शनिवार, 13 मार्च 2010

कविता------>>>दीपक 'मशाल'


1-
कारे-कारे से शीशे हैं
उजरा-उजरा सा है काजर
गूंगेपन के रुनकों से मिल
बनती है इस जुग की झांझर
जाने कहाँ हैं सरमनपूत
गई कहाँ काँधे की कांवर
कहाँ सुबीती है महतारी
झुला सके जो लाल की चांवर
धुंआ सा बन उड़ गए कहीं सब
वो प्रेम के रिश्ते, बड़ों का आदर
भूखे कृषक की लाश पे रिमझिम
कितनी जोर से बरसे बादर

2-
याद में तेरी ना अश्क बहायेंगे
जानते हैं वरना सो ना पाओगे
उम्र बिता देंगे इसी उम्मीद पे
लौट के इक दिन कभी तो आओगे
टूट के जब भी बिखर जाऊँगा मैं
बाँधने बाँहों में तुमही तो आओगे
खाक होके जब मिलूंगा इस हवा में
सांसों में भरने तुमही तो आओगे
पूछती है हर घड़ी तुमसे जुड़ी
नाम आधा किस तरह भुलाओगे
बीते लम्हे बारहा आते नहीं
कम से कम इतना तो कहने आओगे

दीपक 'मशाल'
रंगोली- दीपक 'मशाल'

24 टिप्‍पणियां:

  1. पहली कविता की लय सुपरिचित लग रही है। बादलों का यूँ बरसना, धुएँ का उड़ जाना - अच्छा लगा।

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  2. कहने का ढंग अच्छा लगा वरना किसान की मृत देह पर जोर की बारिश जाने कितनी रगों को दुखा गई।

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  3. धुंआ सा बन उड़ गए कहीं सब
    वो प्रेम के रिश्ते, बड़ों का आदर
    भूखे कृषक की लाश पे रिमझिम
    कितनी जोर से बरसे बादर
    तुम हर बार आचम्भित कर देते हो। बहुत भावमय रचना है।
    खाक होके जब मिलूंगा इस हवा में
    सांसों में भरने तुमही तो आओगे
    पूछती है हर घड़ी तुमसे जुड़ी
    नाम आधा किस तरह भुलाओगे
    बीते लम्हे बारहा आते नहीं
    कम से कम इतना तो कहने आओगे
    क्या कहूँ? इतनी मार्मिक अनुभूति? बस आशीर्वाद ही दे सकती हूँ। दिल को छू गयी दोनो रचनायें। बहुत बहुत आशीर्वाद। तुम से बात करके और ये जान कर बहुत अच्छा लगा कि तुम्हारी तबीयत अब ठीक है। बस अपनी सेहत का जरूर ध्यान रखा करो।

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  4. निशब्द हूँ दीपक भईया , लाजवाब ।

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  5. दीपक जी
    बहुत ही उम्दा बिंब हैं कृति मे।
    आभार

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  6. दोनो कवितायें ठीक हैं । तू और तुम दोनो में से किसी एक का चयन कर पूरी कविता मे उसका निर्वाह करना होता है ।

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  7. लाजवाब .......दो रचनाये दिल को भेद गयीं .....बहुत खूब दीपक भाई ..

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  8. याद में तेरी ना अश्क बहायेंगे
    जानते हैं वरना सो ना पाओगे

    bahut sundar abhivyakti.........yun dono hi rachnaye bahut badhiya hain magar in panktiyon ne dil chhoo liya.

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  9. आप की यह कविता दिल के तारो को छू गई, बहुत खुब.
    धन्यवाद

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  10. पहली कविता बहुत अच्छी लगी.
    ..भूखे कृषक की लाश पे रिमझिम
    कितनी जोर से बरसे बादर.
    ...दर्दनाक ..उम्दा.

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  11. दोनों कवितायें ही बेहतरीन हैं.....बहुत गहरी अभिव्यक्ति है,दोनों में

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  12. दीपक जी
    बहुत ही उम्दा बिंब हैं कृति मे।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. मैं ये सोच कर उसके घर से उठा था,
    के वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको,
    कदम इस अंदाज़ से उठ रहे थे,
    के आवाज देकर बुला लेगी मुझको,
    हवाओं में लहराता आता था दामन,
    के दामन पकड़ कर बैठा लेगी मुझको,
    मगर उसने रोका न मुझको मनाया,
    न दामन ही पकड़ा, न आवाज ही दी,
    यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं,
    जुदा हो गया...

    जय हिंद...

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  14. Sharad bhaia , Maafi chahta hoon.. bilkul hi dhyaan nahin diya.
    aage se khyal rakhoonga..

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  15. नया लय दिया है इस रचना को
    सुन्दर

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  16. याद में तेरी ना अश्क बहायेंगे
    जानते हैं वरना सो ना पाओगे
    उम्र बिता देंगे इसी उम्मीद पे
    लौट के इक दिन कभी तो आओगे

    -सुन्दर शिल्प एवं भाव..बाकी तो शरद भाई कह ही गये.

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  17. बहुत ही परिश्रम के साथ लिखी हुई खूबसूरत नज़्मों के लिए मुबारकवाद अता फरमायें!

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