शनिवार, 16 जुलाई 2011

इस बार का भारत प्रवास--------------->>> दीपक मशाल

इस बार जब भारत आया तो यू.के. से वहाँ पहुँचने के दो दिन के अन्दर बचपन में भूगोल की कक्षा में पढाये गए सारे यातायात के महत्वपूर्ण साधन प्रयोग कर डाले.. जल मार्ग, वायु मार्ग से लेकर थल मार्ग तक और थल मार्ग में भी रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग.. इनके भी विस्तार में जाएँ तो ट्रेन, मेट्रो, बस, कार, जीप, ऑटो-रिक्शा, रिक्शा, मोटरबाइक, साइकल सभी. 
इधर बहुत सारे नए तजुर्बों से मुलाक़ात हुई जो अब बेताब हो रहे हैं किस्से-कहानियों, संस्मरण तो कुछ कविता के रूप में कागज़ पर उतरने को. कई हिन्दी-साहित्य, ब्लॉग के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों से मुलाक़ात तो हुई ही साथ ही मुलाक़ात हुई अपने जीवनसाथी से और चट मंगनी पट ब्याह भी हो गया. हालांकि इस दौरान कुछ दुखद घटनाओं ने रास्ता रोकने की कोशिश भी की और यही वजह रही कि अधिकाँश दोस्तों से ना दुःख बांटा और ना ही खुशी. प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आप सभी की दुआएं मिलती रहीं.. कह सकते हैं कि इस सब के बावजूद ब्लॉग की दुनिया से अलग नहीं रहा क्योंकि घर में ही एक ब्लॉगर मौजूद हैं... जी हाँ ब्लॉगर श्री संजय कुमार चौरसिया जी जो कि रिश्ते में मेरे बहनोई भी हैं, हर सुख-दुःख में मेरे कन्धे से कन्धा मिलाते हुए मेरे साथ ही रहे.
इसके अलावा विश्व भर की नामी-गिरामी हिन्दी-साहित्यिक, गैरसाहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी रचनाओं को प्रसारित करने के द्वार खुले साथ ही यह सबक भी मिला कि ''जो छप गया वह जरूरी नहीं कि अच्छा ही हो और जो नहीं छपा वह भी जरूरी नहीं कि बुरा हो..'' 
कहने को आया तो था सिर्फ १५ दिन के लिए लेकिन अचानक जो कुछ हुआ उसकी वजह से ४० दिन रुकना हो गया और गर्मी से बरसात तक का लम्बा प्रवास हो गया.
प्रवास के दौरान करीब ८-९ दिन घर पर यानी कोंच-उरई में, २ दिन आगरा में, २५ दिन लखनऊ और ३ दिन दिल्ली में रहना हुआ. भारत में जहाँ एक ओर लखनऊ के बेहतरीन ब्लोगर्स और लेखक-पत्रकारों से मिलना हुआ वहीं 'खाकी में इंसान' के लेखक श्री अशोक कुमार जी का लखनऊ आकर मिलना सुखद रहा. उरई में डॉ.कुमारेन्द्र चाचा जी और डॉ.आदित्य जी से पुनर्मिलन हुआ.. फिर सिद्धार्थ नगर जाकर श्री पंकज सुबीर जी, राहत इन्दौरी साहब, गौतम राजरिशी भाई, प्रकाश 'अर्श', रविकांत, वीनस केसरी, कंचन सिंह चौहान, अंकित 'सफ़र', विजित से मुलाक़ात की शाम हो चाहे गिरिजेश राव जी से मिलना रहा हो या फिर दिल्ली में दर्पण साह 'दर्शन' और शीबा असलम फ़हमी से संक्षिप्त मुलाक़ात सभी एक अविस्मरनीय घटना के रूप में दिलोदिमाग में सुरक्षित हो गए. 
वापस आते हुए १ दिन-रात लन्दन में रुका जहाँ एक लम्बा समय श्री समीर लाल जी के साथ गुजारने का मौक़ा मिला, ब्लॉग और हिन्दी-साहित्य दोनों में समान दखल रखने वाले समीर जी को और भी करीब से जानने का मौक़ा मिला. हिन्दी-साहित्य की दैदीप्यमान नक्षत्र आदरणीया कविता वाचक्नवी जी का प्रेमपूर्ण सानिध्य रहा और एक बार फिर शिखा दी के आतिथ्य सुख को भोगने का मौक़ा भी मिला. 
दीपक मशाल

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