शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

कहाँ पहुँचा हूँ कहीं तो नहीं
जहाँ से चला पर वहीं तो नहीं
मंजिलें हैं ख़ामोश बैठी हुईं पर
कहीं ये रास्तों का नहीं तो नहीं।
मशाल 

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