शनिवार, 21 नवंबर 2009

नया नहीं बन पाया तो सम्बन्ध पुराना बना रहे..........................'बीती ख़ुशी' ......क्या हुआ जो आरज़ू लब तलक आयी नहीं........दीपक 'मशाल'

दोस्तों आज मैं आपकी खिदमत में २ रचनाएं पेश कर रहा हूँ, जिनमे से एक तो मेरी है और दूसरी मेरे किसी ऐसे अज़ीज़ की जिनके बिना मेरा जीवन अधूरा है... उनके नाम की बजाए उन्हें 'बीती ख़ुशी' कहना ज्यादा मुनासिब होगा.. लीजिये तो पहले उन्हीं का लिखा देखिये-

नया नहीं बन पाया तो सम्बन्ध पुराना बना रहे,
आखिर जीने की खातिर कोई बहाना बना रहे.
सच कहती हूँ कभी नहीं मैं तुमसे कुछ भी मागूंगी,
बस बेगानी बस्ती में इक ठौर ठिकाना बना रहे.
सहन कभी क्या कर पाएगी मेरे दिल की आहट ये,
तुम बेगाने हो जाओ गुलशन गुलज़ार ये बना रहे.
सुबह देर से आँखें खोलीं मैंने केवल इसीलिए,
बहुत देर तक इन आँखों में ख्वाब सुहाना बना रहे...
'बीती ख़ुशी'

अब इसके बाद मेरा घटिया टूटा फूटा भी पढ़ लीजिये-

क्या हुआ जो आरज़ू लब तलक आयी नहीं,
क्या हुआ गर इश्क ने मंजिल पायी नहीं.
सीने में है महफूज़ मेरे शम्मा-ए-चाहत अभी,
क्या हुआ अरमान पे जो चाँदनी छायी नहीं.
उम्र भर से दिल पे मेरे नाम है उसका सजा,
क्या हुआ जो उसने मेरी नज़्म कोई गायी नहीं.
हाथ मेरे जब उठे मांगी दुआ उसके लिए,
क्या हुआ जो मुश्किलों में संग वो आयी नहीं.
बहार हर क़दम मिले जाए 'मशाल' वो जिस गली,
क्या हुआ जो मेरी गली खुशियाँ वो लायी नहीं..
दीपक 'मशाल'
चित्र- दीपक 'मशाल' के कैमरे से..

34 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक लाला थारी उमर देख के लगता है ..यो खुशी अभी कुछ दिना पहले ही बीती होगी,,,,ओर जब यो सिर्फ़ खुशी रई होगी मतबल बीतने से पहले यार.....तब इसने यो लिख मारया..और तमारा मशाल तो जला रैवे ही है भाया ॥

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  2. दीपक जी,

    ऐसी बहुत सारी बीती खुशी लगभग सभी की जिंदगी में होती है, कोई इतनी हिम्मत कर पाता है और कोई नहीं। कोई भूल जाता है कोई नहीं। पर हाँ भूल जाना ही बेहतर है, प्रेम का अर्थ मंजिल प्राप्त करना नहीं होता, प्रेम का अर्थ एक दूसरे को दिल की गहराई से जानना और समर्पण, कुर्बानी और भी बहुत कुछ होता है जो लफ़्जों में समेट पाना नामुमकिन है।

    पर हाँ रचनाएँ दोनों बहुत अच्छी हैं।

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  3. दोनों बेहतरीन प्रस्तुति दीपक जी। चलिए मैं भी कोशिश करता हूँ टूटी फूटी पर-

    इश्क में मंजिल सभी को क्या मयस्सर है मशाल?
    फासले तो कम मगर पर मंजिलें पायी नहीं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. वेदना, करुणा और दुःखानुभूति को उजागर करती अच्छी रचनाएं। बधाई।
    जिसको चाहा वही मिला होता
    तो मुहब्बत मज़ाक़ हो जाती

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  5. अच्छी है और बेहतरीन है.. ईमेल से बता दो नाम बीती खुशी जो आती खुशी बन सकती है, का!! ..:)

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  6. सिर्फ पाना ही प्यार नहीं है...

    दोनों रचनाएँ बेहद खूबसूरत बन पड़ी हैँ

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  7. Deepak,
    dono rachnaayein bahut sundar...lekin mere bhai ki rachna perfect...yahi jazba hota hai jo insaan ko insaan kahlaane ka haq deta hai...aise hi zajbon se pata chalta hai ki koi vyakti sahi maayne mein kitna bada hai...jismein na to umr ko dekha jaata na paisa na rutba...
    aur aaj tum BADE ho gaye ho..
    khoob khush raho..
    Didi....

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  8. दीपक भाई क्या कहेँ, आपकी इस रचना के बारे में , बस समझिए दोनों पंक्तियाँ आपकी जैसे बरस पड़ी । आप ने जिस सहज लहजे में शब्दो को पिरोया वह वास्तव में काबिलेतारिफ है । लाजवाब , छा गये आप ।

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  9. सच कहती हूँ कभी नहीं मैं तुमसे कुछ भी मागूंगी,
    बस बेगानी बस्ती में इक ठौर ठिकाना बना रहे.

    वो आप से भीतर कवित्री है जनाव :)

    यार दीपक जी, दिल पे मत लेना आपने भी बहुत उम्दा रचना बनाई !

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  10. आदरणीय गोदियाल सर, आपने वो बात कह दी जो मैं सुनना चाहता था... क्योंकि मैंने इन्ही की कविताओं को देखकर लिखना प्राम्भ किया था.. और इसमें कोई शक नहीं की इन्होने लिखा बहुत कम है लेकिन बहुत सुन्दर लिखा है.. और भी हैं कभी वो भी पढ़ाता हूँ आपको..
    जय हिंद...

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  11. दीपक,
    बीती खुशी को महसूस करने के लिए फिल्म सीमा के इस गीत... जब भी ये दिल उदास होता है...
    का लिंक दे रहा हूं...सुनना ज़रूर...
    http://www.youtube.com/watch?v=IAZBDubz7_g&feature=related

    जय हिंद...

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  12. बहुत बहुत शुक्रिया खुशदीप भाई...
    जय हिंद...

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  13. दीपक तुम नाम के ही दीपक नहीं हो तुम्हारे विचार व्यवहार भी सब को रोशनी देने वाला है । विवेक जी ने सही कहा।प्यार की परिभाषा सभी नहीं समझ सकते। असल मे प्यार की पहचान ही तब होती है जब वो बिना कुछ माँगे बहुत कुछ दे देता है प्यार हमेशा त्याग मांगता है। और घर समाज के लिये ये जरूरी भी है । और फिर जब दोनो प्यार करने वाले इस एहसास को समझते हों तब तो ये प्यार हमेशा के लिये दिल मे बसा रहता है तुम्हारी खुशी से मिल कर बहुत खुशी हुई। वो भी तुम्हारी तरह बहुत सुन्दर लिखती हैं दोनो कवितायें लाजवाब हैं। दोनो का एक एक शब्द दिल को छूता है। असल मे प्यार वो नहीं जो मिल जाता हओ प्यार वो है जिसे बस तमाम उमर महसूस किया जाये और मिली हुई चीज़ से हमारी बहुत सी आपेक्षायें बन जाती हैं फिर प्यार कहां बचता है । प्यार तभी तक है जब तक हम दूर हैं। दोनो को बहुत बहुत आशीर्वाद । हाँ तुम्हारी कलम मे शायद इसी प्यार की ताकत है।

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  14. वियोगी हो रहे हैं,कुछ अर्ज़ करना चाहता हूं-
    (१)
    मिल जायेगी मंजिल इक दिन,दीपक भाई लगे रहो
    ध्यान ये रखना प्यार न कम हो ,दिल दीवाना बना रहे।
    (२)
    ऐसे कैसे हो गयी, दोनो की राहें जुदा
    क्या पलट कर आपने फिर से किया ट्राई नही

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  15. दीपक जी,

    इस बेहद खूबसूरत अशआर की मिठास शहद की तरह महसूसना चाहता हूँ :-

    सुबह देर से आँखें खोलीं मैंने केवल इसीलिए,
    बहुत देर तक इन आँखों में ख्वाब सुहाना बना रहे...

    यह हसरत तो हम सबमें हर किसी दिल में रही है :-

    उम्र भर से दिल पे मेरे नाम है उसका सजा,
    क्या हुआ जो उसने मेरी नज़्म कोई गायी नहीं.

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  16. ना..ना..दीपक जी कोई एहसास बीतता नहीं, पुराना नहीं पड़ता,..स्मृतियों में वो खुशी हमेशा जीवंत होती है और आने वाले पलों में मिलने वाली खुशियों के एक -एक पल-छिन का महत्व सुझा रही होती है...दोनों रचनाएँ जैसे एक-दूसरे के सामने अपलक निहारते हुए लिखी गयीं हों..बेहतरीन...युगल लेखन..

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  17. दीपक इस मामले मे क्या कहूं,सब विद्वान साथी अपनी राय दे रहे हैं।मै तो बस मज़ाक मे अपने कालेज के दिनो का एक किस्सा जो ब्लाग पर लिख चुका हूं उसका अंश बता रहा हूं।उन दिनो हमने एफ़ एल ए बना लिया था।फ़ेलवर लवर एसोसियेशन।चाहिये होगी तो इसकी मेम्बरशीप अभी भी खुली हुई है।बुरा मत मानना इस कमेण्ट का उद्देश्य तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि तुम्हारा मूड ठीक करना था।

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  18. अरे नहीं अनिल भैया बुरा किस बात का, वैसे भी मैं RAI(Randwa Association of India) का तो मेम्बर पहले से ही हूँ.. :) ये भी सही...
    जय हिंद..

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  19. are ye toota foota kise keh dia aapne hame to ekdam juda hua lage hai bhai....ekdam perfect type...
    dono rachnayen mashaallah bahut hi khubsurat hai....

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  20. बहुत बढिया रचना. बीती खुशी वर्तमान खुशी बने यही शुभकामना है.

    रामराम.

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  21. अभी पीछे मुड़कर देखने की नही, आगे बढ़ने की उमर है, दीपक।
    आगे बढ़कर तो देखो, ये जहाँ बहुत बड़ा है।

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  22. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  23. Ye line to khaas lagi...
    सुबह देर से आँखें खोलीं मैंने केवल इसीलिए,
    बहुत देर तक इन आँखों में ख्वाब सुहाना बना रहे...

    हम उम्मीद करते हैं कोई नयी ख़ुशी आती ही होगी..

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  24. क्या हुआ जो आरज़ू लब तलक आयी नहीं,
    क्या हुआ गर इश्क ने मंजिल पायी नहीं.

    बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है।

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  25. deepak ji
    sabne itna kah diya ki ab to kuch kahne ko bacha hi nhi.......dono hi nazmein apni apni jagah umda hain kyunki dono mein hi dil ke khyalat baraste hain.....dono ka hal-e-dil bayan bhi ho gaya aur kuch kaha bhi nhi........wo gaana yaad aa raha hai.....lab tharthara rahe the magar baat ho gayi ,kal raat zindagi se mulaqat ho gayi.
    dono nazmein padhkar kuch aisa hi mehsoos huaa.

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  26. deepak bahut hi dil se likhi hai ye poems....tarif ke kabil hai..

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  27. लगे रहो भाई लगे रहो !
    पर अब चिंता त्याग दो ...................शरद भाई और खुशदीप भाई ने खोज शुरू कर दी है आपकी 'आती ख़ुशी' की !
    बाकी एक बाराती हम भी है !

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  28. जबाबी मुशायरा हो गया यह तो..
    ..मगर इतनी जल्दी कैसे खत्म..रात अभी बाकी है दोस्त..

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  29. zindgi chalti rahti hai, chalti rahegi,
    kal wo thi, aaj koi aur, kal koi aur rahegi...

    hmm... coming back to the point... dono rachnayein shandaar hain... dusri wali ko aapne tooti footi bataya, accha nahi laga... bahut acchi rachna hai , ise aise visheshan na dein..
    aur pahli rachna.... ise kya kahun... perfect se better koi word hota bhi hai kya!!!

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