सृजनगाथा से एक लघुकथा लाकर यहाँ लगाई है.
फॉर्म
भर जाने के बाद जब उसने डॉक्टर को वापस किया तो डॉक्टर ने फॉर्म में पूछे गए सवालों के जवाबों पर निगाह डाली। उसके रक्त का नमूना लेने के बाद एक बार फिर उसे कुरेदने की कोशिश की- ''तुम्हें अच्छे से याद है ना कि पिछले कुछ महीनों के दौरान तुमने ना ही कहीं कोई रक्तदान किया, ना रक्त चढ़वाया, ना असुरक्षित सम्भोग किया, ना नाई के यहाँ शेव बनवाते हुए तुम्हें कोई कट वगैरह लगा?''
''हाँ, डॉक्टर सा'ब मुझे अच्छे से याद है। आप मुझपर ऐसे शक़ क्यों कर रहे हैं?'' मुस्तफ़ा ने डॉक्टर को जवाब दिया।
डॉक्टर- ''ह्म्म्म.. फिर तुम्हारा वज़न अचानक इतना क्यों गिरा हमें देखना पड़ेगा। भूख भी नहीं लगती तुम्हें, खैर रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कह पाऊंगा। फिर भी कहना ज़रूरी समझता हूँ कि हमारे बीच की हर बात गोपनीय रखी जायेगी और सब सच बता दोगे तो तुम्हारे ही इलाज़ में आसानी रहेगी।''
मुस्तफ़ा के मुँह से सिर्फ़ ''जी..'' निकला। वो एलाइजा टेस्ट के लिए रक्त के नमूना-पत्र पर दस्तख़त कर ज़ल्दी से बाहर निकल गया।
कुछ दिनों बाद डॉक्टर ने रिपोर्ट थमाकर उसे एचआईवी पोजिटिव बताया और हज़ार हिदायतें देते हुए समझाया कि अगर वो उनका बताया कोर्स बिना नागा किये लेगा तो वो भी और इंसानों की तरह भरपूर तरीक़े से अपना जीवन जी सकता है।
पर मुस्तफ़ा अब और कुछ सुनने वाला कहाँ था, वो तो बस चिल्लाये जा रहा था, ''तो उस नीच औरत की बात सही थी, मैंने ही एहतियात नहीं बरता। पर अब मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोडूंगा। मैं अकेले नहीं मरूँगा। 10-12 को ये रोग दे के जाऊँगा..''
डॉक्टर असहाय बस उसे देखे जा रहा था।
हम आईने में उनके, औकात देखते हैं
फूलों में खुशबुओं की, सौगात देखते हैं
ले बूंद बूंद आँसू, जो भर के डाक लाई
उन आसूंओं से होती, बरसात देखते हैं
अब तन्हाई का हमको, शौक हो गया है
बस टूटते दिलों के, हालात देखते हैं
है रोशनी की दुनिया, छिपते फिरें अंधेरे,
दूल्हे के नाम पर वो, बारात देखते हैं.
घर हो भले ही छोटा, दिल में जगह है काफी
ले हाथ में वो फीता, क्या नाप देखते हैं.
इनको मशाल तेरी, कीमत कहाँ पता है
चल उठ नया फिर कोई, बाजार देखते है
दीपक 'मशाल'