जो कहानी महफूज भाई ने सुनाई वो तो आधी-अधूरी है जनाब, वो तो सिर्फ तब की चर्चा है जब प्यार नया नया था.. इंटरवल तक उनसे सुन लिया अब आगे की फीचर फिल्म मेरे पास है.
हुआ यूं की सब कुछ ठीक ठाक चल रिया था लेकिन एक दिन भाभी जी की नज़र महफूज़ भाई के ऑरकुट प्रोफाइल/ अकाउंट पे चली गई. जहाँ देखा की इत्त्त्त्त्ती सारी महिला मित्रां और एक वो है जिसका कोई ना मित्रा(कोइना मितरा) इतने सारियों ने टेस्तिमोनिअल लिख डाले!!!!!!!!!!!!!''तो फिर क्या हुआ??? ''
''धत् तेरे की.....''
''हुआ क्या विश्वास डगमगा गया?''
''अरे डगमगा नहीं गया भाई, भूकंप आगया भरोसा नाम के शहर में.... वो भी रिअक्टर स्केल पे पूरी ८.२ तीव्रता का. फिर क्या था, बोरिया बिस्तर बांधा और वापस नैहर की तरफ. ''
अब महफूज़ भाई लगे उस घड़ी को कोसने जिसमे प्यार जताते हुए पासवर्ड बता बैठे, वो तो भला हो सिर्फ ऑरकुट का बताया, फेस बुक का नहीं...
मुझे फोन लगा दिया कि- ''छोटे भाई मियां मशाल तुम यार दिलजले टाईप के देवदास आदमी हो, ऐसा-ऐसा हो गया मेरे साथ.... और अब रोने धोने और मनाने वाली कविता, गीत तो हमें लिखने आते ही नहीं... तुम ही अपनी सुनसान, वीरान सूरत के ऊपर वाले माले में रखे दर्दीले, चोटीले दिमाग से कुछ ऐसा तडकता भड़कता लिख दो कि तुम्हारी भाभी को मेरे प्यार पे यकीन हो जाये, मैं तो साहिर लुधियानवी के पुराने गाने एस ऍम एस कर कर के थक गया, लेकिन कोई रेस्पोंस ही नहीं आता.....
अपनी खोपडिया खुजला के हमने लिख के दे दिया के-
कैसे?
हाँ कैसे यकीं दिलाऊँ तुम्हे
तुम ही प्यार हो मेरा,
हर साल, हर महीने
हर दिन, हर पहर
हर पल.......
तुम ही इन्तेज़ार हो मेरा.
तुम्ही तो हो जिसके लिए,
मैं साँसों को सम्हाले हुए हूँ,
अधखुली आँखों में कुछ,
रंगीन सपने पाले हुए हूँ.....
तुम्ही तो हो,
जो ज़मीं से बाँधे है मुझे,
और उस जमीं के सर का,
तुम्ही विस्तार हो मेरा........
कैसे?
हाँ कैसे यकीं.........................हो मेरा.
तुम्हारे ही सपनों के तिनकों से,
मैंने नींव रखी है
अपने घोंसले की,
और तुम्हारी आँखों की चमक से
मिलती है
खुराक हौसले की.
वर्ना ठूँठ पे,
हाँ पुराने ठूँठ पे
नए घोंसले नहीं बनते.........
बनकर के होंठ मेरे
तुम्ही तो इज़हार हो मेरा......
कैसे?
हाँ कैसे यकीं दिलाऊँ कि तुम ही प्यार हो मेरा
हाँ कैसे यकीं दिलाऊँ कि तुम ही प्यार हो मेरा..........
दीपक 'मशाल'
भेज दिया महफूज़ भाई ने इसे भाभी जी को, और फिर होना क्या था लौटती गाड़ी से वो घर वापस...
अजी भरोसा ना हो तो फ़ोन कर लो महफूज़ भाई को.... कहो तो मोब. नं. दे दें ...कसम से...
फिल्म का शुरूआती शेष भाग यहाँ देखें- http://lekhnee.blogspot.com/2009/10/blog-post_25.html
mast likha hai bhai.. kasam se.. vishwas nahi hota? kaho to chatka laga dein!!!
जवाब देंहटाएंपुराने ठूंठ पर
जवाब देंहटाएंनये घोसले नहीं बनते??? :)
बेहतरीन पूरी बात बढ़ाई है.जरा महफूज भाई का लिंक भी लगा दिजिये तो लोगों को ट्रेलर वाला हिस्सा भी देखने मिल जायेगा. :)
आपके आदेश का पालन हुआ महामहिम समीर[सैम(अंकल नहीं)] जी....
जवाब देंहटाएं:)
is link par pahle padhen...
जवाब देंहटाएंhttp://lekhnee.blogspot.com/2009/10/blog-post_25.html
ताडने वाले तो ताड ही लेते है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब इंटरवल के बाद तो क्लाईमेक्स ही होता है
हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंअरे इ का हो रहा है दोनों चश्मिश.....!!!
कसम से......इतनी अच्छी कविता पढ़ कर कौन भला नहीं लौटेगा...??
इ भी तो बता दो कौन स्टेशन ...ट्रेन नंबर , बोगी नंबर, ..???
दी ...
nice
जवाब देंहटाएंदीपक जी - महफ़ूजजी के लिंक को टाईप करने में आलस आता है, आप हाईपरलिंक कर देते तो क्ल्कि भर करना रह जाता है। पाठक को भी आसानी होती है। और तो और आप अपने ब्लॉग पर टेक्स्ट को कॉपी भी नहीं करने देते हैं, लगता है कि ताला लगा रखा है। :(
जवाब देंहटाएंमेरे जैसे पाठक के लिये कोई एक सुविधा जरुर दीजिये जिससे आपकी सुन्दर रचनाएँ पढ़ने का मजा दोगुना हो जाये।
और एक बात - अगर जरुरत पड़ी तो अगली रचना आपसे ही लिखवायेंगे। आपने एक वैवाहिक जीवन को वापिस पटरी पर ला दिया और क्या चाहिये। कविता बहुत अच्छी बन पड़ी है।
तुम बुलाओ...मैँ ना आऊँ?...ऐसा हरजाई नहीं...
जवाब देंहटाएंये क्या हो रहा है?..ये क्या हो रहा है?...
कुछ बदले-बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैँ...
अरे!...आप तो ऐसे ना थे...
आपका ये बदला-बदला सा रूप...उफ!...क्या गज़ब ढावेगा?...आपको खुद को ही खबर नहीं...
मैँ तो आपको एकदम सीरियस टाईप का रचनाकार समझता था लेकिन आप तो अपुन के जैसे(कुछ-कुछ) ही निकले
और हाँ!...आपका कविता रूपी जवाब के तो क्या कहने...मज़ा आ गया जी फुल बटा फुल
अच्छी कविता है भाई, आपके सौजन्य से पढ़ने को मिली आपको भी और महफूज जी को भी बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंदोस्ती हो तो ऐसी अरे तुम श्क्ल से इतने मासूम लगते हो मगर हो हरफन मौला अब सभी ब्लोगर्ज़ को oएक तो फायदा हो गया जिस की *वो* रूठ जाये वो तुम से कविता लिखवा दे। महफूज़ भाई ने मुँह मिठा करवाया कि नहीं जरा कंजूस हैं अगर नहीं तो उल्टा मन्त्र फूँक देना भाभी के कान मे। हा हा हा कविता तो हिट होती ही है तुम्हारी । आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंदीपक एंड महफूज़ कंपनी...
जवाब देंहटाएंअभी बच्चू,सावन के नए-नए अंधे हुए हो...इसलिए सब हरा ही हरा नज़र आ रहा है...आगे चलकर देखिएगा...दिखता है क्या क्या...न सिर उलटा करके नाचना पड़ा तो मेरा नाम याद करना...क्यों भुक्तभोगी भाइयों ठीक कह रहा हूं न...कोई बात नहीं बच्चे हैं समझ जाएंगे...
जय हिंद...
इतने testimonials हैं तो महफूज भाई तो मना ही लेंगे, महारथी हैं और फोटू के हिसाब से स्मार्ट भी दिखते हैं...आप बताओ दीपक भाई, मुझे तो आपकी कहानी लगती है, अगर 'वो' हों तो आ जाऊँ चाय पीने....:)
जवाब देंहटाएंबेहतर रचना...ठूंठ वाली बात मुझे भी....!!!!
अच्छा लपेटा आपने , मस्त लगा !
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ha haha ha ha ha ha ha......... Dipak......... maza aa gaya.... dekh ke....
जवाब देंहटाएंhehehehhe....... waaqai mein bahut badhiya lapeta...... hahahahahahahaha
जवाब देंहटाएंपुराने ठूंठ पर.. नए घोंसले... तो मुझे खुद बहुत पसंद है जी... :)
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया...
जय हिंद...
creative
जवाब देंहटाएंमस्त,मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंह्म्म्म्म...भाई की शादी भी हो गयी और बहना को पता भी नहीं चला ...ये कब हुआ ...कैसे हुआ ...!!
जवाब देंहटाएंNice one....interesting...:)
जवाब देंहटाएंha ha ha
जवाब देंहटाएंmajedar
ekdum mast hai
आवश्यक सूचना: सर्व साधारण को सूचित किया जाता है की नाहक ही परेशां न हों, महफूज़ भाई अभी तक योग्य कुंवारों की सूची में ही है, ये आलेख सिर्फ एक परिकल्पना है. ये किसी भी सत्य घटना पर आधारित नहीं है. :)
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
कैसे यकीं दिलावू , अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंहै मुझको
हाहाहा ........मज़ा आ गया.....पर आपका यह लेख पढ़कर कहीं फिर न कोई कहर आ जाये
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंये प्यार यूं ही कायम रहे।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
मजेदार कल्पना.
जवाब देंहटाएंरब से दुआ करते हैं की महफूज़ भाई भी जल्दी ही---
ha ha ha ha ha h...too good ...realy.
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंअपने दोनो छोटे भाइयों को इस "जुगलबन्दी" के लिये बधाई ..। आप दोनों के सपने शीघ्र सच हों यह दुआ ।
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया.... वाह गुरु वाह...
जवाब देंहटाएंअब तो आपको रूठे दिलो को मनाने का का काम थोक के भावः में मिलेगा |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता बन पड़ी है