एक नई कहानी उसे
और शाम को.. जब वो उसका बोझ ढोते-ढोते थक जाता है
तो भयानक अट्टहास के साथ लगती है पूछने रहस्यमय जवाब
उस कहानी से उपजे.. उससे जन्मे
पुरानी दिल्ली की ज़मीं और आसमाँ के बीच के
मकड़जाली बिजली के तारों के से उलझे सवाल का
वो विक्रम की तरह मजबूर होकर
दे तो देता है कुछ तार्किक सा जवाब
मगर तब भी हार ही जाता है
वो जीत कर भी हार ही जाता है
क्योंकि जान कर भी चुप रहने पर
और बोलने पर भी
उसे खोना ही होता है कुछ तो.. सबकुछ तो
और इसी तरह चलती रहती है
ज़िन्दगी की वेताल-पचीसी
उफ्फफ्फ्फ़.. पचीसी नहीं वेताल-अनन्ती..
दीपक 'मशाल'
यही तो ज़िन्दगी है...
जवाब देंहटाएंन जाने कितने मक्कड़जालों में उलझी हुई सी...
कितना अच्छा होता अगर जीवन काम्पर्तमेंट्स में बंटीं होती ....तो बेताल सवाल भी नहीं करता और सचमुच ये वेताल-पचीसी ही होती ..क्यूंकि काम्पर्तमेंट्स जो गिनती के ही होते..
बहुत सुन्दर कविता...यथार्थ से दो-चार करा ही गई....
और तसवीरें तुम्हारी कमाल की हैं....आखिर मेरे भाई हो तो ऐसा तो होना ही है....:)
बहुत सुन्दर...
जीते रहो...!!
nice
जवाब देंहटाएंविक्रम बेताल के बिम्ब का यह अच्छा प्रयोग है लेकिन यह बिम्ब अब काफी पुराना हो गया है । नये बिम्बों की तलाश करते रहो ।
जवाब देंहटाएंजिंदगी के यथार्थ को कहती अच्छी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंऔर इसी तरह चलती रहती है
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की वेताल-पचीसी
उफ्फफ्फ्फ़.. पचीसी नहीं वेताल-अनन्ती..
बहुत सुन्दर !
उस ज़माने का बेताल कम से कम जवाब देने के बाद कंधे से उतर तो जाता था ...आज तो रोज नए बेताल चढ़ जाते है ...और जब घबरा कर आइना देखते है खुद से ज्यादा बेताल नज़र आते हैं
जवाब देंहटाएंदीपक जी
जवाब देंहटाएंकमाल कर दिया…………।ज़िन्दगी को एक अलग ही नज़रिये से दिखा दिया।
बढ़िया प्रतीकों के माध्यम से सुन्दर काव्य रचना है!
जवाब देंहटाएंज़िंदगी इसी का नाम है दीपक।बहुत खूब लिखा है इतनी कम उम्र मे ज़िंदगी का निचोड़ सामने रख दिया है।
जवाब देंहटाएंvery good!!
जवाब देंहटाएंbetal pachisi achhi lagi.......badhai
जवाब देंहटाएंJaisi aagya Sharad Bhaia..
जवाब देंहटाएंkaafi dilchasp, naya andaaj
जवाब देंहटाएंOMG. मैने अबतक जितनी भी आपकी लिखी कवितायेँ पढ़ीं हैं ..ये मुझे सबसे अच्छी लगी..what an intelligent thought...superb.
जवाब देंहटाएंjeevan ka sach
जवाब देंहटाएंyahi aaj ka jeevan hai
aap to vaise bhi kamaal likhte hain
जीवन को हूबहो चित्रित करती बेमिसाल रचना ...
जवाब देंहटाएंवो विक्रम की तरह मजबूर होकर
जवाब देंहटाएंदे तो देता है कुछ तार्किक सा जवाब
मगर तब भी हार ही जाता है
हारना उसकी नियति है क्योकि वह आम आदमी जो है
Shukriya Shikha Ji, Sanjay ji
जवाब देंहटाएंबेताल कहानियां बचपन मै बहुत पढी, तब यह सब समझ मै नही आता था, आज समझ मै आता है कि हम सब मजबूर है...
जवाब देंहटाएंदीपक जी ..बहुत बढ़िया प्रस्तुति....अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंBahut acchi rachana....Zindagi ke kai mod par har insaan khud ko vikram ki tarah majbur hi pata hai aur chal jaata hai betaal use hamesha ki tarah..
जवाब देंहटाएंहार जीत चलता रहे यह जीवन इक गीत।
जवाब देंहटाएंजीवन में संघर्ष है यही है सचमुच मीत।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत खूब .......बहेतरीन प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंvikram betal badhia kamal
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