मेरे मौला मुझपे भी तुम मुस्कुरा दो.
डरता हूँ रहता मैं अक्सर मुश्किलों से,
हिम्मतों को तुम मेरा मज़हब बना दो.
दे सकूं छाया मैं हर थकते पथिक को,
शाख को मेरी तुम इतना कर घना दो.
खींच लूं उड़ते हुए बादल की टुकड़ी,
मेरे पत्तों को प्रभू इतनी हवा दो.
मैं रहूँ जिंदा यहाँ जबतक धरा पे,
पंछियों के घोंसले मुझ पर सजा दो.
सूख जब जाऊँ तो लेके शाख इक-इक,
घर किसी मुफलिस से इंसां का बना दो.
सूंघ लूं मैं बू बुराई की कहीं भी,
इल्म का दीपक कोई मुझमें जला दो.
दीपक 'मशाल'
बहुत बढिया व सुन्दर रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंदीपक ,बस सोने जा ही रहा था कि तुम्हारा आव्हान मुझ तक पहुंचा , मैने सोचा दीवाली का समय है दीपक को जलते रहना चाहिये सो यहाँ आ गया । तुम्हारे भीतर असीमित सम्भावनायें है इसमें कोई शक नहीं फिर दीपक को मशाल बनने से कौन रोक सकता है . यह रचना अभी पढ़ ली है .. कल इस पर बात करते हैं , चाहो तो बरास्ते महफूज़ मुझसे बात भी कर लेना -शरद
जवाब देंहटाएंडरता हूँ रहता---------------------
जवाब देंहटाएंऔर मैं सूख जाऊँ---
वैसे पो पूरी रचना लाजवाब और जीवन के सार्थक दृष्टीकोण को लिये हुये हैमगर् ये पंक्तियाँ तो अद्भुत हैं । उम्र के हिसाब से बहुत आगे कलम जा रही है और शरद जी सही कह रहे हैं तुम लिखने मे ही नहीं बल्कि कर्म मे भी मशाल बनो यही कामना है। इस रचना और दीपावली की शुभकामनायें ढेरों आशीर्वाद।
bahut sunder rachna.........
जवाब देंहटाएंdeepawali ki shubhkaamnayen.
ILM ka deepak sabke andar jalana chahiye
जवाब देंहटाएंसभी आगंतुकों को धनतेरस और दीवाली की शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंDipak .......... ek baat kahun......... yeh kavita mujhe itni achchi lagi ki mujhe dobara aana pada........
जवाब देंहटाएंU gr8 possibilities............. really......... tum mein waaqai mein ilm ka dipak hai....
Gr888888888
sundar kavita..
जवाब देंहटाएंअच्छा काव्य
जवाब देंहटाएंबधाइयां
हैप्पी दिवाली
Wahwa.....
जवाब देंहटाएंदीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है
पर इस सबके बावजूद
थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार
दीपक,
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणादायी कविता..
और हाँ....शरद जी से हम पूरी तरह सहमत हैं...
जैसा तुमने कहा है न:
मैं पौधा हूँ मुझे बरगद बना दो....
वो होना ही है...
दीपावली या और कोई भी त्यौहार हम जैसे NRI's को एक टीस दे ही जाता है...
हम बिलकुल समझ सकते हैं ४ सालों से दीवाली घर पर नहीं मनाने का दर्द....
लेकिन हम साथ हैं ....ये तो अच्छा हुआ की ब्लॉग से जुड़ गए हैं ...और देखो कितना अपनापन हो गया है सबके साथ....दुःख में सुख में कितने करीब हैं हम सभी...लगता ही नहीं कि कहीं कोई भी दूरी है ...
खुश रहो....और शुभ दीपावली...
दीदी