मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

बच्चों को दे रहे हैं कसाब वाली बन्दूक....... आखिर क्या चाहते हैं हम?????????????

अभी टाईम्स ऑफ़ इंडिया में समाचार पढ़ते हुए अचानक नज़र एक ऐसी खबर पर चली गई, जो की एक तरह से अवांछित सी लगी. अवांछित इसलिए की इस घृणित आतंकवादी को हमारी मीडिया पहले ही हीरो की तरह प्रस्तुत कर चुकी है, आये दिन उसके बारे में खबरें आती है की क......(बार बार उसका नाम लेके मैं अपनी जबान गन्दी नहीं करना चाहता) ने गीता मांगी, कभी मटन बिरयानी मांगी तो कभी उसने येही कह दिया की भारतीय न्यायालयों पर उसे भरोसा नहीं(इस सा..... को तो जनता की अदालत में ही छोड़ना बेहतर है). हम राक्षसों के लिए मानवाधिकार संगठनों से डर रहे हैं वाह भाई वाह...
लेकिन सच में जो खबर मैंने पढ़ी वो चौंकाने वाली ही नहीं बल्कि अपने बाल नोंच लेने वाली थी, दीवाली के मौके पर मुंबई बाज़ार में आई एक खिलौना बन्दूक जो की ए.के. ४७(३ इन १) का प्रतिरूप थी उसे यह कह के प्रचारित किया गया की यह वही बन्दूक है जो उस कसाई क......  ने ७२ लोगों को मरने के लिए इस्तेमाल की थी. अलग अलग बयानों से पता चलता है की कुछ बेचने वालों ने अपने तुच्छ निजी हित के लिए इसे इस तरह प्रचारित किया तो कुछ बच्चों के अभिभावकों की उत्सुकता ने जबरदस्ती उस गन को 'क...... वाली बन्दूक' बना दिया. ये तो नहीं पता की किसने, कैसे और क्यों इस नाम से बन्दूक को बेचने की शुरुआत की लेकिन जिस तरह से कई बच्चों और उनके मम्मी पापा ने इस नाम से ये खिलौना माँगा इससे साफ़ पता चलता है की इन लोगों को किसी के जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता. ये लोग भी उस हत्यारे को महिमामंडित करने में जुटे हैं. अरे आज तक किसी बच्चे के लिए अब्दुल हमीद की तोप या सालसकर की रायफल या उन्नीकृष्णन की मशीनगन के प्रतिरूप क्यों नहीं मांगे गए(वैसे मैं तो बच्चों के हाथ में इस तरह के खिलौने देने का ही पक्षधर नहीं हूँ)? क्या बनाना चाहते हैं आखिर ये लोग अपने बच्चों को? क्या इन्हें ज़रा भी आभास नहीं की इन सब चीज़ों का बालमन पर क्या प्रभाव पड़ता है? कैसे ये लोग खुद को देशभक्त कह सकते हैं?
एक समय था जब हम भगत सिंह के ऊपर लिखी गई कविता 'मैं बन्दूक उगाऊंगा....' पढ़ते थे और आज एक हत्यारे के नाम से हम वो गन खरीद कर अपने बच्चों के मन में आतंकवाद के खिलाफ नफरत ना भर के एक आतंकवादी को हीरो बना रहे हैं. शर्म आती है ऐसे लोगों के हिन्दुस्तानी होने पे....
आप चाहें तो खुद ये समाचार इस लिंक पर देख सकते हैं-
http://timesofindia.hotklix.com/link/news/India/Qasabs-Gun-fires-up-Diwali

25 टिप्‍पणियां:

  1. कसाब को तो हीरो बना ही दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. एक दिन हम ही भरपाई करते नजर आयेंगे अपनी हरकतों की..बल्कि आ ही रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. दीपक भाई,
    काश कोई पुलिस वालों की लठिया या जंग खाई बाबा आदम के ज़माने की बंदूकों को भी खिलौना बनाने की कोशिश करता जिसके बल पर उन्होंने मुंबई हमले के दौरान आतंकवादियों से लोहा लिया था...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  4. is kasab ko to sach mein.... janta ki adalat mein de dena chahiye......... phaaltu mein isko hero banaya hua hai.......

    JAI HIND

    जवाब देंहटाएं
  5. deepakji, logon ki bhavnayen mar chuki hain, apne thode se labh ke liye kuchh log kuchh bhi karne ko tayyar rahte hain. short term gain ka mamla hai aur kuchh nahi.

    जवाब देंहटाएं
  6. janta ki adalat mein... aji bas kasab hi nahi, use bachane walon ko bhi... par janta bhi to.... aise aise log hi election bhi jeetenge...

    जवाब देंहटाएं
  7. बालमन की मिट्टी में आज जैसे बीज हम लोग बो रहे हैं..कल को उससे उपजने वाले कडवे फलों का स्वाद तो हमीं तो चखना पडेगा....

    जवाब देंहटाएं
  8. शर्मा जी से सहमत हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. शर्म की बात है ..........खुले न्याय के नाम पर भारत में कोई अच्छा खेल नहीं चल रहा ...... कसाब का निपटारा जल्दी होना चाहिए ...........

    जवाब देंहटाएं
  10. श्री कांत पराशर जी से सहमत हूँ। यही बात है इस बाज़ारवाद ने देश का बेडा गर्क करने का ठेका ले रखा है। अच्छी पोस्ट है शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  11. In reality there is no any limit of our patience and we all have become habitual to tolerate any type of insult

    जवाब देंहटाएं
  12. दीपक जी आज के समय मैं सच्चा रास्ट्र प्रेम एक ढकोसला माना जाता है |

    मीडिया तो गंदा हो ही चुका है, पर हमलोग सुधारें तब तो कोई बात होगी ? वैसे भी इस खबर से बहुसंख्यक समाज को फर्क नहीं पडेगा, हम तो मॉल, मुल्तिप्लेक्स, मोबाइल ..... मैं ही इतने busy हैं की इन सब चीजों के बारे मैं सोचने की फुर्सत कहाँ ? और कभी फुर्सत मिल भी जाए तो क्यों सोचे, इससे कोई फयादा है क्या ?

    यही सोच है हमारी ....

    जवाब देंहटाएं
  13. राकेश जी लेकिन किसी ने सच ही कहा है की हम चाहते तो हैं की देश में फिर से भगत सिंह, सुभाष और आजाद पैदा हों लेकिन हमारे नहीं पडोसी के घर में....
    जब तक हम लोग ही आआगे आने की कोशिश नहीं करेंगे कुछ नहीं होने वाला, लेकिन कुर्बानियां तो देनी ही होंगी...

    जवाब देंहटाएं
  14. ये नकारात्मक चीजों को अपना हीरो बनाने का दौर है मित्र तो यही सब देखने को मिलेगा...

    जवाब देंहटाएं
  15. सही नही है पता नही लोग आने वाली पीढ़ी को कहाँ देखना चाहते है..बढ़िया प्रसंग उठाया आपने कम से कम कुछ सोचेंगे तो ऐसे लोग..बहुत धन्यवाद दीपक जी

    जवाब देंहटाएं
  16. सहमत हूं आपसे।क… से लेकर ब्लात्कारी शा……… तक़ की हर बात इनके लिये हिट या हाट खबर हो गई है।रहा सवाल जन्ता की अदालत का तो ये शुरू हो गई हैं। नागपुर मे एक अदालत मे जनता ने एक बलात्कारी को पीट-पीट कर मार डाला था अब यंहा छतीसगढ मे एक फ़रार बलात्कारी जिसे पुलिस नही ढूंढ पा रही थी उसे पीड़ित के घर वालों ने ढूढ निकाला और भेज दिया बिना जमानत सीधे ऊपर्।शुरू तो हो गया है बस अब इसे स्पीड़ पकडने की देरी है।

    जवाब देंहटाएं
  17. पहले 'खलनायक' आई फिर 'खलनायिका'...

    अब कसाब और लादेन...

    हर्षद मेहता(घोटाला करने के बाद) जब तक जीवित था...लोग उसे सर आँखों पर बिठाते हुए उसके ऑटोग्राफ लेने के लिए लाईने लगाते थे...
    कब तक हम इन्हें महिमामंडित करते रहेंगे?...
    जैसा हम बो रहे हैँ...वैसा ही हमें काटना भी पड़ेगा

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत अच्छी चर्चा चलाई है और तुम्हारे जज़्वे की तारीफ करनी पडेगी आज के युवा अगर चाहें तो सब कुछ बदल सकता है । लगे रहो आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति, बधाई

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रिय दीपक,
    तुम्हारे इस आलेख ने मुझे इतना क्रोधित किया है की शायद अपने अपने शब्दों को नहीं टोल पाती इसलिए ...मेरी पहली टिपण्णी....इश्वार के नाम की हो गयी....इसतरह जनसमुदाय की भावनाओं को गेंद बना कर खेलने का अधिकार इन पापियों को किसने दिया है...और सरकार (साली कांग्रेस) क्या कर रही है...??? इसका बहिष्कार होना ही चाहिए किसी भी कीमत पर...बे-शक दीपावली बीत गयी है लेकिन उस खिलौने की फैक्ट्री उसके मालिक, उसका लाइसेंस सब कुछ जब्त होना ही चाहिए....उसपर देशद्रोह का जुर्म होना चाहिए....इसे बर्दाश्त ही नहीं करना चाहिए....
    didi

    जवाब देंहटाएं
  21. kya mudda uthaya hai
    use jero bnana sarkar ka farz banta hai
    or media to hai hi hero banane ke liye
    kesi janta ki adalat afjal guru or kasab dono ko fasi de deni chahiye
    tabhi ek achha maseege jaiga
    atankwadiyo ke pasd bhi
    or bharatiyo ki santushti bhi hogi ...................






    EK SACHHA BHARTIYA.......jai hind

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...