शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

वर्ना मैं तुझ जैसों के मुँह नहीं लगता.....-------->>>>>दीपक 'मशाल'

एक लघुकथा-

उसके कंधे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आत्मीयता से बात करते हुए उस सुपर स्टार पुत्र ने वीरेंदर, जो कि उसका ड्राइवर था, को अपनी परेशानी बताते हुए कहा-

''यार वीरेंदर, मुझे पहली बार किसी बहुत बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका मिला है..''

''ये तो बड़ी खुशी की बात है सर'' अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए वीरेंदर बोला

''लेकिन रोल कुछ ऐसा है कि वो तेरी मदद के बिना पूरा नहीं हो सकता..'' अपनी बात को आगे बढ़ाता वो नया 'हीरो' बोला..

''वो कैसे सर....'' अब वीरेंदर उस अचानक उमड़े प्रेम का कारण कुछ समझ रहा था

''मुझे एक बड़े स्टार के ड्राइवर का रोल मिला है जो कि कहानी का मुख्य चरित्र है.. एक तुम्हारे जैसे गरीब, मजबूर आदमी का रोल है... इसके लिए मुझे तुम्हारी दिनचर्या.. उठना-बैठना, रहन-सहन समझना होगा बस्स.. कुछ दिन के लिए'' अपनी मजबूरी बताते हुए और वीरेंदर की जेब में १०००-१००० के १० करारे नोट घुसेड़ता हुआ वो तथाकथित हीरो बोला..

''लेकिन सर ये तो...'' अपनी स्वामिभक्ति दिखाने के लिए रुपये लेने से इंकार करता वो कुछ बोलना चाहता था...

''अबे रख ले चुपचाप साले.. अब ज्यादा मुँह मत खोल वर्ना इतना भी नहीं देता .. वो तो मेरी मजबूरी है आज तक किसी 'स्लम डॉग' की लाइफ को करीब से नहीं देखा.. इसलिए.. वर्ना मैं तुझ जैसों के मुँह नहीं लगता...'' अचानक ड्राइवर को उसकी औकात बताते हुए उसने झिड़क दिया..

होंठ तो चुप रह गए लेकिन अब वीरेंदर का दिमाग अपने आप से बोल रहा था 'अगर मैंने सब सच बता दिया तो क्या ये आदमी मेरा रोल अदा कर पायेगा परदे पर???'
दीपक 'मशाल'

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब। क्या जद्दोजहद खड़ा किया है आपने इस लघुकथा के माद्यम से? वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. रोल करने में क्या है, अगर ऐसी जिंदगी जीना पड़ी तो जी पायेंगे क्या ?

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  3. बहुत खूब दीपक भईया , छोटी परन्तु बेहतरीन लगी ।

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  4. बहुत सुन्दर लघु कथा है सही मे नायक तो केवल रोल कर सकते हैं जी नही सकते किसी गरीब की ज़िन्दगी और विडंवना देखो कि ये लोग रोल करके करोडों कमा लेते हैं और जिस गरीब का रोल करते हैं उसे शायद वो फिल्म देखना भी नसीब नही होता। बहुत अच्छी लगी कथा । आशीर्वाद्

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  5. वक्त पड़े बांका-गधे को कहे काका
    ये तो ऐसी बात हो गयी।
    अच्छी लघु कथा दुनियावी चरित्र को दर्शाती हुयी।

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  6. सुमन जी के Nice में मेरा Very जोड़ लीजिये,
    कुल योग हुआ Very Nice !

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  7. बहुत सही.... और समाज के दोहरे मापदंड को दर्शाती ...अच्छी लघुकथा....

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  8. बहुत सुंदर कथा, अरे नाईस लिखा तो हमारी टिपण्णी ही गायब होगई,

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  9. बहुत सवेदंनशील है लघुकथा और सच्चाई को बयां करती

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  10. kisi ki nakal (abhinay) karna to aasan hai, par
    yatharth to yatharth hai,

    sahi likha aapne, is laghu katha ka hero humare aaj ke netaon se puri tarah prerit hai, kaam pade to kisi ko bhi apna my-baap khate hain, ayr kaam nikal jaye to apne my-baap ko bhi nahin pahchante

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  11. अगर मैंने सब सच बता दिया तो क्या ये आदमी मेरा रोल अदा कर पायेगा परदे पर???'
    इस पंक्ति ने सब सच उगल दिया जिंदगी का।

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  12. इस दुनिया में जो वर्ग विभाजन की स्थिति है उसे बहुत अच्छी तरह से तुमने इस कथा में रखा है । इस तरह के बुर्जुआ मनोवृत्ति के लोग सचमुच कलाकार कहलाने योग्य नहीं हैं ।

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  13. वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है ...सुन्दर लघु कथा

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  14. Bahut acchi lagi yah laghukatha ....Aabhaar!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  15. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 20.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  16. होंठ तो चुप रह गए लेकिन अब वीरेंदर का दिमाग अपने आप से बोल रहा था 'अगर मैंने सब सच बता दिया तो क्या ये आदमी मेरा रोल अदा कर पायेगा परदे पर???'

    waah !!
    kitna bada sach kah diya tumne...vastav mein agar usne sach kah diya to yah rol wo kabhi nahi kar paayega..
    isko kahnte hain lapet kar maarna..
    kuch insaan kitne khokhle hote hain...bikul KHAALI DABBA...daya aati hai inpar..
    bahut sundar likha hai tumne Deepak..
    khush kar diya..
    didi...

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  17. बहुत शुक्रिया... बड़ी मेहरबानी... हुज़ूर आप मेरे ब्लॉग पे आये.. :)

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  18. ड्राइव हमेशा वीरेंदर ही सुपरस्टार पुत्र को करेगा, सुपरस्टार पुत्र वीरेंदर को नहीं...

    जय हिंद...

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  19. पिछली पोस्ट पर अर्कजेश की टिप्पणी के कारन इस पोस्ट पर आई..अच्छा लगी कहानी.

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