'किस किस का नाम लूं मैं मुझे हर किसी ने चाहा..' मसि-कागद को बनाये भी करीब एक साल हो गया और ईश्वर के बनाये दीपक मशाल ब्लॉग को भी ३० साल पूरे.. और पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो ये पंक्तियाँ ही मन में आती हैं (हालाँकि मारा कि जगह हमेशा मन में चाहा ही आता है..)
जैसा कि लोग मानते हैं कि ६० साल सठियाने की उम्र है.. तो आज मैं उस सठियाने की उम्र से उतने ही फासले पर हूँ जितना उसके करीब आ गया हूँ..
पिछले एक साल से जबसे ये ब्लॉग बनाया.. तब से अब तक निरंतर आप सबका स्नेह मिलता रहा है और उसके लिए मैं आपका आभारी तो कतई नहीं हूँ. क्योंकि आभार परायों से जताया जाता है और आप में से कोई भी यहाँ पराया नहीं मेरे लिए. भरसक कोशिश की कि किसी को नाराज़ ना करुँ.. क्योंकि मेरी ज़िंदगी का जो मकसद है वो किसी को नाराज़ करके कभी पूरा नहीं हो सकता. उसके लिए मुझे आप सबके स्नेह, आशीष और मार्गदर्शन की जरूरत है. आपसे श्याम नारायण पाण्डेय जी की पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात कहना चाहता हूँ- 'जिसपर कृपा हो आपकी वह जग विजेता हो गया उसको ना कुछ दुर्लभ धरा का धीर नेता हो गया.'
वैसे कभी जानबूझ कर किसी को दुखी करने की मेरी मंशा तो नहीं रही मगर अनजाने में ही हाल के दिनों में यदि आप में से किसी को भी मेरी किसी बात से तकलीफ हुई हो तो वो मुझे नादाँ, बेवकूफ और अपना समझ कर कम से कम इसबारी तो माफ़ कर देंगे.. ऐसा मेरा विश्वास है. आगे से कोशिश करूंगा कि सिर्फ वही बात कहूं जो किसी को कष्ट ना दे. एक बार फिर उन सबसे जो आहत हुए हैं यही कहूँगा कि- 'नाथ शम्भु धनु भंजनिहारा होइहे कोऊ इक दास तुम्हारा' आप में से ही कुछ अज़ीज़ हैं जिन्होंने मेरे परिवार को देखने की इच्छा ज़ाहिर की थी सो इच्छा का सम्मान करते हुए अपने संयुक्त परिवार के कुछ सदस्यों से यहाँ पहिचान करा रहा हूँ..
मेरे आदरणीय बाबा एवं स्व.दादी जी*
मम्मी एवं पापा
गार्गी(सहोदर बहिन) और संजय जी देव के साथ
पापा जब उनकी शादी हुई थी तब*
मेरे भांजे श्री देव जी एवं बहनोई श्री संजय जी
पापा के बचपन की तस्वीर*
ये है आपका गुनहगार
दिल से ईश्वर से जो दुआ निकलती है उसे शब्द दिए हैं-
आदरणीय अग्रज श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी द्वारा मेरी इस रचना को ग़ज़ल का स्वरुप दिया गया है.. उनका बहुत आभारी हूँ..
बड़ी मुश्किल से हाथ आए , तुम्हें हम जाने कैसे दें
अभी पैदा हुई ख़्वाहिश , अभी मर जाने कैसे दें
अभी तो रूठ कर आया है इक बादल समंदर से
ज़मीं प्यासी है , इसको लौट कर अब जाने कैसे दें
तुम्हीं ने आज़माया है , मेरी सच्चाई को यारों
तुम्हारे झूठ पर पर्दा कोई पड़ जाने कैसे दें
' भुला देना न मुझको ' - यूं कहा करते थे तुम अक्सर
न भूलेंगे तुम्हें हम … टूट ये दिल जाने कैसे दें.
इन्हीं ज़ख़्मों की ख़ातिर पूछने आते वो घर मेरे
कोई ज़ख़्मों से कहदे , हम उन्हें भर जाने कैसे दें
बरी हो'के तू निकला है, अदालत से अभी , लेकिन
मुकद्दमे और भी हैं जो कहे - ' हम जाने कैसे दें '
जहां को तू बदल डाले , नहीं इतना भी तू क़ाबिल
'मशाल' अब जां पॅ तुझको खेलते ही जाने कैसे दें
दीपक मशाल अब यहाँ देखिये क्या कमाल की ट्रेनिंग दी गई है इन साहब को कि गणित भी आता है..अब कोई बच्चा जो काहे कि मैथ्स मुश्किल है तो कौन मानेगा.. मास्टर तो यही कहेंगे कि ''कुत्तों को भी गणित आता है''
आज शिक्षक दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएँ.. सुनियेगा अर्चना चावजी जी के स्वर में शिक्षक दिवस की एक भेंट.. और उसके बाद पवन चन्दन जी के साथ मेरी एक जुगलबंदी....
पहले गीत सुनिए--
अब जुगलबंदी--- चांद और बदली में हो गयी खटपट
रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
सिसकियां भर भर के रो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है
कुरूप होने से पहले जो हो गया था मैला
मौसम की धूल का न रहे दाग पहला
वसुंधरा आपने दामन हो धो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है
ज्यों रुदाली ढो रही हो अनंत कालों से प्रथा को
ताड़ उसकी इस व्यथा को उसके अंतस की कथा को
रो के वो बेज़ार अपने नमकीन मोती खो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है
भीगी चोली भीगा दामन वो ले रही अंगडाई भी
गेशुओं से झांकती वो लगती है इठलाई भी
सूर्य औ सागर के सुर सुन बेसुध नृत्य में वो हो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है
फागुन में ये बदरिया मस्त हो के छा गयी है
भर भर के घट लबालब रंग ले के आ गयी है
देवर समझ के सब को छम छम भिगो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है.
पवन चन्दन और दीपक मशाल