न चाह कर भी पता नहीं क्यों गाँधी जी के बंदरों की तरह नहीं बन पाता. अपने आसपास के लोगों को शोर मचाता और गलत रास्ते पे जाते देख चिल्लाने लगता हूँ.
'हर रोज वही
हिन्दुओं की बातें,
मुसलमानों के हिस्से........
जाने कहाँ खो गए,
इंसानों के किस्से.'
युगपुरुष और संवेदनशीलता के पर्याय महाकवि प्रदीप(दुःख का विषय है की सबको बार बार बताना पड़ता है की ऐ मेरे वतन के लोगों... के रचयिता) ने कहा भी है-
'सुनो जरा ऐ सुनने वालों
आसमां पे नज़र घुमा लो,
एक नज़र में करोड़ों तारे.
रहते हैं हिलमिल के सारे
कभी न वो आपस में झगड़ते
कभी न वो आपस में हैं लड़ते
नहीं किसी पर छुरे चलाते
नहीं किसी का खून बहाते
लेकिन इस इंसान को देखो
धरती की संतान को देखो
हाय रे है ये कितना कमीना
इसने औरों का सुख छीना......
डंस लिया देश को ज़हरी नागों ने,
घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने.'
अगर हम बड़े लोगों के सिखाये को नहीं मान सकते तो क्या जरूरत है अपना अपना झंडा उठा के घूमने की. जिस ब्लॉग पे जाओ वहीँ पे गन्दगी का अम्बार मिलता है. बिना किसी का नाम लिए मैं कहना चाहूंगा की मेरे कुछ अज़ीज़ बड़े भाई जो हैं वो पता नहीं क्यों आसमान की तरफ नहीं देखते, ये नहीं देखते की उनसे ऊपर कितने लोग है, बस हमेशा यही देखते हैं की वो कितनों से ऊपर है, काश कभी ऊपर देख लें तो वो समझ सकें की यदि उन्हें कोई गुण मिला है जिसके कारण वो कहीं एडिटर जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे हैं तो उस पे घमंड ठीक नहीं. बार बार लोगों को बताने का क्या फ़ायदा की मैं ये हूँ, फ़लाने समय तक, फ़लाने उम्र में ये बन चुका हूँ.
संघ का निर्माण हिन्दुस्थान को विश्व का सिरमौर राष्ट्र बनाने के लिए हुआ और आज हम वो उद्देश्य भूल के हिन्दू मुस्लिम के नाम की वैमनस्यता फैला रहे हैं. जिसने भी किसी भी धर्म/ मज़हब की कोई किताब लिखी वो भी पहले इंसान रहा होगा, इस तरह जो धर्म बिना बनाये बना वो सबसे ऊपर हुआ न, तो आज वो सबसे ऊपर क्यों नहीं है? इंसानियत सबसे आगे क्यों नहीं है?
भूतकाल में जो हुआ उसे भूल के एक नयी शुरुआत क्यों नहीं करते, क्यों इतिहास से सबक नहीं लेते.
'बीती को बिसारिये, आगे की सुधि लेय'
स्वर्गवासी हो चुके अपने अमर शहीदों और देशभक्तों को भी नहीं बख्शते और उन्हें भी अपने जबरदस्ती के झगडे में खींच लाते हैं. किसने कह दिया की गाँधी हिन्दू थे? हाँ गाँधी जी थे लेकिन इसलिए की वो एक हिन्दुस्तानी थे, इसलिए नहीं की वो श्री राम की पूजा करते थे, वो इन सब से पहले और बहुत ऊपर सिर्फ एक इंसान थे....
'ईश्वर अल्लाह तेरो ही नाम....' उन्होंने ही कहा था न?
ऐसे ही कब तक बांटोगे तुम इंसानियत धर्म के लोगों को हिन्दू और मुसलमान के हिस्सों में, क्यों उनकी आत्माओं को तकलीफ दे रहे हो. क्यों कबीर को, रहीम को, साईं बाबा को, हाजी अली को, खुर्रम शाह को जबरदस्ती मज़हब का तमगा बाँट रहे हो?
चलो तुम्हारी बात ही मान लेते हैं मज़हब को हिन्दू को, मुसलमान को ही मानना है तो उसी के हिसाब से चलते हैं, लेकिन अगर चलना ही है तो औरों की बुराइयों को मत देखो अपने मज़हब की अच्छाइयों को देखो, अपने धर्म की बुराइयों को दूर करो. मेरे मत से कोई धर्म कोई मज़हब बुरा नहीं बस हम उसे समझ नहीं पाते और बस दूसरों के धर्म की बुराइयां खोजके उसे नीचा दिखने की कोशिश में लगे हैं. किसके खुदा या भगवान ने उसके ख्वाब में आके कहा की सिर्फ तुम्हारा मज़हब/ धर्म ही महान है और बाकी सब बेईमान है, तुम्हारे अलावा सबको दोज़ख मिलेगा...किसीके ख्वाब में आया आज तक कोई खुदा कोई भगवान? '
क्यों बिसराते हो कबीर को-
'बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोय,
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय.'
क्यों हम अपनी गिरेबां में झांके बिना लोगों को गालियाँ देते हैं, आखिर क्यों?
सबको बुद्धि मिली है, सबमे शक्ति है की खुद को और अपनी अच्छाइयों-बुराइयों को समझ सके, हम क्यों थोपना चाहते है अपनी समझ को किसी और पर(ये बात मेरे ऊपर भी लागू होती है). बेहतर होगा की अपनी क्षमताओं का प्रयोग दुनिया को एक बेहतर रहने की जगह में तब्दील करें और अपनी आने वाली पीडिओं को विरासत में वैमनस्य की बजाय एक सुन्दर विश्व उपहार में दें.
माफ़ करें मैंने जान बूझकर टाइटल ऐसा दिया है की ज्यादातर लोगों के पास मेरी बात पहुंचे. और किसी के दिल को ठेस पहुँचने वाली कोई गलत बात कह गया होऊं तो छोटा और नादाँ समझ के क्षमा कर देवें वरना गाली देंगे तो उसकी भी आपको पूरी आज़ादी है.
जय हिंद
Lamba to hai........... lekin itnni achchi rachna ne baandh kar rakha..........concentration bilukl bhi break nahi hua.......... yahi is kavita ki sabse badi baat hai........... ki ek saans mein padh liya jaye,,,,,
जवाब देंहटाएंachcha laga padh ke........
gr8
keep it up
बहुत सही लिखा है.
जवाब देंहटाएंआदमी हिन्दू मुसलमान भूलकर इंसान बनने की कोशिश करे तो कलयुग का असर कुछ समय के टाला जा सकता है. वरना, महाप्रलय अब दूर नहीं.
मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है.
bahut hi satik likha hai......
जवाब देंहटाएंआपकी इस अपील से मन भर आया ! लोग जरूर ध्यान देगें -इतने पत्थर दिल नहीं है यहाँ !
जवाब देंहटाएंबात तो बड़ी अच्छी की आपने.. पर समस्या ये है कि हमारे राजनेता ये बात नहीं समझते और तुच्छ बातों पर दंगे करवाते हैं.. कितना अच्छा हो अगर हम कभी हिन्दुस्तान कि बागडोर एक ऐसी सरकार को दें जिसमें कम से कम एक भी इंसान गाँधी या कलाम जैसा हो.. पर क्या ये संभव है??
जवाब देंहटाएंजीवट हो...हम तो समझे देखने में किसी फ़िल्मी हीरो से लगते हो बस कविता ही लिखते होगे....लेकिन हम गलत हो गए न....बहुत ही बढ़िया बोले हो....एकदम साफ़ और सही...तीर की तरह लगनी चाहिए बात सबको....अगर अपना विचार न भी बदलें वो तो कम से कम युद्ध-विराम ही करें....थोडा तो सुस्ता लें धर्म के योद्धागन kyunki हम भी एक ही channel देख देख कर अब uub गए हैं ......
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा आलेख..
खुश raho
दी...
आपकी अपील बहुत अच्छी लगी, शायद कुछ प्रतिशत लोगों के समझ में भी आ जाये .
जवाब देंहटाएंकाश लोग आपकी इस लेख पर ध्यान दे ! एक सार्थक प्रयास !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
इस नादान की बात पे आप सबने ध्यान दिया इसके लिए आभारी हूँ, लेकिन महफूज़ भाई, अदा दी, कुसुम जी, डॉ. साब, अरविन्द जी, आशीष जी, शोभना और अम्बुज सारे वही नाम हैं अबतक जो पहले से ही इस सब के दर्द को समझते हैं और पहले से ही इस सब से दूर रहते हैं. अगर कोई एक भी सफ़ेद झंडा लेके आगे आये तो मैं कलम को सार्थक समझूंगा, वरना क्या मैंने भी घिस दिया औरों की तरह.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सार्थक और पराक्रमपूर्ण काव्य आलेख..........
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा........
बहुत बहुत बधाई !
बहुत ही बढिया एवं स्टीक लेख...काश कुछ लोगों को ही अक्ल आ जाए इससे
जवाब देंहटाएंदीपक जी, जो मशाल आप जला रहे हो, हम कोशिश करेंगे की उसे बुझने ना दें, लेकिन आपके लेखन से मुझे कुछ ईर्ष्या हो रही है, शाबाश लगे रहो!
जवाब देंहटाएंbhai mere ek hi to sanghthan hai jo desh hit me hai
जवाब देंहटाएंtum usi ke piche pare ho
tum ye kyo bhool jate ho simi jase atnkwadi sangthan bharat ko kamjor karne me lage hai jab ki rss ka itihas padhoge to tumko bhi pta chalega sangh ne deshhit me kitna kuch kiya hai
kabhi shakha nhi gye kya