सोमवार, 29 मार्च 2010

आपके जैसा ही कुछ हमारे माँ-बाप भी हमारे बारे में समझते हैं(लघुकथा)------>>>दीपक 'मशाल'


आप से निवेदन है कि कृपया सुझाव दें कि ये लघुकथा पूरी रखें या जहाँ पर £ लिखा हुआ है वहाँ से ऊपर तक का भाग हटा दें.. आपके मार्गदर्शन के लिए आभारी रहूँगा. 

यूनिवर्सिटी ने जब से कई नए कोर्स शुरू किये हैं, तब से नए छात्रों के रहने की उचित व्यवस्था(हॉस्टल) ना होने से यूनिवर्सिटी के पास वाली कालोनी के लोगों को एक नया व्यापार घर बैठे मिल गया. उस नयी बसी कालोनी के लगभग हर घर के कुछ कमरे इस बात को ध्यान में रखकर बनाये जाने लगे कि कम से कम १-२ कमरे किराये पर देना ही देना है और साथ ही पुराने घरों में भी लोगों ने अपनी आवश्यकताओं में से एक-दो कमरों की कटौती कर के उन्हें किराए पर उठा दिया. ये सब कुछ लोगों को फ़ायदा जरूर देता था लेकिन झा साब इस सब से बड़े परेशान थे, उनका खुद का बेटा तो दिल्ली से इंजीनिअरिंग कर रहा था लेकिन फिर भी उन्होंने शोर-शराबे से बचने के लिए कोई कमरा किराए पर नहीं उठाया. हालाँकि काफी बड़ा घर था उनका और वो खुद भी रिटायर होकर अपनी पत्नी के साथ शांति से वहाँ पर रह रहे थे लेकिन कुछ दिनों से उन्हें इन लड़कों से परेशानी होने लगी थी.
असल में £ यूनिवर्सिटी के आवारा लड़के देर रात तक घर के बाहर गली में चहलकदमी करते रहते और शोर मचाते रहते, लेकिन आज तो हद ही हो गई रात में साढ़े बारह तक जब शोर कम ना हुआ तो गुस्से में उन्होंने दरवाज़ा खोला और बाहर आ गए.
''ऐ लड़के, इधर आओ'' गुस्से में झा साब ने उनमे से एक लड़के को बुलाया.
लेकिन सब उनपर हंसने लगे और कोई भी पास नहीं आया, ये देख झा साब का गुस्सा और बढ़ गया.. वहीँ से चिल्ला कर बोले- ''तुम लोग चुपचाप पढ़ाई नहीं कर सकते या फिर कोई काम नहीं है तो सो क्यों नहीं जाते? ढीठ कहीं के''
एक लड़का हाथ में शराब की बोतल लिए उनके पास लडखडाता हुआ आया और बोला- '' ऐ अंकल क्यों टेंशन लेते हैं, अभी चले जायेंगे ना थोड़ी देर में. अरे यही तो हमारे खेलने-खाने के दिन हैं..''
शराब की बदबू से झा साब और भी भड़क गए- '' बिलकुल शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह शराब पीकर आवारागर्दी कर रहे हो.. अरे मेरा भी एक बेटा है तुम्हारी उम्र का लेकिन मज्जाल कि कभी सिगरेट-शराब को हाथ भी लगाया हो उसने, क्यों अपने माँ-बाप का नाम ख़राब रहे हो जाहिलों..''
उनका बोलना अभी रुका भी नहीं था कि एक दूसरा शराबी लड़का उनींदा सा चलता हुआ उनके पास आते हुए बोला- ''अरे अंकल, आप निष्फिकर रहिये आपके जैसा ही कुछ हमारे माँ-बाप भी हमारे बारे में समझते हैं इसलिए आप जा के सो जाइये.. खामख्वाह में हमारा मज़ा मती ख़राब करिए.''
और वो सब एक दूसरे के हाथ पे ताली देते हुए ठहाका मार के हंस दिए.
अब झा साब को कोई जवाब ना सूझा और उन्हें अन्दर जाना ही ठीक लगा.. उनका मकसद तो पूरा ना हुआ लेकिन उस लड़के की बात ने एक शक जरूर पैदा कर दिया.
दीपक 'मशाल'       
चित्र साभार गूगल से

26 टिप्‍पणियां:

  1. मशाल जी
    सुन्दर चोट करती लघुकथा

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  2. बहुत ही सजीव चित्रण है इस लघु कथा में..हम लोग किस तरह झूठे विश्वास में जीतें हैं....
    कहते हैं न : एक दुनिया में सबसे अच्छा बच्चा सिर्फ एक है और वो हर माँ-बाप के पास है...
    बहुत सुन्दर..
    दीदी..

    mera sujhaao poori rakho..

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  3. सार्थक कहानी।
    ऐसा ही होता है।
    होस्टल में रहकर बच्चा क्या कर रहा है , किसी को नहीं पता होता ।
    शायद घर से मिले संस्कार काम आते हों ।

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  4. हटा दीजिए। पहले सर्वनाम को संज्ञा कर दीजिए ताकि अधूरापन न लगे।
    फोटो सोटो बढ़िया लगा दिया। लगता है बॉडी भी बना रहे हो (सन्दर्भ - कमर में सफेद टी शर्ट लपेटे हुई फोटो)

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  5. अब हुई ना कोई बात। आखिरी दो लाइनों की भी आवश्‍कता नहीं है। बस पंच लाइन वहीं है कि हमारे माँ-बाप भी हमारे लिए यही समझते हैं। बधाई।

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  6. शानदार कटाक्ष,,, किसी काट छांट की जरुरत नहीं.

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  7. hostel life 13-14 saal maine bhi ji hai,par main nahi manti ki sanskaar kewal ghar mein rehkar hi milte hai,ye to hum par nibhar karta hai ki hum sahi-galat ko kitna samjhte hai.

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  8. ek satya ko ujagar karta lekh ..........shayad har maa baap aisa hi sochte hain.

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  9. sach likha hai.......saath ka asar bahar me kis disha me le jaye kaun janta hai!

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  10. अगर बच्चे के पास अच्छे संस्कार होंगे तो कहीं भी रहे, अपने माता-पिता के विश्वास के साथ गद्दारी नहीं करेगा...

    जय हिंद...

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  11. dear dipakji
    ab waqt badal gaya hai, to bachhon main sanskar bhi badal gaye hain, kon sanskaron par khara utarta hai, yah to waqt hi batata hai, aapki laghu katha ka uddeshya sahi hai, humen sochana hoga ki ghar ke bahar bachhe kya karte hain,

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  12. अच्छी प्रस्तुति , edit करने की जरूरत बिल्कुल नही है

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  13. ...बहुत खूब, लघुकथा से नकारात्मक संदेश जा रहा है!!!!

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  14. Shyam ji maafi chahta hoon lekin meri samajh se nakaratmak sandesh nahin balki ek pahloo ko ujagar kiya gaya hai..

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  15. हमारे माँ-बाप भी हमारे लिए यही समझते हैं। यह बच्चे झुठ बोलते है, क्योकि इन के बोलने से ही पता चलता है इन के संस्कार.... बाकी मै खुशदीप सहगल जी की टिपण्णी से सहमत हुम

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  16. कहानी घर-घर की,
    हर माँ-बाप समझते हैं कि उनके बेटा-बेटी नादान हैं, किसी भी चीज के बारे में कुछ भी नहीं जानते और
    बेटा-बेटी समझते हैं कि वे जो कर रहे हैं उसकी खबर उनके माँ-बाप को नहीं.
    दोनों मुगालते में जीते रहते हैं, एक दूसरे को नादान समझ कर.
    ----------------------------
    अच्छी लघुकथा है, मानकों को पूरा करती हुई.
    आशीर्वाद.
    -------------------------------
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  17. Raj Sir aur Khushdeep bhaia,
    dhrishtata maaf karen lekin kya Maharshi Vishrawa Ravan ko achchhe sanskaar nahin de paaye the.. ya unhe vibheeshan se jyada prem tha?

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  18. Kumarendra chacha ji.. aapki baat se 100% shmat hoon balki main yahi baat khud kai doston ko bolta hoon. :)

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  19. kumarendra ji se to asahmat hun hi, aur deepak bhaiya pahli baar aapse sahmat nahi hun main... 3 saal se hostel mein rah raha hun, aur sath mein kai log hain jo 5 saal aur kuch aise bhi hain jo bachpan se hostel mein rah rahe hain.. vyaktigat anubhav mujhe aapki baat se sahmat nahi hone de raha...

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