रविवार, 22 नवंबर 2009

तुम न थे.....^^^^^^^^^^^^^^^^^^दीपक 'मशाल'

आज से ७ वर्ष पूर्व.... कुछ सोच रहा था और देश में चल रहे कई अभियानों की विफलताओं और उनके मकसदों को लेके दिमाग में एक ऊहापोह थी... जिसका फ़ायदा उठाते हुए दिल ने एक छोटी सी कविता के रूप में उन आंदोलनों के सफल न हो पाने का सांकेतिक कारण तलाशा.. देखिये कहाँ तक सही है ये सोच????


अब भी
हो रहे थे जनांदोलन,
चल रहा था
स्वदेशी अभियान,
बम चलते थे..
छुरे और बंदूकें भी,
तत्पर थे अब भी लोग
उखाड़ फेंकने को
सत्ताधारी सरकार को....
अभी भी
हुंकार भरती थीं कई जानें
एक इशारे पर...
देखते थे कोटि दृग,
एक दृग देखे जिधर....
अभी भी
बढ़ रहे थे कोटि पग,
एक पग बढ़ता जिधर....
लोग
सर्वस्व न्योछावर
करने को थे तत्पर,
अपने नेताओं के इशारे पर....
सब तो था,
रैलियाँ, हड़तालें,
विद्रोह, अफवाहें और
जनसभाएं....
अभी भी
सब था पूर्ववत मगर...
कुछ फर्क था शायद....
हाँ!!!!
इस भीड़ में कहीं....
भगत तुम न थे..
आज़ाद तुम न थे..
सुभाष तुम न थे.....

दीपक 'मशाल'
चित्र- साभार गूगल से...

29 टिप्‍पणियां:

  1. असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं।

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  2. इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....


    यही फर्क है

    जवाब देंहटाएं
  3. जिन्हें नाज़ हैं, हिंद पर.
    कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब आज तो दीपक से लौ नहीं पूरी मशाल जल रही है भाई ..
    प्रभावी रचना ..बांक असल तो पाबला जी कह ही चुके हैं

    जवाब देंहटाएं
  5. भगत,आजाद,सुभाष जैसे न लोग हैं न विचार हैं और इनके जैसा मक्सद तो होता ही नही, सही सोच है आप की । दीपक जी एक गुजारिश है-मुझे सर मत कहें,अभी इस ओहदे तक नही पहुंचा हूं

    जवाब देंहटाएं
  6. इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....

    कोई सवाल ही नहीं सफल होने का , दीपक भईया बिनां इनके ।

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  7. jai hind....desh prem ki behtrin abhivaykti...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही ओजपूर्ण कविता है और मन की विवशता भी दर्शाती है....यह संयोग ही है कि यह कविता पढ़ी और आज ही सुबह TOI में शहीद संदीप उन्नीकृष्णन के पिता का वक्तव्य पढ़ा,"सब लोग भगत सिंह जैसा बेटा चाहते हैं पर अपने पडोसी के घर में "

    जवाब देंहटाएं
  9. "सब लोग भगत सिंह जैसा बेटा चाहते हैं पर अपने पडोसी के घर में "
    रश्मि मैम, ये वाक्य कितने सालों से सुनता आरहा हूँ, पता नहीं... पर आज तक पता भी नहीं चला की ये सुन्दर बात सबसे पहले कही किसने... किसी को पता हो तो बताएं जरूर..और किस सन में? बात कही एकदम सटीक है .. जिसने भी कही हो...
    जय हिंद...

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  10. आज सुबह मैंने भी जब यह वाक्य पढ़ा "सब लोग भगत सिंह जैसा बेटा चाहते हैं पर अपने पडोसी के घर में" तो सन्न रह गया दिमाग की सारी खिड़कियाँ बंद हो गईं।

    मेरे भारत के लोगों की सोच कैसी हो गई है, क्या इनके अंदर की देशप्रेम की भावना की मौत हो गई है, क्या शहीदों के परिजनों को यह सोच जस्टीफ़ाई कर पायेगी। नहीं....

    इसका उत्तर तो देना पड़ेगा सबको देना पड़ेगा कोई इस प्रश्न से भाग नहीं सकता।

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  11. इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....

    bahut sateek aur saarthak panktiyan.....

    bahut achchi lagi yeh deshprem par kavita....

    JAI HIND.......

    जवाब देंहटाएं
  12. सब था पूर्ववत मगर...
    कुछ फर्क था शायद....
    हाँ!!!!
    इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....

    बिल्कुल सही!

    जवाब देंहटाएं
  13. क्या इसी स्वराज का सपना देखा था हमने ?
    भगत, आज़ाद, सुभाष की आत्मा तड़प रही होगी, आज के हालात देखकर।

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  14. sसात साल पहले?
    अरे देख लो कहीं जन्म लेते ही कोई कविता तो नहिन लिखी? बहुत हैरान हूँ इतनी कम उमर मे इतनी अच्छी कविता लुखते रहे हो वाह अद्भुत इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....
    ये कमेन्ट जल्दी मे दे रही हूँ कल फिर आती हूँ बहुत बहुत आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  15. bhai waah waah !

    kamaal ki nazar aur kamaak ki karigari ka upyog karte hue apne jo jaan dar aur shaan daar kavita rachi hai.,...na keval vaicharik star par balkishilp aur kavya ke star par bhi bahut gahri abhivyakti hai

    badhaai !
    abhinandan !

    जवाब देंहटाएं
  16. वे सब हैं, मेरे और आपके रूप में पर भीड से निकल उसके आगे नहीं आते.

    जवाब देंहटाएं
  17. इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....
    yahi sabse bada farak hai....bahut sateek lekhan.

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत ही प्रभावी रचना...... दीपक जी ........ कमाल की अभिव्यक्ति है ..... मन की टीस उतारी है कागज़ पर .........

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  19. अब जो आंदोलन होते हैं
    उनको जन समर्थन नहीं मिल पाता
    ऐसा नहीं है कि हमारे देश के युवाओं के भीतर वो जज्बा समाप्त हो गया है
    वरन सच यह है कि
    हमारा नेतृत्व ऐसा आंदोलन नहीं कर पाता
    जिसके इरादे नेक हों....
    ----सार्थक चिंतन के लिए प्रेरित करती सफल कविता के लिए बधाई।

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  20. बेहद प्रभावशाली रचना
    पाठक से सीधे संवाद करती पंक्तियाँ
    बहुत सुंदर
    शुभ कामनाएं



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  21. सही कहा आपने, अगर आज भगत और आजाद होते, तो फिर देश ऐसा न होता।

    जवाब देंहटाएं
  22. सब था पूर्ववत मगर...
    कुछ फर्क था शायद....
    हाँ!!!!

    हाँ मेरे भाई. बहुत सही कहा आपने.

    जवाब देंहटाएं
  23. कुछ फर्क था शायद....
    हाँ!!!!
    इस भीड़ में कहीं....
    भगत तुम न थे..
    आज़ाद तुम न थे..
    सुभाष तुम न थे.....
    100% sach..
    aur han ye bhi 100% sach hai ki log padosi ke ghar mein bhagat singh chahte hain... ya fir "A Wednesday" ki wo line yaad kar lein.. "APNE GHAR KI SAFAAI MEIN HATH KAUN KHARAB KARE!!!"

    जवाब देंहटाएं
  24. तुम्हारी गज़लें पढ़ कर अच्छा लगा ...खुशियाँ तुम्हारी गली में आती रहे इन्ही दुआओं के साथ
    .दी देर से जवाब दे रही हूँ अपने भाई को , तुम्हारा 'दी' कहना अच्छा लगा ; कसक सीरियल [डी डी नेशनल पर २.३० दोपहर ] में मुझे [वसुंधरा ]मेरा भाई बी .के .राजपूत दी ही कहता है मुझे बहुत अज़ीज़ है ये लफ्ज़ .

    जवाब देंहटाएं

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