प्रेम तुम शब्द नहीं शब्दकोष हो
प्रेम तुम अंत नहीं अनंत हो
व्याप्त हो तुम
ऊष्णता में रवि किरणों की
चाँदनी में निशिराज की
और हर क्षेत्र में तमस के..
क्योंकि तुम सर्वव्यापी हो, समव्यापी हो
तुम जितने चुम्बन में उतने चरण-स्पर्श में भी
जितने स्पर्श में उतने ही प्रणाम में भी...
प्रेम! परिभाषा नहीं हो तुम
क्योंकि
परिभाषा तो बांधना है शब्दों में
तुम तो हर वर्ण में व्याप्त हो
कण-कण में व्याप्त हो
प्रेम! तुम हो जननी में, भगिनी में
तात में और भ्रात में भी.
जिसकी आँखों में जहाँ देख लेते हैं लोग
हाँ उस काजल के कोर में भी
तुम सिन्दूर में भी उतने ही हो
जितने वन्देमातरम में...
तुम शब्द नहीं, तुम ध्येय नहीं
संस्कृति हो.. धर्म हो...
तुम ऐसा सार्वभौमिक अदृश्य रूप लिए हो
कि अनंत को भी अपने में आवेष्टित किये हो...
दीपक 'मशाल'
चित्र मेरा ही
प्रेम! परिभाषा नहीं हो तुम
जवाब देंहटाएंक्योंकि
परिभाषा तो बांधना है शब्दों में
तुम तो हर वर्ण में व्याप्त हो
कण-कण में व्याप्त हो
अति उत्तम ......प्यार कि कोई व्यथा नहीं .......प्यार तो बस प्यार है ......बहुत उम्दा रचना .
इतना सुन्दर विश्लेष्ण प्रेम का, वाह !.....बहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
prem ke vibhinn roop...aur prem ki paribhasha..aditeey..
जवाब देंहटाएंdidi..
आपने बिल्कुल ठीक कहा प्रेम परिभाषा हो ही नहीं सकता ......बहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंदीपक भाई
जवाब देंहटाएंप्रेम के जिस शाश्वत और सार्वभौमिक रूप का वर्णन आपने किया है ........वो अद्भुत है.आपके ब्लॉग पर पहले भी आता रहा हूँ.....! इश्वर आपकी लेखनी को और समर्थ बनाये.....! बेहतरीन कविता.!
बहुत उम्दा विश्लेषण किया है प्रेम का..बढ़िया!
जवाब देंहटाएंतुम तो हर वर्ण में व्याप्त हो
जवाब देंहटाएंकण-कण में व्याप्त हो
प्रेम! तुम हो जननी में, भगिनी में
तात में और भ्रात में भी.
प्रेम की सुन्दर व्याख्या बहुत अच्छी लगी रचना बधाई और आशीर्वाद
dear
जवाब देंहटाएंbahut...bahut...bahut achhi prem ki prastuti
isase behtar kuchh nahi ho sakta,
JIS TARAH RAMAYAN MAI KAHTE HAI,(ishwarke liye)
HARI ANANTHA, HARI KATHA ANANTHA, usi tarah
PREM ANANTHA, PREM KE ROOP ANANTHA
achhi prastuti ke liye "prem" se badhai
prem shabd mein hi sara saar hai prem ka..........bahut hi sundar shabdon se prem ko vivechit kiya hai.
जवाब देंहटाएंप्रेम के इतने रूप दिखा दिए आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रहा ये विश्लेषण।
परिभाषा तो बांधना है शब्दों में
जवाब देंहटाएंतुम तो हर वर्ण में व्याप्त हो
कण-कण में व्याप्त हो
प्रेम! तुम हो जननी में, भगिनी में...
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....... मन मोह लिया इस रचना ने....
बहुत ही सुन्दर , प्रेम का इससे ज्यादा सुन्दर चित्र हो ही नहीं सकता |महान
जवाब देंहटाएंक्या बात है दीपक भईया बहुत खूब , आज आपकी रचना लाजवाब लगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया विश्लेषण,प्रेम का सबकुछ ही समेट लिया....सुन्दर भाव लिए ख़ूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंप्रेम तुम शब्द नहीं शब्दकोष हो
जवाब देंहटाएंप्रेम तुम अंत नहीं अनंत हो
व्याप्त हो तुम
बहुत सुंदर लगी प्रेम की परिभाषा.
धन्यवाद
gajab ke kavita
जवाब देंहटाएंprem ke ananya roop ka shashwat swaroop
जवाब देंहटाएंnice with very.. :)
जवाब देंहटाएंवाकई वन्देमातरम में भी प्रेम होता है... और जन गण मन में भी।
जवाब देंहटाएंSundar chitramay prem ki abhivakti sundar bhav liye...
जवाब देंहटाएंतुम सिन्दूर में भी उतने ही हो
जवाब देंहटाएंजितने वन्देमातरम में...
तुम शब्द नहीं, तुम ध्येय नहीं
संस्कृति हो.. धर्म हो...
यह प्रेम की महज परिभाषा नही सम्पूर्ण ग्रंथ है
सारे संत महात्माओ धर्म गुरुओ का दर्शन कुछ ही पंक्तियों में बयां कर दिया !!!!!! अद्भुत
जवाब देंहटाएंप्रेम तुम शब्द नहीं शब्दकोष हो !
जवाब देंहटाएंकभी कभी पहली पंक्ति ही ऐसी आती है कि बाकी कविता उस पंक्ति की भाष्य लगती है।
..वैसे शब्द कम पड़ते हैं 'प्रेम' को अभिव्यक्त करने के लिए। सम्भवत: यही कारण है कि सर्वाधिक कविताएँ और गीत प्रेमपगे होते हैं।
'उष्णता' को 'ऊष्णता' कीजिए।
:)
प्रेम अनंत, कथा अनंता...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
गिरिजेश सर, बहुत बहुत शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंदीपक , प्रेम को इतने सुंदर तरीके से परिभाषित किया है कि बस आनंद आ गया , बहुत खूब ..बहुत ही बढिया ,
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
तुम जितने चुम्बन में उतने चरण-स्पर्श में भी
जवाब देंहटाएंजितने स्पर्श में उतने ही प्रणाम में भी...
प्रेम! परिभाषा नहीं हो तुम
क्योंकि
परिभाषा तो बांधना है शब्दों में
तुम तो हर वर्ण में व्याप्त हो
कण-कण में व्याप्त हो
वाह....दिल खुश कित्ता तुसी...क्या बात है ...एक एक पंक्ति मोह लेती है
प्रेम की बहुत व्यापक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के पहले की पोस्ट में लिखी हुई कहानी बहुत बढिया है ।
प्रेम नहीं बंधता परिभाषा में ....
जवाब देंहटाएंयदि प्रेम ही है तो ....
प्रेम के विभिन्न आयामों को समेटती बहुत अच्छी कविता ...!!
रवि किरणों की
जवाब देंहटाएंचाँदनी में निशिराज!
अभिनव है!
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
प्रेम तुम शब्द नहीं शब्दकोष हो
जवाब देंहटाएंप्रेम तुम अंत नहीं अनंत हो
व्याप्त हो तुम
ऊष्णता में रवि किरणों की
चाँदनी में निशिराज की
और हर क्षेत्र में प्रेम तुम शब्द नहीं शब्दकोष हो
प्रेम तुम अंत नहीं अनंत हो
व्याप्त हो तुम
ऊष्णता में रवि किरणों की
चाँदनी में निशिराज की
और हर क्षेत्र में तमस के..तमस के..
Kya kahun? Nishabd hun!