रविवार, 21 फ़रवरी 2010

ब्लॉगजगत और हिन्दीप्रेमियों से एक दरख्वास्त------------->>>>>दीपक 'मशाल'

आज की तारीख में वैसे तो हर कोई अपनी-अपनी मर्जी का राजा है और अपने-अपने ब्लॉग का भी.. लेकिन फिर भी मैं आप सभी से एक विनम्र  निवेदन करना चाहता हूँ.. वो है अपने उद्देश्य(हिंदी का संवर्धन) से ना भटकने का.. क्योंकि आजकल कुछ ज्यादा ही उठापटक दिख रही है.. जिसका साफ़ मतलब है कि अब हम लोगों को अपनी प्रतिष्ठा बड़ी लगने लगी है और हिंदी की छोटी...

मैं चाहता तो था कि एक ऐसा दोहा लिखूं जो महाकवि बिहारी जी की तर्ज पर हो.. लिखने को शायद लिख भी लेता लेकिन अपने को उस लायक नहीं समझता कि उस कवि शिरोमणि की रचना पर पैरोडी भी बनाऊं.. और फिर वैसे भी वो प्रसिद्द प्राचीन प्रसंग यहाँ सुनाकर भी अपनी बात को स्पष्ट कर सकता हूँ.. और  उम्मीद कर सकता हूँ आप सबसे कि अपनी कलम की धार को बरक़रार रखते हुए उसका उपयोग हिंदी की प्रगति की राह में उग आयी झाड-झंखाड़ को काटने में करें.. ना कि स्वयं को उभारने में और बेशक अगर आप इस पुण्य कार्य में सफल होते हैं तो दुनिया अपने आप ही आपका नाम जानेगी.. कहने की जरूरत ही नहीं.. अगर नहीं भी जानेगी तो 'नींव का पत्थर' तो याद होगा ना..
वो प्रसंग जिसको कि हमारे ब्लॉग संसार को स्मरण कराने की जरूरत है वो इस प्रकार है-

जयपुर-नरेश मिर्जा राजा जयसिंह अपनी नयी रानी के प्रेम में इतने डूबे रहते थे कि वे महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राज-काज की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। मंत्री आदि लोग इससे बड़े चिंतित थे, किंतु राजा से कुछ कहने को शक्ति किसी में न थी। बिहारी ने यह कार्य अपने ऊपर लिया। उन्होंने निम्नलिखित दोहा किसी प्रकार राजा के पास पहुंचाया -

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।।
(अली- भंवरा मगर इशारा जय सिंह की तरफ था, कली- जयसिंह की नयी रानी)

इस दोहे ने राजा पर मंत्र जैसा कार्य किया। वे रानी के प्रेम-पाश से मुक्त होकर पुनः अपना राज-काज संभालने लगे।
अपने देश में मुद्दों की कमी तो है नहीं, फिर आपस में एक दूजे पर ये छींटाकशी क्यों??
बाकी आप सब स्वयं समझदार हैं इसलिए मुझे भरोसा है कि इस अल्पज्ञ की बात को अन्यथा ना लेके सार्थक रूप में लेंगे.. बुरा लगे तो अपनी भड़ास भी निकाल सकते हैं.. छोटा हूँ ना.. शायद समझ ना पा रहा होऊं..  :)
आज से कुछ दिनों के लिए ब्लॉग लेखन को विराम देता हूँ.. जल्दी ही फिर मिलेंगे, नए जोश के साथ...
दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से

39 टिप्‍पणियां:

  1. deepak,
    hindi ki samriddhi ke liye tumhaara yah ahwaan bahu sahi hai...aur yah sach hai ki logon ko apni partishtha jyada badi lag rahi hai...halaanki..saamajik vishayon par vimarsh mein koi harj nahi hai wahi bhi avashyak hai...lekin bina baat ke kisi bekaar se baat ko tool dena aur usko mudda banakar apni rachnadharmita ko vyarth karna nisandeh moorkhta hai...
    tumne yaad dilyaa...bahut accha laga..
    khush raho..
    didi..

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  2. दीपक भैया,
    काहे चिंता करत हो, भजन गाओ न...

    गाओ मेरे मन,
    चाहे रे सूरज चमके न चमके.
    लगा हो ग्रहण,
    गाओ मेरे मन...

    और ये अभी तो छुट्टी बिता कर गए थे, अब फिर कौन सी छुट्टी पर चल दिए...

    जय हिंद...

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  3. acche vicharon kee sunder prastuti ..........
    JAI BUNDELKHAND..............

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  4. बहुत बढिया प्रसंग,
    पर आजकल के राजा तो ढोल बजाने से भी नही सुनते प्रजा की,
    बलिहारी हैं इन राजाओं की जो एक दोहे से समझ गए।
    आभार

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  5. बहुत संतुलित तरीके से अपनी बात कह दी है ....काश सभी ऐसा कर सके ...!!

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  6. दुखिया यह संसार है, मुद्दों का बाजार।
    खुद में ही उलझे रहे, सारे चिट्ठाकार॥

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  7. चरैवेति ...
    कोलाहल बीच संगीत लहरी बजती रहे।

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  8. सकारात्मक सोच संग अच्छा लगा विचार।
    सकल सोच संकल्प से हिन्दी का विस्तार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  9. दीपक मान गए भाई आपकी दरख्वास्त

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  10. छोटे हो , पर बात बड़ी कही है।
    सही और नेक सलाह।

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  11. बिल्कुल सही कहा दीपक भईया आपने , पूर्णतया सहमत हूँ आपसे ।

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  12. जलु पच सरिस बिकाई देखहु प्रीत किरीतिभलि ।
    बिलग होई रसु जाई कपट खटाई परत पुनि । । प्रीति की सुन्‍दर रीति देखि‍ए कि जल भी दूध के साथ मिलकर दूध के समान भाव बिकता है, परंतु फिर कपट रूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है, दूध फट जाता है और स्‍वाद अर्थात प्रेम जाता रहता है ।

    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    थोड़े महँ जानिहहिं सयाने ।
    बुद्धिमान लोग थोड़े ही में समझ लेंगे ।

    अपको पढना अच्छा लगत है। ज़ल्द ही लौटिए।

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  13. बिलकुल सही लिखा है । कुछ भी देख कर व्यथित हो जाते हो। ऐसे लोगों की बहुत जरूरत है आज कल भाग दौद की दुनिया मे सब अपने अपने मे लगे हैं ऐसे मे कोई सही बात सुझाने के लिये कलम उठाये तो साहस की बात है लगे रहो आशीर्वाद।इस सुन्दर सन्देश के लिये

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  14. बिल्कुल सही
    लेकिन चले कहाँ आप?

    बी एस पाबला

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  15. हम भी आपके साथ यही अपील करते हैं।

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  16. बहुत ही सही आह्वान!

    पर ...

    "अब हम लोगों को अपनी प्रतिष्ठा बड़ी लगने लगी है और हिंदी की छोटी... "

    अब? ऐसा तो शुरू से ही है। हिन्दी की प्रतिष्ठा तो हिन्दी ब्लोगरों, साहित्यकारों आदि से है। हिन्दी क्या इनसे महान है? अरे ये ना होते तो हिन्दी को पूछता ही कौन? इनकी प्रतिष्ठा ही हिन्दी की प्रतिष्ठा है!

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  17. बहुत प्ररेक विचारों कि साथ ...इस लेख को प्रस्तुत किया है ......धन्यवाद

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  18. बहुत संतुलित तरीके से अपनी बात कह दी है ....काश सभी ऐसा कर सके ...!!

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  19. आप ने बात बिलकुल सही कही, लेकिन अब कोई माने भी ना, लेकिन अब चले कहां ?? टंकी पर तो बहुत बर्फ़ जमी है, ओर फ़िसलन भी,ओर लोगो की बाते उन पर ज्यादा ध्यान मत दो, मस्त रहो.... टांग खीचने वाले कभी भी नही सुधर सकते

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  20. बहुत संतुलित बात !सार्थक सलाह!!वाह!

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  21. बिलकुल सही कहा दीपक, कब तक एक जैसा लिखा जाए? कब तक बस लिखने के लिए लिखा जाए? कब तक अपने अच्छे से अच्छे लिखे पर अनर्गल बहस को सहा जाए? कब तक दूसरे का बेकार का लिखा पढ़ा जाए?
    ये सही किया कि कुछ दिनों का रेस्ट ले लिया. आजकल अपनी भी इच्छा नहीं हो रही कुछ भी लिखने की.
    हिंदी विकास तो कर नहीं पा रहे हैं बस खाली पीली लिखने का कोई अर्थ नहीं दिख रहा. तुम तो फिर भी कविताओं के द्वारा साहित्य सेवा कर भी रहे थे, हम तो बस यूं ही बातों के बताशे फोड़ रहे थे.
    जल्दी लौटना तुम्हारा ज्यादा दिन गायब रहना हिंदी साहित्य को क्षति पहुंचाएगा.
    आशीर्वाद
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  22. एक दोहा तो तुम्हे भी लिखना ही चाहिये ।

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  23. dipak aaj is bare mein tumne bhi accha likha hai...hum dusron ko badal to nahi sakte par kosish kyu na kare...kya pata vo kuch badal jaye......

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  24. आप उम्र में चाहें छोटे हों लेकिन सोच में बहुत बड़े हैं...बहुत गहरी और सार्थक बात की है आपने...आपको सलाम.
    नीरज

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