बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा है-------->>>दीपक 'मशाल'

चंद महीनों पहले बिहार की राजधानी पटना में एक असहाय लड़की के साथ जो अभद्रता हुई उस को पढ़ के मन में जो विचार उपजे उन्हें शब्द देने कि कोशिश की है... बहुत शर्मनाक है कि आज भी भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा है और हम मूकदर्शक हैं...

 पटना का चौराहा
इक मांस का थी लोथडा,
दहकी हुई सी आज वो,
सबकी ख़ुशी के लिए
घिसती रही थी खुद को जो.
कुछ भिनकती ख्वाहिशों ने,
अपनी खनकती चाहतों को,
करने पूरण वास्ते,
फेंका था कामकुण्ड में
उस मूर्ति इक जागती को,
थे देखते उसको वहां,
तमाशबीन थे जो ज़मा.
सबकी नज़र के सामने,
जब भीड़ थी बाज़ार में,
हो रहा अपमान था,
नारी के सम्मान का.
कुछ सहेजते जाते थे मंजर
जग को दिखाने के लिए.
हय नामर्द हो गया शहर
इक कृष्ण ढूंढे ना मिला.
उस कोमली की लाज की
जल रही थी जब चिता.
सब सोच के खामोश थे,
अपना नहीं ये काम है,
या तो है ये नियति इसकी 
या आएगा कोई राम है.
या खामोश थे सब सोच के
कि लड़की तो ये पराई है,
अभी हमारी बेटी औ बहिन की,
बारी कहाँ आई है.
-दीपक 'मशाल'

19 टिप्‍पणियां:

  1. अभी हमारी बेटी औ बहिन की,
    बारी कहाँ आई है.

    बहुत सही ...सटीक और सच्चाई दिखाती कविता...

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  2. अभी हमारी बेटी औ बहिन की,
    बारी कहाँ आई है.such hai.nice

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत संवेदनशील रचना...सत्य को बताती हुई...जब तक खुद के साथ नहीं बिताता तब तक मूक दर्शक ही बने रहते हैं सब..

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  4. अभी कहाँ है अपनी बारी!
    नहीं जानते कहने वाले
    सभी मरेंगे बारी-बारी.
    ...यही भाव जगाती है यह कविता.

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  5. dhanyawad Devendra ji itni sundar panktiyan rakhne ke liye...
    Jai Hind... Jai Bundelkhand...

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  6. यही तो आज का दुर्भाग्‍य है .. जो घटना खुद के साथ नहीं घटती .. उसपर विश्‍वास तक नहीं कर पाते हम .. बहुत सुंदर भाव के साथ आपने सुंदर अभिव्‍यक्ति दी है !!

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  7. या तो है ये नियति इसकी
    या आएगा कोई राम है.
    या खामोश थे सब सोच के
    कि लड़की तो ये पराई है,
    अभी हमारी बेटी औ बहिन की,
    बारी कहाँ आई है.

    क्या कहें..बहुत संवेदनशील रचना!

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  8. बेहद संवेदनशील रचना....जाके पैर न फटी बिबाई वो का जाने पीर पराई.....अन्दर तक टीस उठती है

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  9. सच्चाई को व्यक्त करती हुई ये कविता ........बहुत ख़ूब

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  10. अपनी बहिन बेटी के लिए घर में ही दुशासन हैं बाहर वालों को आने की, चौराहों की जरूरत नहीं है.

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  11. bahut hi samvedansheel kavita..
    ek vibhts ghatna ko uker gayi..
    un kapooroshon ko doob marna chahiye tha...kaisi dunia hai yah aur kaise hain log..?? hairaani hoti hai...un aankhon ko soch kar jo is manjar ko chup-chaap dekhte rahe...unki bihayaaii par behaya bhi sar jhuka de..
    aisi kavitaaon ki zaroorat hai aaj..
    samaj ko aaiina dikhati hui hai yah kavita..
    bahut badhia ..likha hai deepak tumne...
    jhakjhor gayi yah kavita..
    didi...

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  12. यह रचना इतनी देर से देख पाई ...पटना में घटी ऐसी घटना की जानकारी थी ...मगर आज ये किसी एक शहर की बात नहीं ...घर से बाहर आने के बाद लोग घर को भूल जाते हैं ....

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  13. बहुत ही शर्मनाक घटना थी वो..और सबको शर्मसार होना चाहिए था..आपने भी इसे महसूस किया और इतनी संवेदनशील रचना रच डाली...सच कहा है..कब तक मूकदर्शक बने रहेंगे...जबतक अपनी करीबियों की बारी नहीं आती....

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  14. बहुत गहरे तक उतर गई रचना।बढिया लिखा।

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  15. रोती है सलमा रोती है सीता.. रोती है आज कुरान और गीता... सच कहा था प्रदीप जी ने..
    जय हिंद...

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  16. समाज के प्रति संवेदित ह्रदय से ही येसी कविता निकल सकती है मै भी दुखी हुआ इस घटना से
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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