मंगलवार, 30 मार्च 2010

आज मुनईयाँ के ससुरे सें चिट्ठी आई है------->>>मशाल

साहित्यप्रेमियों के सामने एक बुन्देलखंडी गीत प्रदर्शित कर रहा हूँ.. जो कि एक लडकी जो अपने ससुराल में है और कई दिनों तक अपने मायके(पीहर) से कोई खोज-खबर ना लिए जाने पर कुछ दुखी है को ध्यान में रख कर लिखी गई सी लगती है, गीतकार हैं मेरे साहित्यिक गुरु श्री वैदेही शरण लोहकर 'जोगी' जी
मेरा मानना है कि यदि हमें हिंदी को समृद्ध करना है तो क्षेत्रीय भाषायों को भी जीवित करना होगा और उन्हें साहित्य की मुख्यधारा से जोड़ना होगा.. आपका क्या ख्याल है???--

आज मुनईयाँ के ससुरे सें चिट्ठी आई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(आज मुन्नी के ससुराल से चिट्ठी आई है
उसको पढ़कर मन में एक अजीब सी हूक उठी और दिल भर आया है)

दद्दा बाई खों उनकी, मोड़ी परनाम करत है
हलके दद्दे सुमरे से आंखन अँसुआ ढरकत है
आंखन से टारी ना टरवे हल्कीबाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(लिखा है कि-
पापा-मम्मी को उनकी बेटी प्रणाम करती है
चाचा को याद करके आँख से आँसू निकलने लगते हैं
और प्यारी चाची आँख से ओझल ही नहीं होतीं
उसे पढ़ कर मन भर आया और...)

महादेव देव की किरपा से, सब भांत कुशल है मोरी
रामलला सें नित मांगत हों, मैं खुशियाली तोरी
मुलक दिनन सें खबर मायके की ना पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(शिव जी की कृपा से मैं हर तरह से ठीक हूँ
भगवान् राम से रोज आपकी खुशहाली मांगती हूँ
कई दिनों से मायके कि कोई खबर नहीं आई
उसको पढ़कर मन भर आया और...)
हलको भईया आज दिखानो, मोये बर्राटन में
कए रओ मोरी जिज्जी आकें बस जा तें प्रानन में
आँख खुली फिर ऊ की जिज्जी, सो ना पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(मेरा छोटा भाई आज मुझे सपनों में दिखाई दिया
कह रहा था कि दीदी आप आकर मेरे प्राणों में बस जाइए
आँख खुलने पर उसे याद कर उसकी दीदी सो नहीं पाई है
उसको पढ़कर...)

राखी के डोरा भींजी पलकें तोए पुकारें
तोरी बहना राह तकत है रोजईं सांझ सकारें
वीरन तुम का भूल गए, प्यारी माँ जाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(राखी के धागे से भींगी पलकें तुझे बुलाती हैं
हर सुबह-शाम तेरी बहन रास्ता देखती है
मेरे प्यारे भाई क्या तुम भूल गए कि हमें और तुम्हें एक ही माँ ने पैदा किया
उसको पढ़कर...)

मईंदार कका, मईंदारिन काकी नईं भुलानी
परी और दाने, चंदा की उनकी कही कहानी
हाथ जोर उनसे कइयो मुई रामरमाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(नौकर चाचा और चाची(उनकी पत्नी) भी मैं भूल नहीं पाई
और ना ही उनकी कही हुईं परी, दानव और चाँद कि कहानी 
उनसे भी मेरा हाथ जोड़कर राम-राम कहना
उसको पढ़कर....)

सखियाँ संग अमुआं की डारन झूला चईयाँ-मईयाँ
टेसू-झिंझिया को ब्याओ अब लों मोय बिसरत नईयां
लिपे चोंतरन रंग-बिरंगी चौक पुराई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(सहेलियों के साथ आम की डालों पर का झूला और वो चईयाँ-मईयाँ(एक बुन्देलखंडी खेल)
वो टेसू-झिन्झियाँ का व्याह(बुन्देलखंडी ग्रामीण पर्व) अब तक मुझसे नहीं भुलाया जाता
वो गोबर से लीपे गए चबूतरे और चौक(आटे की रंगोली की तरह) भी नहीं भूल पाती
उसको पढ़कर...)
इक बात नईं जो समझ पात का चूक भई है मोरी
खबर लई तुमने ना मोरी पाती आई ना तोरी
तुमने दद्दा धारी काये जा निठुराई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(एक बात जो मेरी समझ में नहीं आती कि मुझसे क्या गलती हुई है
जो आपने मेरा ना तो मेरा समाचार लिया ना आपका ही कोई पत्र आया
पिताजी आपने क्यों इतनी निष्ठुरता को धारण किया हुआ है
उसको पढ़कर....)

माई-बाप तुम जैसे मोरे सास ससुर हैं प्यारे
जो सुख तुमने उते दये इते मिले हैं सारे
फली अशीषें सबकी सब जो तुमसे पाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(जैसे आप मेरे माता-पिता हैं वैसे ही मुझे सास-ससुर प्यारे हैं
जो सुख आपने वहाँ दिए वाही सब मुझे यहाँ मिलते हैं
आप सबसे मिले सबके सब आशीर्वाद फलीभूत हुए हैं
उसको पढ़कर....)
कोनऊ फिकर मोई ना करियो इते सबई खुशियाली
भूल ना जइयो अपनी बिटिया लाड-प्यार सें पाली
चिठिया लिख 'जोगी' के हाथन सें पहुंचाई है
उए बांच कें जी उमगो.. छाती भर आई है..
(मेरी कोई फिक्र मत करियेगा यहाँ सब खुशहाली है
लेकिन अपनी लाड-प्यार से पाली बेटी को भूल भी मत जाना
चिट्ठी लिख कर संदेशवाहक 'जोगी' जी के हाथों भेज रही हूँ
उसको पढ़कर...)
वैदेहीशरण लोहकर 'जोगी'
चित्र साभार गूगल से..

23 टिप्‍पणियां:

  1. यदि हमें हिंदी को समृद्ध करना है तो क्षेत्रीय भाषायों को भी जीवित करना होगा और उन्हें साहित्य की मुख्यधारा से जोड़ना होगा..

    -बिल्कुल सही कहा..सहमत. उम्दा रचना प्रस्तुत की!!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति
    क्षेत्रीय भाषाएँ हिन्दी की धमनियाँ हैं

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  3. आंचलिक भाषाओं की अपनी ही खूबसूरती होती है...

    दीपक, हो सके तो इस तरह की कविताओं के साथ हिंदी अनुवाद भी दिया करो...संदेश ज़्यादा अच्छी तरह जाएगा...

    जय हिंद...

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  4. अरे जियो जियो...
    तुम तो भारी पड़ रहे हो ..इस 'हलके' माहौल में...आंचलिक भाषाओँ को भी ऊपर उठाना ही है..और फिर अपनी पहचान भी है...बहुत सुन्दर, हृदयंगम गीत, तुम तो मुझे मतलब भी बता चुके हो इसलिए और भी अच्छी लगी...
    खुशदीप जी की बात सभी सहमत हूँ..
    ख़ुश रहो..
    दीदी..

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  5. --क्षेत्रीय भाषाओं की समृद्धि से हिन्दी की स्वतः समृद्ध होगी।

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  6. बढ़िया भावपूर्ण रचना..क्षेत्रीय भाषा ही है जो हिन्दी को और अधिक लोकप्रिय बना सकती है..जैसे छोटे छोटे प्रदेश के विकास से भारत का विकास होता है वैसे ही अगर क्षेत्रीय भाषा का विकास हो तो हिन्दी का और अधिक विकसित होना तय....प्रस्तुति के लिए आभार दीपक जी

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  7. क्षेत्रीय भाषाओं की मिठास ही अलग है अपनापन सा लगता है , ऐसा जैसे अपनी दादी सर पर हाँथ फेर रही हो
    सुन्दर रचना

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  8. मैं उन लेखकों और कवियों का बहुत सम्मान करता हूँ जो क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को हिन्दी साहित्य में बखूबी स्थान देकर, उनका प्रयोग कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध करते हैं.....

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  9. सही कहा है आपने ... क्षेत्रीय भाषा का प्रसार जरूर होना चाहिए ... ये धरोहर हैं इस देश की .... बहुत ही मार्मिक गीत की प्रस्तुति है यह ....

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  10. aaj ke adhunik yug main, kshetriya bhasha ka
    jinda rahna jaroori hai, achhi prastuti

    dhanyvad

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  11. सुन्दर रचना है!
    क्षेत्रीय भाषा के प्रचार-प्रसार में मील का पत्थर साबित होगी!

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  12. चिठ्ठी पुरी तरह से समझ मै नही आई,ले किन जितनी समाझ मै आई बहुत प्यारी ओर भावनाओ से भरी लगी, सब मिला कर बहुत सुंदर

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  13. बहुत सुन्दर दीपक।क्षेत्रीय भाषा का विकास भी ज़रूरी है।अभी हाल ही मे छत्तीसगढी लोकगीत हिंदी फ़िल्म मे हिट हुआ था,ससुराल गेंदा फ़ूल।राष्ट्रभाषा हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं का विकास भी ज़रूरी है।

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  14. jo sab ne kahaa vahi main kahoongee kal tumhen phone karati hoon aaj kal USA me hoon.aaj keval tumhare blog par aayee hoon abhee\ aasheervaad

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  15. aaj phir padhne aai hoon ,us din jaldi me padh gayi thi ,aaj dhyaan se padhi aur adbhut bhasha ka aanand bhi liya ,main bhi bhojpuri me likhi rachna daalne ko soch rahi hoon ,ye prerna aapki is rachna ko padhkar mili ,aabhari hoon ,aapko meri rachna me koi kami nazr aaye to mail ke dwara samjha dijiyega ,isse aage ke lekhan me sudhar kar paungi ,mujhe khushi hogi aapki salah par agar kuchh sikh paai .

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