बहुत सोया रहा अब तक,
मुझे अब जाग जाने दो,
अरे ख्वाबों के शहजादों,
रौशनी रास आने दो.
बहुत सोया रहा अब तक,
झूठ के शामियाने में,
ओ सच के आसमां अब तो,
ज़रा सा पास आने दो.
मैं रोया हूँ तेरे दुःख में,
कलम भी आजमाया है,
मिटाने दो तेरे दुःख माँ,
खड्ग मुझको उठाने दो.
बहुत खुद को सम्हाला था,
धैर्य का बोलबाला था,
हावी हैवाँ हो गए अब,
क़यामत मुझको ढाने दो.
पाप है बढ़ गया इतना,
मैली गंगा हो गयी,
लाने दो नया युग अब,
नयी गंगा बहाने दो.
न गम करना ज़रा भी तुम,
जो नरभक्षी मैं हो जाऊं,
इन शैतानों के बेटों से,
भूख अपनी मिटाने दो.
जान जो कर गए अर्पण,
मान तेरा बढ़ाने में,
नहीं वो आएंगे वापस,
नए कुछ नाम लाने दो.
तेरी सौगंध मुझको माँ,
जो ना गौरव दिला पाऊं,
खड़ी होगी मौत दुल्हन,
गले उसको लगाने दो.
दीपक 'मशाल'
सोये हुए को तो जगाया जा सकता है ...जो जागते सोये हैं उनका क्या ...
जवाब देंहटाएंकविता के साथ तस्वीर बहुत ही अच्छी लगी ...शुभकामनायें ..!!
बेहतरीन रचना, दीपक.शानदार भाव!!
जवाब देंहटाएंबेहतर लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया...ओजपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंdhanyawad aap sabka
जवाब देंहटाएंप्रभावी लेखन !
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