आज से करीब १० साल पहले किशोरावस्था में मैंने और मेरे एक मित्र मोहम्मद शाहिद 'अजनबी' ने मिलकर एक छोटी सी साहित्यिक पत्रिका निकाली थी, नाम था... नई कलम... उभरते हस्ताक्षर.. ३-४ अंक बाद भी जब वो चली नहीं और ना ही ज्यादा लोगों की नज़रों में आई तो समझ आ गया था कि ये सब हम बच्चों का खेल नहीं... फिर मैं अपनी ग्रेजुएशन(बी.एससी.) की पढ़ाई में लग गया और वो बी.टेक. करने में..
अभी करीब डेढ़ साल पहले इसी नाम से उसने ब्लॉग बनाया... पीछे मुड़ के देखते हैं तो बचपने पे हंसी आती है .. कि चले थे २००० रुपये में साहित्यिक पत्रिका निकालने...
उन्ही अज़ीज़ दोस्त शाहिद 'अजनबी' साहब की लिखी एक रचना आपके हाथों सौंप रहा हूँ.. बताइए ज़रा कैसी लगी???
दीपक 'मशाल'
तुम्हें क्या मालूम ये शादी का घर है ?
वो शादी का घर है
वहां बहुत काम है
तुम्हें नहीं मालूम ?
क्या -क्या नहीं लगता
इक शादी का घर बनाने के लिए
कोने- कोने से टुकड़े जोड़ने होते हैं
तब जाके कहीं एक बड़ा सा-
नज़रे आलम में दिलनशीं टुकड़ा
शक्ल अख्तियार करता है
तुम्हें क्या मालूम।
नहीं कटा वक़्त
उठाई कलम लिखने बैठ गए
अच्छे खासे मौजू का बिगड़ने बैठ गए
नहीं कुछ मिला
तो किसी का सुनाने बैठ गए
हद तो तब हों गयी
जब किसी का गुस्सा
किसी और पर उतारने बैठ गए
तुम्हें क्या मालूम ?
बर्तन , जेवर , बेहिसाब पोशाकें
कहाँ -कहाँ से पसंद करनी होती हैं?
नहीं , फब नहीं रहा है
वो देना तो जरा
न जाने ऐसे कितने लफ्ज़
गूंजते ,बस गूंजते रहते हैं
तुम्हें क्या मालूम।
बस उठायी किताबें पढने लगे
कभी फिजिक्स , तो कभी मेथ्स
नहीं लगा मन
तो अदब उठा लिया
अरे तुम क्या जानो ज़िन्दगी जी के
कभी किताबों और माजी के पन्नों से
बहार निकलो
ज़िन्दगी रंगीन भी है।
तुम पन्ने ही रंगते रह जाओगे
और दूर कहीं आसमानों में
कोई एक अदद ज़िन्दगी बसा लेगा
तुम्हें क्या मालूम।
तुम्हें क्या मालूम?
होटल का ऑर्डर
खान्शामा का इंतजाम
बाजे वाले का एडवांस
और भी बहुत से
करने होते हैं इंतजाम
शादी का घर है न ?
तुम्हें क्या मालूम।
वहां तुम सिसकते रहते हों
कभी तड़पते रहते हों
सुना है आजकल बेचैन रहते हों
कुछ नहीं मिलता
तो पागलपन ही करते रहते हों
देखो, तुम खुद ही देखो
वही पुरानी जगह बैठकर
जहाँ सुनाया था हाले दिल
किसी का कभी
शिद्दत से लिखे जा रहे हों
जबकि जानते हों
कोई पढने वाला भी नहीं है तुम्हें
तुम्हें क्या मालूम?
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
चित्र- साभार गूगल से...
बहुत उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंमुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" को बधाई.
जवाब देंहटाएंBahut Acchi lagi ye rachana.....ham tak pahuchane ke liye bahut bahut Dhanywad!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर ढंग से भावों को अभिव्यक्त किया गया है
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" ji ki rachna ..acchi to lagi lekin kaii jagahon se mere sir ke upar se nikal gayi..
जवाब देंहटाएंshayad dobara padhun to aur jyada palle padegi..lekin filhaal sar ke upra hai kavita..andar nahi..
lekin tumdono ne patrika nikaalne ki koshish chutpan mein ki jaan kar bahut khushi hui..
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" hamara aasheerwaad kehna..
didi..
बहुत बढ़िया रचना .... आभार !!
जवाब देंहटाएंमुझे तो ये टूटते जोड़े में से लड़की की (दिल से निकली हुई आह) लगी...पता नहीं..मैं सही हूँ या गलत
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" जी को सलाम
बहुत उम्दा व शानदार रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ......सीधे दिल निकली ये रचना ....दिल तक पहुंच गयी .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये रचना ।मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" को बधाई.\लगता है अभी तुम्हारे कई कारनामे सामने आने बाकी हैं । तुम्हारी सेहत कैसी है? आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंशादी वाले घर का ख्याल ही अच्छा था ग़ालिब...
जवाब देंहटाएंnice :)
जवाब देंहटाएंकहीं से भी कैसी भी अजनबी ...अजनबी न लगे ...रचना और रचनाकार दोनो अपने से लगे । बहुत खूब दीपक , अजनबी जी को हमारा आभार
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
are waah kamal.................sachmuch nirali tarah ki shandar rachna...Ajnabi ji ko badhai.
जवाब देंहटाएंbachpan ki yadon ko, na dil se juda karna
जवाब देंहटाएंjab yaad unki aaye, toh humse baat karna
yah bhi ek achhi rachna hai
बचपन में बड़ों वाले काम --बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंis poem mein aapke dost ne indian weddings ko acche se explain kar diya...jo kaam aasani se ho sakta hai use jor shor se karna ek aadat si ban gayi hai
जवाब देंहटाएंशिद्दत से लिखे जा रहे हों
जवाब देंहटाएंजबकि जानते हों
कोई पढने वाला भी नहीं है तुम्हें
कितनी मासूमियत झलक रही है इन पंक्तियों में...शाहिद अजनबी को शुभकामनाएं...और आप दोनों ने बचपन में ही इतने बड़े बड़े काम कर डाले थे...तारीफ़-ए-काबिल बात है...यानि कि पूत के पाँव पालने में...भई वाह..
और मजाक अच्छा कर लेते हो दीपक...वो मेरी पोस्ट पे क्या कमेन्ट कर डाला...तुच्छ इंसान एन ऑल...दीदी बोलते हो तो कान भी खींचने पड़ेंगे..और तुम भी लिख डालो ना...अगर लिखने की सोची थी,उसी विषय पे तो...आपका अंदाज़ अलग होगा...हमें इंतज़ार रहेगा...
तवज्जो और आशीर्वाद देने के लिए आप सबका आभारी हूँ... :)
जवाब देंहटाएंShahid ji se parichay achchha raha. Kuchh takleef ke ahsaas jagati hai ye rachna
जवाब देंहटाएंnice poem........
जवाब देंहटाएंबहुत अलग ,.......बहुत अच्छा था आपकी शादी का वर्णन.....,,,
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