शनिवार, 6 मार्च 2010

नई जिल्दें.. ------>>>दीपक 'मशाल'

मैं कुछ रोज से तंग आ गया उन लोगों से जो आजकल अपने अपने मज़हब को बेहतर बताने और दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे हैं और असल मज़हब इंसानियत का गला घोंट रहे हैं... कल रात मन तकलीफ से भर उठा और उस पीड़ा के भाव ने कलम को एक और कविता को जन्म देने को विवश किया.. और कर भी क्या सकता हूँ?? किसको रोकूँ?? सब अपने ही भाई हैं... देने को तो मैं अपने खून की एक-एक बूँद दे दूँ अगर इसके देने से ये लोग अमन-चैन कि जुबां समझ सकें तो.... मगर जिनको गांधी और सफ़दर हाशमी जैसों की मौत ना सिखा सकी उनपर मेरी किसी बात का क्या असर पड़ने वाला है??
कविता को शिल्प प्रदान किया बड़े भैया शरद कोकास जी ने--

नई जिल्दें..
बहुत सिखाया था उसने दूर रहना बुराई से
हरेक बात पे टोका.. था समझाया था
एक किताब की तरह दी थी ज़िन्दगी
जिसमे लिखे थे जीने के नियम
और मतलब जीने का .
'कि क्यो आये हैं हम ज़मीं पर
ये मकसद भुला ना दें
सीख लें अपने पैरों पर खड़े होना
अपने दिमाग से अपनी तरह सोचना
तरक्की करना और . चैन से रहना'


मगर उसके भरोसे को..तोड़ा हर कदम हमने
हुई शुरुआत बुराई की उसी दिन से ..
जब आते ही ज़मीं पर..
उतार फेंकी जिल्द हमने..ज़िन्दगी की किताब की

और चढ़ा बैठे नई जिल्दें.. पसंद की अपनी-अपनी
अब तकलीफ से उसके सीने को रोज भरते हैं
बस इक झूठी सी बात पे.. हम हर रोज़ लड़ते हैं
अपनी ज़िल्द को असली बताते हुए
आपस में झगडते हैं
दीपक 'मशाल'

32 टिप्‍पणियां:

  1. रोटियों के दर्द को कौन समझे
    जो सिक रही है.
    विषय का विषयांतर हो गया है
    जिल्दे ही बिक रही है

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  2. Aapka dard samjh me aata hai ...bahut samay se dharm ke naam par ho rahi yah bahas yakin maniye bahut taklif pahuchati hai ki aaj pade likhe log aadhunik yug main bhi apane asali dharm "Manavta" se pare aisi baaton me ualajh man mutav bada rahe hai....

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  3. बेहतर भाव के साथ लिखी इस रचना में आपकी पीड़ा साफ झलकती है। मैं भी आज की हालात पर कहना चाहता हूँ कि-

    इन्सानियत ही कजहब सबको बताते हैं।
    देते हैं दगा आकर इनायत जताते हैं।

    खा करके सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
    फिर से लहू जलाकर रोटी जुटाते हैं।।

    साथ ही-

    मंदिर को जोड़ते जो मस्जिद वही बनाते
    मालिक है एक फिर भी जारी लहू बहाना

    मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत
    रोटी बड़ी या मजहब मुझको जरा बताना

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. माफ करियेगा - मजहब की जगह कजहब लिखा गया।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. bahut khoob likha hai Shyamal Suman sir.. ekdam dil ko chhoone wali baat kahi

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  6. बहुत सुन्दर रचना...

    फालतू बातों पर ध्यान न दें..अपना काम करें.

    शुभकामनाएँ.

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  7. Maine Pooncha Us Har Insan Se
    Jo Rahta Hai Is Jamin Par, Ki Tum Kon
    Ho, Wo Bola Na Main Hindu- Na Musalmaa
    Main To Hoon Ek Mamooli Insan

    Ye Sab Jativad Aur Dharmvad Failaya Hai
    Kuchh Matlab Parast Logon ne

    Dear Dipakji
    sahi likha aapne, nai jild ki tarah aaj
    jise dehko bo anpe aap ko badal raha hai

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  8. bahut sunder bhavo kee abhivykti asardaar sabit ho isee shubhkamna ke sath hai hum sabhee.............

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  9. sundar bhav aur behtareen abhivyakti ..peeda saaf dikhai padti hai.

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  10. मजहब हमें सिखाता आपस में बैर रखना,
    गुंडे हैं हम, कर्म है गुंडापना हमारा, हमारा.
    सारे जहाँ से अच्छा (था) हिन्दोस्तान हमारा.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  11. न हिंदू बनेगा, न मुसलमान बनेगा,
    इनसान की औलाद है तू इनसान बनेगा...

    बाकी समीर जी की बात पर पूरा ध्यान दो...

    जय हिंद...

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  12. कि क्यो आये हैं हम ज़मीं पर
    ये मकसद भुला ना दें......yahi mukhya baat hai, bahut badhiyaa

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  13. एक इंसान के मन की बात आप ने यहां लिख दी, बहुत सुंदर लेख ओर कविता

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  14. हम भी कल से यही सोच रहे थे। पर सही मार्गदर्शन मिलने से अब सब ठीक है :)

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  15. दीपक जी, बढ़िया लिखा है ! बात सिर्फ अपने धर्म के बड़ा बताने तक सीमित रहती तो भी ज्यादा बुरी बात नहीं कह सकते थे हद तब हो जाती है जब कैरानवी जैसे धर्म प्रचारक मिथ्या नाम " राहुल " और "धर्म की बात" ब्लॉग बनाकर दूसरे धर्म पर हमला करते है ! मैंने कल इसी बारे में सबूतों सहित एक लेख लिखा था!बात यह नहीं कि ये क्या कर रहे है बात यह है कि आप भी कब तक बर्दाश्त करोगे ?

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  16. बस इक झूठी सी बात पे.. हम हर रोज़ लड़ते हैं
    अपनी ज़िल्द को असली बताते हुए
    आपस में झगडते हैं
    मन की पीड़ा कितनी अच्छी तरह से व्यक्त किया है...काश सब लोग समझ पाते ये.

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  17. बस इक झूठी सी बात पे.. हम हर रोज़ लड़ते हैं
    अपनी ज़िल्द को असली बताते हुए

    जवाब देंहटाएं
  18. Godiyaal ji, aapki baat bhi theek hai..is tarah jhoothe naam se tippanee karna bhi dharm parivartan ki tarah hi hai. aur nindaneeya hai kahin hum kisi grah-yuddh ko janm na de den.. vaise to jeevan ko jeene ka tareeka bahut aasan hai lekin jeevan ko jab tak hum samajh pate hain tab tak jeevan hi shaam aa jati hai..

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  19. इंसानियत वाली जिल्द कम संख्या में है ।

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  20. हम सब जानते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करना हमारी आदत सी हो गई।


    मैंने महफूज भाई को तो सलाह दी है। अगर आप भी किताबों शौकीन हैं, तो बस एक बार the monk who sold his ferrari हिन्दी रूपांतरण संन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेच दी। पढ़ना।

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  21. सुंदर भाव के साथ.... सुंदर अभीव्यक्ति...

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  22. उतार फेंकी जिल्द हमने..ज़िन्दगी की किताब की
    सच कहा आपने,इन लोगो को अभी नहीं,जीवन के अंतिम समय में समझ आएगा जब करने को कुछ नहीं होगा,सिवाय पश्चाताप के.
    बहुत खूब
    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  23. bahut sacchai liye hue hai ye kavita...agar log iski goodhta ko samajh jaayein to saara jhagda hi khatm ho jaayega...
    main hi main hun is duniya mein aur na koye...
    bahut sarthak kavita likhi hai Deepak ..
    meri zild teri zild se jyada safed hai..:):)

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  24. बस इक झूठी सी बात पे.. हम हर रोज़ लड़ते हैं
    अपनी ज़िल्द को असली बताते हुए
    आपस में झगडते हैं

    कठोर सत्य यही है।
    बेहतरीन ।

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  25. सार्थक रचना ... न जाने हम कब इंसान बनेंगे ....

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  26. सही कहा। सबसे पहले हमें खुद को बदलना होगा। आपने कौरवो और पांडवों की शिक्षा का एक प्रसंग सुना होगा। गुरु द्रोण ने एक दिन सत्य बोलने का पाठ पढ़ाया और पाठ को स्मरण कर सुनाने की आज्ञा दी। अगले दिन सभी शिष्यों ने पाठ को ज्यों का त्यों सुना दिया। मगर युद्धिष्ठिर पाठ सुना नहीं सके और उन्होंने इसे स्मरण करने के लिए पंद्रह दिन का समय मांग लिया। सभी शिष्य युद्धिष्ठिर पर हंसे की एक छोटा सा पाठ याद नहीं कर सके। पंद्रह दिन बाद युद्धिष्ठि ने गुरु को पाठ सुनाया। गुरु ने पूछा, तुम्हें पाठ याद करने में इतना समय क्यों लग गया। तब युद्धिष्ठिर ने जवाब दिया, सत्य को जब तक मैं खुद में धारण नहीं कर लेता, तब तक कैसे आपको सुना सकता था। इसके बाद युद्धिष्ठिर ने झूठ नहीं बोला। हम खुद बदल जाएंगे तो दुनिया स्वत: बदल जाएगी।

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  27. लड़े जा रहे हैं जिल्द को लेकर,
    सब अपना जिल्द बेहतर बता रहे,
    अन्दर क्या है, किसी को होश नहीं...

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