बुधवार, 21 अक्तूबर 2009
तकलीफ भरा अंत भी होता है प्यार का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
'तकलीफ भरा अंत भी होता है प्यार का, इस अंजुमन में सिर्फ खुशियाँ नहीं मिलतीं.' इसीलिए अगर
आपने किसी से प्यार किया है तो हर अंजाम के लिए तैयार रहें कहीं ऐसा ना हो कि अपने उन से जुदा होके आपके चोट खाए दिल को भी मजबूरी में ये कहना पड़े कि-
मैं जब इक सांस लेता हूँ तो दूजी भूल जाता हूँ,
तुम्हारे हिस्से का अब मैं हर काम भूल जाता हूँ.
सुबह होती है दिन में ये तो याद रहता है,
ना जाने क्यों हर दिन की शाम भूल जाता हूँ.
दिल सुनता नहीं मेरी जिहन से कुछ कह नहीं पाता,
मैं सुन लेता हूँ बातों को, कहना भूल जाता हूँ.
कुछ इस तरह हो गया खाना भी आजकल,
रोटियां तोड़ लेता हूँ, साग मैं भूल जाता हूँ.
तुम्हारा नाम तो हर वक़्त मुझको याद रहता है,
अक्सर ही मगर अपना नाम मैं भूल जाता हूँ.
जब कुछ सोचता हूँ 'मशाल' तुम ही याद आते हो,
प्यार तो याद रहता है, मैं झगड़े भूल जाता हूँ.
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार प्राप्त.
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ऐसा कहा गया भी गया है की प्यार ही दर्द देता है और प्यार ही दवा और कुछ लोग तो ऐसा भी कहते है लाइलाज़ बीमारी है..
जवाब देंहटाएंतकलीफ़ तो स्वाभाविक है..बढ़िया रचना...धन्यवाद
".....बेहतर...."
जवाब देंहटाएंजब भी ये दिल उदास होता है,
जवाब देंहटाएंजाने कौन आस-पास होता है...
रोज़ आती हो तुम ख्यालों में
ज़िंदगी में भी मेरी आ जाओ...
जय हिंद...
प्यार को महसूस करवा दिया आपने अपनी रचना में।
जवाब देंहटाएंरोटी साग वाला अलग सा लगा - प्रेम को दैनिक जीवन से जोड़ता हुआ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
बिलकुल, everything is possible in love and war !
जवाब देंहटाएंप्यार तो बस प्यार है ......... तकलीफ या सुख .......... दोनों ही कबूल हैं .........
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल है आपकी ....... सुभान अल्ला
दिल के दर्द को अहसास कराती हुई सी रचना लगी...... शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंतुम्हारा नाम तो हर वक्त मुझे याद रहता है
जवाब देंहटाएंअकसर ही अपना नाम मगर मैं भूल जाता हूँ
लाजवाब ये जो गज़ल से पहले लिखा है इस शेर पर सही बैठता है पूरी गज़ल बहुत सुन्दर है शुभकामनायें
रोटी साग पर तो हम मर मिटे
जवाब देंहटाएंये बंदूक वाला लेख तो खून खौला गया
वैसे आप क्रांतिकारी विचारों के लगते हो ,शोध विज्ञानी तो क्रान्ति लाता ही है .
आप विज्ञान की किस शाखा में रिसर्च कर रहे हो
प्यार का एहसास वो जज्बा है
जवाब देंहटाएंखुद ही से खुद बतियाते है लोग
अल्का जी, मैं कैंसर विज्ञानं का शोधार्थी हूँ और मुख्या विषय केथेप्सिन प्रोटीएजिज हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी विचारों को लेकर सहमती के लिए आभारी हूँ.
प्यार तो याद रहता है,मैं झगडे भूल जाता हूँ....बहुत खूब....काश सब ऐसा ही करें..
जवाब देंहटाएंप्यार के एक रूप को महसूस कराती सी ग़ज़ल है ये...
जवाब देंहटाएंरोटी और साग?...
जवाब देंहटाएंलगता है कि आप बहुत ही सुलझे हुए इनसान हैँ
इक प्यार का नगमा है
जवाब देंहटाएंमौजों की रवानी है
ज़िन्दगी और कुछ भी...
pyar mai aksar sabhi ke saath aisa hota hai...shabdo ko bahut hi khubi ke saath pesh kiya hai....
जवाब देंहटाएंaaaaaaaaah!!!!!
जवाब देंहटाएंAap sabka bahut bahut aabhar...
जवाब देंहटाएंJai Hind...