जाने क्यों आजकल ये शेर
'नर्म आवाज़ भली बातें मुहज्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं'
बार-बार और हर बार दिमाग पर छा जाता है जबकि ये जावेद साब की लिखी और जगजीत साब की गायी हुई ग़ज़ल पिछले ७ सालों से नहीं सुनी.. आज सुनी है आप भी सुनियेगा...
सुनने के लिए यहाँ क्लिक करिए..
दीपक 'मशाल'
शानदार! मन्मोहक!!
जवाब देंहटाएंare khubsoorat didi ke khoobsurat bhai ko kya ho gaya hai...
जवाब देंहटाएंGhazal to baad mein sunungi..tumhara chehra hi dekh kar ghabra gayi hun aur bhaagi aa rahi hun...
ha ha ha ..
buddhu lag rahe ho ekdam..
didi..
Aap gazal sunate wakt aise lagate hai :D
जवाब देंहटाएंLajawab Gazal ....Dhanywaad!!
Wah maza aa gaya mashal jee aaz kee rat ise khoob suna ab sone chala
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह जगजीत जी की सुमधुर आवाज में गज़ल सुनकर आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंचित्र लाज़वाब
सुनी....बढ़िया लगी...उम्र का तकाजा है.
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल सुनाई आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह लाजवाब प्रस्तुती। धन्यवाद आशीर्वाद अरे फोटो बहुत अच्छी लगी हा हा हा
जवाब देंहटाएंकल रात में पूरा सुना....बहुत अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंदीपक भईया क्या लग रहे हो आपक, इक दम धासू , गजल बहुत बढ़िया लगी ।
जवाब देंहटाएंthanx nice gazal
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे
जवाब देंहटाएंबहुत दोनों बाद जगजीत सिंह को सुना । आनंद आ गया ।
जवाब देंहटाएंशानदार है बधाई
जवाब देंहटाएंIs gazal me Jagjeet ji ke gale se dard utarta hai
जवाब देंहटाएंAbhar
जवाब देंहटाएं