शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
ये सपना कभी पूरा हो पायेगा???????????
'जब तक रोटी के प्रश्नों पर,
पड़ा रहेगा भारी पत्थर...
पड़ा रहेगा भारी पत्थर...
कोई मत ख्वाब सजाना तुम..
मेरी गली में,
ख़ुशी खोजते..
अगर कभी जो आना तुम......'
ये गीत आज से १०-११ साल पहले,जब इप्टा(इंडियन पीपुल'स थिएटर एसोशिएसन) की नगर इकाई में काम करता था, उस वक़्त सुनने, गाने को मिला. हम(मैं और दूसरे साथी कलाकार) गाँव-गाँव, गली-गली और चौराहों पर सामाजिक विषयों या नागरिक हितों को लेकर जागरूकता फैलाने में लगे रहते थे. गीत गाते, नुक्कड़ नाटक करते सभा करते और हमें लगता की एक दिन ये सब करके हम सच्चा स्वराज स्थापित कर लेंगे, एक पूर्ण स्वराज जिसका नारा १९२७ से भी पहले मौलाना हसरत मोहानी जैसे देशभक्तों ने दिया था, जिसे उस समय कि कांग्रेस पार्टी ने काफी ना नुकुर के बाद बाद के सालों में स्वीकार कर लिया था. लेकिन तब से करीब ८० साल बीत जाने के बाद भी 'पूर्ण स्वराज्य' अभी तक एक नारा ही है. इसको हकीकत में तब्दील करने का सपना देखने वाले ये सपना अपनी आँखों में लिए हुए रुखसत कर गए और कुछ सालों बाद हम भी उसी जमात में शामिल हो जायेंगे. लेकिन देश की संपन्नता, सुख और समृद्धि को जिस तरह से राजनीतिक और शीशमहलों में रहने वाले गिद्ध चारों ओर से घेरे हुए हैं, लगता तो नहीं की खुली आँख का देखा ये सपना कभी पूरा हो पायेगा.
अभी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने खुलासा किया की विश्व में १ अरब से ज्यादा लोग रोज़ भूखे पेट सोते हैं, अब ज़ाहिर है इसमें एक बहुत बड़े हिस्से की भागीदारी हमारी भी होगी. भला जनसँख्या, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, अशिक्षा.............आदि दोषों को सहर्ष अग्रपंक्ति में खड़े होकर अपनाने वाले महाद्वीप से लोग इस भुखमरी की रेस में कैसे पीछे रहेंगे.
कहते हैं हमारा देश जलवायु की दृष्टि से सर्वाधिक विभिन्नता भी रखता है अमूमन ५० डिग्री का अंतर तो रहता ही है सालाना अधिकतम और न्यूनतम तापमानों के मध्य. ठीक वैसा ही उतना ही बड़ा अंतर है यहाँ के अमीर और गरीब के बीच, इसी देश में दुनिया के सबसे अमीरों में से कुछ लोग रहते हैं और सबसे गरीब भी. किसी के पास सुबह उठकर सबसे बड़ी समस्या होती है की आज कौन सी हीरे की घड़ी पहने या कौन सी कार से ऑफिस जाएँ, तो दूसरी तरफ गरीब सोचता है की आज कैसे दोपहर का खाना मिले और फिर उसके बाद कैसे शाम का. इस सब में बहुत बड़ा हाथ हमारे उद्योग पतियों का भी है, जो सिर्फ और सिर्फ अपनी जेबें भरना जानते हैं और ना सिर्फ आम आदमी को बल्कि सरकार को भी चूना लगाना जानते हैं. मैं समझता था की ये सब गुज़रे कल की बातें हैं आज के लोग अपने अधिकारों के प्रति इतने सचेत हैं की ऐसे हालात नहीं बन सकते. लेकिन कुछ दिन पहले एक मित्र ने जब बताया की उसके साथ ऐसा अभी भी होता है, तब लगा की कितनी महान आत्माएं अभी भी जिंदा हैं जिनका नाम वैम्पायर नहीं लेकिन काम वैम्पायर से कम् भी नहीं है..
हाल में पता चला की शिक्षा जगत में सुधार ये है कि इसी शहर के एक संगीत शिक्षक ने अपने छात्र कि पीअच.डी. थीसिस पे हस्ताक्षर करने से इसलिए इनकार कर दिया कि वह उनको ४०,००० रुपये गुरुदक्षिना देने में असमर्थ था, वाह रे गुरु. बताना तो उसका नाम भी चाह रहा था लेकिन सोच रहा हूँ ईश्वर उस गुरु को सदबुद्धि दे दे तो अच्छा है वर्ना मजबूरी में ऐसे महापुरुषों को भी सबके सामने लाना होगा.
उम्मीद है आप सभी भी अपने आसपास के महान चरित्रों पर ब्लॉग पर बेनकाब कर ऐसे भेड़ियों से समाज का परिचय कराएँगे.
जयहिंद...
दीपक 'मशाल'
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जरुर यह नकाब उतारना होगा.......अच्छा आंदोलन है.
जवाब देंहटाएंजहाँ एक ओर ग़रीबी बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ लोग अवैध पैसा हड़पने की फिराक़ में लगे रहते है..घूसखोरी और भ्रष्टाचार हर जगह व्याप्त है..बढ़िया प्रसंग..सोचनीय विवरण है ..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंचिंतन की सही दिशा दी आपने
जवाब देंहटाएंbahut sahi laga yeh.........
जवाब देंहटाएंदीपक, अचानक तुम्हारे ब्लोग पर जीवन यदु के इस चर्चित गीत ने मुझे 20-22 साल पहले उन दिनो में पहुंचा दिया जब मैं भी इप्टा से जुड़ा था हम लोग भी सड़को पर ,जुलुसों मे, नाटक के मंच पर इसे कोरस में गाया करते थे । आज भी मै नाटको से जुड़ा हूँ और हम लोग यह गीत गाते हैं यह गीत मुझे पूरा याद है और इस गीत को जीवन यदु के साथ भी मैने मंच पर गाया है .." जब तक रोटी के प्रश्नों पर /रखा रहेगा भारी पत्थर / कोई मत ख्वाब सजाना तुम / मेरी गली में खुशी खोजते अगर कभी जो आना तुम " खैर मै इस पर अलग से पोस्ट लिखूंगा फिलहाल तो यह कि तुम्हारे यह क्रांतिकारी विचार अच्छे लगे इस विचारधारा की मशाल प्रज्वलित रखो यह कामना ।
जवाब देंहटाएंदीपक इस छोटी सी उम्र मे सामाजिक सरोकारों और देश की हालत पर तुम्हारा चिन्तन देख कर बहुत खुशी होती है अब तो केवल युवाओं पर ही आशा है। अगर सच पूछो तो उद्द्योग जगत ही असली कारण है कि आज गरीब और गरीब हो रहा है और अमीर और अमीर । इस बाज़ारवाद ने देश का बेडा गर्क करने का बीडा उठा रखा है। बहुत अच्छा और चिन्तनपरक विश्य है लगे रहो। आशीर्वाद तुम्हें व तुम्हारे परिवार को दीपावली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंbahut accha laga padhkar... samajik sarokar ki rachnayein aavashyak hain aaj..
जवाब देंहटाएंकई ऐसे बच्चे होते हैं जिनको जिम्मेदारियां समय से पहले परिवार के बारे में सोचने पे विवश कर देती हैं... फिर मैं तो २९ का हो चुका हूँ कम उम्र कहाँ????? मेरा परिवार(देश) है ही इतनी मुसीबत में की शायद हर बच्चे को जल्दी जिम्मेवारी अपने कन्धों पे लेने की सख्त जरूरत है....
जवाब देंहटाएंसादर
दीपक जी, यह समस्य प्रत्येक युग की है। तथा शाश्वत है। हम तो केवल इतना विचार करें कि हम किसी का शोंषण न करें और न ही अपना शोषण होने दें। अच्छी पोस्ट है, विचार भी श्रेष्ठ हैं, बधाई। ऐसे ही लिखते रहें।
जवाब देंहटाएंPahlee baar aayee hun...aapne to nishabd kar diya.."Bikhare Sitare' tatha 'Simte Lamhen" pe aaneka ek snehil nimanatran!
जवाब देंहटाएंऎसे चिन्तन पर आपकी जितनी तारीफ की जाए कम है ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय !
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!