झूठ मैं कह नहीं पाता, सच वो कहने नहीं देते
क्यों मुझको मिरे माफिक, जग में रहने नहीं देते
क्यों तुमने बनाया है, अमरित ये हलाहल सा
(ये क्या सौगात भेजी है, अमरित भी हलाहल भी)
कभी जीने नहीं देते, कभी मरने नहीं देते
हैं इतनी सख्त दिवारें, फर्श जैसे हैं दलदल से
खड़ा मैं रह नहीं पाता, क़दम गिरने नहीं देते
बेरहम कातिल कहीं अच्छा, तुम्हारे उन उसूलों से
जो मकतूल के ग़म में, उसे रोने नहीं देते
(जो मजबूर के ग़म में, मुझे रोने नहीं देते)
इकबार में बाज़ार में, मुझे नीलाम कर दो तुम
ये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
'मशाल' सपने मुहब्बत के, बुनना चाहता लेकिन
जाने कैसे पडोसी हैं, उसे सोने नहीं देते.
दीपक 'मशाल'
इसी ग़ज़ल का नया रूप जिसे संवारा है आदरणीया रश्मिप्रभा जी ने-
झूठ मैं कह नहीं पाता, सच वो कहने नहीं देते
क्यों मुझे मिरे माफिक, जग में रहने नहीं देते
क्यों तुमने बनाया अमृत को हलाहल सा
जो कभी जीने नहीं देते औ कभी मरने नहीं देते
हैं इतनी सख्त दिवारें, फर्श हैं दलदल से
खड़ा मैं रह नहीं पाता औ क़दम गिरने नहीं देते
बेरहम कातिल कहीं अच्छा, तुम्हारे उन उसूलों से
जो मकतूल के ग़म में, उसे रोने नहीं देते
(जो मजबूर के ग़म में, मुझे रोने नहीं देते)
इकबार बाज़ार में, मुझे नीलम कर दो तुम
ये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
'मशाल' सपने मुहब्बत के, बुनना चाहता लेकिन
जाने कैसे पडोसी हैं, उसे सोने नहीं देते.
चित्र साभार गूगल से..
इकबार में बाज़ार में, मुझे नीलम कर दो तुम
जवाब देंहटाएंये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
बहेतरीन लाइन लिखा आपने .......
nice poem . mere vichar se neelaam ( auction ) se tatpary hai aapka....Neelam ek neele rang ka patthar hota hai jisakee ganna jawahrato me hotee hai..............
जवाब देंहटाएं9se tatpary hai aapka yanha .
मित्र बदले जा सकते हैं,
जवाब देंहटाएंकिन्तु पड़ोसी नही!!
nice
जवाब देंहटाएंma'am bahut bahut shukriya main dekh nahin paya tha wo
जवाब देंहटाएं'मशाल' सपने मुहब्बत के, बुनना चाहता लेकिन
जवाब देंहटाएंजाने कैसे पडोसी हैं, उसे सोने नहीं देते.
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ....सुंदर रचना....
हर एक लाईंन हर एक शब्द लाजवाब रहा दीपक भईया , और कभी-कभी पड़ोंसीयो से प्यार हो जाता है तब पर वहीं होता है जो आपके साथ हो रहा है , अब ये तो आपको ही पता होगा कि आपके साथ क्या हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना . बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंहैं इतनी सख्त दिवारें, फर्श हैं दलदल से
खड़ा मैं रह नहीं पाता औ क़दम गिरने नहीं देते
इक शेर याद आया
मेरा गुले-उम्मीद शगुफ़्ता हो किस तरह
दिल कि गिरह है उसकी गिरह पर लगी हुई
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंइकबार में बाज़ार में, मुझे नीलाम कर दो तुम
जवाब देंहटाएंये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
gazab ki panktiyan hain.
बहुत सुंदर गजल जी, आप के पडोसी जरुर भारतिया होगे, गोरो मै इतनी हिम्मत कहां जो हमे तंग कर सके:)
जवाब देंहटाएंइकबार बाज़ार में, मुझे नीलम कर दो तुम
जवाब देंहटाएंये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
दिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ
बहुत गहराई लिये रचना
सुन्दर
इकबार में बाज़ार में, मुझे नीलाम कर दो तुम
जवाब देंहटाएंये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
ye sher sabse umda..
Rashmi ji ke haathon ghazal aur saj gayi hai..
poori ghazal ki lazzat lajwaab hai..
sahaz shabdon se kahi gayi gahri baatein..aafreen..!!
निखार में नया निखार आज देखा...वाह!
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव !
जवाब देंहटाएंशिल्प सँवारते रहिए।
नीलम और निलाम - चाहे जो बात रही हो, अगर बाज़ार हटा कर कोई अन्य शब्द रख दिया जाय तो अर्थ गहनता दोनों से अ जाती है , चमत्कार सी। बाज़ार तो understood है। वह शब्द क्या हो, उर्दूदाँ लोगों से पूछिए।
Behatreen rachana...Aabhar!
जवाब देंहटाएंDer se prastut hui kshma chahati hun.
Sadar
गिरिजेश भाई जी, मैं पता करता हूँ कोई नया शब्द.. लेकिन ये अ को आ तो कर जाते.. मुझे आपको भी कहना पड़ेगा??? :)
जवाब देंहटाएंराज सर वो आखिरी शेर पाक के लिए है..
जय हिंद.. जय बुंदेलखंड...
एक बार me hi कायनात में जज्ब कर दो मुझे ...
जवाब देंहटाएंये हर दिन के मोल भाव मुझे जीने नहीं देते ...
कैसे पडोसी हैं ये ...यकीनन आपका इशारा पडोसी देश की or ही होगा ...या कह दू अब तो देशों ke or होगा ...!!
व्यंग्य एवं व्यथा दोनों घुल मिल गए हैं इस रचना में ...बहुत बढ़िया ...!!
दिल को छूती मशाल-विचारों की रोशनी
जवाब देंहटाएंमशाल' सपने मुहब्बत के, बुनना चाहता लेकिन
जवाब देंहटाएंजाने कैसे पडोसी हैं, उसे सोने नहीं देते.
bahut sundar :)
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
जवाब देंहटाएंdear,
जवाब देंहटाएंaapki tarah mai bhi muhhabat ke sapne bun raha tha, sapne mai apni "priye" se mil raha tha
jaise hi hum aage bade, ajeeb se swar kano mai pade, hamara sapna toot raha tha, pata chala
padosi ka kutta jor-jor se bhonk raaha tha
PAR MAI KAHTA HOON APSE
HUM SAB HAIN APNI DHUN KE PAKKE
MUHHABAT KO HAQIKAT KARO, PADOSI BHI RAH JAYEN HAKKE-BAKKE
mohhabat se tatparya
जवाब देंहटाएंhum hai apne iradon ke pakke, nahi darte muskilon se, karte har muslil ka samnna,
kar jayenge ik din aisa kaam rah jayenge sab hakee-bakke
all the best
इकबार में बाज़ार में, मुझे नीलाम कर दो तुम
जवाब देंहटाएंये हरदिन के मोल-भाव, मुझे जीने नहीं देते
'मशाल' सपने मुहब्बत के, बुनना चाहता लेकिन
जाने कैसे पडोसी हैं, उसे सोने नहीं देते.
vवाह क्या खूब शेर हैं । बहुत अच्छी लगी गज़ल बधाई शुभकामनायें
bahut hi sundar aur gahan prastuti.
जवाब देंहटाएंHELLO MENE FISRT TIME PADI YE GAZAL......ITS OWESOME...........SPECIALLY HAR DIN K MOL BHAV MUJHE SONE NAHI DETE.......BEHAD KHUBSURAT RACHNA HAI...........ALL THE BEST GO ON WITH YOUR DREAMS
जवाब देंहटाएंbehatrin gajal. abhar
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल.
जवाब देंहटाएंवीणा मैम, आपने शेर को और भी खूबसूरत बना दिया.. बहुत आभारी हूँ.. मेरी समस्या हल करने के लिए..
जवाब देंहटाएंजय हिंद...