली तोरी
मुलक दिनन सें खबर मायके की ना पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(शिव जी की कृपा से मैं हर तरह से ठीक हूँ
भगवान् राम से रोज आपकी खुशहाली मांगती हूँ
कई दिनों से मायके कि कोई खबर नहीं आई
उसको पढ़कर मन भर आया और...)
हलको भईया आज दिखानो, मोये बर्राटन में
कए रओ मोरी जिज्जी आकें बस जा तें प्रानन में
आँख खुली फिर ऊ की जिज्जी, सो ना पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(मेरा छोटा भाई आज मुझे सपनों में दिखाई दिया
कह रहा था कि दीदी आप आकर मेरे प्राणों में बस जाइए
आँख खुलने पर उसे याद कर उसकी दीदी सो नहीं पाई है
उसको पढ़कर...)
राखी के डोरा भींजी पलकें तोए पुकारें
तोरी बहना राह तकत है रोजईं सांझ सकारें
वीरन तुम का भूल गए, प्यारी माँ जाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(राखी के धागे से भींगी पलकें तुझे बुलाती हैं
हर सुबह-शाम तेरी बहन रास्ता देखती है
मेरे प्यारे भाई क्या तुम भूल गए कि हमें और तुम्हें एक ही माँ ने पैदा किया
उसको पढ़कर...)
मईंदार कका, मईंदारिन काकी नईं भुलानी
परी और दाने, चंदा की उनकी कही कहानी
हाथ जोर उनसे कइयो मुई रामरमाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(नौकर चाचा और चाची(उनकी पत्नी) भी मैं भूल नहीं पाई
और ना ही उनकी कही हुईं परी, दानव और चाँद कि कहानी
उनसे भी मेरा हाथ जोड़कर राम-राम कहना
उसको पढ़कर....)
सखियाँ संग अमुआं की डारन झूला चईयाँ-मईयाँ
टेसू-झिंझिया को ब्याओ अब लों मोय बिसरत नईयां
लिपे चोंतरन रंग-बिरंगी चौक पुराई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(सहेलियों के साथ आम की डालों पर का झूला और वो चईयाँ-मईयाँ(एक बुन्देलखंडी खेल)
वो टेसू-झिन्झियाँ का व्याह(बुन्देलखंडी ग्रामीण पर्व) अब तक मुझसे नहीं भुलाया जाता
वो गोबर से लीपे गए चबूतरे और चौक(आटे की रंगोली की तरह) भी नहीं भूल पाती
उसको पढ़कर...)
इक बात नईं जो समझ पात का चूक भई है मोरी
खबर लई तुमने ना मोरी पाती आई ना तोरी
तुमने दद्दा धारी काये जा निठुराई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(एक बात जो मेरी समझ में नहीं आती कि मुझसे क्या गलती हुई है
जो आपने मेरा ना तो मेरा समाचार लिया ना आपका ही कोई पत्र आया
पिताजी आपने क्यों इतनी निष्ठुरता को धारण किया हुआ है
उसको पढ़कर....)
माई-बाप तुम जैसे मोरे सास ससुर हैं प्यारे
जो सुख तुमने उते दये इते मिले हैं सारे
फली अशीषें सबकी सब जो तुमसे पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(जैसे आप मेरे माता-पिता हैं वैसे ही मुझे सास-ससुर प्यारे हैं
जो सुख आपने वहाँ दिए वाही सब मुझे यहाँ मिलते हैं
आप सबसे मिले सबके सब आशीर्वाद फलीभूत हुए हैं
उसको पढ़कर....)
कोनऊ फिकर मोई ना करियो इते सबई खुशियाली
भूल ना जइयो अपनी बिटिया लाड-प्यार सें पाली
चिठिया लिख 'जोगी' के हाथन सें पहुंचाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(मेरी कोई फिक्र मत करियेगा यहाँ सब खुशहाली है
लेकिन अपनी लाड-प्यार से पाली बेटी को भूल भी मत जाना
चिट्ठी लिख कर संदेशवाहक 'जोगी' जी के हाथों भेज रही हूँ
उसको पढ़कर...)
वैदेहीशरण लोहकर 'जोगी'
चित्र साभार गूगल से..








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