सोमवार, 5 अक्तूबर 2009
टिप्पणियों की प्यास में किसी की इज्ज़त की बलि न चढाएं.....ब्लॉग्गिंग पे काला धब्बा न लगायें.
बीते कुछ दिनों से ब्लॉगर समाज ठीक वैसी ही हरकतें करने लगा है जैसी की न्यूज़ चैनल वाले करते हैं या किसी उत्पाद को बिकाऊ बनाने के लिए उसके विज्ञापन को बनाने वाले यानि बेसिर-पैर की बकवास, और ये सब किसलिए? सिर्फ इसलिए की किसी भी तरह टी.आर.पी. बढ़े उनके ब्लॉग की और जय राम जी की. कोई हिन्दू-मुस्लिम लड़कियों की इज्ज़त उतारने में लगा है तो कोई किसी के ब्लॉग में झांक कर अपने लिए अच्छा बुरा पाकर उस पर ही सबका ध्यान खींचने के लिए चिल्लाने लगता है, आखिर क्यों हम सब अपने उद्देश्य से भटक रहे हैं या फिर ये कहें की उद्देश्य ही गलत बना के ब्लॉग्गिंग के लिए आये हैं. सबसे दुखद तो तब लगता है की इन टिप्पणियों की माया के वशीभूत होकर के उम्रदराज़ शख्स भी ऐसी ओछी हरकत कर जाते हैं, जो लोगों को सीख देने की उम्र में पहुँच गए हैं वे स्वयं बच्चों की तरह नासमझ काम करते हैं. अगर ऐसी सस्ती और घटिया लोकप्रियता का इतना ही शौक है तो किसी क्रिकेट मैच या फुटबॉल मैच के बीच में निर्वस्त्र होके दौड़ जाइये या किसी को भरी सभा में जूते मार दीजिये. ऐसे थोड़े न होता है की आप दूसरों की लाश पे चढ़ कर या उसे बेईज्ज़त कर के अपना नाम चमकाना चाहते हैं. कोई कभी बकवास करके ब्लोग्वानी बंद करवा देता है, कोई ज्योतिष और साइंस के झगडे को ब्लॉग पे ले आता है तो कोई आर एस एस और विश्व हिन्दू परिषद् का नाम लेके टिप्पणियां बटोरता है, कोई सेक्स का नाम लेके अपना ब्लॉग चमकाता है, कोई ब्लॉग चमकाने के फंडे ही बता डालता है, कोई अपने ब्लॉग पर आये टिप्पणीकारों का परिचय या उनकी संख्या दर्शाता है तो कोई इससे भी बड़े कारनामे करता है. हिन्दू-मुस्लिमों के बीच की दरार नहीं भर सकते तो रहने दें लेकिन कम से कम उस दरार को अपने ब्लॉग को चमकाने की छोटी सी कीमत पे चौडी तो न करें, नए गोधरा के बीज तो न डालें. मेरी समझ से बाहर है की इंसानियत की बात करने वाला हिन्दू या मुस्लमान या सिख या इसाई अगर हिंसा की बात न करे तो क्या वो हिन्जडा हो जाता है? माना हिन्दुओं पे ज़ुल्म हुए, तो क्या मुसलमानों पे नहीं हुए या अगर मुसलमानों पे हुए तो क्या हिन्दुओं पे नहीं हुए, हमने सब देख लिया सब सह लिया लेकिन ये नहीं समझ पाए की ये ज़ुल्म इंसानों पे हुए, काश हम परिंदे होते तो ये बात अच्छे से समझ सकते थे. हम लोग भी उन नेताओं की तरह बकवास करने लगे हैं जो वोट के लिए अपने मजहब, माँ, बहिन को बेच देते हैं अरे भाई फर्क क्या रह गया हम में और उनमे? अरे मुझे कोई आगे आके एक ऐसा नेता बता दे जो सच्चे दिल से हिन्दू या मुस्लिम हित की बात करता हो.... आज के युग में कोई महाराज विक्रमादित्य की तरह प्रजापालक नहीं.
याद रहे की विवादस्पद बात कहके आप कुछ लोगों के बीच कुछ समय तक लोकप्रिय हो सकते हैं लेकिन एक सम्मानित बुद्धिजीवी(तथाकथित बुद्धिजीवी नहीं) समाज के बीच स्थान बनाने के लिए निरंतर सार्थक प्रयास करने होते हैं, कहते हैं की गद्दी(हथेली) पर आम नहीं जमता. इसलिए नवोदित अभिनेत्रिओं की तरह की हरकतें आपको शोभा नहीं देतीं. क्योंकि आपकी कला ही आपको लम्बे समय तक लोगों के दिल और दिमाग में जगह दिला सकती है, क्षणिक लोकप्रियता किस काम की? और वैसे भी लोग आपका सिर्फ नाम ही जान रहे हैं न, सिर्फ नाम कमाने के लिए इतनी अशोभनीय हरकतें. अल्लाह/ god / वाहेगुरु/ भगवान न करे की इन ब्लोगों पर की गयी ऐसी कोई बात किसी जाति या धर्म विशेष को इतनी बुरी लगे की फिर कोई दंगा भड़क जाये इसलिए मेरा करबद्ध निवेदन है आप सभी से की सोच समझ कर और एक जिम्मेवार नागरिक की भांति अपनी नैतिक जिम्मेवारी को स्वीकार कर, समझते हुए स्वस्थ लेख लिखें.
कहा गया है की 'उनको न सराहो जो अनैतिक तरीकों से धन या लोकप्रियता अर्जित करते हैं, उनसे बेहतर तो वो हैं जो गुमनाम जिंदगी जीते हैं, किसी का भला न सही किसी का नुक्सान तो नहीं करते'. यह कथन आज के ब्लॉग्गिंग समाज पर भी लागू होता है.
अंत में आप सबसे यही आग्रह है की इसे भी सस्ती लोकप्रियता पाने का या कमेन्ट ओअने का प्रपंच न समझें और उचित होगा की क्रप्या मेरी बात को समझें तो लेकिन टिपण्णी न करें. टिपण्णी करना है तो कविता, कहानी, ग़ज़ल या किसी अच्छे विचार पर करें.
इसलिए कृपया टिप्पणियों की प्यास में किसी की इज्ज़त की बलि न चढाएं.....ब्लॉग्गिंग पे काला धब्बा न लगायें.
दीपक 'मशाल'
चित्रांकन- दीपक'मशाल'
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इस गम्भीर मुद्दे को आपने बहुत ही प्रभावी ढंग से उठाया है...
जवाब देंहटाएंतात्कालिक लाभ के लिए उलटे-सीधे हथकंडे अपना कर अपने ब्लॉग को चमकाया जा रहा है..जो उचित नहीं है...
एक और निवेदन आपसे करना चाहूँगा कि अगर हो सके तो आप अपने ब्लॉग के बैक ग्राउंड कलर जो कि काला है ...को बदल दें...इससे पढने में कठिनाई होती है
जवाब देंहटाएंzabardast
जवाब देंहटाएंbadhaiyaan
aapne mana kiya hai isliye yahan nahi kahungi.... :)... chaliye wahan chaltey hain....wahin par baat hogi!
जवाब देंहटाएंआपके विचारो से सहमत
जवाब देंहटाएंबिल्लोरे किस मुहं से आप ज़बरदस्त बोल रहे हैं, आपका लेटेस्ट पोस्ट तो मुझे प्रतिबंधित करने के लिए चिल्ला रहा है. दीपक की बात से सौ % सहमत
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सही और सटीक बात कही है . मैं आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंचिंतन योग्य मसला ...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही चिन्तन......
जवाब देंहटाएंBAHUT HI GAMBHIR MUDDA UTHAYA HAI DIPAK........ VERY GUD.........
जवाब देंहटाएंdekhiye sahab blog ko aapne bhi apnaya hai aur humne bhi , aur blog kisi ki bapauti nahin hai ye apni anubhutiyon aur ehsason ko dil se nikalne ka ek zariya hai main har mudde pe likhta hoon ,lekin lokpriyata shayad dor nahin wo to hai hin nahin aur shayad blog likhne walon main bhi ye bat nahin hoti hai .. so pls blog likhne walon pe comment karna band karen .. ye hamari zameen hai aap aana chahen to aayen nahin to nahin ... sukriya aur agar kuch bura laga hoga to maafi bhi
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सहमत हूँ आपसे।
जवाब देंहटाएंइस गम्भीर मुद्दे पर हम आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा, कुछ लोग " मेरी इससे कु्ट्टी है, तू भी कुट्टी करदे नहीं तो तेरी-मेरी कुट्टी" वाला जीलस बच्चों का खेल भी खेल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंप्रिय भाई मनीष,
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपके विचार जानकर, लेकिन पता नहीं क्यों कहीं महसूस हुआ की आप थोडा सा नाराज़ हैं इस लेख से, दूसरी तरफ मन बोला की जो शख्श अर्धसत्य, पाकीजा, आंधी और तमन्ना जैसी संवेदनशील फिल्में पसंद करता हो वो निश्चित रूप में एक अच्छा नागरिक होना चाहिए(कम से कम मेरी नज़र में तो), क्योंकि ये फिल्म सिर्फ दिमाग वाले नहीं बल्कि दिलवाले भी पसंद करते हैं. साथ ही आध्यात्मिक पुस्तकों में रूचि रखने वाले आज के समय में कम ही लोग मिलते हैं. ऐसे भाई को मैं जरूर ही मिलना बल्कि गले मिलना चाहूँगा. अगर मैं पूरी तरह से गलत नहीं तो जो आपने कहा मैंने सिर्फ उतना ही किया यानि अपने भावों को अभिव्यक्त किया, ये समझ लीजिये की आपको मिष्ठान्न देना चाहा, आपने लिया तो मेरा सौभाग्य और नहीं लिया तो वापस मेरे पास ही रहेगा. मैंने पहले ही लिखा था की कृपया टिपण्णी न करें, क्योंकि मेरा एकमात्र उद्देश्य रचनात्मक ब्लॉग्गिंग को बढावा देना था और उसके लिए मैं इस सन्देश या आग्रह को सबसे करना चाहता था.
bahut hi gambhirta se ek mudde par apni baat rakhi aapka svagathai
जवाब देंहटाएंमैंने आपकी तरह सिर्फ अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त किया. यदि किसी वाक्य से आपको लगा हो की मैंने किसी व्यक्ति विशेष पर या किसी ब्लॉग पर कमेन्ट किया है तो मैं क्षमा चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएंवैसे मैं भी अपने वतन से सिर्फ देह से दूर हूँ लेकिन आत्मा अभी भी वहीँ है और संस्कार मेरे अन्दर संघ के हैं, फर्क सिर्फ इतना है की मैं हिन्दू की परिभाषा कुछ अपने तरीके से गढे बैठा हूँ, मेरे लिए हिन्दू कोई मजहब नहीं, हिन्दू वो है जो हिंदुस्तान में रहता है जैसे यहाँ इंग्लैंड में रहने वाला इंग्लिश होता है. और सिर्फ हिंदुस्तान में रहने वाला हिन्दू नहीं हो जाता हिन्दू होता है वो जो प्रेम को समझे इंसानियत को समझे, जो की सबसे बड़ा मजहब है, बाकि सब तो बाद में वैसे ही बाँट जाते हैं जैसे मैंने गिरगिट को पेड़ पे देखा इसलिए हरा था, उसने चट्टान पे देखा और उसे वो लाल लगा, जिसने जहाँ देखा उसे वैसा ही लगा गिरगिट. बस ऐसे ही हमने परमात्मा को समझा है.
आपको लगता है की मैं किसी मुसलमान भाई का पक्ष ले रहा हूँ या किसी हिन्दू भाई का तो ऐसा बिलकुल नहीं है, मैं इंसान बनना चाहता हूँ और इंसानियत का पक्ष लेना चाहता हूँ. इतना बड़ा और समझदार तो नहीं की आपको या किसी और सम्मानित ब्लॉगर को राय दे सकूं, लेकिन बस मैं अपनी सोच रख रहा हूँ और वो ये है की मेरी नज़र में एक मुस्लमान जो भारत के या मानवता के खिलाफ काम करता है, पाकिस्तान का समर्थन करता है तो वो भी कसूरवार है और अगर कोई हिन्दू जो पाकिस्तान की जमीन पर पल रहा है पाकिस्तान का विरोध करता है तो वो भी उतना ही दोषी है. हम ने ही कहा है की 'जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी' और हम ही भूल जाएँ, न भाई न.
लेकिन अगर हम सिर्फ देश, धर्म, जाति में उलझे रहे तो हो गयी प्रगति, हम ही ने कहा 'वसुधैव कुटुम्बकम' और हम ही भूल गए. ईश्वर ने अल्लाह ने ये शरीर दिया है तो उसके(सर्वशक्तिमान) जैसा कोई काम करें, उसकी मदद करें उस तरह के इंसान और दुनिया बनाने में जैसी की वो बनाना चाहता है, जहाँ किसी बुराई, आतंक, नफरत के लिए जगह न हो, हो तो सिर्फ प्रेम. और प्रेम ही वो मार्ग है जो हमारे कारवां को आपस में जोड़ के रख सकता है और अंत में अपने अपने आराध्य से मिला सकता है. कुछ दिन पहले डॉ. कलाम से हुई भेंट के दौरान उन्होंने समझाया था की जिस देश में हो उसे अपनी कर्मभूमि समझ के उसके भले के लिए भी काम करो न सिर्फ जन्मभूमि के लिए(ये बात मुंबई के सन्दर्भ में भी सही बैठती है). तो मन को लगा यही तो कृष्ण ने सिखाया है, जहाँ एक ओर देवकी की कोख से पैदा हुए वहीँ दूसरी तरफ यशोदा पालक माँ थीं, सम्मान दोनों का बराबर है. आपके विचारों का मैं सम्मान करता हूँ और मुझे विश्वास है की शायद हमारे तरीके अलग हों किन्तु मकसद एक ही है और वो है विश्व-शांति.
उसके लिए कभी सुभाष का तो कभी बापू का जहाँ जो रास्ता इख्तियार करना पड़े करना है. कहा भी गया है- 'भय बिनु होही न प्रीत' लेकिन अच्छा होगा कि हम साधू की जाति, धर्म नहीं ज्ञान पूछें. हिन्दू न देखें, मुसलमान न ढूँढें बस इंसान ढूँढें.
आज के परिप्रेक्ष्य में लोग भले ही इस सुन्दर गाने को मजाक का विषय बना दें लेकिन मैं तब भी यही गाता रहूँगा की 'बस यही अपराध मैं हार्बर करता हूँ, आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ.'
मैं सस्ती लोकप्रियता के लिए इस सब को एक नया पोस्ट बनाने के बजाय सिर्फ आप तक सप्रेम बात को पहुंचा रहा हूँ. आशा है आप गुस्ताखी माफ़ करेंगे. आपको मेरी बातें विरोधाभाषी लग सकती हैं लेकिन गौर से देखेंगे तो लगेगा की बात उतनी भी गलत नहीं है, वैसे भी हम सबको ही तो आदर्श मानते हैं गौतम बुद्ध को भी और अशोक को भी, गुरु नानक को भी और शिवाजी को भी, महाराणा प्रताप को भी और सम्राट अकबर को भी. कारन सिर्फ एक है की ये सब पहले इंसान थे फिर कुछ और. :)
अब तो गुस्सा थूक दीजिए, चलिए मेरे ऊपर ही सही अगर इसी बहाने एक भाई का गुस्सा शांत कर सकूं तो वो भी महंगा नहीं खरा सौदा है.
आप सभी का प्रोत्साहन और साथ पाकर बहुत अच्छा लगा, लेकिन मेरा ,मकसद उस दिन पूरा होगा जिस दिन हमारा छोटा सा ब्लॉग संसार इन दोषों से रहित हो जायेगा.
आपका भाई-
दीपक 'मशाल'
nice
जवाब देंहटाएंमैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ. नारायण नारायण
जवाब देंहटाएंसही सवाल उठाया है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा आपने .. हिन्दी चिट्ठा जगत में इस नए चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है .. उम्मीद करती हूं .. आपकी रचनाएं नियमित रूप से पढने को मिलती रहेंगी .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएं:)
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