रविवार, 3 जून 2012

लेखनी के जून २०१२ अंक में प्रकाशित दो लघुकथाएं..

सहजीविता 

सफ़ेद कबूतर और कबूतरी के उस जोड़े ने दुनिया देख रखी थी और वो बहेलिया था कि उन्ही के घोंसले वाले पेड़ के नीचे अपने दाने,जाल  और आस बिछाए था। कबूतर और कबूतरी ने एक दूसरे की तरफ देखा, मुस्कुराए और फिर भोजन की तलाश में पास के कस्बे की तरफ उड़ गए।

मगर शाम होते-होते जब कबूतर को कहीं से भी दाने हासिल न हुए तो खाली ही अपने घोंसले में लौट आया।  वापस आकर पता चला कि कबूतरी के साथ भी वही हुआ। मारे भूख के दोनों का बुरा हाल था, नीचे देखा तो जाल और दाने अभी भी बिछे हुए थे। कबूतर ने कबूतरी से पूछा, ''क्या कहती हो? खाया जाए?''

''पगला गए हो क्या? एक रात भूखे नहीं सो सकते, चार दानों के लिए जान जोखिम में डालने पर तुले हो..'' कबूतरी ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।

''घबराओ मत प्रिये, मैं पता करके आया हूँ। कस्बे में मंत्री जी कल एक खेल प्रतियोगिता के उदघाटन समारोह में हमें अपने हाथों से शांति के प्रतीक के रूप में उड़ाने वाले हैं, जिसके लिए ही ये बहेलिया हमें पकड़ना चाहता है। सिर्फ एक रात की बात है, अभी खाना भी मिलेगा और कल आज़ादी भी।''

वो युगल मुस्कुराते हुए दानों पर जा बैठा, झाडी में छिपे बहेलिये ने जाल खींच लिया।

       ताकत
वो नौसिखिया कार चालक सांझ होते ही कार लेकर सड़क पर आ उतरा. कार चलाना तो सीख गया मगर अभ्यास की कमी थी, जिसको कि पूरा करने वास्ते वह कम भीड़-भाड़ वाले इलाके की तरफ मुड़ गया। अचानक पानी से भरे गड्ढे के ऊपर से कार निकली तो गड्ढे का गन्दा पानी राह चलते एक साइकिल सवार की कमीज को गन्दा कर गया। साइकिल वाले के चिल्लाने पर आस-पास के लोग जमा हो गए और कार को आगे बढ़ने से रोक दिया गया। अपनी आँखों को बड़ा-बड़ा करते हुए उस साइकिल वाले ने नौसिखिये पर चीखना शुरू कर दिया, ''स्साले, अन्धा होकर चलाता है? इतना बड़ा खड्डा नहीं दिखा तुझे? मेरी नई कमीज़ ख़राब कर दी। तुझे क्या लगता है ऐसे ही निकल जाएगा यहाँ से.. जानता नहीं है तू मैं कौन हूँ। इस इलाके के दादा का ख़ास आदमी हूँ मैं। अब चुपचाप नई कमीज़ के पैसे निकाल वर्ना स्टेयरिंग पकड़ने के लिए हाथ सलामत नहीं रहेंगे..''

धमकी का असर हुआ। नौसिखिये ने बिना कुछ कहे सुने चंद नीले-पीले नोट निकाल कर 'बेचारे' साइकिलवाले के हवाले कर दिए।

अगले मोड़ पर मुड़ते समय पता नहीं कहाँ से एक मोटर साइकिल सवार जल्दबाजी में कार से हल्का सा टकरा गया। हालांकि टक्कर बड़ी मामूली थी और मोटर साइकिल वाले को चोट भी नहीं लगी, लेकिन कार रोक कर उसने भी नौसिखिये को बाहर निकाला और उसने भी धमकाते हुए कहा कि, ''हाथ में मेहंदी लगा कर कार चला रहा था? चार पहिये पर सवार है तो किसी की जान लेगा? मैं यहाँ के कमिश्नर को अच्छी तरह से जानता हूँ. अगर अभी दो हज़ार नहीं निकाल के दिए तो थाने में टाँगे तुडवा दूंगा तेरी.. लाइसेंस जाएगा सो अलग.''

डरते हुए एकबार फिर उसने दो हज़ार रुपये मोटरसाइकिल वाले को थमा दिए और वहाँ से अपनी जान लेकर दूसरे इलाके की तरफ भागा।

लेकिन उसकी बदकिस्मती कहें या खराब ड्राइविंग कि इस बार सच में उसने एक सफ़ेद एम्बेसडर को पीछे से ठोक दिया। तुरत प्रक्रिया हुई, तीन गुण्डे टाईप के लोग मुँह में पान दबाये उसकी तरफ बढ़े और कॉलर पकड़कर उसे कार से बाहर निकालने के साथ-साथ तीन-चार थप्पड़ रसीद कर दिए। जैसे कि उसे उम्मीद थी उनमे से एक अश्लीलतम गालियाँ देते हुए बोल पड़ा, ''जानता है किसकी गाड़ी ठोकी है तूने? मंत्री जी के भतीजे की। पूरी डिग्गी चपटी कर डाली। अब इसका पैसा तेरा बाप भरेगा? चल निकाल बीस हज़ार वर्ना पता भी नहीं चलेगा कि कहाँ से आया था और कहाँ गया।''

पैसे तो अब जेब में थे नहीं, सो उसने अपने गले में पड़ी सोने की मोटी चेन उन गुन्डेनुमा लोगों को सौंप उनके पास गिरवी रखी अपनी जान छुड़ाई और अब अत्यधिक सावधानी के साथ कार चलाने लगा।

पर हाय रे बदकिस्मती कि घर से थोड़ी ही दूरी बाकी रहते, अँधेरे में कार एक बार फिर किसी भारी-भरकम वस्तु से टकरा गई।

डर के मारे थर-थर कांपते हुए उसने कार रोक कर देखने की कोशिश की कि इसबार कौन है कि तभी एक शांत और मधुर आवाज़ कानों में पड़ी, ''माफ़ करना, मैं तुम्हारे रास्ते में आ गया।''

देखा तो कार एक चबूतरे से टकरा गई थी. चबूतरा किसी धार्मिक इमारत का था।

नौसिखिये ने हिम्मत करके पूछा, '' आप कौन हैं?''

''भाई, मैं ईश्वर हूँ और मैं किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता..''.

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