मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
कोई ऐसी दवा दे दे, कि बस अतीत बन जाऊँ......
कोई इक खूबसूरत, गुनगुनाता गीत बन जाऊँ,
मेरी किस्मत कहाँ ऐसी, कि तेरा मीत बन जाऊँ.
तेरे न मुस्कुराने से, यहाँ खामोश है महफ़िल,
मेरी वीरान है फितरत, मैं कैसे प्रीत बन जाऊँ.
तेरे आने से आती है, ईद मेरी औ दीवाली,
तेरी दीवाली का मैं भी, कोई एक दीप बन जाऊँ.
लहू-ए-जिस्म का इक-इक, क़तरा तेरा है अब,
सिर्फ इतनी रज़ा दे दे, मैं तुझपे जीत बन जाऊँ.
नाम मेरा भी शामिल हो, जो चर्चा इश्क का आये,
जो सदियों तक जहाँ माने, मैं ऐसी रीत बन जाऊँ.
मुझसे देखे नहीं जाते, तेरे झुलसे हुए आँसू,
मेरी फरियाद है मौला, मैं मौसम शीत बन जाऊँ.
कहाँ जाये खफा होके, 'मशाल' तेरे आँगन से,
कोई ऐसी दवा दे दे, कि बस अतीत बन जाऊँ.
दीपक 'मशाल'
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काश!! ऐसी दवा होती.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.
खूबसूरत कविता...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण...!!
मीत, जीत, गीत, दीप, रीत, शीत और प्रीत ... ये तो बहुत अच्छा है लेकिन अतीत क्यूँ ?
दी...
Sahir Ludhiyanwi ke ek shair'i majmuey ka naam hai 'Gata Jaey Banjara'...!
जवाब देंहटाएंSahir Ludhiyanwi ke ek shair'i majmuey ka naam hai 'Gata Jaey Banjara'...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं। आपकी मनोकामना पूर्ण, यही प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएं----------
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अवश्य पूरी होगी आपकी मनोकामना !!
जवाब देंहटाएंआप सबकी शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ...
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