यकीं मानिये पिछले सवा साल से लगभग हर रोज़ अपने आप को सपने में हिन्दुस्तान में पाता हूँ... कभी कभी तो लगता है की सिर्फ मेरी देह यहाँ आ गई है, सिर्फ भौतिक शरीर यहाँ है.. बाकी आत्मा, मन, दिल सब भारत माँ के आँचल में रख के आया हूँ...
अपने आप ही 'काबुलीवाला' फिल्म के नायक की याद आ जाती है... और याद आ जाती है अपने मादरे वतन लौटने के लिए बेचैन उस काबुली वाले की तड़प, वो..... वो दृश्य अनायास ही आँखों के सामने उभर आता है जब बलराज साहनी(काबुलीवाला) साहब किरदार में जाँ डालते हुए, पंडित को बोलते हैं की ''ऐ बिरादर, तुम सबका हाथ देखता... ज़रा मेरा हाथ देख के बी बताओ की अम अपने वतन को कब वापिस जायेगा......'' और जब पंडित निकट भविष्य में उसके वापिस जाने के योग नहीं बताता तो... काबुली वाले का गुस्सा देखते ही बनता है... कुछ ऐसी ही तड़प आज मेरे दिल में है अपनी मिट्टी को पूरे १५ महीने बाद चूमने की..
इसी बात पे एक ज़ोरदार गाना सुनिए भाईसाब... अरे चलिए अब सुनना है तो जल्दी से इस लिंक दो बार चटका लगाइए सुनने के वास्ते बिरादर...
http://www.youtube.com/watch?v=FHO2hsXCfQo
और ये दूसरा लिंक जब आप सुनेंगे तो आपके दिल में एक टीस जरूर उठेगी, नहीं मानते तो सुन के देख लीजिये.. दिल आह ना कहे और आँख में पानी ना आये तो कहिये...
http://www.youtube.com/watch?v=1cDSOh_0YNA
शायद आपमें से कई लोगों को ये सब एक पागलपल लग रहा होगा... लेकिन क्या करुँ कैसे अपने दिल की ख़ुशी को समझाऊं आपको.. जैसे एक पिंजड़े में बंद पंछी ही आज़ादी का असली मतलब समझ सकता है.. वैसे ही मेरी हालात सिर्फ अपने वतन से बिछुड़े बन्दे समझ सकते हैं...
सोने के पिंजड़े की तरह मेरे आस पास भी बहुत खूबसूरती बिखरी है यहाँ बेलफास्ट(उत्तरी आयरलैंड, संयुक्त गणराज्य) में... कहने को तो बीते एक साल में कई उपलब्धियां बटोरीं.. जैसे हमारे चहेते माननीय पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम से भेंट और सवालों का वो सिलसिला.... पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का संगीत कार्यक्रम आयोजित कराना, उनसे मिलना और उनको करीब से जानना अपने आप में एक सुखद उपलब्धि है.... और भी कई नामचीन हस्तियों से मिलकर उनके व्यक्तित्व से प्रेरित होना.. लेकिन इस थोड़े से सुख को पाने के लिए लगता है बहुत कुछ खोया है....
अब आप चाहें तो इस सोने के पिंजड़े को खुद भी देख लीजिये... लेकिन ये कितना भी मनभावन लगे.. जो बात हमारी मिट्टी में है वो और कहाँ????
१- तो लीजिये सबसे पहले हमारे क्वीन'स विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत(लेन्योंन बिल्डिंग) से शुरुआत कीजिए---
2- अब लीजिये शहर की केंद्रीय इमारत(सिटी काउन्सिल) की चंद तस्वीरें.............................................................
३- ये है मुख्य बाज़ार.......................................................................................***************************
४- ये हैं एक मेले में----------------------------------------------------------------------------------------------------------->
५- और ये है वनस्पति उद्यान :) खूबसूरत है ना.... बिलकुल जैसे जेल में बगीचा........................................................
६- और ये तब की है जब एक दिन अंग्रेजों को अपने घर बुला के चटोरा बनाया था.... हा.. हा.. हा............................
७- ये पंडित जी के साथ यादगार मुलाकात........................................................................................................
८- आखिर में ये है यहाँ की दिसंबर की सर्दी में बर्फ़बारी के बाद का नज़ारा..........................................................
अब कहने को तो कई लोग ये ही कहेंगे की इतनी सुन्दर जगह में रहने में क्या तकलीफ?? तो इसका जवाब तो वो सोने के पिंजड़े वाला पंछी ही देगा.. हम तो २३ नवम्बर को अपने देश के लिए उड़ने की तैयारी में हैं भइया...
जय हिंद......
सभी चित्र दीपक 'मशाल' के कैमरे से....
सोने के पिंजड़े वाला पंछी ही देगा.,,सही कहा!!
जवाब देंहटाएंवैसे एक दो महिने में हम लन्दन आ रहे हैं..१० दिन के लिए..आसपास कई जगह जाने का कार्यक्रम है...तुमसे कहाँ मुलाकात होगी..जरा अपना फोन नम्बर ईमेल करना.
स्वदेश वापसी पर आपका स्वागत है ...मगर फिक्र भी ...वहां भारतीय बन कर रहना ज्यादा आसान रहा होगा ...भारत में क्या कहलाना पसंद करेंगे ..?? !!
जवाब देंहटाएंसमीर जी ये आपका बड़प्पन ही है की आप यहाँ आने पर मुझे अपने दर्शन का अवसर दे रहे हैं...वाणी मैम, आपने वास्तव में एक कठिन प्रश्न कर दिया है, सोचना पड़ेगा क्या बोलूँ. दिल्लीवाला, मराठी, या यू.पी. का भैया... :)
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन, शांति का उन्नति का प्यार का चमन,ऐसे ही नही है ..
जवाब देंहटाएंमाँ और मातृभूमि स्वर्ग के भी बढ़ कर है...स्वदेश आगमन पर आपका तहे दिल से स्वागत..
तूने पैसा बहुत कमाया,
जवाब देंहटाएंइस पैसे ने देश छुड़ाया,
पंछी पिंजड़ा तोड़ के आजा,
देश पराया छोड़ के आजा,
आजा उम्र बहुत है छोटी,
अपने घर में भी है रोटी...
चिट्ठी आई है,
वतन से चिट्ठी आई है,
बड़े दिनों के बाद,
हम बेवतनों को याद,
वतन की मिट्टी आई है,
चिट्ठी आई है, वतन से चिट्ठी आई है...
जय हिंद...
इतनी सुन्दर जगह में रहने में क्या तकलीफ?? तो इसका जवाब तो वो सोने के पिंजड़े वाला पंछी ही देगा..
जवाब देंहटाएंविरहा की गति विरहा जाने और न जाने कोय
दीपक जी आज तो आपने भावों के साथ चित्र गैलरी ही सजा दी बधाई,
"हमारा सजना भी क्या सजना,
आयेंगे सजना तो होगा सजना"
भाई मेरे देश में आपका स्वागत है...आप भारतीय हो..भारतीय बनकर ही आइये..भारतीय ही बने रहिये...
जवाब देंहटाएंदीपक यंहा भी सब तुम्हारे इंतज़ार मे वैसे ही बेकरार होंगे जैसे तुम।अब 23 को दिन भी नही रह गये ज्यादा।ज़ल्द आओ ,स्वागत है तुम्हारा।
जवाब देंहटाएंआपका अपनी सरज़मीं के लिए तड़पना लाज़िमी है बन्धु !
जवाब देंहटाएंभावुक कर दिया आपने...........
मैं samajh सकती हूँ इस उमंग को, मन गा रहा होगा
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=ROyYt6dLc_4
मैं तो बस यही जानती हूँ कि -
"लाख लुभाए महल पराये,अपना घर फिर अपना घर है
यही जज्बा सारे भारतवासियो मे होना चाहिये, आपके जज्बे को सलाम
जवाब देंहटाएंDeepak......... main tumhara tahe dil se intezaar kar raha hoon.....
जवाब देंहटाएंपंजरे के पंछी हमे पहले ही कल किसी ब्लाग पर तुम्हारी टोप्पणी से पता चल गया था कि भारत आने वाले हो । अब आ ही रहे हो तो मौसी से तो मिलने आयोगे ही। नंगल भाखडा बहुत खूबसूरत शहर है। बहुत बहुत आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंमैं जरूर आऊंगा मासी, महफूज़ भाई..आप सबसे मिले बिना क्या छुट्टियाँ सार्थक होंगी भी?
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ। अपने नीड़ की बात ही निराली होती है। आपकी यह यात्रा मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएंदीपक जी अपने वतन से बाहर रहने की टीस वो ही जान सकता है जो बाहर है...वहां की चमक दमक एक बार तो आँखें चौंधिया देती हैं लेकिन लोगों का ठंडा मिजाज़ आँखों पर पड़े परदे हो हटा देता है...कुछ लोग आलमे परेशानी में भी वतन से दूर रहे चले जाते हैं क्यूँ की वहां की भौतिक सुविधाएँ उन्हें वापस अपने देश नहीं आने देतीं...बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है आपने...भारत में आपका स्वागत है...
जवाब देंहटाएंनीरज
Jaiye bhai aish kariye ghar jake.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंSALAAM DEEPAK JI
जवाब देंहटाएंअरे वाह दीपक जी, अभी से बधाई और शुभ स्वागतम वतन में...
जवाब देंहटाएंऔर फिर गुरूदेव के पास आपकी किताब भी तो निकलने को तैयार है।
U made me cry by writing the way u did! I felt the pain & longing...almost lived thru it!
जवाब देंहटाएंदेश की माटी की भीनी सुगंध उन सुंदर बर्फ़ीली ठंडी वादियों में कहां? :)
जवाब देंहटाएंDeepak,
जवाब देंहटाएंham bhi aa rahe hain...
Hurrreeeeeyyyyy..
aur jo bhi tum kah rahe ho wo ham samjhte hain na..
PINJRA ??? YA HIGH CLASS JAIL ???
fark samajh mein nahi aaya hai abtak.
Didi..
सरजमी के लिये तडप तो होती है और होनी भी चाहिये.
जवाब देंहटाएंवापसी पर स्वागत
"waqt ka ye parinda" wah! kya khoob ghajal sunwai aapne.. aajtak apne hi desh mein rahe hain par aapki tadap ko ham samajh sakte hain.. welcome back!!!
जवाब देंहटाएंjai hind..
दीपक भाई आपका वतन से दूर रहने का दर्द और वापस आने की व्याकुलता हर वो प्रवासी का है जो अभी तक अपने जड़ों को भुला नहीं है |
जवाब देंहटाएंऔर जिन लोगों को वतन आने की व्याकुलता ना हो, वो इंसान है क्या ?
जय हिंद!