गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009
बहुत मन से लिखी है ये पोस्ट उम्मीद है आपको पसंद आएगी.****************************
बहुत मन से लिखी है ये पोस्ट उम्मीद है आपको पसंद आएगी..............
बिक चुके इन्साफ ने जब फैसला उसका किया,
सुन के वो तो हँस दिया मुंसिफ मगर रोने लगा.
थक गया पढ़ के खबर, सच्चाइयों के क़त्ल की,
कल से कुछ उम्मीद कर वो आज फिर सोने लगा.
जाने किसने कह दिया, इंसां का खूँ पानी हुआ,
भीगे हुए हाथ अपने फिर से वो धोने लगा.
उगती कहाँ थीं बालियाँ बारिश बिना उस खेत में,
भूल के अच्छा-बुरा वो असलहे बोने लगा.
ले कलम कहता था चल असलियत ढूंढें कहीं,
अब हाथ धर के पेट पे, झूठ वो ढोने लगा.
गौर से सुनिए 'मशाल' कह रहा है क्या खुदा,
बँट चुका इतना हूँ अब पहचान मैं खोने लगा.
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार लिया गया.
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कड़वी सच्चाईयों को ब्याँ करती आपकी ये खूबसूरत रचना पस्न्द आई
जवाब देंहटाएंतनेजा जी, इस सब से आपकी सहमति काफी कुछ कह जाती है आपके व्यक्तित्व के बारे में....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा एक भले इंसान से मिलके..
कल की उम्मीद पर तो हम बहुत कुछ आज सहते रहते है. बहुत संवेनशील रचना लिखी है आपने. मन से कह रहा हूँ कि रचना बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
अब हाथ धर के पेट पे झूठ वो ढोने लगा ...विडम्बना है ...!!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता ...!!
बड़ी जबरदस्त चोट करती पोस्ट!!
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना से रु बा रु कराया है
जवाब देंहटाएंजो सचाई की पार्तिक है
आपको पहली बार पढना अच लगा
बहुत ही भले विचार है आपके,मुझे तो अच्छे लगे...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी के माध्यम से, आपको सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
जवाब देंहटाएंअधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला
वाह बहुत बढिया लिखा .. बधाई !!
जवाब देंहटाएंश्री पाबला जी, सूचित करने के लिए बहुत बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंप्रिंट मीडिया में स्थान पाने के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंसाथ ही पाबलाजी की निस्वार्थ कर्मठता को साधुवाद...
जय हिंद...
अच्छी धारदार रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंइस सच्चाई को भी पसंद न करे तो फ़िर किस को पसंद करे।आपकी कलम यूंही तो चलती रहे सतत,अनवरत।
जवाब देंहटाएंदीपक जी एक तारीफ़ होती है रचना के अन्दर आये कुछ उन ख़ास भावों की जो अद्भुत लगते है और एक तारीफ़ होती है पूरी रचना की ! मैं भी यही कहूंगा कि बहुत सुन्दर रचना !!! बधाई !
जवाब देंहटाएंकड़वी हुई तो क्या हुआ सच्चाई तो सच्चाई होती है
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना
सच को कहती एक सुन्दर रचना बहुत खूब
जवाब देंहटाएंले कलम कहता था चल असलियत ढूंढे कहीं
जवाब देंहटाएंअब हाथ धर के पेट पे झूठ वो ढोने लगा
अच्छी कविता
सबसे पहले तो प्रिंट मिडिया में स्थान पाने के लिए बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंयूँ तो तुम्हारी हर कविता अपने आप में ..तथ्य और सन्देश लिए हुए होती है...
लेकिन इस कविता की बात ही अलग हो गयी आज..
शब्दों और संवेदनशीलता का अद्भुत समन्वय देखनी को मिला जा..
मन को अन्दर तक बींध गयी हैं ये पंक्तियाँ..
'अब धर के पेट पे झूठ वो ढोने लगा..'
बहुत सुन्दर...
बेहद लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल में ............ हकीकत बयान करते हुवे ...........
जवाब देंहटाएं"बिक चुके इन्साफ ने जब फैसला उसका किया
जवाब देंहटाएंसुन के वो तो हँस दिया मुंसिफ मगर रोने लगा"
बहुत सुन्दर रचना!
सब ने पहले ही सहमती दे दी और सच भी है एक लाजवाब ग़ज़ल. प्रिंट मीडिया तक पहुँचने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत धारदार रचना...सच्चाई की बखिया उधेड़ती हुई...बधाई आपको...
जवाब देंहटाएंनीरज
A beautiful creation.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंbahut sundar badhiya rachana .
जवाब देंहटाएंसच में मन से लिखी है कविता
जवाब देंहटाएंअरे वाह!..आप तो प्रिंट मीडिया में भी छा गए...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिए एक बार फिर से बधाई
बधाई हो दीपक, एक तो इस सुन्दर सी ग़ज़ल के लिए, अच्छा लगा कि अपनी रिसर्च के दौरान भी तुमने अपनी लेखनी की धार को कम नहीं होने दिया.
जवाब देंहटाएंमीडिया में भी तुम्हारे ब्लॉग के आने पर तुम्हारे ऊपर गर्व है.
सदा उन्नति करते रहो.....
मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे आप लोगों को मुझ पर गर्व हो लेकिन आप जैसे प्रबुद्धजनों का हाथ मेरे सर पर है इस बात का गर्व अवश्य है..
जवाब देंहटाएंअच्छा तो तब लगेगा जब जो भी कह और लिख रहा हूँ उसके साथ खुद और समाज को भी प्रेरित कर बदल सकूं.
कड़वे सत्य को बयां करती सुन्दर कविता ...
जवाब देंहटाएंwaaqai mein bahut man se likha hai.... bahut achcha laga... badhai ho..... bahut bahut badhai.....
जवाब देंहटाएंgr8
keep it up....