मोक्ष क्या है? लिखना तो बहुत कुछ चाह रहा था लेकिन पता नहीं क्यों आज मन बहुत व्यथित है और इसीलिए बिना किसी लाग लपेट के एक पुरानी कविता आपके सामने रख रहा हूँ..... इनमें सिर्फ वही भाव हैं, सिर्फ वही अंतर्द्वंद है जो कभी-कभी हर मन में चलता है की मोक्ष क्या है?
मोक्ष
परिक्रमा
करते थे प्रश्न,
अँधेरे मन के
कोटर के,
उत्तर कोई निकले सार्थक,
जिसको
हथिया के प्राप्त करुँ,
विचलित ह्रदय
संतृप्त करुँ।
किस राह को
मैं पा जाऊँ?
किसपे
कर विश्वास चला जाऊँ?
किसको भरूँ,
अंक में मैं,
जीवन-दर्शन या जग-पीड़ा?
करुँ नर-सेवा या
नारायण?
बनूँ किसका कर्त्तव्य-परायण?
चलूँ पथ
मोक्ष प्राप्ति का मैं,
या पीड़ा दीनों की हरूँ हरी?
गुँथा हुआ मैं
ग्रंथि में,
था अंतर्मन टटोल रहा बैठा।
सहसा घिर आये मेघा
आबनूस रंग चढ़े हुए,
गरजे,
बरसे,
कौंधी बिजली,
मुझे वज्र इन्द्र का याद हुआ,
त्याग दधीचि का सार हुआ।
तब ज्ञान हुआ जो
करनी का,
जीते जी मोक्ष प्राप्त हुआ।
दीपक 'मशाल'
चित्र- साभार गूगल से लिया गया.
जीते जी मोक्ष प्राप्त हुआ.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और बेहतरीन रचना.
त्याग से बढकर दुनिया में और कुछ नहीं...लेकिन हम में से कितने इसे सही मानते हैँ?....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
गजब की रचना.....और ऐसी ही पुरानी रचनाएँ छांटो.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...धन्यवाद दीपक जी!!
जवाब देंहटाएंवाह मोक्ष के बारे में इतना सुंदर तो आज ही पढा आपके द्वारा ...
जवाब देंहटाएंsundar kavita
जवाब देंहटाएंअमा दीपक यार,
जवाब देंहटाएंइतने हैंडसम हो, अभी तो ज़िंदगी की हसीन गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी है, अभी से मोक्ष-वोक्ष के क्या चक्कर में पड़ गए...तुम तो दीपक भी हो और मशाल भी...बस प्यार बांटते चलो...कारवां अपने आप हसीं खुशी चलता रहेगा...
वो अपने महफूज़ मास्टर भी छोटी-छोटी बात दिल को लगा लेते हैं...उन्हें भी मैं यही समझाता रहता हूं...
जय हिंद...
Dipak ..... kavita bahut achchi lagi..... achcha yeh batao ki man kyun vyathit hai?
जवाब देंहटाएंKhushdeep Sir, sahi kah rahe hain......
बहुत बढिया रचना है।बधाई\
जवाब देंहटाएंSahi marg bataya moksh ka.
जवाब देंहटाएंwow yr ham jase yuth ko apne dharm ko bachane ke liye age ana hoga
जवाब देंहटाएं...............
sunder bat moksh hindu dharm ki den
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंBhiya bemishal mashal
जवाब देंहटाएंjagee rahe hamesha
तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया खुशदीप भाई, लेकिन मैं हर संवेदना को गहराई तक महसूस करना चाहता हूँ, अपनी कलम की बाल्टी को हर अहसास के गहरे कुँए में डाल के एक कविता के रूप में ही सही कुछ भावों के पानी को बहार निकल के लोगों के सामने रखना चाहता हूँ. कभी समाज को सन्देश, कभी अच्छाइयों को बढ़ावा देने के लिए, कभी बुराइयों को रोकने के लिए तो कभी महज़ मन की संतुष्टि के लिए...
जवाब देंहटाएंसमीर जी आपके आदेश का पालन होगा....
जय हिंद..
मोक्ष की ये परिभाषा अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंवैसे भाई, ये उम्र मोक्ष की बातें करने की नहीं है. अभी तो जिंदगी के मज़े लो.
संवेदनाओं के साथ भी जिंदगी का लुत्फ़ उठाया जा सकता है.
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने अत्यन्त सुंदर रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है !
जवाब देंहटाएं"कभी कभी कबाड़ से भी निकल आती हैं /कुछ काम की चीज़ें / जैसे गर्मियों में बिजली चली जाने पर /हाथ का पंखा "देख क्या रहे हो यह मेरी एक कविता की पंक्तियाँ हैं जो तुम्हारी इस कविता पर लागू हो रही है । और क्या क्या है तुम्हारे कबाड़ मे? सब बाहर निकालो , चाहो तो एक बार मुझे दिखा दो । इस कविता मे जो जंग के निशान की तरह जगह जगह प्रश्नचिन्ह लगे है उन्हे साफ कर दो .. कुछ अक्षर ऊपर नीचे हो गये है उन्हे एक सीध मे कर दो थोड़ा झाड-पोंछ दो बस फिर चकाचक एकदम नये जैसा ।
जवाब देंहटाएंपौराणिक आख्यानों के बहाने आपके एक विशाम बिम्ब रचने में महारित हासिल की है। आपके इस प्रयास को सलाम करने को जी चाहता है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मोक्ष ढूँढा भी तो अजब ढंग से, बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमोक्ष को सरल शब्दों मैं ढालने का सुन्दर प्रयास .... बहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंत्याग मोक्ष की पहली सीढ़ी है |
दीपक,
जवाब देंहटाएंकविता अद्वितीय है....भावपक्ष का जवाब नहीं...शब्दों के जादूगर हो तुम्...
लेकिन अभी मोक्ष की बात मत करो...!
दीदी....
:)
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